Thursday, May 2, 2013

चलो लौट चलें अपने पुराने भारत की ओर !

               कहाँ पहुँच रहा है हमारा समाज ?
     कहाँ खो सी गई है वह  वृद्धों की सेवा, माता पिता की सेवा,गोसेवा, गोपूजन,देव पूजन,प्रकृतिप्रेम, बड़ों से प्रेम छोटों से स्नेह, नित्य कर्म,जन्म दिन से विवाह तक के संस्कार,रक्षा बंधन से लेकर  होली दिवाली आदि सारे त्योहार शरद, वर्षा, बसंत ऋतुओं की सम्मोहकता,अपनों से मिलने का ढंग,विरोध करने का तरीका दुश्मनों जैसा, कहाँ गया वह पवित्र प्यार ! आज फ़ोन है बात किससे करें ?गाड़ियाँ हैं जाएँ कहाँ ! रिश्तेदार हैं भरोसा किस पर करें !माता पिता भाई भतीजे  हैं लेकिन साथ नहीं रह सकते ! पति -पत्नी कब अलग अलग हो जाएँ क्या भरोस?कौन कितना करीबी रिश्तेदार सगा सम्बन्धी कब शत्रुता या गद्दारी करना शुरू कर दे क्या विश्वास?कौन कितना करीबी बच्चों का अपहरण कर ले,बहन बेटी के साथ कब वो प्यार नाम का खेल खेलने लगे !!!

   ये सब कुछ अब भारतीयों जैसा नहीं रहा!अब तो उनके जैसा बनने के लिए अपनी सभ्यता संस्कारों का उपहास करने की होड़ सी लगी है।

     टी.वी. में एक दिन कामेडी में कोई सुना रहा था कि हमारी क्लास में एक लड़की हमें बहुत चाहती थी यह समझकर मैं भी बहुत खुश था।एकदिन मुझ पर जुल्म हो गया उसने मुझे राखी बाँधी और भैया कहा ! यह सुन कर लोग ताली बजा कर हँस रहे थे!!!  

       प्यारे देश वासियों !पाश्चात्य सभ्यता के दुष्प्रभाव से  अब ऐसा समय आ गया है जब कठोर से कठोर कानून निष्फल होते जा रहे हैं।अपराध दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। आधुनिकता के नाम पर  महिलाओं के अपमान की घटनाएँ दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं।पूरे देश की यही स्थिति है!महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है हर किसी की जबान पर एक ही प्रश्न है कि अब कैसे होगी महिलाओं एवं  बच्चियों  की  सुरक्षा ?

     अभी दिल्ली के गाँधी नगर में भी  इतनी छोटी बिटिया के साथ पड़ोसी लड़के की इतनी घिनौनी करतूत!इसे केवल रेप कैसे कहा जाए?यदि उस अपराधी में इन्सान का हृदय होता तो  इतने छोटे बच्चे को वात्सल्य से चूम लेने को उसका भी मन मचलता भुजाएँ फड़क उठतीं!छोटे बच्चे तो पशु पक्षियों के भी हमारे यहाँ  खूब खिलाए जाते हैं। वह तो अपनी बिटिया है।  

      कन्या पूजने  वाले देश की धरती में पावन नवरात्रों की मधुरिम बेला में  कन्या पूजन के महान पर्व  पर वो हो रहा है जो राक्षसों में भी कभी नहीं देखा सुना गया था। कंस और रावण ने भी ऐसा कभी नहीं किया था । जो हमारे समय हुआ है। 

      हम भी भारत  माता की संतान एवं सनातन संस्कृति से सम्बंधित हैं । इस  नाते मैं भी अपने हिस्से का अपराध न केवल स्वीकार करता हूँ  अपितु  जीवन मृत्यु के संघर्ष से जूझ रही उस भारत  माता की देवी रूपी दुलारी गुड़िया से क्षमा माँगता हूँ कि बच्चियों की सुरक्षा के लिए हम लोग  भी तो कुछ नहीं कर सके !

      हमारी इतनी शिक्षा का क्या लाभ मिला इस अपने देश एवं समाज को ?हमारे  स्वस्थ होने का क्या लाभ हुआ!केवल हमारे साधु ,संत ,महात्मा, साधक या सदाचारीहोने  से  देश का क्यालाभ ?अकेले हम प्रतिदिन गंगा जमुना में शरीर धोते फिरें! अकेले हम तीर्थों  में  टहलते फिरें या बड़े बड़े जागरण, चौकी, आदि उत्सव मनाते रहें।कथा,कीर्तन,प्रवचन,भंडारा करते फिरें । मंदिरों  एवं धार्मिक सत्संगों,सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहकर भी समाज के लिए हम आखिर क्या कर पा रहे हैं।यदि हमारा  सारा  धर्म कर्म केवल हम एवं हमारों तक ही सीमित रह गया है तो हमारे समाज के लिए हमारा क्या कोई कर्तव्य नहीं बनता है ?

    पेड़ पौधे भी अपने आस पास का वातावरण स्वयं शुद्ध कर लेते हैं उनसे भी छाया और फल फूल मिलते  हैं  समाज को !मनुष्यों में वो भी नहीं !

        मैंने शास्त्रीय कथाओं में पढ़ा  एवं समाज में देखा तथा सुना  है कि पशु पक्षियों के भी आहार बिहार के कुछ तो नियम संयम होते ही  हैं मनुष्यों में तो वो भी समाप्त होते जा रहे हैं !

  जैसे- चातक पक्षी केवल स्वाती नक्षत्र में बरषने वाली  जल की बूँद ही पीकर ही रहता है यह नक्षत्र हर  वर्ष   24 अक्टूबर से 6 नवम्बर तक रहता है।यदि इन दिनों में वर्षा न हो तो वह प्यासा चातक फिर अगले वर्ष की स्वाती बूँद की आशा लगाकर बैठ जाता  है ये उसका नियम है ।

      इसी  प्रकार हमें  भी चाहिए कि  रोजी रोजगार एवं धर्म कर्म आदि  करने के साथ साथ हमें भी  नियम संयम एवं सदाचरण का व्रत स्वयं लेना चाहिए  तथा स्वजनों को भी इसके लिए प्रेरित करें । इस प्रकार से यदि हम अपने जीवन में सदाचरण व्रत का परिपालन करते हुए कुछ और लोगों के जीवन में सदाचरण व्रत उतार सकें  तभी हमारा मानव जीवन सफल हो सकता है। हमें प्रयास तो प्रारम्भ करना चाहिए । 

             भारत जागरण संस्थान की पुकार - 

    अश्लीलता का खेल खेलने वाले सीरियल्स  ,फ़िल्में ,वीडियो, कामेडी प्रोग्राम, फैशन शो, बेलेंटाइन डे,और गली मोहल्लों चौराहों, पार्कों,स्कूलों एवं मेट्रो स्टेशनों जैसी सार्वजनिक जगहों पर जिन लड़के लड़कियों के द्वारा असमाजिक या अश्लील आचरण किए जाते दिखाई पड़ें! प्यार के नाम पर खेले जा रहे ऐसे पापी पाखंड एवं पाखंडियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए । दूसरे की माता बहन बेटियों  के सम्मान के प्रति समाज में फिर से पवित्र वातावरण बनाया जाए!

     आधुनिक  प्यार नाम की पापी निगाह रखने वालों का एवं इनका समर्थन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। ऐसे प्यार  की ईच्छा रखने वाला या वाली पहले तो एक एक करके कई कई लड़के लड़कियों के जीवन में घुसते हैं उनमें से किसी को धोखा देते हैं तो किसी से धोखा खाते हैं तब कहीं किसी एक जगह सेटिंग बन पाती है उसके साथ जुड़ जाते हैं।धोखा खाने और धोखा देने से जो वर्ग प्रभावित होता है वो या तो निराश होता है या अपराधी बनता है।  

      इसप्रकार तथाकथित प्यार के पथ पर  जिन्हें धोखा दे आये या जिनसे धोया खा आए ये दोनों ही स्त्री पुरुष तथा लड़का लड़की लोग आपस में एक दूसरे के शत्रु हो जाते हैं इसके बाद जो जब जहाँ जैसा समय पाते  हैं  वैसी  वहाँ शत्रुता निभा लिया या करते हैं।इस लिए इस समस्त अपराध  के पीछे प्यार नाम का भ्रष्ट आचरण है। समाज को इससे मुक्ति दिलाने के लिए हर किसी को हर स्तर पर संगठित रूप से  प्रयास करना  चाहिए।

    भारत जागरण संस्थान इसके लिए सभी का आह्वान करता है कि आप अपने इस संगठन से जुड़कर  इसके तत्वावधान में संगठित होकर समाज में सभीप्रकार  के अपराधों  के विरुद्ध जन जागरण कार्यों में सहभागी बनें ।  


No comments:

Post a Comment