Wednesday, April 24, 2013

सरकार का कौन सा विभाग ऐसा है जो भ्रष्टाचार मुक्त हो ?00000000000

              भ्रष्टाचार तो सरकार के खून में है

बदनाम केवल पुलिस है आखिर क्यों

 

     आज सरकार का कौन सा विभाग  ऐसा है जो अपनी शाख बचाने में कामयाब रह रहा है ?सरकार के पास सारे अधिकार अर्थात अनंत शक्तियाँ होती हैं  सरकारी कर्मचारियों की सैलरी भी अधिक होती है सरकार के पास संसाधन भी अधिक होते हैं सरकार के काम में  कोई अनावश्यक रूकावट भी नहीं पैदा कर सकता!

     दूसरी ओर प्राइवेट संस्थाओं  को सरकारी या गैर सरकारी ऐसी समस्त समस्याओं से जूझना पड़ता है धन की  भी कमी होती है संसाधन भी कम होते हैं उनके कर्मचारियों की सैलरी भी कम होती है फिर भी सरकार की अपेक्षा वे अच्छी सेवाएँ देती  हैं क्योंकि वे जवाबदेही भी अधिक निभाती  हैं वे लोग बात व्यवहार भी प्रेम से करते हैं।

    रही बात सरकारी विभागों की वहाँ  प्रेम से बात कौन करता है,शिकायती फोन तक देर से उठाए जाते हैं या उठाए ही नहीं जाते हैं यदि उठाए भी गए तो कोई और दूसरा नम्बर दे दिया जाता है।कहाँ  शिकायत कौन सुनता है हर कोई टालने की बात करता है।

     दिल्ली में केवल पुलिस विभाग ही ऐसा विभाग है जिसकी 100 नंबर की काल न केवल तुरंत उठाई जाती है अपितु  पुलिस समय से मौके पर पहुँचती भी है।मैं इस बात से इनकार नहीं कर रहा कि पुलिस से गलतियाँ नहीं होती होंगी किन्तु बहुत  कुछ करने के बाद भी  बदनाम केवल पुलिस है!आखिर क्यों?अकेले पुलिस को क्यों बदनाम किया जा  रहा  है?इसके लिए जिम्मेदार सरकार एवं सरकार के सारे विभाग हैं।भ्रष्टाचार एवं अपराध के कण सरकार के अपने खून में रच बस गए हैं जो सरकारी सभी विभागीय  लोगों में न्यूनाधिक रूप से विद्यमान हैं।इसलिए केवल पुलिस की निंदा न्यायोचित नहीं कही जा सकती ! 

    सरकार की लापरवाही इतनी अधिक है कि सरकार  से  जुड़े  लोग केवल सरकार  चलाने  में व्यस्त रहते हैं जन हित एवं देश हित की ओर उनका  चिंतन ही नहीं होता है। वहीं   सरकारी   नौकरी   में   आने    के बाद   अक्सर   लोग   जनहित  एवं  समाज   हित      से     दूर   होते   चले  जा  रहे हैं।देश भक्ति की भावना की तो आशा ही क्यों करनी? जिस  कारण से  आज सरकारी डाक को कोरिअर विभाग ने पीट दिया है सरकारी विद्यालयों को प्राइवेट विद्यालयों ने पीटा,सरकारी टेलीफोन को प्राइवेट कम्पनियाँ पीट रही हैं।इसी प्रकार से सरकारीअस्पतालों को प्राइवेट अस्पतालों ने पीट रखा है।ऐसे विभागों में तो प्राइवेट का विकल्प होने के कारण जनता प्राइवेट से अपना काम चला लेती है, इसलिए  बेचारी अकर्मण्य  सरकारों की इज्जत भी इसी बहाने बची रहती है जनता का काम भी हो जाता है।  

     पुलिस विभाग और रेलवे जैसे अन्य विभागों  में  भी प्राइवेट का विकल्प न होने के कारण इन विभागों में  जनता त्राहि त्राहि कर रही है।बेचारे ये दोनों  विभाग असहाय से बने हुए  हैं। 

  सरकारी डाक,सरकारी टेलीफोन  एवं सरकारीअस्पतालों की तरह पिटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं ये दोनों विभाग भी!किन्तु इन्हें पीटने वाला कोई वैकल्पिक विभाग की संभावना नहीं बन पा रही  है।

      सरकारी कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग की काम चोरी की प्रवृत्ति  यहाँ अर्थात इन विभागों में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ रही है।चूँकि यहाँ काम चोर लोगों की मक्कारी ढकने के लिए प्राइवेट का विकल्प नहीं है यदि यहाँ भी विकल्प होता तो यहाँ भी सरकार दूसरे अर्थात प्राइवेट   कर्मचारियों के बल पर अपनी पीठ थपथपाती रहती।रही बात सरकारी कर्मचारियों की कार्य प्रणाली की उसमें इतनी क्षमता कहाँ कि वो सरकार की इज्जत बचा सकें !

     इस प्रकार की मक्कारी सरकार के लगभग हर विभाग में है कहीं कुछ कम तो कहीं कुछ ज्यादा है। जो ईमानदार लोग कुछ अच्छा करना भी चाहते हैं  वो उतना अच्छा कर नहीं पा रहे हैं जितना वो चाहते हैं अन्यथा कुछ और अच्छा हो सकता था। ऐसे पवित्र ईमानदार लोगों को सूचित करने के लिए ही मैं भी यह लेख लिख रहा हूँ । 

      इसी भ्रष्टाचार के कारण देश में घुस पैठ होती है बम विस्फोट किए  या कराए  जाते  हैं  कहाँ तक कहें कि लूट हत्या बलात्कार चोरी आदि जितने बड़े छोटे अपराध आदि हैं उन सबका कारोबार करने वाले सरकारी कर्मचारी नहीं हैं।यह सब प्राइवेट लोगों के हाथों में हैं क्योंकि इनका निर्णय वे स्वयं लेते हैं।  इसमें सरकार का इन्वाल्वमेंट न होने के कारण  ही अपराधी और आतंक वादी टाईप के लोग   जिम्मेदारी पूर्वक अपऩा काम अर्थात  अपना दुष्कर्म ईमानदारी पूर्वक कर पाते  हैं अपने निश्चित समय पर बम विस्फोट लूटपाट हत्या बलात्कार अपहरण आदि सारे अपराध समय से सफलता पूर्वक करते हैं।यदि इसमें भी सरकार का इन्वाल्वमेंट होता तो विस्फोट के लिए रखे गए बम कभी समय से नहीं फूटते,अपहरण आदि केसों में मुखबरी हो या फाइल लीक हो जाती ! चूँकि सरकारी काम तो सरकारी की तरह होगा।   

       ऐसे आतंक वादियों एवं अपराधियों से समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन पर है चूँकि वे सरकारी कर्मचारी हैं।वे कैसे बराबरी कर सकते हैं उन प्राइवेट कर्म चारियों की?चूँकि सरकारी कर्मचारी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं उन्हें लगता है कि नौकरी तो मिल ही गई है अब परिश्रम क्यों करना अब तो बीमारों की तरह भी जिया जा सकता है।चूँकि प्राइवेट अपराधियों में ये सब नहीं चलता है वहाँ तो रोज की आय पर जीना है उन्हें तो मेहनत करनी ही है बेशक वो गलत दिशा में हो रही हो ये और बात है किन्तु उनके हौसले बुलंद होते हैं।अपराधियों की जितनी भी श्रेणियाँ हैं ये सब  सरकारी लापरवाही के नतीजे हैं।अपराध कहीं भी हो बड़ी चुस्ती फुर्ती से एवं सक्रियता पूर्वक पूरी लगन से किया जाता है।कई बार घूंस लेकर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों की कंप्यूटर 


            

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