Thursday, February 28, 2013

कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ?

    ज्योतिषी कहलाने लिए बड़े पाप करने पड़ते हैं 
    प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर सौ प्रतिशत झूठ बोल रहे होते हैं जिसे किसी भी मंच पर सच सिद्ध नहीं किया जा सकता,कुछ लोग ज्योतिष पढ़ाने के नाम पर चैनलों पर कुछ बक रहे होते हैं।बस केवल इसलिए ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े लिखे  होगें नहीं तो पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन! कराई जाती है झूठी प्रशंसा!अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं।अपने मुख से अपने को गुरू जी बोलते हैं अपनी झूठी प्रशंसा अपने ही मुख से करते हैं सारा डाटा झूठ पर आधारित होता है जो वो बताते हैं कि उन्होंने किस किस का बहुत बड़ा फायदा किया या कराया!
    ऐसे कई पाखंड प्रिय लोग तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं कि देखो ये कितने काबिल हैं।अन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ पाखंड नहीं करना पड़ता है इस प्रकार बड़ा घातक होता है बिना पढ़े लिखे लोगों के ज्योतिषी कहलाना यही ईच्छा होने के कारण बड़े
बड़े ड्रामे करने पड़ते हैं इस धंधे में!अपने देश वासी आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए कितनी बेशर्मी करनी पड़ती है अपना मन कितना कठोर एवं पापी बनाना पड़ता है ये सब हमें पता है चूँकि हम इस काम से जुड़े हैं !यह भयंकर पाप करने में जो डरे वो हमारी तरह शास्त्रीय सच्चाई समाज के सामने रखने लगते हैं। इन्हीं सब बातों को सही सही समझाने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण मंच के अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु, उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट पर भी  उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा ।

पैंट शर्ट पहनने वाले ज्योतिषियों की मजबूरी आखिर क्या है क्यों गंदी करते घूम रहे हैं ज्योतिष की परंपराएँ !

जिन्हें ज्योतिष विद्वानों जैसे कपड़े  पहनने में इतनी शर्म लगती है उन्हें ज्योतिष की किताबें छूने में कितनी बेइज्जती लगती होगी !
 धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों पर  लोग पैंट शर्ट  पहनकर  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! वो किसी के फैशन से प्रभावित होकर अपनी ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल क्यों रखाते?शास्त्रीय विद्वानों की सबसे बड़ी पहचान यह भी है कि वो शास्त्रीय परम्पराओं एवं वेष भूषा से अकारण समझौता नहीं करते!ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत जिसने की होगी हो सकता है उसकी कोई मजबूरी रही हो! हो सकता है कि उसे ऐसा त्वचा से सम्बंधित रोग रहा हो जिसे  देख कर लोग घृणा करते हों उसे ढकने के लिए उसने ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत की हो किन्तु आज बहुत लोग ऐसा करने लगे हैं ये देखा देखी बन्दर बनने की परंपरा ठीक नहीं है जिसे अपनी परंपरा एवं  शास्त्रीय प्रमाणों से अथवा अपने ठोस तर्कों से प्रमाणित न किया जा सकता हो!नकलची बंदरों की तरह यदि हम भी केक काटने लगें आखिर क्यों?क्या हमें अपनी संस्कृति का स्वाभिमान नहीं होना चाहिए?हम अपने को इतना गया गुजरा क्यों समझें? हैपी बर्थ डे  आखिर क्या मतलब है इसका? बर्थ डे तो साल में एक दिन आएगा साल 365 दिनों में किसी एक दिन प्रसन्नता की और 364 दिनों के विषय में अनहैपीनेस की कितनी घटिया सोच होती है किसी के भविष्य के विषय में यह सोच?
      आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या? कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उसे  मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा! यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।
       इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता,चीटी,चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं, साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।
     जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है,ताकि समाज सच्चाई समझ कर ऐसे भोंदुओं को रिजेक्ट न कर दे।  
 



हमें अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करना चाहिए

           आखिर क्या मतलब है हैपी बर्थ डे का?
    धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों पर  लोग पैंट शर्ट  पहनकर  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! वो किसी के फैशन से प्रभावित होकर अपनी ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल क्यों रखाते?शास्त्रीय विद्वानों की सबसे बड़ी पहचान यह भी है कि वो शास्त्रीय परम्पराओं एवं वेष भूषा से अकारण समझौता नहीं करते!ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत जिसने की होगी हो सकता है उसकी कोई मजबूरी रही हो! हो सकता है कि उसे ऐसा त्वचा से सम्बंधित रोग रहा हो जिसे  देख कर लोग घृणा करते हों उसे ढकने के लिए उसने ठोढ़ी पर कटोरी कट बाल बढ़ाने की शुरुआत की हो किन्तु आज बहुत लोग ऐसा करने लगे हैं ये देखा देखी बन्दर बनने की परंपरा ठीक नहीं है जिसे अपनी परंपरा एवं  शास्त्रीय प्रमाणों से अथवा अपने ठोस तर्कों से प्रमाणित न किया जा सकता हो!नकलची बंदरों की तरह यदि हम भी केक काटने लगें आखिर क्यों?क्या हमें अपनी संस्कृति का स्वाभिमान नहीं होना चाहिए?हम अपने को इतना गया गुजरा क्यों समझें? हैपी बर्थ डे  आखिर क्या मतलब है इसका? बर्थ डे तो साल में एक दिन आएगा साल 365 दिनों में किसी एक दिन प्रसन्नता की और 364 दिनों के विषय में अनहैपीनेस की कितनी घटिया सोच होती है किसी के भविष्य के विषय में यह सोच?



समाज में शास्त्रीय संस्कारों का सृजन कैसे हो?

        धार्मिक मंडियों  में भी सब तरह का माल है! 
    खैर, क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है।धार्मिक जगत तो ऐसा फैशनोन्माद एवं अर्थ संचयोन्माद के भव चक्कर में न केवल फँस चुका है अपितु इसका इतना अधिक   शिकार हुआ है कि उसे अपना ही चरित्र ठीक करने का समय नहीं है समाज सुधार का बीड़ा उठावे ही कौन? और किसी की गर्ज क्या है जो इस चक्कर में पड़े?
      यह चित्र किसी अखवारी लेख से ही साभार उठाया गया है क्या इसे समाज में सदाचरण स्थापित रने वाला प्रयास माना जाएगा? जहाँ के बूढ़े ऐसे हों वहाँ के जवान कैसे होंगे ?ये किसी मंदिर का चित्र है जब मंदिरों  में ऐसा तो बसों में वैसा कैसे रोका जा सकेगा?
 

     यहाँ आधुनिक धार्मिक जगत में भी तो जिन्दा मुर्दा हर इंसान केवल पैसे कमाने में व्यस्त है बाबा समाज भी इससे अछूता नहीं है उसका  समाज के चारित्रिक पतन के पक्ष पर ध्यान ही नहीं जा रहा है।वैराग्य प्रदान करने वाली जो संगीतमय कथाएँ जो आज देखने सुनने को मिल रही हैं ये पहले नहीं होती थीं उन्हें पता था कि जब शरीर का साधारण आपरेशन जब तबला ढोलक बजाते हुए नहीं किया जा सका तो मन का गंभीर आपरेशन जिसमें जन्म जन्मान्तर फँसा हुआ है वह इतनी लापरवाही से कैसे किया जा सकता है और उसके दुष्परिणाम भी समाज पर साफ दिखने लगे हैं।
  आज बाबाओं की स्थिति यह है कि वे धनी और सुन्दर लोगों को मंडलेश्वर या महामंडलेश्वर बनाने पर अमादा हैं वहाँ कौन देख रहा है आज चरित्र, तपस्या, साधना, सदाचरण आदि को !
   जिन बाबाओं के विषय में मीडिया में कैसे कैसे ऊट पटांग वीडियो दिखाए गए  हैं, सारा विश्व समाज   न केवल साक्ष्य अपितु हतप्रभ है!शायद इसीलिए भ्रष्टाचार में पकड़े गए नेता लोग कहा करते हैं कि यदि आरोप सिद्ध हो गए तो हम  संन्यास ले लेंगे। राधे माँ,नित्यानंद टाईप के लोगों का यह सब लीला विलास टी.वी. पर देख सुन कर लोग क्या सोचते होंगे कि संन्यासी और महामंडलेश्वर आदि सब ऐसे लोग ही बनाए जाते होंगे क्या?
    धार्मिक मंडी में ऐसा माल  भी  है जिस दरवार में   किसी का उद्धार गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर तथा दसबंद माँगकर किया जाता है! 
     एक जगह और  ऐसी ही ट्रेडिंग चलती है ये  उस दसबंद माँगने वाले से  भी चार कदम आगे हैं। यहाँ कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी की जाती है फिर अपनी प्रशंसा में उनसे कुछ झूठ बोलवाया जाता है और कुछ खुद झूठ बोलकर इस छलहीन सनातनी समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रबीज बोए जाते हैं। ये लोग तो सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं ये विदेशों से दंद फंद कर कुछ सम्मान खरीद या माँग लाते हैं फिर धन बल से भारतीय अखवारों के पूरे पेज इन्हीं गपोड़ शंखी बातों से भर दिए जाते हैं।किन्तु ये बेचारे इतने अधिक सम्मानित हैं कि मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए,मंतर या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का भी असर होता है।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता! खैर किसी का क्या दोष?ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं। एक बात तो सच है साहब! शिक्षा,तपस्या आदि तो जो है सो है बल्कि धार्मिक जगत में भी अब आर्थिक उन्माद  जम कर हावी है।किसी ने यदि योग के नाम पर पेट हिलाकर या दिखाकर पैसे पैदा कर लिए हैं तो उसका चेहरा चमक जाता है और वह शिक्षित,तपस्वी,सदाचारी आदि सब कुछ मान लिया जाता है उसकी फोटो बिकने लगती हैं।एक उपदेशक तो इतने छिछले  हैं कि सामाजिक मर्यादा को भूल कर वो  जनता को कुछ भी बका करते हैं और धर्म के नाम पर जनता सब कुछ सहा करती है! धर्म के नाम पर चल रही ऐसी सभी प्रकार की अवारा गर्दी का असर जनता पर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है और बसों में बलात्कार हो रहे हैं। 
   प्राचीनकाल में सनातन धर्म के श्रद्धेय संतों ,तपस्वियों, सदाचारी, सज्जनों, विद्वानों आदि ने  जो  छाप  समाज  पर छोड़ी थी यद्यपि उसका असर अभी  भी समाज पर है किन्तु यदि पाखंड अधिक बढ़ ही गया तो आधुनिक पीढ़ी में वे प्राचीन संस्कार कहाँ तक दम बाँधेंगे?
       मुझे अभी भी भरोसा है कि हमारे शास्त्रीय संत एवं विद्वान् मिलकर कोई मध्यम मार्ग निकालकर युवा पीढ़ी में सनातन शास्त्रीय संस्कारों का सृजन करेंगे जिससे युवाओं में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति पर न केवल लगाम लगेगी अपितु बहन बेटियों का सम्मान सुरक्षित होगा देश अपने  अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा ।
 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।




धार्मिक जगत का यह लीला विलास !

        धार्मिक मंडियों  में आज सब तरह का माल है! 
    खैर, क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है।धार्मिक जगत तो ऐसा फैशनोन्माद एवं अर्थ संचयोन्माद के भव चक्कर में न केवल फँस चुका है अपितु इसका इतना अधिक   शिकार हुआ है कि उसे अपना ही चरित्र ठीक करने का समय नहीं है समाज सुधार का बीड़ा उठावे ही कौन? और किसी की गर्ज क्या है जो इस चक्कर में पड़े?
      यह चित्र किसी अखवारी लेख से ही साभार उठाया गया है क्या इसे समाज में सदाचरण स्थापित रने वाला प्रयास माना जाएगा? जहाँ के बूढ़े ऐसे हों वहाँ के जवान कैसे होंगे ?ये किसी मंदिर का चित्र है जब मंदिरों  में ऐसा तो बसों में वैसा कैसे रोका जा सकेगा?

     यहाँ आधुनिक धार्मिक जगत में भी तो जिन्दा मुर्दा हर इंसान केवल पैसे कमाने में व्यस्त है बाबा समाज भी इससे अछूता नहीं है उसका  समाज के चारित्रिक पतन के पक्ष पर ध्यान ही नहीं जा रहा है।वैराग्य प्रदान करने वाली जो संगीतमय कथाएँ जो आज देखने सुनने को मिल रही हैं ये पहले नहीं होती थीं उन्हें पता था कि जब शरीर का साधारण आपरेशन जब तबला ढोलक बजाते हुए नहीं किया जा सका तो मन का गंभीर आपरेशन जिसमें जन्म जन्मान्तर फँसा हुआ है वह इतनी लापरवाही से कैसे किया जा सकता है और उसके दुष्परिणाम भी समाज पर साफ दिखने लगे हैं।
  आज बाबाओं की स्थिति यह है कि वे धनी और सुन्दर लोगों को मंडलेश्वर या महामंडलेश्वर बनाने पर अमादा हैं वहाँ कौन देख रहा है आज चरित्र, तपस्या, साधना, सदाचरण आदि को !
   जिन बाबाओं के विषय में मीडिया में कैसे कैसे ऊट पटांग वीडियो दिखाए गए  हैं, सारा विश्व समाज   न केवल साक्ष्य अपितु हतप्रभ है!शायद इसीलिए भ्रष्टाचार में पकड़े गए नेता लोग कहा करते हैं कि यदि आरोप सिद्ध हो गए तो हम  संन्यास ले लेंगे। राधे माँ,नित्यानंद टाईप के लोगों का यह सब लीला विलास टी.वी. पर देख सुन कर लोग क्या सोचते होंगे कि संन्यासी और महामंडलेश्वर आदि सब ऐसे लोग ही बनाए जाते होंगे क्या?
    धार्मिक मंडी में ऐसा माल  भी  है जिस दरवार में   किसी का उद्धार गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर तथा दसबंद माँगकर किया जाता है! 
     एक जगह और  ऐसी ही ट्रेडिंग चलती है ये  उस दसबंद माँगने वाले से  भी चार कदम आगे हैं। यहाँ कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी की जाती है फिर अपनी प्रशंसा में उनसे कुछ झूठ बोलवाया जाता है और कुछ खुद झूठ बोलकर इस छलहीन सनातनी समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रबीज बोए जाते हैं। ये लोग तो सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं ये विदेशों से दंद फंद कर कुछ सम्मान खरीद या माँग लाते हैं फिर धन बल से भारतीय अखवारों के पूरे पेज इन्हीं गपोड़ शंखी बातों से भर दिए जाते हैं।किन्तु ये बेचारे इतने अधिक सम्मानित हैं कि मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए,मंतर या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का भी असर होता है।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता! खैर किसी का क्या दोष?ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं। एक बात तो सच है साहब! शिक्षा,तपस्या आदि तो जो है सो है बल्कि धार्मिक जगत में भी अब आर्थिक उन्माद  जम कर हावी है।किसी ने यदि योग के नाम पर पेट हिलाकर या दिखाकर पैसे पैदा कर लिए हैं तो उसका चेहरा चमक जाता है और वह शिक्षित,तपस्वी,सदाचारी आदि सब कुछ मान लिया जाता है उसकी फोटो बिकने लगती हैं।एक उपदेशक तो इतने छिछले  हैं कि सामाजिक मर्यादा को भूल कर वो  जनता को कुछ भी बका करते हैं और धर्म के नाम पर जनता सब कुछ सहा करती है! धर्म के नाम पर चल रही ऐसी सभी प्रकार की अवारा गर्दी का असर जनता पर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है और बसों में बलात्कार हो रहे हैं। 
   प्राचीनकाल में सनातन धर्म के श्रद्धेय संतों ,तपस्वियों, सदाचारी, सज्जनों, विद्वानों आदि ने  जो  छाप  समाज  पर छोड़ी थी यद्यपि उसका असर अभी  भी समाज पर है किन्तु यदि पाखंड अधिक बढ़ ही गया तो आधुनिक पीढ़ी में वे प्राचीन संस्कार कहाँ तक दम बाँधेंगे?
       मुझे अभी भी भरोसा है कि हमारे शास्त्रीय संत एवं विद्वान् मिलकर कोई मध्यम मार्ग निकालकर युवा पीढ़ी में सनातन शास्त्रीय संस्कारों का सृजन करेंगे जिससे युवाओं में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति पर न केवल लगाम लगेगी अपितु बहन बेटियों का सम्मान सुरक्षित होगा देश अपने  अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा ।
 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।




इस चारित्रिक पतन का जिम्मेदार कौन ?

        धार्मिक मंडियों  में भी सब तरह का माल है! 
    खैर, क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है।धार्मिक जगत तो ऐसा फैशनोन्माद एवं अर्थ संचयोन्माद के भव चक्कर में न केवल फँस चुका है अपितु इसका इतना अधिक   शिकार हुआ है कि उसे अपना ही चरित्र ठीक करने का समय नहीं है समाज सुधार का बीड़ा उठावे ही कौन? और किसी की गर्ज क्या है जो इस चक्कर में पड़े?
      यह चित्र किसी अखवारी लेख से ही साभार उठाया गया है क्या इसे समाज में सदाचरण स्थापित रने वाला प्रयास माना जाएगा? जहाँ के बूढ़े ऐसे हों वहाँ के जवान कैसे होंगे ?ये किसी मंदिर का चित्र है जब मंदिरों  में ऐसा तो बसों में वैसा कैसे रोका जा सकेगा?
 

     यहाँ आधुनिक धार्मिक जगत में भी तो जिन्दा मुर्दा हर इंसान केवल पैसे कमाने में व्यस्त है बाबा समाज भी इससे अछूता नहीं है उसका  समाज के चारित्रिक पतन के पक्ष पर ध्यान ही नहीं जा रहा है।वैराग्य प्रदान करने वाली जो संगीतमय कथाएँ जो आज देखने सुनने को मिल रही हैं ये पहले नहीं होती थीं उन्हें पता था कि जब शरीर का साधारण आपरेशन जब तबला ढोलक बजाते हुए नहीं किया जा सका तो मन का गंभीर आपरेशन जिसमें जन्म जन्मान्तर फँसा हुआ है वह इतनी लापरवाही से कैसे किया जा सकता है और उसके दुष्परिणाम भी समाज पर साफ दिखने लगे हैं।
  आज बाबाओं की स्थिति यह है कि वे धनी और सुन्दर लोगों को मंडलेश्वर या महामंडलेश्वर बनाने पर अमादा हैं वहाँ कौन देख रहा है आज चरित्र, तपस्या, साधना, सदाचरण आदि को !
   जिन बाबाओं के विषय में मीडिया में कैसे कैसे ऊट पटांग वीडियो दिखाए गए  हैं, सारा विश्व समाज   न केवल साक्ष्य अपितु हतप्रभ है!शायद इसीलिए भ्रष्टाचार में पकड़े गए नेता लोग कहा करते हैं कि यदि आरोप सिद्ध हो गए तो हम  संन्यास ले लेंगे। राधे माँ,नित्यानंद टाईप के लोगों का यह सब लीला विलास टी.वी. पर देख सुन कर लोग क्या सोचते होंगे कि संन्यासी और महामंडलेश्वर आदि सब ऐसे लोग ही बनाए जाते होंगे क्या?
    धार्मिक मंडी में ऐसा माल  भी  है जिस दरवार में   किसी का उद्धार गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर तथा दसबंद माँगकर किया जाता है! 
     एक जगह और  ऐसी ही ट्रेडिंग चलती है ये  उस दसबंद माँगने वाले से  भी चार कदम आगे हैं। यहाँ कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी की जाती है फिर अपनी प्रशंसा में उनसे कुछ झूठ बोलवाया जाता है और कुछ खुद झूठ बोलकर इस छलहीन सनातनी समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रबीज बोए जाते हैं। ये लोग तो सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं ये विदेशों से दंद फंद कर कुछ सम्मान खरीद या माँग लाते हैं फिर धन बल से भारतीय अखवारों के पूरे पेज इन्हीं गपोड़ शंखी बातों से भर दिए जाते हैं।किन्तु ये बेचारे इतने अधिक सम्मानित हैं कि मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए,मंतर या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का भी असर होता है।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता! खैर किसी का क्या दोष?ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं। एक बात तो सच है साहब! शिक्षा,तपस्या आदि तो जो है सो है बल्कि धार्मिक जगत में भी अब आर्थिक उन्माद  जम कर हावी है।किसी ने यदि योग के नाम पर पेट हिलाकर या दिखाकर पैसे पैदा कर लिए हैं तो उसका चेहरा चमक जाता है और वह शिक्षित,तपस्वी,सदाचारी आदि सब कुछ मान लिया जाता है उसकी फोटो बिकने लगती हैं।एक उपदेशक तो इतने छिछले  हैं कि सामाजिक मर्यादा को भूल कर वो  जनता को कुछ भी बका करते हैं और धर्म के नाम पर जनता सब कुछ सहा करती है! धर्म के नाम पर चल रही ऐसी सभी प्रकार की अवारा गर्दी का असर जनता पर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है और बसों में बलात्कार हो रहे हैं। 
   प्राचीनकाल में सनातन धर्म के श्रद्धेय संतों ,तपस्वियों, सदाचारी, सज्जनों, विद्वानों आदि ने  जो  छाप  समाज  पर छोड़ी थी यद्यपि उसका असर अभी  भी समाज पर है किन्तु यदि पाखंड अधिक बढ़ ही गया तो आधुनिक पीढ़ी में वे प्राचीन संस्कार कहाँ तक दम बाँधेंगे?
       मुझे अभी भी भरोसा है कि हमारे शास्त्रीय संत एवं विद्वान् मिलकर कोई मध्यम मार्ग निकालकर युवा पीढ़ी में सनातन शास्त्रीय संस्कारों का सृजन करेंगे जिससे युवाओं में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति पर न केवल लगाम लगेगी अपितु बहन बेटियों का सम्मान सुरक्षित होगा देश अपने  अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा ।
 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।




खैर, क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है।धार्मिक जगत तो ऐसा फैशनोन्माद एवं अर्थ संचयोन्माद का शिकार हुआ है कि उसका  समाज के चारित्रिक पतन के पक्ष पर ध्यान ही नहीं जा रहा है वे धनी और सुन्दर लोगों को मंडलेश्वर या  महामंडलेश्वर बनाने पर अमादा हैं।जिनके विषय में मीडिया में कैसे कैसे वीडियो दिखाए गए  हैं सारा विश्व साक्ष्य है!वैसे भी भ्रष्टाचार में पकड़े गए नेता लोग कहा करते हैं कि यदि आरोप सिद्ध हो गए तो हम  संन्यास ले लेंगे। राधे माँ ,नित्यानंद टाईप के लोगों का यह सब देख सुन कर लोग क्या सोचते होंगे कि संन्यासी और महामंडलेश्वर आदि सब ऐसे लोग ही बनाए जाते होंगे क्या?
     धार्मिक मंडी में ऐसा माल  भी  है जिस दरवार में   किसी का उद्धार गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर तथा दसबंद माँगकर किया जाता है! एक जगह और  ऐसी ही ट्रेडिंग चलती है ये  उस दसबंद माँगने वाले से से भी चार कदम आगे हैं,यहाँ कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी की जाती है फिर अपनी प्रशंसा में उनसे कुछ झूठ बोलवाया जाता है कुछ खुद झूठ बोलकर इस छलहीन सनातनी समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रबीज बोए जाते हैं ये सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं ये विदेशों से दंद फंद कर कुछ सम्मान खरीद या माँग लाते हैं फिर धन बल से भारतीय अखवारों के पूरे पेज इन्हीं गपोड़ शंखी बातों से भर दिए जाते हैं।किन्तु ये बेचारे इतने अधिक सम्मानित हैं कि मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता! खैर किसी का क्या दोष? ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं । एक बात तो सच है साहब शिक्षा ,तपस्या आदि तो जो है सो है बल्कि धार्मिक जगत में भी अब आर्थिक गुंडा गर्दी जम कर हावी है।किसी ने यदि योग के नाम पर पेट हिलाकर या दिखाकर पैसे पैदा कर लिए हैं तो उसका चेहरा चमक जाता है और वह शिक्षित,तपस्वी,सदाचारी आदि सब कुछ मान लिया जाता है उसकी फोटो बिकने लगती हैं।एक उपदेशक तो इतने मुचंड हैं कि सामाजिक मर्यादा को भूल कर वो  जनता को कुछ भी बका करते हैं और धर्म के नाम पर जनता सब कुछ सहा करती है! ऐसी सभी प्रकार की धार्मिक अवारा गर्दी का असर जनता पर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है और बसों में बलात्कार हो रहे हैं। 
     सनातन धर्म के श्रद्धेय सन्तान  संतों ,तपस्वियों, सदाचारी, सज्जनों, विद्वानों   ने  जो  छाप  समाज  पर छोड़ी है उसका असर अभी  भी समाज है किन्तु यदि पाखंड अधिक बढ़ ही गया तो आधुनिक पीढ़ी में वे प्राचीन संस्कार कहाँ तक दम बाँधेंगे ?मुझे अभी भी भरोसा है कि हमारे शास्त्रीय संत एवं विद्वान् मिलकर कोई मध्यम मार्ग निकालकर युवा पीढ़ी में सनातन शास्त्रीय संस्कारों का सृजन करेंगे जिससे युवाओं में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति पर न केवल लगाम लगेगी अपितु बहन बेटियों का सम्मान सुरक्षित होगा देश अपने  अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा ।

केवल पुलिस के बल पर सारे समाज को कैसे सुरक्षा प्रदान की जा सकती है

 इससमय भले, चरित्रवान, ईमानदार, स्त्री पुरुषों  की   समाज को आवश्यकता   है 

   इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुक पाने प में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?
     अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ? सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?
    एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर सड़कों पर ही बीतती है,फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक आदत नहीं है कुछ जिम्मेदारी तो स्वयं भी सँभालनी चाहिए।आज चौराहे पर कोई किसी को मारे पीटे लूट पाट करे किसी महिला को उठा ले जाए शील हरण करे ये सब देखते हुए भी कोई बोलने को तैयार नहीं है हो सकता है चार लोग विरोध करने लगें तो ऐसी किसी दुर्घटना की नौबत ही न आए किन्तु आज जब कोई बोलना ही नहीं चाहता है तो दिन हो या रात अपराधी स्वतंत्र हैं।
   हर  कोई पुलिस वालों से आशा लगा के बैठा है किन्तु अकेले पुलिस क्या करे मैं तो पुलिस के इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष,वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?लड़कियों की सुरक्षा पर यह सोचने की जरुरत है कि किसी एकान्तिक स्थान में सारी सामाजिक मर्यादाएँ ताख पर रख कर  प्रेम के नाम पर वो जिसके गले लगती हैं यदि वो किसी और पर फिदा होता है तो वो तथाकथित प्रेमी इस लड़की की हत्या कितने मिनट में कर देगा कब गला दाब देगा किसी को क्या पता ऐसे में क्या करे पुलिस ? यदि पहले से सतर्क हो तो प्यार पर पहरा कहकर लोग चिल्लाने लगते हैं। यदि मर्यादित कपड़े पहनने  या मर्यादित रहन सहन की सलाह दी जाती है तो महिला अधिकारों पर हमला दिखता है शोर मचने लगता है। इसलिए जहाँ तक मेरा अपना मानना है कि ऐसी अवस्था में महिला सुरक्षा के विषय में चाह कर भी पुलिस कुछ  प्रभावी भूमिका निभा पाएगी मुझे संदेह है मैं इस युग में वर्तमान समाज से बहुत ईमानदारी की आशा  ही नहीं कर पा रहा हूँ।क्योंकि यदि हमने फिल्में देखकर आधे अधूरे कपड़ों में रहना प्रेम प्यार से किसी  के गले लगना सीखा है तो फिल्मों में खलनायक भी होते थे उनसे प्रभावित होने वाले लड़की उठा ले जाने वाली रस्म  अदायगी  की प्रक्रिया कहाँ निभाएँगे ?उन्हें कौन और कैसे गलत सिद्ध करे ?फिल्मों का प्रभाव सब पर बराबर पड़ा है जिसने फिल्मों से जो कुछ सीखा है वो सब इसी समाज में अनुभव कर के देखना चाहता है।फिल्मों में कोई दुर्घटना घटने पर पुलिस आती है केस होता है गिरफ्तारी होती है सब कुछ वैसा ही हो रहा है फिर पुलिस से शिकायत कैसी?किसी को क्या कहा जाए समाज का फिल्मीकरण हो रहा है। इसमें जो भले, चरित्रवान,ईमानदार, स्त्री पुरुष फिल्मों के हिसाब से नहीं चल पाते हैं फैशन के नाम पर फिल्मों के द्वारा जब उन पर विदेश थोपा जा रहा होता है तो  उन्हें घुटन होना स्वाभाविक है वे परेशान होते हैं किन्तु उनकी पीड़ा से किसी को क्या लेना देना? मानों इस समाज पर उनका कोई अधिकार ही नहीं है ?

नैतिक शिक्षा का विस्तार हो

 इससमय भले, चरित्रवान, ईमानदार, स्त्री पुरुषों  की   समाज को आवश्यकता   है 

   इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुक पाने प में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?
     अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ? सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?
    एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर सड़कों पर ही बीतती है,फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक आदत नहीं है कुछ जिम्मेदारी तो स्वयं भी सँभालनी चाहिए।आज चौराहे पर कोई किसी को मारे पीटे लूट पाट करे किसी महिला को उठा ले जाए शील हरण करे ये सब देखते हुए भी कोई बोलने को तैयार नहीं है हो सकता है चार लोग विरोध करने लगें तो ऐसी किसी दुर्घटना की नौबत ही न आए किन्तु आज जब कोई बोलना ही नहीं चाहता है तो दिन हो या रात अपराधी स्वतंत्र हैं।
   हर  कोई पुलिस वालों से आशा लगा के बैठा है किन्तु अकेले पुलिस क्या करे मैं तो पुलिस के इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष,वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?लड़कियों की सुरक्षा पर यह सोचने की जरुरत है कि किसी एकान्तिक स्थान में सारी सामाजिक मर्यादाएँ ताख पर रख कर  प्रेम के नाम पर वो जिसके गले लगती हैं यदि वो किसी और पर फिदा होता है तो वो तथाकथित प्रेमी इस लड़की की हत्या कितने मिनट में कर देगा कब गला दाब देगा किसी को क्या पता ऐसे में क्या करे पुलिस ? यदि पहले से सतर्क हो तो प्यार पर पहरा कहकर लोग चिल्लाने लगते हैं। यदि मर्यादित कपड़े पहनने  या मर्यादित रहन सहन की सलाह दी जाती है तो महिला अधिकारों पर हमला दिखता है शोर मचने लगता है। इसलिए जहाँ तक मेरा अपना मानना है कि ऐसी अवस्था में महिला सुरक्षा के विषय में चाह कर भी पुलिस कुछ  प्रभावी भूमिका निभा पाएगी मुझे संदेह है मैं इस युग में वर्तमान समाज से बहुत ईमानदारी की आशा  ही नहीं कर पा रहा हूँ।क्योंकि यदि हमने फिल्में देखकर आधे अधूरे कपड़ों में रहना प्रेम प्यार से किसी  के गले लगना सीखा है तो फिल्मों में खलनायक भी होते थे उनसे प्रभावित होने वाले लड़की उठा ले जाने वाली रस्म  अदायगी  की प्रक्रिया कहाँ निभाएँगे ?उन्हें कौन और कैसे गलत सिद्ध करे ?फिल्मों का प्रभाव सब पर बराबर पड़ा है जिसने फिल्मों से जो कुछ सीखा है वो सब इसी समाज में अनुभव कर के देखना चाहता है।फिल्मों में कोई दुर्घटना घटने पर पुलिस आती है केस होता है गिरफ्तारी होती है सब कुछ वैसा ही हो रहा है फिर पुलिस से शिकायत कैसी?किसी को क्या कहा जाए समाज का फिल्मीकरण हो रहा है। इसमें जो भले, चरित्रवान,ईमानदार, स्त्री पुरुष फिल्मों के हिसाब से नहीं चल पाते हैं फैशन के नाम पर फिल्मों के द्वारा जब उन पर विदेश थोपा जा रहा होता है तो  उन्हें घुटन होना स्वाभाविक है वे परेशान होते हैं किन्तु उनकी पीड़ा से किसी को क्या लेना देना? मानों इस समाज पर उनका कोई अधिकार ही नहीं है ?

भारतीय समाज में चरित्र निर्माण कैसे हो ?

 इससमय भले, चरित्रवान, ईमानदार, स्त्री पुरुषों  की   समाज को आवश्यकता   है 

   इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुक पाने प में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?
     अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ? सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?
    एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर सड़कों पर ही बीतती है,फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक आदत नहीं है कुछ जिम्मेदारी तो स्वयं भी सँभालनी चाहिए।आज चौराहे पर कोई किसी को मारे पीटे लूट पाट करे किसी महिला को उठा ले जाए शील हरण करे ये सब देखते हुए भी कोई बोलने को तैयार नहीं है हो सकता है चार लोग विरोध करने लगें तो ऐसी किसी दुर्घटना की नौबत ही न आए किन्तु आज जब कोई बोलना ही नहीं चाहता है तो दिन हो या रात अपराधी स्वतंत्र हैं।
   हर  कोई पुलिस वालों से आशा लगा के बैठा है किन्तु अकेले पुलिस क्या करे मैं तो पुलिस के इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष,वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जाने ! मैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?लड़कियों की सुरक्षा पर यह सोचने की जरुरत है कि किसी एकान्तिक स्थान में सारी सामाजिक मर्यादाएँ ताख पर रख कर  प्रेम के नाम पर वो जिसके गले लगती हैं यदि वो किसी और पर फिदा होता है तो वो तथाकथित प्रेमी इस लड़की की हत्या कितने मिनट में कर देगा कब गला दाब देगा किसी को क्या पता ऐसे में क्या करे पुलिस ? यदि पहले से सतर्क हो तो प्यार पर पहरा कहकर लोग चिल्लाने लगते हैं। यदि मर्यादित कपड़े पहनने  या मर्यादित रहन सहन की सलाह दी जाती है तो महिला अधिकारों पर हमला दिखता है शोर मचने लगता है। इसलिए जहाँ तक मेरा अपना मानना है कि ऐसी अवस्था में महिला सुरक्षा के विषय में चाह कर भी पुलिस कुछ  प्रभावी भूमिका निभा पाएगी मुझे संदेह है मैं इस युग में वर्तमान समाज से बहुत ईमानदारी की आशा  ही नहीं कर पा रहा हूँ।क्योंकि यदि हमने फिल्में देखकर आधे अधूरे कपड़ों में रहना प्रेम प्यार से किसी  के गले लगना सीखा है तो फिल्मों में खलनायक भी होते थे उनसे प्रभावित होने वाले लड़की उठा ले जाने वाली रस्म  अदायगी  की प्रक्रिया कहाँ निभाएँगे ?उन्हें कौन और कैसे गलत सिद्ध करे ?फिल्मों का प्रभाव सब पर बराबर पड़ा है जिसने फिल्मों से जो कुछ सीखा है वो सब इसी समाज में अनुभव कर के देखना चाहता है।फिल्मों में कोई दुर्घटना घटने पर पुलिस आती है केस होता है गिरफ्तारी होती है सब कुछ वैसा ही हो रहा है फिर पुलिस से शिकायत कैसी?किसी को क्या कहा जाए समाज का फिल्मीकरण हो रहा है। इसमें जो भले, चरित्रवान,ईमानदार, स्त्री पुरुष फिल्मों के हिसाब से नहीं चल पाते हैं फैशन के नाम पर फिल्मों के द्वारा जब उन पर विदेश थोपा जा रहा होता है तो  उन्हें घुटन होना स्वाभाविक है वे परेशान होते हैं किन्तु उनकी पीड़ा से किसी को क्या लेना देना? मानों इस समाज पर उनका कोई अधिकार ही नहीं है ?

ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस का ड्रामा या सच ?

 ज्योतिष शास्त्र का उपहास करते ज्योतिषीऔरमीडिया !
     कुछ टी.वी. चैनल हर तरफ से  हो रहे अपराधों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाज उठा रहे  हैं यह अत्यंत प्रशंसा की बात है।सनातनधर्म से जुड़े मानव मूल्यों को खोजने में बड़ा व्यस्त दिखते  हैं।हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी बिन्दुओं पर अपनी क्षमताओं के आधार पर पूर्ण समर्पित से   दिखते  हैं। 
    मेरा एक निवेदन जरूर है कि हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी
.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर न केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता भी  देखता हूँ ।
    अक्सर
टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी और न ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है!           
    कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को न पढ़ पाने न जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने के लिए विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत तक नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!
     ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए ।
ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं ।   
    टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके अपने अज्ञान का विज्ञापन करना होता है। 
   मैं सोचता हूँ कि टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने शास्त्रीय अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से!     
      प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है।
      वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर जमीन से निकालकर भूमि शोधन करना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।

    
      पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है।प्रायः टी.वी.ज्योतिष परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार,दर्शक,साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।
      इस प्रकार से मीडिया में  की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदर!उस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में!
   पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.. पी.एच.डी
.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या?और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?   

Wednesday, February 27, 2013

क्या फाँसी के फंदे के भय से रोके रुकेंगे हमारे देश के नौ जवान?

देश और समाज की सुरक्षा पुलिस भरोसे! वह भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर किसकी ओर देखेगा यह समाज ?

कुछ  टी.वी. चैनल हर तरफ से  हो रहे अपराधों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाज उठा रहे  हैं यह अत्यंत प्रशंसा की बात है।सनातनधर्म से जुड़े मानव मूल्यों को खोजने में बड़ा व्यस्त दिखते  हैं।हिन्दू धर्म एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी बिन्दुओं पर अपनी क्षमताओं के आधार पर पूर्ण समर्पित से   दिखते  हैं

मेरा एक निवेदन जरूर है कि हर विषय में अपराध एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले ये टी.वी.चैनल सनातनधर्म से जुड़े शास्त्रीय विषयों एवं धार्मिक विषयों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर  केवल  मौन हैं  अपितु  कुछ मामलों में लगभग सभी  टी.वी. चैनलों को  ऐसे लोगों का साथ देता देखता हूँ 

अक्सर टी.वी.चैनलों पर धर्म के नाम पर अधार्मिक बातों को एवं शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय झूठ को अपना शास्त्रीय रिसर्च नाम देकर बड़ी निर्लज्जता पूर्वक बड़ी जोरदारी से  लोगों को बोलते  हुए सुना जाता है।कुछ लोग सच समझ कर मान भी लेते हैं। कुछ झूठ फरेब कहकर ज्योतिष शास्त्र एवं विद्वानों की निंदा करने लगते हैं।मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे अशास्त्रीय झुट्ठों के विरुद्ध कभी किसी टी.वी.चैनल ने  कोई मुहिम चलाने की जरूरत ही नहीं समझी, और ही ऐसे  शास्त्रीय विषयों में किसी टी.वी.चैनल से जन जागरण के लिए कोई स्पष्टीकरण ही दिया जाता है

इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के रुकपाने पाने में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

अध्यापक वर्ग शिष्याओं के शीलहरण जैसी निरंकुश  मटुकनाथों की  निंदनीय  जीवन शैली के आगे विवश है।आखिर कौन सत्प्रेरणा दे समाज को?बिना इसके क्या करे अकेला कानून ?किसे किसे फाँसी दे दी जाएगी ?आखिर और भी तो कोई रास्ता खोजना चाहिए जो बिना  फाँसी और बिना जेल के भी सुधार का पथ प्रशस्त करे !क्या समाज के सत्पुरुषों का समाज के लिए अपना कोई दायित्व नहीं बनता ? सबकी तरह पुलिस भी यदि पल्ला झाड़ ले तो फिर कहाँ जाएगा यह समाज ?

एक जीवित व्यक्ति को उठाना हो तो आराम से उठाया जा सकता है किन्तु उससे चेतना निकलते ही वह शव रूप में  भारी हो जाता है और उसे उठाना कठिन हो जाता है।इसी प्रकार आज का समाज पूरी तरह कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार के भरोसे सुरक्षित  होना चाहता है।क्या यह अधिक अपेक्षा नहीं लगा रखी गई है?समाज को अपने स्तर से भी उपाय सोचने एवं करने होंगे।इस प्रकार संस्कारों से सचेतन  समाज को कानून व्यवस्था, पुलिस और सरकार आराम से सुरक्षित कर लेगी।हो सकता है कि व्यवस्था,राजनीति एवं पुलिस से जुड़ा एक वर्ग भ्रष्टाचार में लिप्त हो किन्तु उतना ही सच यह भी है कि एक बहुत बड़ा वर्ग देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने में पूर्ण प्रयत्नशील अर्थात जी जान से जुटा हुआ  है।गर्मी ,शर्दी ,वर्षा,आग ,बाढ़,से लेकर घर में साँप निकलने तक हर प्रकार की आपदा में हमारे साथ दिनरात पुलिस प्रशासन खड़ा मिलता है।हर प्रकार के अपराधियों का सामना करते हुए इनकी होली दीवाली अक्सर रोडों पर ही बीतती है।फिरभी हरप्रकार की परेशानी के लिए प्रशासन को ही कोसते रहना ठीक नहीं है।मैं तो इन सभी लोगों का अपने को ऋणी मानता हूँ ,साथ ही सोचता हूँ कि जब हमारा धार्मिक समाज सदाचारी था तब बिना पुलिस प्रशासन के भी लोग जंगलों में भी सकुशल रह लिया करते थे और जब से धार्मिक समाज सदाचार से दूर होकर  केवल धन कमाने के लिए ज्योतिष, वास्तु, कथा, प्रवचनों के नाम पर झूठ बोलने लगा ।साथ ही केवल धन कमाने के लिए योग से रोग भगाने का ढोंग करने लगा तो इन पाखंडों का दुष्प्रभाव समाज पर तो पड़ना ही था सो पड़ा,अब  बस पर बलात्कार हो चाहें जहाज पर हो,सुधरना तो सबको पड़ेगा।कानून के बल पर ऐसे रामराज्य की तो आशा हमें भी  नहीं करनी चाहिए कि दो चार किलो सोना खुले रोड पर सब को दिखाते हुए लेकर चलेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा।सोना तो कोई छू ले तो उसकी कीमत नहीं नहीं घटती फिर सम्माननीय नारी समाज  की इज्जत तो अपवित्र भावना से किसी पर पुरुष के  स्पर्श करते  ही पीड़ा प्रद हो जाती है।उसमें भी फैशन के नाम पर आधे अधूरे भड़कीले वस्त्रों में रहकर वर्तमान परिस्थिति में तो वातावरण सुरक्षित होते  नहीं लगता है आगे की ईश्वर जानेमैं भी रामराज्य का पक्षधर हूँ किन्तु आवे कैसे?

   कई बार मैं टी.वी.पर ज्योतिष के नाम पर मनगढ़ंत अशास्त्रीय भाषण करते किसी को सुनता हूँ लोग शास्त्रों के नाम पर अशास्त्रीय भाषण करके अपने को विद्वान्  सिद्ध करने में भारी भरकम झूठ का सहारा ले रहे होते हैं ।ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों  के विराट ज्ञान सागर को पढ़ पाने, जानने समझने वाले लोग ऐसे ही आधार हीन ब्यर्थ बकवासी कयास लगाया करते हैं,किन्तु टी.वी.चैनल उनसे उनकी उस शास्त्रीय  विषय की योग्यता जानने की विश्व विद्यालयीय डिग्री प्रमाणपत्र माँगने की जरुरत नहीं समझते हैं।वह अज्ञानी व्यक्ति उनके चैनल पर चाहे जितना अशास्त्रीय गंध बक कर चला जाए!ज्योतिष आदि धार्मिक विषयों में फर्जी डिग्री वालों पर कोई कानूनी शिकंजा भी नहीं कसा जाता है फिर मैं मीडिया के मित्रों एवं कानून प्रशासन से लेकर समाज के हर वर्ग से कहना चाहता हूँ कि सुधरना हम सबको पड़ेगा हमें किसी जादू की छड़ी की आशा में अब और अधिक समय व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए  

ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष  हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े  प्रश्न  पूछते हैं    

टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर भी लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष  बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष  के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर ऐसे दोनों लोगों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि ये लोग अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से 

आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश  के शब्द तो आपने सुने भी  होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द तो मुख पर आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल  भी रहे होते हैं तो उसका  अर्थ कहीं और का बता रहे  होते  हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो  आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर  उन्हें मंत्र बता देते हैं और  गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको और कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि  संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों   लोग पैंट शर्ट  पहन  कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता! खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल गया है। ऐसे लोग भी हैं जो  किसी का गोलगप्पे आइसक्रीम आदि खिलाकर उद्धार कर  रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और  हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैंएजो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे होते हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर  या बीज मंतर ही बोलते हैं मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो  मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों  के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता ! खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं  

      प्राचीनकाल में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश  में स्थित सूर्य चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश  स्थित ग्रहों की गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष  ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का   अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है। 
     
वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड  को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष  हो और वह चालीस वर्ष की उम्र  में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष  उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।

     जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष  का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।

      पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष  परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा  साइंटिस्ट होता है  किंतु ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे  प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।

      इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदर उस बेचारे तथाकथित  ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।

   पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष  का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत विश्वविद्यालय में ज्योतिष  विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में एम.. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो  वो रख सकते थे ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या उसकी आलोचना करने की चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष  के बनावटी कागजी शेरों की पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?

कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर ?

    प्रायःशास्त्रीय ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर सौ प्रतिशत झूठ बोल रहे होते हैं जिसे किसी भी मंच पर सच सिद्ध नहीं किया जा सकता,कुछ लोग ज्योतिष पढ़ाने के नाम पर चैनलों पर कुछ बक रहे होते हैं।बस केवल इसलिए ताकि लोग समझें कि जरूर पढ़े लिखे  होगें नहीं तो पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या नाते  रिश्तेदारों से गुरू जी,माता जी आदि कह  कहाकर किए कराए जा रहे होते हैं फोन! कराई जाती है झूठी प्रशंसा!अपनी प्रशंसा में घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैंअपने मुख से अपने को गुरू जी बोलते हैं अपनी झूठी प्रशंसा अपने ही मुख से करते हैं सारा डाटा झूठ पर आधारित होता है जो वो बताते हैं कि उन्होंने किस किस का बहुत बड़ा फायदा किया या कराया!

    ऐसे कई पाखंड प्रिय लोग तो नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं कि देखो ये कितने काबिल हैंअन्य लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से  छपाकर दिखा रहे होते हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ पाखंड नहीं करना पड़ता है इस प्रकार बड़ा घातक होता है बिना पढ़े लिखे लोगों के ज्योतिषी कहलाने की ईच्छा होने के कारण बड़े ड्रामे करने पड़ते हैं इस धंधे में!अपने देश वासी आम आदमी को डरा धमका कर भविष्य के अच्छे  अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए कितनी बेशर्मी करनी पड़ती है अपना मन कितना कठोर एवं पापी बनाना पड़ता है ये सब हमें पता है चूँकि हम इस काम से जुड़े हैं !यह भयंकर पाप करने में जो डरे वो हमारी तरह शास्त्रीय सच्चाई समाज के सामने रखने लगते हैं।   

      इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु , उपायों  आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी जानकारी संस्थान की बेवसाइट  www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते हैं।और इसप्रकार के किसी भी अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष  विषय का अपना जर्नल नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष  वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट  रूप से मना कर दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे संस्थान का उद्देश्य  केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी रहेगा