Friday, February 1, 2013

प्रेम और प्रेम विवाहों में न विवाह का सुख न बच्चों का भविष्य

                तलाक अर्थात विवाह विच्छेदः- 

       मित्रता के नाम पर परेशान लड़का लड़की दोनों ही लोग  लुक छिप कर मिलते मिलाते चूमा चाटी करते करते लड़ते झगड़ते मिलते बिछुड़ते एक दूसरे को झूठ मूठ के लंबे लंबे सपने दिखाते दिखाते धीरे धीरे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।इस प्रकार प्रेम विवाह की रस्म अदायगी के साथ इस सम्बन्ध पर सामाजिक मोहर तो लग जाती है किन्तु ज्योतिष  की दृष्टि  से जिनके भाग्य में वैवाहिक सुख नहीं बदा होता है ऐसे दोनों लोग माता पिता की ईच्छा के विरुद्ध जाकर प्रेम विवाह करते हैं। चूँकि ज्योतिष  की दृष्टि  से प्रेम विवाह वालों का वैवाहिक सुख अत्यंत बाधा युक्त होता है इसलिए इनका विवाह भी लम्बे समय तक कम ही चलते देखा जाता है ।

       इसप्रकार विवाह  होने  से  पूर्व   लड़का  लड़की

दोनों सार्वजानिक स्थलों पर जो रासलीला चलाते रहे  इसके बाद विवाह टूटने के बाद यह रासलीला न जाने कब तक किस किसके साथ चले इसमें कितने परिवारों की  शहादत  हो कैसे कहा जा सकता है ?यह रासलीला न जाने कितनी बेटी, बहनों, बहुओं, परिवारों एवं इसीप्रकार पुरुषवर्ग के विषय में न जाने कितने परिवार रासलीलाओं में उजडें या उजाड़े जाएँ ।

    देखिए, सभीप्रकार की अनहोनी सभी के साथ कभी भी हो सकती है वह ईश्वर की ईच्छा के आधीन है किन्तु प्रेम विवाह जैसी सामाजिक बुराई एवं बीमारी से समाज को स्वयं बचना एवं बचाना  चाहिए।इसके तमाम सामाजिक दुष्परिणाम प्रकारान्तर से सामने आने लगे हैंआज समाचारों के नाम पर ज्यादातर समाचार  छेड़छाड़, बलात्कार, प्रेमविवाह और इस प्रकार कई केशों में हत्या या आत्म हत्या जैसी बातों के ही तो सुनने को मिल रहे हैं यह गंभीर चिंता की बात है तथा प्रबुद्ध समाज सुधारकों के लिए इस  समय चिंतन की आवश्यकता है ।ज्योतिष की दृष्टि से हम अपना मत प्रस्तुत करते हैं इसके अलावा और भी कारण हो सकते हैं जिनसे हम इन्कार नहीं कर रहे हैं।         किसी के जीवन में हमेंशा एक जैसी परिस्थिति नहीं रहती है एक जैसा स्वभाव नहीं रहता है।यह परिस्थिति और  स्वभाव जन्य नरम और गरम बदलाव हर किसी के जीवन में हमेंशा  हुआ करते हैं, किंतु प्रत्येक स्त्री-पुरुष  के जीवन में कुछ कुछ वर्ष  ही ये बदलाव रहते हैं।जिनका पता ज्योतिष शास्त्र के कुशल विद्वान आसानी पूर्वक लगा लिया करते हैं। यदि उतने दिन शांति और सहनशीलता के साथ बिता लिए जाएँ  तो फिर जीवन आनंदमय बीतने लगता है।
     आज निजी संबंधों का भी बाजारी करण हुआ है वैवाहिक जीवन भी पार्टनरसिप की तरह चलाया जाने लगा है।यह चार प्रकार से हो रहा है।
1.विवाहः-यह दोनों के माता पिता समेत दोनों परिवारों के नाते रिश्तेदारों एवं जाति बिरादरी आदि सबकी सहमति से होता है।इसमें लड़का लड़की अपने माता पिता आदि समस्त परिवारी जनों पर पूर्ण विश्वास कर रहे  होते  हैं । इसमें दोनों पक्ष के सारे परिवारों नाते रिश्तेदारों का संबंध दोनों पक्ष के परिवारों नाते रिश्तेदारों से न केवल जुड़ा होता है, अपितु इस बात का एक दूसरे को एहसास भी रहता है।ऐसे विवाह संबंधों में  दोनों पक्षों का अच्छा बुरा कैसा भी समय आए ये विवाह चलते ही हैं। इनके सारे बंधन मजबूत होते हैं आखिर कितने और कैसे टूटेंगे?यह प्राचीन भारतीय परंपरा का प्रचलित सर्वोत्तम विवाह है। 
 2.प्रेम विवाहः-ज्योतिष  की दृष्टि  से जिनके भाग्य में वैवाहिक सुख नहीं बदा होता है या कम होता है  ऐसे दोनों लोग माता पिता समेत दोनों परिवारों नाते रिश्तेदारों जाति बिरादरी आदि के लोगों के जीवित रहते ही उन्हें भावनात्मक रूप से सस्पेंड कर अथवा उन पर अविश्वास  करते हुए सीधे विवाह की लगाम अपने हाथ में पकड़ लेते हैं।मित्रता के नाम पर मूत्रता से परेशान दोनों ही लोग लुक छिप कर मिलते मिलाते चूमा चाटी करते कराते लड़ते झगड़ते मिलते बिछुड़ते एक दूसरे को झूठ मूठ के लंबे लंबे सपने दिखाते दिखाते एक दूसरे से जुड़ जाते हैं। ये दोनों जब तक एक दूसरे की मजबूरी बने रहते हैं तब तक एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, जैसे ही उससे अच्छा कोई दूसरा सौदा पट जाता है तो इसे छोड़कर उसे पकड़ लेते हैं।कई लोग आजीवन एक दूसरे की मजबूरी बने रहते हैं।ज्योतिष  की दृष्टि से जिनके भाग्य में वैवाहिक सुख बाधा युक्त होते  हुए भी पूरी तरह खराब नहीं होता है उनका ऐंच घसीटकर जीवनभर संबंध चल भी जाता है।यह विशुद्ध रूप से बासनात्मक  विवाह होता है किंतु कहने सुनने में अच्छा नहीं लगता है इसलिए इस विवाह से पीड़ित लोगों ने इसका नाम प्रेम विवाह रखा है किंतु इसमें प्रेम कभी कहीं दूर दूर तक नहीं दिखता है।

 3.वैभव विवाहः-इसमें दोनों के माता पिता समेत दोनों परिवारों के नाते रिश्तेदारों, जाति बिरादरी आदि सबकी सहमति हो या न हो किंतु ये दोनों लड़का लड़की पूरे होश  हवाश  में यह विवाह करते हैं इसमें भी वैवाहिक सुख ज्योतिष  की दृष्टि से  यद्यपि बाधा युक्त होता है किंतु औरों की अपेक्षा बाधा कम होती है।ये लोग एक दूसरे की शिक्षा, सुंदरता,सैलरी, पद, प्रतिष्ठा  आदि से जुड़ रहे होते हैं।ऐसे विवाहों में मूत्रता का वेग कम होता है।ये विवाह पूरी तरह सिद्धांतों पर आधारित होते हैं।इसमें लड़का लड़की अपने माता पिता आदि समस्त परिवारी जनों पर पूर्ण विश्वास  कर रहा होता है और अपने जीवन साथी की अच्छाइयॉं बता कर उन सभी स्वजनों को विश्वास में ले लेता है। ऐसे लोग असंतुष्ट अवस्था में बासनात्मक संतुष्टि  के लिए बेशक जीवन साथी का विकल्प तलाश लें किंतु अपने वैवाहिक जीवन को बचाए रखने का प्रयास हमेंशा  करते रहते हैं।ज्योतिष  की दृष्टि  से ऐसे विवाहों को टूटने की संभावना पच्चीस प्रतिशत तक होती है बाकी अधिकतर ये निर्वाह करते ही हैं ।
4.अर्थ या धन विवाहः-यह विवाह लड़का लड़की के गुण दोषों के आधार पर न होकर उनकी आर्थिक क्षमता के आधार पर होता है।यहॉं विवाह के नाम पर खुला आर्थिक प्रदर्शन होता है। एक दूसरे से बढ़कर आर्थिक प्रदर्शन के कारण ही इनके बीच पति पत्नी टाईप की बातें तो बस बातें ही रहती हैं ऐसे संबंध चलते तो आजीवन हैं किंतु आपसी स्नेह अत्यंत अल्प होकर भी पूरा दिखाना दोनों की मजबूरी होती है।क्योंकि मिलना जुलना कम होता है इससे लड़ाई की संभावना भी अत्यंत कम होती है।कई बार यह अर्थ सक्षम वर्ग व्यवसायिक व्यस्तता के नाम पर सुरा सुंदरी वाली दिशा  में भटक जाता है।वैराग्य बिहीन पंडित महात्मा इन्हीं परिवारों के सहारे आजीवन अपनी दबी छिपी आर्थिक इच्छाएँ  पूरी किया करते हैं। ज्योतिष  की दृष्टि  से ऐसे विवाहों को टूटने की संभावना लगभग नहीं होती है।ये लोग मन से कभी जुडें न जुडें किंतु जुड़े आजीवन रहते हैं।  
     इसप्रकार विवाह आज व्यवसाय बनता जा रहा है और जैसे  व्यवसाय में घाटे का सौदा कोई करना नहीं चाहता है इसीप्रकार विवाह में भी आजकल होने लगा है।   

     इसप्रकार वैवाहिक दृष्टि से जिसका समय जब खराब होता है वह जहॉं हाथ डालता है वहॉं घाटा ही होता है क्योंकि उस समय ऐसे लोगों की अपनी सोच बिगड़ जाती है अच्छे निर्णय लेने की क्षमता नष्ट हो जाती है।बुरे निर्णय अच्छे लगने लगते हैं बुरे सलाहकार अच्छे लगने लगते हैं यह देखकर अच्छे लोग  दूरियॉं बनाने लग जाते हैं। निजी संबंधों के बाजारीकरण के कारण उसके अपने पति या पत्नी भी उससे दूरी बनाकर रहने लग जाते हैं।इस प्रकार ये दोनों एक दूसरे से अलग होकर भटकने लगते हैं।कई बार ये दोनों संयम से भी समय बिताते देखे जाते हैं जो बुरे समय में बड़ा कठिन होता है, अन्यथा एक दूसरे को सबक सिखाने के तेवर में अधिकतर स्त्री-पुरुष  किसी तीसरे से जुड़कर उससे संबंध बनाने का प्रयास करते हैं जबर्दस्ती किया तो बलात्कारऔर फिर जेल,सामाजिक अपमान,अपयश  आदि सारी दुर्दशा होती है,और यदि जबर्दस्ती न किया सलाह में संसर्ग सुख लिया तो अपना ही शारीरिक भावनात्मक शोषण होगा।दूसरा तो मौज मस्ती के लिए जुड़ेगा फिर छोड़ देगा। उससे तो विवाह ही नहीं हुआ तो तलाक कैसे होगा इस प्रकार पशुओं की तरह लोग पकड़ते छोड़ते रहेंगे।कुल मिलाकर इनका ज्योतिष  की दृष्टि आया हुआ बुरा समय तो तनाव में ही बीत रहा होता है। इस प्रकार यह दुखद पीड़ा जब तक शरीर में रौनक रहती है तब तक भोगनी ही पड़ती है।निरंतर तनाव के कारण शरीर में रौनक भी अधिक दिन नहीं रहती है शरीर बहुत जल्दी टूट जाता है इसके बाद कोई पूछने ही नहीं लगता है।असंयमित जीवन एवं संतानों की परवरिश  में हुई लापरवाही के कारण संतानें सेवा नहीं करना चाहती हैं।इस प्रकार की परिस्थिति में कानून या सरकार बेशक कुछ संसाधन जुटाने में सहयोग दे या दिला दे किंतु भोगना तो स्वयं ही पड़ता है ऐसे लोगों का बुढ़ापा बड़ा गंदा बीतता है। सच यह है कि माता पिता की सेवा जैसे धर्म वाक्य धर्मवान लोगों के लिए ही बने हैं किंतु जिसने अपनी जिंदगी ही जवानी मौज मस्ती एवं रॅंग रेलियॉं मनाकर बिताई हो!उसके लिए क्या? किस मजबूरी में बिताई है  यह एक अलग बात है किंतु संताने ऐसे माता पिता की सेवा को धर्म क्यों मॉंनेंगी?वो भी अपना जीवन मौज मस्ती में ही बिताना चाहेंगी ।
         इस प्रकार की सारी दुर्दशाओं से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र काफी मदद कर सकता है और जिसके जीवन में विशेष वैवाहिक बाधा हो उसके जीवन में भी कोई  न कोई मध्यम मार्ग निकल ही आएगा बशर्ते ज्योतिषी टी.वी.चैनलों वाला दिखावटी कागजी शेर न हो खैर चाहें जो हो  पढ़ा लिखा तो होना ही चाहिए अन्यथा ये लोग अरेंज मैरिज के विवाह भी न बिचार पाने के कारण उनका भी भविष्य नष्ट कर रहे हैं इसके लिए समाज सतर्क हो और इन झोलाछाप ज्योतिषियों से बचे  वही अधिक हितकर होगा।यदि संभव हो तो ज्योतिषी ज्योतिष विषय में एम.ए.पी.एच.डी. आदि डिग्रियों से सुशोभित हो तो और अच्छी बात होगी ।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।


  

No comments:

Post a Comment