Saturday, October 27, 2012

Bharat Ki Prachinta Men Bhi Kuchh To Gun Hongen?

    प्राचीन जीवन शैली में बुरा क्या था ?

       प्राचीन जीवन शैली के विय में घोर घृणा फैलाने वाले लोगों की ईच्छा आखिर क्या है?वो क्या चाहते हैं कि भारतवर्ष की  पुरानी पहचान ही मिट जाए ? क्या भारत का हर आदमी पश्चिमी देशों का पिछलग्गू बन जाए? हर कोई कपड़े उतार कर घूमने लगे हर आदमी बेलेंटाइन डे मनावे और गली मोहल्लों चौराहों, पार्कों में एक दूसरे के मुख में मुख रगड़े ? इस तरह की तड़पन का इलाज क्यों नहीं ढूँढा जा रहा है।आखिर कौन जिम्मेदार है इस सामाजिक त्रासदी का?।
     कोई पार्क आज भले स्त्री पुरूषों  के लिए घूमने लायक नहीं बचा है।प्रायःपार्कों में शाम को साढ़े छै बजे से साढ़े आठ बजे के बीच अपने अपने कार्यक्षेत्रों से मुक्त होकर बासना ब्याकुल तरूणाई योजनाबद्ध ढंग से निकलती है पार्कों या अन्य सुनसान स्थलों की तलाश में घंटों भटकते हैं जोड़े ।कुछ को तो तय शुदा जगहों पर पहुँचने तक की भी तशल्ली  नहीं होती है।  रास्ते में ही बहुत कुछ निपटा रहे होते हैं, लाल बत्तियों पर खड़ी मोटर साइकिलों में बैठे जोड़े दोनों के मुख ढके होते हैं और न भी ढके हों तो कोई कर क्या लेगा?कारें तो सबसे सुरक्षित साधन हैं।
    और तो क्या कहें मैट्रो में घुसते ही शुरू हो जाती है जोड़ों में न केवल  अपने हिसाब  की बात चीत अपितु एक दूसरे के साथ की जा रही हरकतें एक दूसरे के प्रति हाव भाव इशारे बाजी आदि , आम आदमी की परवाह किए बगैर एक दूसरे को छूने की अश्लील भावभंगिमाएँ आदि ये सब बातें एक दूसरे को उत्तेजित कर देने के लिए के लिए पर्याप्त होती हैं।

     अब तो बस मौके की तलाश होती है।मौका मिलते ही इन्हें कुछ क्षणों के वैवाहिक जीवन का अनुभव मिला बस सुखी हो जाते हैं बेचारे। इनमें बात बनी तो प्यार और बिगड़ी तो बलात्कार ।

      दोनों में से एक तो बलात्कार के केश में फॅंसाने की तुरंत धमकी देती है दूसरा जान से मार देने की। दोनों अपने अपने स्तर से प्रयास भी करते हैं किंतु दोनों की सोच अपराध की ओर मुड़ चुकी होती है। इतनी जल्दी कौन सा कानून  या सरकार वहाँ  कैसे क्या व्यवस्था करे कि दोनों पक्षों की सुरक्षा हो सके  और यह फुर्ती कहाँ कहाँ कितनी जल्दी संभव हो सकता है ?

      कई जगह तो लड़कियों की हत्या इतनी निर्ममता से हुई होती है कि लगता  ही नहीं है कि इनमें कभी प्यार छोड़ो परिचय भी रहा होगा। इनमें पीड़ित पक्ष के गर्जियन कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहे होते हैं।
     कानून    के जिम्मेदार लोग विवश  हैं।उन्हें साफ साफ यही नहीं बताया जा रहा है कि उन्हें करना क्या है? दिल्ली के किसी पार्क में ऐसी ही कोई गतिविधि चल रही थी मैंने किसी से नंबर लेकर फोन करके बीट वाले सुरक्षा कर्मी को बुलाया जब वे पहुँचे तब तक जोड़ा जा चुका है।उन्होंने कहा कि तुमने झूठ काल की है, तुम थाने चलो मैं घर से किसी जरूरी काम के लिए निकला था खैर उन्हें मैंने अपना शैक्षणिक परिचय दिया तो उन्होंने हमें एक हिदायत देकर छोड़ दिया कि आप पढ़े लिखे लगते हो, आपको इस तरह के कामों से बचना चाहिए।मैंने कहा तो ऐसा देखकर भी न बोलें तो उन्होंने कहा कि बोलोगे तो पछताओगे  वैसे भी ये लोग चाकू तमंचा रखते हैं कब क्या कर दें किसका भरोस ? तुम तो अपना शांत ही रहो, जहॉं इस तरह कुछ दिखाई पड़े अपना वहॉं से हट जाओ। मैं साफ कह रहा हूँ  कि यदि वे मिल जाते तो भी मैं कुछ न करता, क्योंकि कोई घटना घटने से पहले हम पकड़ कर भगाना चाहें तो प्यार पर पहरा कह कर शोर मचाया जाएगा और घटना घटने के बाद ही पकड़ना है तो वो काम हम बाद में वैसे भी कर लेंगे।यह कहकर वो चले गए।

     मैं पार्क के चौकीदार के पास गया वो शराब के नशे  में बेहोश  था उससे हमने पूछा तो उसने कहा कि ये सब तो रोज होता है। खैर दूसरे दिन मैं जल्दी गया अभी चैकीदार नशे में नहीं हुआ था तो उसने बताया कि बीट वाले इन जोड़ों से पैसे लेते हैं और छोड़ देते हैं । मुझे रोज ड्यूटी करनी है मैं क्यों दुश्मनी पालूँ?

    एक जोड़े से पूछा कि तुम इस तरह की हरकतें करते हो अगर बत्ती आ जाए तो सब लोग देख लेंगे तो उसने कहा कि चौकीदार बत्ती जलने ही नहीं देगा उसने सौ रूपए लिए हैं। चौकीदार के पास मैं फिर गया पूछा कि बत्ती क्यों नहीं जल रही है?उसने बताया कि कोई सुनता ही नहीं है।यहॉं के विधायक जी भी नहीं सुनते।मैंने उसीसमय विधायक जी के यहॉं फोन किया तो पता लगा कि परसों बत्ती ठीक हुई थी।यह सच भी था पार्क में आए अन्य लोगों ने भी बताया कि चौकीदार ही पैसे लेकर बत्ती बंद कर देता है इसके जवाब में चौकीदार ने उस कमरे का ताला खोला जिसमें बत्ती काटने जोड़ने का जुगाड़ था तो मैंने पूछा कि जब चाभी तेरे पास होती है तो ये लड़के बत्ती कैसे काट सकते हैं?तो चैकीदार चुप हो गया और कहने लगा कि ये सब पुलिस वाले जानें। 

    मैं निगम पार्षद से मिला तो उन्होंने  कई रात में स्वयं चक्कर लगाए किंतु रोज उनके लिए भी संभव न था | एक दिन मैंने उनसे कहा कि आप प्रशासन को चुस्त करो तब बात बनेगी, तो कहने लगीं कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी तो दिल्ली सरकार की है।सी.एम. हाउस में फोन करके पूरी बात बतानी चाही तो जिनसे हमारी बात हो रही थी उन्होंने पार्क का नाम आते ही कहा कि पार्क तो एम.सी.डी. के कार्यक्षेत्र में आते हैं उनसे कहो और फोन रख दिया।
       कई मंत्री लोगों या नेताओं को कई बार पहले भी कहते सुना जा चुका है कि लड़कियॉं अपनी वेष  भूषा  सॅंभालें अपने रहन सहन में बदलाव लाएँ या कि अपनी सुरक्षा स्वयं करें आदि आदि। कुछ खाप पंचायतों ने जल्दी शादी करने का निर्णय लिया या महिलाओं के रहन सहन वेष  भूषा  आदि में सुधार लाने की बात कहनी शुरू कर दी।
      यह सब सुनकर मीडिया के महात्माओं ने न केवल शोर मचाना शुरू कर दिया अपितु अपने जैसे बिचारों वाले भाषण शेर समाज सुधारकों को साथ जोड़ लिया और चालू हो गई चैनलों पर बहस और भारत की प्राचीन सभ्यता को दी जाने लगीं गालियॉं।एक दयानंदी संप्रदाय के शेर ने दहाड़ते हुए सत्यार्थ प्रकाश  में लिखित बाल विवाह के विरोध का भी जिक्र करते हुए बाल विवाह की निंदा की।
      खैर मेरा इसमें समाज के समस्त प्रबुद्ध विचारकों से निवेदन केवल इतना है कि बलात्कार से लेकर कन्या हत्या, भ्रूणहत्या,दहेज हत्या आदि से बचने का रास्ता भी ढूँढना चाहिए। महिलाओं की दिनों दिन घटती संख्या हर किसी के लिए चिंता का विषय है। और ये सब हत्याएँ  जितने प्रतिशत सच हैं उतने प्रतिशत जघन्य अपराध हैं।अब इनकी केवल निंदा ही नहीं अपितु इस नीचता पर पूर्ण नियंत्रण भी होना चाहिए।
     कालगर्ल से लेकर वेश्या  वृत्ति,प्यार छल आदि सब कुछ क्या आम स्त्रीसमाज के साथ अन्याय नहीं है?और क्या इसमें पुरूषों के कुछ वर्गों की सहभागिता नहीं हैं क्या इसमें लड़कियों महिलाओं का एक वर्ग स्वेच्छया सम्मिलित नहीं है?इनमें जो भी सम्मिलित हैं उन्हें चिन्हित कैसे किया जाए?और उन्हें रोका कैसे जाए? यदि वे किसी मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं तो उसे रोकने का विकल्प क्या होगा?
      आखिर महिलाओं को पुरूषों  की बराबरी दिलाने के नाम पर कब तक चलाया जाएगा ये भ्रमात्मक सुधार ? आखिर कोई तो निर्णय होना ही चाहिए। वैसे भी अब बहुत देर हो चुकी है। यदि और कोई समाधान नहीं मिलता है तो फिर एक ही रास्ता है कि अपनी बहन बेटी की सुरक्षा चाहते हो तो दूसरे की बहन बेटी की सुरक्षा करनी शुरू कर दो।गर्लफ्रेंड और प्यार का पागलपन छोड़ कर जियो और जीने दो को अपनाओ।
      प्यार का विरोधी तो मैं नहीं हूँ किंतु प्यार की खोज जरूर करने का प्रयास है कि ये लोग क्या वास्तव में एक लड़की या लड़के से प्यार कर रहे होंगे? हमें तो विश्वावास नहीं होता है। आज स्वजनों से तो तेजी से संबंध बिगड़ रहे हैं माता पिता भाई बहनों चाचा ताउओं के संबंधों में तो प्यार नहीं दिखता तो एक अनजान  जोड़े के प्यार में कितना दम ? वस्तुतः ये प्यार न होकर शारीरिक संबंधों के स्वार्थ से खुले बाजार में बनाया गया एक संबंध टाईप ही समझौता होता है। आपसी अंडरस्टैंडिंग ऐसे जोड़ों में इतनी अच्छी होती है कि दोनों एक दूसरे के मुख में चम्मच डाल डाल कर खा खिला रहे होते हैं।
     खुले बाजार में इसलिए कहा क्योंकि दोनों ही लोग दोनों के साथ  सात सौ जन्म तक रहने का बचन देकर जुड़ते हैं और अगले ही पल उससे अच्छा कोई और दूसरा सौदा पटते जैसे ही दिखाई दिया तो सात सौ जन्म तक साथ रहने का बचन सात पल में ध्वस्त हो जाता है।यदि इस प्रकार की कोई संभावना दोनों की ही नहीं बनी तो दोनों एक दूसरे की मजबूरी आजीवन बने रहते हैं और निभ ही जाता है न निभने वाला वह संबंध भी।  

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