Monday, January 28, 2013

T. V. Channelon ki Sainik Nistha ko Naman

            26 जनवरी पर झाँकियाँ ही झाँकियाँ !

    जिसके पास इतनी ताकत हो उसके सैनिकों के शिर काट लिए गए।कायदा ये है कि हमें तो प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि जिस दिन अपने सैनिकों के शिर वापस लाएँगे  हमारा गणतंत्र दिवस और दिवाली सबकुछ उसी दिन होगा ।
   आज 26 जनवरी पर सब तरह की झाँकियाँ सारे विश्व ने जरूर  देखी होगी हमारे प्यारे भारत वर्ष की  समर सामर्थ्य !इसप्रकार वहाँ जो भी झाँकियाँ थीं उनमें कुछ सजीव तथा निर्जीव थीं, जो कुछ सजीव झाँकियाँ ऐसी थीं।जिनमें नेता, मंत्री मुन्त्री, प्रधान मंत्री टाईप की हँसती मुस्कुराती हुई थीं।उनके मुखमंडलों पर प्रणम्य भारतीय सैनिकों के शिर न ला पाने के लिए आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं दिख रहा था।सबकुछ झाँकियों में समिट सा चुका था सब तरह की झाँकियाँ और  झाँकियाँ ही झाँकियाँ !बस केवल झाँकियाँ ?या कुछ और? 
      यह सब  देख देखकर लग रहा था -वाह रे हम और हमारा देश!हमारे वीर सैनिकों ,वैज्ञानिकों ने देश के लिए बहुत कुछ बना चुना कर सँवार सुधारकर रखा है।इसीबल पर हमारे शौर्य संपन्न वीर सैनिक  हमेशा दुश्मनों को ललकारा करते हैं और जब जब उन्हें अवसर मिला है तब तब उन्होंने अपने अदम्य साहस का न केवल परिचय भी दिया है अपितु दुश्मनों के सहस्रों फनों को एक नहीं कई बार कुचला है ।आज भी इन सबके बीच भीरु राजनेताओं के सुषुप्त शौर्य को ललकारते हुए वीर सैनिकों ने जो रणकौशल दिखाए वो भारतीय जनसंपदा को ढाढस बँधाने के लिए कम नहीं थे।
      तरुणाई की अरुणिमा से आह्लादित रणबांकुरों का आत्मसम्मान से  दमकता हुआ देदीप्यमान उन्नत मस्तक ,छलकता हुए  शौर्य संपन्न प्रणम्य सैन्य समुदाय को देखकर  उस दिव्यता से हमारा हृदय भी हर्ष की हिलोरें मारने लगा । देश की मिट्टी के कण कण की रक्षा के लिए आतुर स्व तनों को तृणवत समझने वाले भारतीय वीरपुंगव सशस्त्र शूरमाओं को किसी की नजर न लग जाए यह सोच सोच कर मैं मन ही मन ईश्वर से उनके दीर्घायुष्य एवं कुशलता की कामना करने लगा। 
        रह रहकर  हृदय में हूक सी उठती थी कि कहाँ गए उन पवित्र भारतीय सैनिकों के प्रणम्य शिर? जिन्हें कभी ललकारा करते थे उन शत्रु सनिकों के आधीन होंगे हमारे भारती कुमारों के  शिर! जिनकी आन बान शान  सुरक्षा के लिए वो लड़े आखिर उन देशवासियों का उनके प्रति कोई दायित्व नहीं बनता है क्या ?आखिर क्या कर सकते हैं देशबासी?एकबार बोट देकर जिन्हें सत्ता सौंप चुके हैं अब क्या कर लेगा कोई उन  सत्तालु लोगों का ?कुछ भी करें या न करें।आखिर अपनी कर्मकुंडली उन्हें भी पता है कि जो जो हमने किया है जनता हमें अबकी चुनावों में  क्यों चुनेगी ?अगले चुनावों तक भूल जाएगी !ऐसे में हम आखिर क्यों किसी से दुश्मनी लें ?दूसरी बात यह भी है कि किसी राज नेता या उसके नाते रिश्तेदार का शिर तो है नहीं जो लाने की कोई मजबूरी ही हो! ये तो आम  सैनिक का शिर है इसलिए बस  बातों बातों में समय पास करना है कभी धमकी देंगे कभी माफी माँग लेंगे कह देंगे ये तो सामाजिक मजबूरी है इतना तो कहना करना ही पड़ता है।इसी प्रकार  थोड़े दिनों में सब स्वयं भूल भाल जाएँगे । यदि ऐसा न होता तो आम जनता को पता लगना चाहिए कि आखिर अपने देश के स्वाभिमान सम्मान का प्रतीक अपने वीर सैनिकों  के सम्माननीय शिर  कहाँ है और  कब मिलेंगे ?और यदि  उस समय सीमा के अन्दर नहीं मिले तो अपना शिर लाने के लिए सरकार का अग्रिम कदम क्या होगा ?साथ ही अपने देश की जन भावना से सभी देशों को अवगत करा दिया जाना चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर अपने शिर के साथ समझौता नहीं कर सकते।हाँ, यदि हम  ऐसा कहने करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं तो स्पष्ट  है कि हम भयग्रस्त हैं और दुर्भाग्य से यदि ऐसा है तो गणतंत्र दिवस पर वीरता की कहानी कहने वाली ये झाँकियाँ इस देश के  किस काम की ?
        अब झाँकियाँ दिखाने के साथ साथ शत्रु सेना में  झंझावात मचाने का समय है आखिर जिन   शिरों  के साथ देश का सम्मान जुड़ा हो वे  हमारे लिए सामान्य शिर नहीं है ।ये बात यदि हम एक बार नहीं समझा पाए तो शत्रु इसके बाद  कितनी भी बड़ी नीचता कर सकता है यह सोच कर मन सिहर उठता है कि सैनिकों का सम्मान स्वाभिमान एवं जीवन हमारे लिए  बहुमूल्य है।आखिर जिन देशवासियों की सुरक्षा के लिए वीर सैनिकों ने  अपना जीवन बलिदान किया है उस समर्पण का सम्मान करते हुए देशवासी यदि वे शिर भी न ला सके तो आखिर उन वीर सैनिकों के और किस काम आएँगे ?
     क्या उन सरकार में बैठे मठाधीशों को श्रद्धेय सैनिकों के सम्मान में उनकी अंत्येष्टि में पहुँचना नहीं चाहिए था? कानून की शिथिल व्यवस्था के कारण दुर्घटना की  शिकार हुई एक युवती के समान भी सम्मान के अधिकारी नहीं थे क्या देश के लिए शहीद हुए सैनिक?कानून की शिथिल व्यवस्था के कारण एक युवती के साथ दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना जैसा अक्षम्य अपराध होता है।वहाँ सरकार एवं समाज का रुख एक था तो  दूसरी ओर शहीद सैनिक अपनी युवती पत्नी छोटे छोटे बच्चे एवं वृद्ध माता पिता को घर में छोड़कर देशवासियों की रक्षा के लिए देश की सीमाओं की सुरक्षा में कठोर समर्पण की साधना करते करते प्राण न्योछावर कर देता है।ऐसे  सैनिकों के प्रति सरकार एवं समाज का रुख !उनके परिवारों के प्रति आर्थिक सहयोग देने वालों की सोच एवं सहयोग राशि में कितनी उपेक्षात्मक  असमानता है !
      इसीप्रकार क्रिकेट जैसे खेल में जीतने पर सरकार एवं समाज के धनशूरमाओं के द्वारा जो पुरस्कार या सहयोग राशि उन क्रिकेटरों को प्रदान की जाती है।क्या उसकी अपेक्षा सैनिकों के प्रति विशेष सम्मानजनक सोच नहीं होनी चाहिए ?क्रिकेटरों का सम्मान खेल के द्वारा  मनोरंजन से जुड़ा विषय है जबकि सैनिकों का सम्मान देश रक्षा से जुड़ा तनरंजन का  प्रश्न है।अब ये सरकार एवं समाज को सोचना है कि  हमारे लिए मनोरंजन या देश की सुरक्षा दोनों में विशेष सम्माननीय क्या होना चाहिए?आतंकवाद से सुरक्षा के लिए सैनिकों का उत्साह बर्धन बहुत आवश्यक है। मुझे लगता है कि जाने अनजाने एक बड़ी चूक हमसे हो रही है जिसका सुधार किया जाना चाहिए।
       शहीदों के सम्मान के समर्थन में आवाज उठाकर सैनिकों के शिर वापस लाने की माँग कर दबाव बना  रहे देश भक्त लोगों तथा संगठनों को सरकारी गृहमंत्री के द्वारा भगवा आतंकवाद में सम्मिलित बताकर समाज का ध्यान भटकाने जैसी ओछी हरकत नहीं की जानी चाहिए थी । मुझे  इस बात की महती बेदना है कि हमारे गृहमंत्री के मुख से आतंकवादियों की आत्माओं की आवाजें क्यों सुनाई दे रही हैं?आखिर इस तरह देश भक्त लोगों तथा संगठनों की राष्ट्रनिष्ठा की बलि देकर शत्रु देशों एवं लोगों को प्रसन्न करने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं ?यह गंभीर चिंता का विषय है !
         आखिर देश के सैनिकों के प्रणम्य शिरों के विषय में  ये सब बातें सुन सोच कर कोई कुछ न भी कहे तो भी हमारी सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधि नेताओं का खून क्यों नहीं खौलता? कहीं ऐसा तो नहीं है कि नौकर शाहों की तरह सरकार में सम्मिलित जनप्रतिनिधि नेताओं  का सरकार में अपना कोई वजूद नहीं है और जो खून सरकार का मालिक है वह खून भारतीय नहीं है तो वो देश के सैनिकों के शिरों के विषय में सोच कर खौलता कैसे ?आखिर वह खून देश के सैनिकों के सम्मान हेतु संकुचित क्यों दिखाई देता है ?
           भला हो उन टी.वी. चैनलों का जिन्होंने  ऐसे अवसरों पर भी अपनी आवाज दबने नहीं दी और यत्र तत्र जोर शोर से उठाते रहते हैं आज 26 जनवरी को भी उन टी.वी. चैनलों ने सरकार से बड़ी निर्भीकता पूर्वक अपने शहीद सैनिकों के शिर माँगे !  
      मित्रों! कारगिल विजय काव्य  लिखने  के बाद आज पहली बार गणतंत्र दिवस जैसे प्रसन्नता के अवसर पर भी शहीद सैनिकों की याद में  मैं कई बार रोया हूँ फिर भी यदि हमारे किसी वाक्य से किसी को विशेष ठेस लगी हो तो मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना न होकर अपितु देश भक्ति हेतु जन जागरण करना है। 

   






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