Monday, September 30, 2013

देहाती औरत क्या इतनी बुरी होती है?

 प्रधान मंत्री जी की तुलना  यदि वास्तव में ग्रामीण महिलाओं से की गई होगी तो इसमें ग्रामीण महिलाओं का ही अपमान है!
   देश के प्रधान मंत्री जी की कार्य शैली से नाराज प्रमुख विपक्षी पार्टी  के नेता लोग आलोचना  में प्रायः कुछ न कुछ बोल दिया  करते हैं  जिसमें उन्हें धृतराष्ट्र  भी कहा गया और भी बहुत कुछ खैर वर्त्तमान समय राजनीति  में  इसके अलावा और है ही क्या?वैसे ऐसा सभी दलों में प्रचलन सा बन गया है| जैसे फिल्मों में कौन  कितने कपड़े उतारकर क्या क्या कर सकता है, इसी प्रकार  वर्त्तमान राजनीति  में किसके लिए कैसे कैसे शब्द प्रयोग किए जा सकते हैं इसके मानक क्या हैं ये वही लोग बता  सकते हैं जो इस खेल में सम्मिलित हैं  जनता तो केवल सुन सकती है सह सकती है!
    मोदी जी ! भारत कृषि प्रधान देश होने के नाते सभी लोग किसी न किसी रूप में प्रायः  गाँव से जुड़े हैं  कितना कठिन होता है ग्रामीण जीवन ! धन के   अभाव में  आवश्यक आवश्यकताओं के संसाधन न जुटा पाने के कारण पुरुष तो असहाय लाचार होकर पराजित भाव लिए  शिर झुका कर बैठ जाता है उस समय भूख से बिलबिलाते बच्चे अपनी मां से लिपट कर  कहते  हैं कि मुझे भूख लगी है उस समय बेचैन मां गर्मी शर्दी वर्षा की परवाह किए बिना निकल पड़ती है खेत खलिहानों की ओर! कहीं से कुछ दाने सब्जी फल फूल शाक पात लाकर सब कुछ एक में मिलाकर बना लेती है रोटियाँ , और मिटा लेती हैं घरभर की भूख !
  शहर की महिलाएँ  फिर भी सामान होने पर भी काम करने  से कतराने लगती हैं सफाई झाड़ू पोछा वाली लगा लेती  हैं किन्तु गाँव की महिलाओं को ईधन से लेकर सारे साधन जुटाने पड़ते हैं वास्तव में गाँव की महिलाओं का जीवन तपस्वियों से किसी भी  प्रकार कम नहीं होता है!
       जहाँ तक प्रधान मंत्री जी के साथ उनकी तुलना की बात है इसमें   प्रधानमंत्री  जी का अपमान कैसे हो गया यह तो उन महिलाओं का अपमान है जो संसाधनों के अभाव में भी घर चला लेती हैं किन्तु प्रधान मंत्री जी तो सारे संसाधनों के साथ भी देश नहीं चला पा रहे हैं |   इस लिए  हमारे प्रधान मंत्री जी की तुलना  यदि वास्तव में ग्रामीण महिलाओं से की गई होगी (जिसकी मुझे जानकारी नहीं है) तो इसमें ग्रामीण महिलाओं का ही अपमान है न कि प्रधान मंत्री जी का! क्योंकि वे न केवल कर्मठ होती हैं अपितु स्वाभिमानी भी होती हैं| उनके यहाँ ईमानदारी पूर्वक अपने परिश्रम के द्वारा जो कमाई हो  पाती है  उसी में स्वाभिमान पूर्वक संतोष कर लेती हैं किसी कि कृपा के आश्रित नहीं होती हैं किन्तु यहाँ तो सब कुछ दूसरों की कृपा पर ही है इसीलिए लिए उनके यहाँ के बच्चों से भी हाँ जी हाँ जी करनी पड़ती है !
     वैसे भी कांग्रेस ने जिस पद  के निर्वाह की  भूमिका उन्हें दी है वह अत्यंत पिछड़े क्षेत्रों  की ग्रामीण गृहणी की ही है  बात अलग है कि उसे  भी वे ठीक से निभा नहीं पा रहे हैं| ग्रामीण गृहणी  का काम घर चलाना होता है संसाधन जुटाना पुरुषों का काम होता है|यहाँ भी तो वोट मांगने  से लेकर अन्य पार्टियों का समर्थन जुटाना मंत्री पद बांटना सभी प्रकार के  निर्णय लेना  बात बात में धौंस दिखाना ये सारी जिम्मेदारियां तो  परंपरागत ग्रामीण पुरुषों के आचरणों की तरह ही उनकी पार्टी का  मुखिया परिवार ही संभाल रहा है ग्रामीण गृहणी के रोटी बनाने की  तरह  ही प्रधान मंत्री जी का काम तो जुटे जुटाए संसाधनों से सरकार चलाना भर है|ये बात तो सबको पता है कि उनके मंत्री मंडल के द्वारा  पास किए गए बिल न केवल  बकवास बता  दिए जाते हैं अपितु फाड़ के फेंकने लायक बता दिए जाते हैं वह भी उसके द्वारा जिसकी उम्र अनुभव ज्ञान आदि  प्रधानमंत्री जी से आधा अधूरा ही होगा!

Sunday, September 29, 2013

मीडिया और भ्रष्टाचार --कविता, गॉंधी जी के तीन बंदरों की

         गॉंधी जी के तीन बंदर  और  भ्रष्टाचार


बुरा  न  कहिए  बुरा   न  सुनिए  बुरा  न देखो मित्र।

करो  भलाई  सदा  सभी  की  जीवन  रखो  पवित्र  ।।



पत्रकार   भैया   एक   बोले   मन   की   बात   बताऊँ।                

सीख  बंदरों  की  यदि मानूँ  तो  खबर कहॉं से  लाऊँ ।।



अच्छा अच्छा कहूँ सभी को प्रवचन है वह न्यूज नहीं।

अच्छा  सुनने  से   जनता   के   आते   पूरे   ब्यूज   नहीं।।



कहूँ  किस  तरह  मॅहगाई  को  सुंदर  सुंदर  भ्रष्टाचार।
सुनूँ  कहॉं  पर  खुशहाली  के  सुंदर सुंदर रागमल्हार।।



अमनचैन किस चिड़ियाघर में देखें जाकर सुंदर सीन।
झूठ बोलना क्यों सिखलाते गॉंधी जी के बंदर तीन।।                          



सरकारों  से  मिले  लग  रहे  बापू  जी  के  बंदर यार ।
पोल खोलना खबर दिखाना इनको लगता भ्रष्टाचार।।


कहो  बंदरों  से  चुप  बैठो  स्टिंग  कर  देंगे हम लोग।
झूठ   गवाही   झूठ   सफाई   देते  घूमोगे  तुम  लोग।।



                . शिखर, सुरभी, नित्या, कुमुद ,श्रींदुशेखर वाजपेयी



राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील


यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है।

यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन ए मनए धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।

सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

Saturday, September 28, 2013

सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों ने तोड़ा जनता का विश्वास !

           भ्रष्टाचार मुक्त देश बनेगा कैसे ?

  आज भ्रष्टाचार हत्याएँ बलात्कार  आदि सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं इन्हें रोकने के लिए कानून पर कानून पर कानून बनाए जा रहे हैं किंतु ये रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।हमारी सेनाओं ने दुश्मनों के हमेंशा छक्के छुड़ाए हैं हमें इस बात का गर्व है किंतु दुख इस बात का है कि देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने की जिनकी जिम्मेदारी है उनकी देश भक्ति  सैनिकों जैसी  नहीं हैं!
    इसी प्रकार गर्व करने लायक हमारे वैज्ञानिकों ने एक से एक आश्चर्यजनक खोजें की हैं बड़ी बड़ी मिसाइलें, परमाणु बम तो बना डाले किंतु देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने में वे भी लाचार हैं ।
    हमारा सक्षम शिक्षित वर्ग अपनी योग्यता की पताका संपूर्ण विश्व में फैला रहा है किंतु देश के अंदर होने वाले अपराध रोकने में वे भी विवशहैं !    

    इसका कारण यह  है कि जिन्होंने वास्तव में परिश्रम पूर्वक शिक्षा ली है उन्हें आरक्षण के कारण उनके योग्य पद नहीं दिए गए इसलिए  वे विदेश भाग रहे हैं जिन्हें पद दिए गए वे कुछ करने लायक ही होते तो आरक्षण क्यों लेते! जो बिना आरक्षणी सुविधाओं के अपना घर नहीं चला सके उन पर देश चलाने की जिम्मेदारी!बलिहारी राजनीति की चूँकि  जिनके वोट ज्यादा हैं उन्हीं के हित में कानून बनेंगे!गरीबत दूर करने के लिए बनते तो सवर्णों में भी गरीब हैं!किंतु जब शासक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हों  तो उनसे ईमानदार प्रशासन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
     कई बार तब बहुत आश्चर्य होता है जब ये पता लगता है कि जो कानून पालन करने के लिए बने थे वो पालन करने के बजाए केवल बनाए और बेचे जा रहे हैं तो बड़ा कष्ट होता है!

     एक बार किसी ने गुंडई के स्वभाव से हमारे निजी लोगों को मारा उनके शिर में काफी चोट लगी थी मैं उन्हें लेकर थाने गया उनका खून बहता रहा किंतु दूसरा पक्ष तीन घंटे बाद थाने में आया तब तक उन्हें इलाज भी नहीं उपलब्ध कराया गया जब वो किसी नेता को लेकर आए तो दरोगा जी ने उनसे हाथ मिलाया बात की इसके बाद हमें बुलाकर समझौते का दबाव डाला जब हम नहीं माने तो दरोगा जी ने हमारे सामने तीन आप्सन रखे कि यदि मैं उन्हें थाने में बंद कराना चाहता हूँ तो हमें कितने पैसे देने पड़ेंगे,यदि मैं किसी उचित धारा में बंद कराना चाहता हूँ तो क्या देना पडे़गा,अन्यथा दोनों पक्षों को बंद कर देंगे। हमने कहा मैं पैसे तो नहीं दूँगा जो उचित हो सो कीजिए हमें कानून पर भरोसा है तो उन्होंने कहा कानून क्या करेगा और क्या कर लेगा जज?देखना उसे भी हमारी आँखों से ही  है वो लोग तो कहने के अधिकारी होते हैं बाकी होते तो सब हमारी कलम के गुलाम ही हैं जैसा  हम लिखकर भेजेंगे वैसा ही केस चलेगा और हम वही लिखकर भेजेंगे जैसे हमें पैसे मिलेंगे! उसी के अनुशार केस चलेगा जज तुम्हारे शिर का घाव थोड़ा देखने आएगा!और देखे भी तो क्या कर लेगा जब हम लिखेंगे ही नहीं!वैसे भी घाव कब तक सॅभाल कर रखोगे? हमारे यहॉं जितने दिन मुकदमें चलते हैं उतने में समुद्र सूख जाते हैं घाव क्या चीज है!
    इसी प्रकार दूसरे पक्ष से भी क्या कुछ बात की गई पता नहीं अंत में दोनों पक्षों को थाने में बंद कर दिया गया।एक कोठरी में ही बंद होने के कारण दोनों पक्षों की आपस में बात होने लगी तो पता लगा कि दरोगा ने उन्हें भी इसी प्रकार धमकाया था कि इसमें कौन कौन सी दफाएँ  लग सकती हैं जिन्हें हटाने के लिए कितना कितना देना पड़ेगा!उन्होंने भी देने को मना कर दिया तो दोनों पक्ष बंद कर दिए गए!
    इसी प्रकार दिल्ली जैसी राजधानी में कागज, हेलमेट आदि की जॉंच के नाम पर किससे कितने पैसे लेकर छोड़ना है रेट खुले होते हैं!रोड के किनारे सब्जी बेचते रेड़ी वाले से पैसे लेकर बीट वाला उसे वहॉं खड़ा होने देता है।पार्कों में अश्लील हरकतें करने वाले जोड़ों को  भी पैसे के बल पर कुछ भी करने की छूट मिल जाती है। किसी भी खाली जगह पर खड़ी गाड़ी के बीट वाला कब पैसे मॉंगने लगेगा उसका मन!कानून के रखवाले इमान धरम के साथ साथ सब कुछ बेच रहे हैं खरीदने वाला चाहिए!देश  की राजधानी का जब यह हाल है तो देश  के अन्य शहरों के लोग क्या कुछ नहीं सह रहे होंगे!पचासों हजार सैलरी पाने वाले डाक्टर मास्टर  पोस्ट मास्टर फोन मोबाइल आदि सभी सरकारी विभागों को अपने अपने क्षेत्र के प्राइवेट विभागों से पिटते देख रहा हूँ फिर भी बेशर्मी का आलम यह है कि काम हो या न हो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी समय से बढ़ा दी जाती है।इसका कारण कहीं यह तो नहीं है कि भ्रष्टाचार के द्वारा कमाकर सरकारी कर्मचारियों ने जो कुछ कमाकर सरकार को दिया होता है उसका कुछ अंश  सैलरी बढ़ाकर न दिया जाए तो पोल खुलने का भय होता है!
    ऐसे सभी प्रकार के अपराधों एवं अपराधियों के लिए सभी पार्टियों की सरकारें जिम्मेदार हैं जो दल जितने ज्यादा दिन सत्ता में रहा है वह उतना ही अधिक जिम्मेदार है जो दल सबसे अधिक सरकार में रहा उसने सभी प्रकार के अपराधों को सबसे अधिक पल्लवित किया है उसका कारण सरकारी निकम्मापन एवं अनुभवहीनता से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार आदि कुछ भी हो सकता है।
   अपराधियों का बोलबाला राजनीति में भी है हर अपराधी की सॉंठ गॉंठ लगभग हर दल में होती है क्योंकि वे इस सच्चाई को भली भॉंति जानते हैं कि अपराध करके बचना है तो अपना आका राजनीति में जरूर बनाकर रखना होगा या राजनीति में सीधे कूदना होगा और वो ऐसा कर रहे हैं, इसमें सभी दल उनकी मदद भी कर रहे हैं!यही कारण है कि  आजकल के अपराधी बाबा लोग भी अपनी संपत्ति की सुरक्षा आदि को लेकर घबडाए हुए हैं, उनके द्वारा किए जा रहे बलात्कार आदि गलत कार्यों में कहीं उनकी पोल न खुल जाए कहीं कानून का शिकंजा उन पर  न कसने लगे इसलिए जिताऊ कंडीडेट के समर्थन में चीखते चिल्लाते घूमने लगते हैं दिखाते हैं कि जैसे सबसे बड़े देश भक्त यही हैं।

     सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वहाँ के सरकार दुलारे शिक्षक या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर बालों की याद सताई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की चर्चा वहाँ  कहाँ और कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!

    अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?

    सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का यही  हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 

     इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?

     मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!मुझे अंदेशा है कि आरक्षण लीला की राजनैतिक सच्चाई जिस दिन जनता समझेगी उस दिन सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के विरुद्ध जो जनाक्रोश जनता में जागेगा वह भारतीय समृद्ध लोकतंत्र के लिए भयावह सुनामी की तरह होगा! इसलिए अभी भी समय है कि सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को  सारे छल कपट छोड़ कर जनता का विश्वास जीतने का प्रयास करना चाहिए !

      आज भ्रष्टाचार के आरोप हर विभाग पर लगाए जा रहे हैं इस देश की भोली भाली सीधी साधी जनता के साथ यह खुली गद्दारी है  जिसे छिपाने केलिए जनता को जाति संप्रदाय के नाम पर आरक्षण  की भीख बाँटते रहते हैं!वो भी लोगों के मस्तक पर केवल भिखारी होने का ठप्पा लगा देते हैं किसी को कुछ  देना ही होता तो आजादी के इतने दिन बीत गए लोगों की स्थिति अब तक सुधर गई होती और आरक्षण समाप्त भी हो गया होता, लोग आपस में भाईचारे से रहने भी  लगते किन्तु लाख टके का सवाल है कि फिर राजनीति कैसे होती ?अब तक आम जनता के हिस्से में केवल  आश्वासन  और उन्माद आते हैं!कि तुम्हारा शोषण किसने किया ! हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को ,  हरिजन -सवर्णों को अलग अलग ढंग से  भड़काकर  लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?      वर्तमान समय में समाज  अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने लगा  है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि  वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे हैं भीख में वोट मँगाकर  जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब लोगों  स्वयं जाग  कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक दूसरे का बहुमूल्य विश्वास!            

पढ़े लिखे ईमानदार लोगों की जरूरत किसी को नहीं है!  

                      काश  मैं भी नेता  होता !

  हर पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते  सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के लिए पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में ईमानदार राजनीति का वातावरण बनाया जा सके। यह सुनकर मैंने सोचा कि मैंने भी तीन विषय से आचार्य (एम.ए.)  दो विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से पीएच.डी की है।करीब150 किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी प्रकाशित नहीं हैं,कई काव्य ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं।आरक्षण आंदोलन से आहत होकर मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा  हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।           
      इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य  का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
      हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें  भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके उत्तर में कोई पत्र नहीं मिला।
       इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से  इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद  वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण रुचि नहीं ली।
      इसके बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का नारा देने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने के लिए वहॉं के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के माध्यम से समय मॉंगा किंतु वहॉं भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद ब्लाग पर बैठ कर चुपचाप मैं अपने बिचार लिखने लगा।

     बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव केवल उन्माद फैलाकर जी तना चाहती हैं!इन राजनैतिक दलों का उद्देश्य ही जन सेवा न होकर कैसे भी सत्ता में बने रहना होता है सत्ता  से हटते ही चेहरे की चमक चली जाती है। ये भावना ठीक नहीं है हर राजनेता के मनमें समाज के लिए स्थाई सेवा भाव तो चाहिए ही जो अधिकांश नेताओं में नहीं दिखता ऐसे में उन्माद फैलाकर चुनाव जीतने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प दिखता भी नहीं है जातिगत आरक्षण के रूप में बी.पी.सिंह जी ने भी उसी शार्टकट का ही सहारा लिया जो समाज के लिए दुखद साबित हुआ!

    इसी राजनैतिक कुचाल से आहत होकर बेरोजगारी के भय से युवा वर्ग न केवल घबड़ा गया अपितु आरक्षण के समर्थन और विरोध में संघर्ष पूर्ण आन्दोलनों में कूद पड़ा !जिस प्रकार से एक साथ एक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के समूह भी एक दूसरे से लड़ रहे थे जाति व्यूहों में बँट चुका था सारा देश !कितना दारुण दृश्य था वह! जब बड़ी संख्या में छात्र आत्म दाह करने पर मजबूर हो रहे थे! उसी समय में पटना में आरक्षण विरोधी छात्रों पर सरकारी मशीनरी ने गोली चलाई जिसमें कई छात्र घायल हुए थे इसी में एक छात्र श्री शैलेन्द्र सिंह जी मारे गए थे जिनका दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद घाट पर किया गया था उस समय वहाँ बहुत भीड़ उमड़ी थी जिसमे बहुत सारे लोग रो रहे थे बड़ा भावुक वातावरण था मैं भी उसी भीड़ में खड़े रो रहा था !वह विद्यार्थी जीवन था मैंने उसी भावुकता  वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक सरकारी नौकरी के लिए किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम सवर्णों के अधिकारों के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!

    इसके बाद आर्थिक तंगी और धनाभाव से होने वाली बहुत   सारी समस्याओं का सामना तो करना ही था जो  सपरिवार मैं आज तक कर भी रहा हूँ !बचपन में पिता जी का देहांत हो गया था संघर्ष पूर्ण जीवन जीते जीते माता जी भी असमय में ही चल बसीं ! कुल मिलाकर परिस्थियाँ अच्छी नहीं थीं।केवल विद्या का साथ था।शैक्षणिक शोषण भी समाज के अर्थ संपन्न लोगों ने करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी परिस्थियों का लाभ तो चालाक या सक्षम  लोग उठा ही लेते हैं!

     मुझे लगा कि जब अब नौकरी करनी नहीं है तो शिक्षा का समाज हित में ही सदुपयोग किया जाए और जन जागरण किया जाए कि किसी जाति के पीछे रह जाने में सवर्णों का कोई हाथ नहीं है ये राजनेताओं के द्वारा गढ़े गए किस्से हैं। इस प्रकार आपसी भाईचारे की भावना भरना हमारा लक्ष्य था जिसके लिए कुछ प्राइवेट   संगठनों से जुड़ा तो देखा वो समाज सेवा तो कहाँ वो लोग समाज से केवल धन इकट्ठा करने की बात किया करते और सोचते भी यही थे!मुझे लगा कि यही करना है तो किसी राजनैतिक दल से जुड़ जाता हूँ सभी दलों और यथासंभव यथा सुलभ नेताओं से संपर्क किया किन्तु किसी ने मुझमें समाज सेवा के वो गुण नहीं पाए जो एक राजनेता में होने चाहिए!मेरे व्रती,शिक्षित ,सदाचारी,त्याग पूर्ण समाजसेवी जीवन की बातें कहाँ पसंद की जाती हैं राजनीति में? वहाँ तो ऐसी बातें लिखकर भाषणों में पढ़ने के काम आती हैं। 

     इस प्रकार से सब जगह एवं सभी दलों से निराश अंततः अब मैं राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान नामक संस्थान के तत्वावधान में यथा संभव जन हित के कार्य करने का प्रयत्न करता रहता हूँ।
    यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को अपने दलों में अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी तलाश किया करते हैं न जाने,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे तो केवल इतना पता है कि  हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन राजनैतिक लोगों के किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य आदमी इन राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा  रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना ही हो तो कैसे करे ?

     मेरा उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर  बनाना है, जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे!आज साधन बहुत हो गए हैं किन्तु उनका उपयोग बिलकुल नहीं के बराबर है मोबाईल हर किसी की जेब में पड़ा है किन्तु बात किससे करें! कारें दरवाजे पर खड़ी हैं किंतु जाएँ किसके घर? सबसे तो संबंध बिगाड़ रखे हैं! न जानें क्यों ? सरकारी कानून बल,सरकारी सोर्स सिफारिस बल धनबल कहाँ किसी के काम आ पा रहे हैं जो इनके सहारे रहा सो मरा !

     आज आधे अधूरे कपड़े पहनने वाली फैशनेबल लड़कियों की हिम्मत तो सरकार खूब बँधा  रही है कि आप जैसे चाहो वैसे रहो हम तुम्हारे साथ हैं तुम्हें कोई रोक नहीं सकता किन्तु खाली हिम्मत बँधाने से क्या होता है लड़कियों की मदद कितनी कर पा रही है सरकार?पुराने ढंग से रहने में हमें पिछड़ा दकियानूसी रूढ़िवादी आदि कहलाने का खतरा है किन्तु सरकारी सुरक्षा के भरोसे तो खतरा ही खतरा है!अब ये हमें सोचना है कि सरकारी सुरक्षा बल के भरोसे अपनी छीछालेदर कराने के बाद भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहना है या बिना छीछालेदर कराए ही भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहने  में भलाई है!चारों ओर आधुनिक फैशन में रहने पर खतरा ही खतरा है!

   सरकारों में जनसेवा की सोच ही आज कहाँ है किस घमंड में जी रहे हम लोग ? सरकारें पति पत्नी का तलाक कराने का कानून तो बना सकती हैं किन्तु पति पत्नी में प्रेम नहीं पैदा कर सकती हैं!जबकि प्रेम सबसे अधिक जरूरी है वो हमें ही करना है इसीप्रकार से पड़ोसी से लेकर सभी सम्पर्कियों से मुकदमा लड़ो तो सरकारें एवं कानून तुम्हारा साथ देंगे किन्तु यदि इनसे प्रेम करना चाहो तो इसके सूत्र न तो कानून में हैं और न ही  सरकारों के पास !किन्तु जो स्त्री पुरुष इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहे हैं उन्होंने सरकारी कानूनी सुरक्षा बल के घमंड में  अपने सारे सम्पर्कियों सम्बन्धियों से तलाक कर लिया है किन्तु सरकार कब कहाँ किसके काम आई है? राजनीति,राजनेता एवं सरकारें तो हर विषय में आश्वासन देकर धोखा देती रहती हैं!ये हर विषय में इनकी आदत में है!सरकार के खून में पाया जाने वाला यह गद्दारी दोष अब तो सरकारी कर्मचारियों में भी आने लगा है! अब तो इनके मन में भी समाज के प्रति अपनापन खतम सा होता जा रहा है घूस दो तो काम होगा  अन्यथा नहीं होगा आप कानूनी अधिकारों की पर्चियाँ पकड़े घूमते रहो !लोगों का मानना है चूँकि घूँस आदि भ्रष्टाचार के माध्यम से लिया धन का हिस्सा जब सरकारी दुलारे राजापूत सरकार तक पहुँचा देते हैं तब अपने नौनिहालों पर खुश होकर सरकारें उन्हें महँगाई भत्ता बढ़ा चढ़ा कर देने लगती हैं सैलरी ड्योढ़ी दोगुनी आदि कुछ भी कर देती हैं वो कुछ काम करें न करें किन्तु सैलरी तो बढ़ानी ही होती है!अपनों को तो सरकार एक दम बरदान की तरह बाँटती रहती है दुश्मन तो केवल आम जनता है सरकार एवं सरकारी कर्मचारी दोनों ही आम जनता को पराया समझने लगते हैं! 

     हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान  का उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर  बनाना है, जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे! धन्यवाद!!!

 

 

राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान से जुड़ने के लिए मैं आप सभी का आह्वान करता हूँ आप सबके  सहयोग एवं इस संस्थान के माध्यम से मैं भी इसी दिशा में निरंतर प्रयासरत हूँ-

 आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी    संस्थापकःराजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान                


                                    तथा
दुर्गापूजाप्रचारपरिवार एवं ज्योतिष जनजागरण मंच 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी   ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
 संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी  
   एम.ए.      हिन्दी    
  कानपुर   विश्व  विद्यालय पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता 
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी 
 पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)   
  बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू.  वाराणसी
  विशेषयोग्यताः-वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीनवाङ्मयएवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय 
 प्रकाशितः-पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
कारगिल विजय      (काव्य )     

श्री राम रावण संवाद  (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती     (काव्य अनुवाद ) 

श्री नवदुर्गा पाठ      (काव्य)                               
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य ) 

 श्री परशुराम(एक झलक)
 श्री राम एवं रामसेतु  
 (21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन
कुछमैग्जीनोंमेंसंपादन,सहसंपादनस्तंभलेखनआदि। 
अप्रकाशितसाहित्यः-श्रीशिवसुंदरकांड,श्रीहनुमतसुंदरकांड,
संक्षिप्तनिर्णयसिंधु,   
ज्योतिषायुर्वेद,श्रीरुद्राष्टाध्यायी,

वीरांगनाद्रोपदी,दुलारीराधिका,
ऊधौगोपीसंवाद,    
श्रीमद्भगवद्गीता‘काव्यानुवाद’
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्मतिथिः9.10.1965                                                    
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव-इंदलपुर, पो.संभलपुर, जि.कानपुर,उत्तरप्रदेश                                       वर्तमान पता  के -71, छाछी बिल्डिंग चौक , कृष्णानगर,दिल्ली51                                                        01122002689,01122096548,मो.09811226973,09968657732







 
                                            



                पांचजन्य में प्रकाशित अंश 


                                                                                                                                                                                                                                                                                    

Arogya Mela

Posted By:

Anon

Mon Feb 11, 2002 8:16 am  |

Friends,

Appended below is a news item on the "Arogya Mela" carried in the Hindustan

Times of 10th Feb.. The Mela is being organised by the Swadeshi Jagaran

Manch in New Delhi and is reportedly drawing huge crowds. It is reported to

have received funds drom the Ministries of Health, Chemicals and S&T! I feel

that the JSA should react to this. Please send your views.

Amit

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Banish the spirit, cure the ‘disease’ at Arogya mela

Sutirtho Patranobis

(New Delhi, February 9)

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If you have a stomach problem or a throbbing headache, look behind.

According to Dr Shesh Narayan Vajpayee, an astrologer who looks up to the

planets to treat patients, ‘spirits’ often follow people around and are

responsible for prolonged illnesses.

These ‘spirits’ are mischievous as well, Vajpayee says. “They are aware when

the person is going for a check-up. So, they disappear and the test results

come out normal. Step out of the clinic, the spirit is back,” he says,

rather seriously. The only way you can get rid of them is to perform ‘puja

and havan’ and appease the planets.

Vajpayee is busy these days at the Swadeshi Arogya Mela at the Jawaharlal

Nehru Stadium, catering to people waiting to get their hands and bodies

checked. The Mela has been organised by the Centre for Bharatiya Marketing

Development (CBMD)—a unit of Swadeshi Jagran Foundation—and National Medicos

Organisation, an NGO.

The Government, according to a CBMD official has just provided logistical

support. The official, however, declines to comment on the financial

aspects, saying the details would be available after the fair concludes on

February 12.

Besides Vajpayee, numerous doctors and medical companies, dabbling in Indian

systems of medicine, have put up stalls at the Mela, which was inaugurated

on Thursday by Union Human Resources Development Minister Dr Murli Manohar

Joshi. Some are selling ayurvedic herbs to treat baldness and some others

are selling clothes made with ‘vastra vigyan’, designed to make the buyer

feel happy about life.

The fair is an attempt to spread awareness about the Indian systems of

medicine, says Delhi's former Health Minister Dr Harsh Vardhan. “Even if

‘health for all’ has not been achieved so far, we want to show that Indian

systems of medicine have the potential to cure many diseases,” he says.

Vajpayee, meanwhile, says the premise of his treatment is that diseases are

related to planetary movement.




       
 
                                            

 

Friday, September 20, 2013

उपासना और बासना के लिए जरूरी है एकांत !

      उपासना के लिए कुटिया भी ठीक है किंतु बासना के लिए जरूरी है हाईटेक आश्रम! नचैया गवैया टेलीवीजनी  बाबाओं ने बदनाम किए ज्योतिष ,वास्तु , सत्संग, साधना,  साधू और आश्रम !

     गुरु महात्मा साधू संन्यासी बाबा बैरागी जैसे पवित्र लोगों के नाम पर कुछ कामचोर धर्म एवं धर्म शास्त्र व्यापारियों ने धार्मिक परिस्थितियाँ बहुत बिगाड़ दी हैं।इनकी झूठी लप्फाजी बातों पर लोग न केवल भरोसा करने लगे   हैं अपितु इनके धंधे से जुड़ने  भी लगे हैं! 

      जब तक ऐसे बाबाओं के पाप का शिकार दूसरे तीसरे लोग बनते रहते हैं तब तक तो ऐसे चेला चेली लोग उनकी रास लीला की वकालत करते रहते हैं जब ब्यभिचार के छींटे उन चेला चेलियों या उनके सगे सम्बन्धियों पर भी पड़ने लगते हैं तब कुछ लोग तो शोर मचाते हैं कुछ स्त्री पुरुष उसी ब्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हैं और वे अज्ञानी लोग इसी को बाबा के द्वारा समझाई गई श्री राधाकृष्ण की दिव्य रास लीला समझने की भयंकर भूल कर बैठते हैं !इनसे प्रेरित हो हो कर भीड़ बढ़ने लगती है और बढ़े भी क्यों न! जहाँ रोज बदल बदल कर सभी प्रकार के भोजन भोग मिलते हों और साधुओं जैसा सम्मान भी! ऊपर से भोजन वस्त्र रहन सहन के खर्च की चिंता भी न हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा ऐसी जिंदगी जीने के लिए ?जिस बाबा की छत्र छाया में ऐसे सारे सुख सुलभ हो रहे हों उसे लोग बापू जी क्या बाप जी भी कहने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए!ऐसे बाबाओं के बचाव में इन बाबाओं के गिरोह के सभी लोग इसलिए गला फाड़ फाड़ कर चीखने चिल्लाने लगते हैं,क्योंकि बाबाओं के साथ साथ उनके अपने ब्यभिचार के  पोल खुलने का भय भी  सता रहा होता है। 

      एक धार्मिक संस्था का संस्थापक होने के नाते मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि आजकल बाबा बलात्कारों में आरोपित क्यों हो रहे हैं वो कितना सच या झूठ है ये तो वो जाने जो शिकार हुए और वो जानें जिन्होंने शिकार किया बाकी काम कानून का है जो गवाहों और साक्ष्यों के आधीन है।

     और तो जो होगा सो होगा हमारी चिंता इस बात की है कि ऐसा कब तक चलेगा?ऐसी परिस्थिति में समाज की धार्मिक,नैतिक आदि खुराक पूरी कौन करेगा?यदि यही चलता रहा तो यह धार्मिक ब्यभिचार उस सामान्य ब्यभिचार से अधिक घातक हो जाएगा!फिर कौन मानेगा धर्म कर्म कौन सिखाएगा नैतिकता का पाठ?कैसे बच पाएँगी सुरक्षित बच्चियाँ!आज बात बात में गोली चल जा रही है लोग मार एवं मर रहे हैं!बच्चियों पर तेजाब फ़ेंका जा रहा है!परिवार टूट रहे हैं समाज बिखरता जा रहा है वृद्धों की उपेक्षा हो रही है!धर्म भय नाम की बात ही समाप्त हो चली है जिससे मानव मन का शोधन होता था!आज हर धार्मिक व्यक्ति धनार्जन की ओर भाग रहा है बाबा ब्यूटी पार्लर जा रहे हैं !समाज में बढ़ते अपराध के लिए केवल सरकार या पुलिस ही जिम्मेदार नहीं है अपितु हमारा धार्मिक समाज एवं शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है!

    धर्म भय बिहीन कर्मचारी बिना घूस लिए एक कदम नहीं बढ़ाना चाहते !अधिक खर्चा करके भी सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से पराजित हैं,सरकारी डाक कोरियर से,सरकारी फोन प्राइवेट फ़ोन से इसी प्रकार सरकारी अस्पताल प्राइवेट अस्पतालों से पराजित हैं पुलिस में प्राइवेट व्यवस्था नहीं है तो अपराधियों के हौसले बुलंद हैं । 

      धार्मिक एवं शिक्षित जगत की लापरवाही के कारण नैतिक एवं धार्मिक भय घट रहा है इसकी पूर्ति कहाँ से हो !

     आज हाईटेक आश्रमों का प्रचलन बढ़ रहा है इस प्रकार के आश्रम तपस्या के अनुकूल नहीं अपितु बासना के अनुकूल बनाए जा रहे हैं दूर से ही देखकर पता लग जाता है कि इसमें कैसी कैसी तपस्या होती होगी कौन कौन लोग ठहरते होंगे!एक बड़ा सा आश्रमनुमा फार्म हाउस होता है उसके किसी कोने में दस पाँच कमरे बने होते हैं उसमें भी बिल्कुल एकांत में राजा महराजाओं की तरह के बेडरूम बने होते हैं।वहाँ मुख्य गेट से बेड रूम तक फार्म हाउस के मालिक संत नुमा बाबा की मर्जी के बिना परिंदा पर भी नहीं मार सकता!वहाँ सौ नहीं लाख गलत काम हों उस बाबा के विरुद्ध गवाही कोई क्यों देगा !वो भी वो जो इस प्रकार की बातों को छिपाने की ही सैलरी पाता हो ऐसा चौकीदार! दूसरी बात अपने बीबी बच्चों के लिए बिना परिश्रम किए दो रोटी उसे भी कमानी हैं।

    ऐसे आश्रम बाबाओं के नाम पर बनते और चलते जरूर हैं,बाबाओं की फोटो लगती है किन्तु बाबा जी कभी कदा भले आ जाएँ बाकी तो इनमें और और प्रकार की तपस्या और और लोग ही करते हैं वही उठाते हैं यहाँ के भारी भरकम खर्च !वो राजनीति एवं अर्थ नीति के बड़े बड़े खिलाड़ी होते हैं,अन्यथा  ऐसे आश्रमों में लगाई जाने वाली भारी भरकम धनराशि आती कहाँ से है?बाबा जी देते हैं तो वो कहाँ से लाते हैं सत्संग करके !सत्संग के हाईटेक कार्यक्रमों के आयोजनों से लेकर प्रचार प्रसार में जो धन खर्च होता है वही उन कार्यक्रमों से निकल पाना मुश्किल होता है फिर फार्म हाउसी आश्रमों का खर्च वहाँ कहाँ से निकलेगा ?रही बात सत्संगों की!जितने ये हाईटेक फार्म हाउसी बाबा हैं कभी जाकर देखो इनके सत्संग नाम के मिलन शिविरों में कोई धर्म कर्म का आचार व्यवहार नहीं होता कुछ रटी रटाई बातें बोलने सुनने की रस्म अदायगी भर  होती है बाकी तो जो होता है वही होता है लोग खुशी में झूम रहे होते  हैं और लगा रहे होते हैं बाबा जी के जयकारे!इस प्रकार से महीनों वर्षों के बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं में छलक रहा होता है आत्मानंद!

    बाबा जी के नाम या फोटो का लाकेट पहनने एवं घर में फोटो सजाकर रखने से बाबा जी के गिरोह से सम्बंधित लोगों में आपसी प्रेम बहुत जल्दी हो जाता है, फेस बुक पर परिचय किया और बाबा जी के सत्संग शिविरों में मिलन हुआ घर वालों को पता ही नहीं लग पाता है वहाँ सबकुछ हो जाता है जवान लड़के लड़कियाँ ऐसे बाबाओं को मन से खूब आशीर्वाद देते हैं जिन्होंने सत्संग शिविरों के नाम पर मिलने का अवसर उपलब्ध करवाया!

      एक परिवार की लड़की को अचानक एक बाबा जी के सत्संग शिविर में जाने की ईच्छा हुई वो पहले भी एक बार जा चुकी थी इसलिए किसी की बात न माने घर वाले मेरे पास आए कि मैं उसे समझाऊँ।जब मैंने सब से अलग अलग बात की तो घर वालों से उस लड़की के स्वभाव के बारे में पता लगा कि उसमें कोई दुर्गुण नहीं है भगवान की भक्ति में मन लगता है अपने गुरू जी का लाकेट पहनती है पिछले बार भी  हरिद्वार में किसी गुरू जी के सत्संग शिविर में पड़ोस की आंटी के साथ गई थी किन्तु अबकी बार वो हैं नहीं अकेले कैसे भेजूँ ?यह सब सुनकर मैंने लड़की से बात की वह सत्संग  शिविर में जाने की जिद कर रही थी। मैंने उसे समझाया कि तुझे भजन ही करना है तो घर बैठ कर कर ले ईश्वर तो सब जगह है आदि आदि, तब उसने किसी को न बताने की शर्त पर बताया कि वहाँ उसका प्रेमी आया होगा उससे बात हो चुकी है इसलिए जाना जरूरी है मैं पहले भी उसके साथ सात दिन रह कर आई हूँ। यह सुनकर मैंने पूछा कि पिछली बार तो तुम किसी आंटी के साथ गए थे तो वहाँ प्रेमी के साथ रहना कैसे संभव हुआ ?उसने बताया कि आंटी भी किसी के साथ प्रेम करती हैं जिससे करती हैं वो भी हर शिविर में आता है आंटी का ऐसा बहुत दिन से चल रहा है यह तरकीब भी मुझे आंटी ने ही बताई थी कि इससे कोई शक भी नहीं करता और मिलने का बहाना भी बन जाता है। यह सब सुनकर मैं समझ गया कि ये सत्संग से उपजा कुसंग है और मैंने उन्हें बिना समझाए बुझाए वापस भेज दिया !ज्योतिष का काम होने के नाते लोगों की समस्याओं का अनुभव होता  रहना स्वाभाविक ही है।

       ऐसे ऐकान्तिक आश्रम नुमा फार्म हाउसों में बाबा सारे साल में दो चार दस बार ही मुश्किल से  पहुँच पाते होंगे किन्तु दूर से चमक रहे इन विशाल आश्रमों के रख रखाव पर खर्च होने वाली इतनी मोटी धनराशि देता कौन है यदि बाबा जी को वहाँ रुक कर साधना करने का समय ही नहीं था अथवा यदि बाबा जी को वर्ष में दो एक दिन ही रुकना था तो उसके लिए इतनी बड़ी धन राशि का दुरूपयोग क्यों ?

        एक बार किसी ऐसे ही आश्रम के चौकीदार से मैं ऐसा ही प्रश्न कर बैठा तो पता लगा कि ये किसी साहूकार का फार्म हॉउस है यहाँ अक्सर लड़कियाँ लाई जाती थीं मनाई जाती थीं रंग रैलियाँ !एक बार किसी की सूचना पर पुलिस का छापा पड़ गया तो बड़े बड़े लोग एवं कई लड़कियाँ यहाँ से पकड़ी गई थीं काफी रुपए लगे थे तब जान बची थी फिर बाबू जी किसी की सलाह पर एक प्रसिद्ध बाबा के चेला बन गए एक दिन बाबा जी को यहाँ घुमाने भी लाए थे बाबा जी ने ही इसका उद्घाटन किया था तबसे आश्रम के गेट पर बाबा जी की फोटो लगी है उन्हीं के नाम पर आश्रम का नाम भी है। आश्रम के नाम पर एक पंडित जी आकर हवन कर जाते हैं गो शाला में दो तीन गाएँ पली हैं जिनका दूध बाबू जी के यहाँ जाता है वहीं एक टीना में गुड़ रखा है जब कोई श्रृद्धालु आता है तो हमसे कहा गया है कि गायों को गुड़ खिलाने लगना मैं ऐसा ही करता हूँ!

    अब तो यहाँ आदमी औरतें कोई भी आवें किसी को कोई शक नहीं होता है!बाकी अब भी यहाँ उसी तरह मौज मस्ती चलती है कई बड़े बड़े अधिकारी नेता लोग आदि भी सम्मिलित होते हैं किन्तु अब न तो कोई शिकायत करता है और न ही पुलिस आती है सारा खर्चा पानी बाबू जी ही करते हैं वैसे तो बाबा जी का यहाँ से कोई लेना देना नहीं है हम लोगों को बेतन भी बाबू जी ही देते हैं।अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पिछले साल बाबा जी के लड़के को किसी ने बताया होगा कि आपका एक आश्रम यहाँ भी है तो वो यहाँ आए थे वो कहने लगे कि आश्रम हमारा है तो बाबू जी ने उन्हें बताया कि मैं तो बाबा जी के रुकने के लिए देता हूँ वैसे तो हमारा ही है यह सुनकर उनमें और बाबू जी में विवाद हो गया था तो बाबा जी के नाम कागज तो थे नहीं फर्जी कब्जे का शोर मचा! तब से तो कोई यहाँ आता नहीं है अब तो सब कुछ बाबू जी ही देखते  करते हैं !

    वास्तविक संत झूठ फरेब धोखाधड़ी चोरी छिनारा बदमाशी ब्याभिचार आदि सभी प्रकार के प्रपंचों से दूर रहने वाले विरक्त संत न तो किसी नेता की चाटुकारिता करते हैं और न ही किसी धनी सेठ साहूकार की! इसी लिए उन्हें भी न कभी कोई नेता घास डालता है और न ही कोई धनी सेठ साहूकार आदि! किन्तु उन्हें इसकी परवाह भी नहीं होती है वो शास्त्रों के अनुशार जीना चाहते हैं और भगवान के भरोसे रहना चाहते हैं जो मिला जहाँ मिला वहाँ अपने संन्यास धर्म की मर्यादा के अनुशार उसे ईच्छा हुई तो स्वीकार किया अन्यथा बिना परवाह किए छोड़ कर चल दिए !ये संन्यासी हमारे प्रणम्य महापुरुष हैं। 

  

Saturday, September 14, 2013

ये कैसी करवा चौथ ?DR. S.N.Vajpayee

अकारण पुरुषों की आलोचना क्यों ?पुरुषों की आलोचना आज फैशन सा हो गया है

    करवा चौथ का व्रत पारिवारिक कुशलता का व्रत है जिस परिवार में सभी लोग सम्मिलित होते हैं केवल पति ही नहीं और केवल पति भी हो तो जो जिसे जितना मानता है वह उसके लिए कुशल कामना क्यों नहीं कर सकता है!वैसे भी इस व्रत में भगवान् शिव माता गौरी समेत कार्तिकेय और गणेश जी की पूजा की जाती है इसलिए ये समग्र परिवार की कुशल कामना का व्रत है फिर इसमें पुरुष वाद की दुर्गन्ध क्यों खोजनी?  
    करवा चौथ के नाम पर पुरुष वर्ग को कोसा जाना कहाँ तक उचित है?कई टी.वी.चैनलों में इस प्रकार की बिना सिर पैर की बेहूदी बकवास सुनने को मिली जिसमें अकारण पुरुषों की आलोचना की जा रही थी। ये घरों  बिगाड़ने वाली परिचर्चाएँ उन्हीं के द्वारा संचालित होती हैं जिन्होंने अच्छे या बुरे रास्तों से अपने खाने खर्चे के लिए धन खूब  इकट्ठा कर लिया है। ऐसे घरों का पुरुष वर्ग भी या तो अपने घर की महिलाओं की कमाई पर जिन्दा रहने वाला है या उनकी कमाई पर सुख सुविधाएँ भोग रहा है या उनके सुयश से सुरक्षित है।
    अपने पास अधिक पैसे होने के कारण अपनी जड़ों एवं स्वजन सम्बन्धियों से अलग होने के कारण अपना मन मार चुके संकोच बिहीन लोगों ने अपने घर में महिलाओं की आधीनता स्वीकार करते हुए आत्म समर्पण कर दिया है तो ये उनकी परिस्थिति है जो सब पर लागू नहीं की जा सकती।वैसे भी स्त्री हो या पुरुष इस दुनियाँ में  कोई सम्माननीय नहीं होता है केवल उसका गुण ही उसे महान बनाता है-----
                              गुणैर्हि  सर्वत्र पदं निधीयते 
   इसलिए  यदि कोई न कोई गुण है तो उसको  सम्मान मिलेगा ही क्योंकि संसार के सभी लोग किसी न किसी स्वार्थ से जुड़े होते हैं जहाँ  स्वार्थ साधन होता है वहाँ ही संबंध रखते हैं और वहीं सम्मान भावना भी प्रकट करते हैं। वैसे भी जाति, वर्ग,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय आदि के आधार पर बिना परिश्रम के सुविधा पाने का प्रयास हमेंशा छोटे,अयोग्य या कायर  लोग ही करते हैं फिर भी इन्हें कभी न तो सम्मान मिलता है और न ही ये इसके हकदार ही होते हैं, छोटों का अधिकार स्नेह प्राप्त करने का होता है जो उन्हें मिलना ही चाहिए।
           सेवक     सुख   चह   मान   भिखारी। 
           ब्यसनी  धन  शुभगति  ब्यभिचारी।।   

    अर्थात सेवक को सुख एवं भिखारी को सम्मान  नहीं मिलता है,जिन्होंने कभी किसी प्रकार का आरक्षण नहीं माँगा उनके त्याग के बदले उनको   सम्मान मिलता  है।आरक्षण भोगी किसी व्यक्ति को कभी न तो सम्मान मिला है और न ही आगे मिलेगा।इसी प्रकार  चोरी-छिनारा आदि  किसी भी प्रकार का ब्यसन करने वाले के पास  धन संग्रह  नहीं होता और  दूसरे की स्त्री से संसर्ग करने वाले को शुभ गति नहीं मिलती है।

       कुछ लोग ऐसे भी हैं जो न तो स्वयं को अपनी घर गृहस्थी में बाँधकर  एक पत्नी व्रती बनाना चाहते हैं न  अपनी पत्नी को ही पतिव्रता  अनसूया बनाना चाहते हैं।ऐसे घरों की बहू  बेटियाँ सारी भारतीय समाज की महिला मुक्ति की मसीहा कैसे कही या मानी जा सकती हैं।सबकी समस्याएँ अलग अलग होती हैं। हर कोई स्वतंत्र है।  
      बहुत महिलाएँ  ऐसी भी हैं जो गरीब हैं जिनका जीवन घर के पुरुष वर्ग की कमाई पर ही आश्रित होता है उन्हें तो पुरुष के अनुसार स्वेच्छया चलना ही होता है उनके माता पिता की भी आर्थिक स्थिति इस तरह की नहीं होती है कि उनका भरण पोषण हो सके। ऐसे में परिश्रम पूर्वक कमाई करके वो अपना भरण पोषण कर सकें न कर सकें ये निश्चित नहीं है। शारीरिक से लेकर आर्थिक आदि सभी विषयों में गलत काम उनके बश का नहीं है उनकी आत्मा गँवारा नहीं करती है।  ऐसे में यदि उन्होंने अपनी परिस्थिति में समझौता कर रखा है हम यदि ऐसा मान भी लेते हैं कि पुरुषों के बनाए खाँचे में उन्हें फिट होना पड़ता है तो इसमें बुराई भी क्या है?आखिर पुरुष वर्ग उनका दुश्मन तो नहीं होता है वही महिला दिवस के नाम पर पिता,भाई,ससुर,पति,पुत्र आदि पुरुषवर्ग के प्रति आम महिला के मन में घृणा  पैदा करना कहाँ तक न्यायोचित है?जबकि रहना साथ साथ है! प्रायः समाज को यदि हम नया कुछ नहीं दे सकते तो पहले से चली आ रही व्यवस्था में बुराई भी क्या है? 
    जिसने न्याय अन्याय से धन इकट्ठा करके अपने सब सुख सुविधा के सारे संसाधन जुटा लिए फिर निकल पड़े समाज सुधारने! आधुनिकता के नाम पर प्राचीन परम्पराओं को छिन्न भिन्न करना क्या और कितना जरूरी है? जब हम नया कुछ दे नहीं सकते तो पुराना बना रहने दें इसमें बुराई भी क्या है?        महिला दिवस पर पुरुषों का विरोध बुराई क्यों?धूपबत्ती मोमबत्तियाँ जलाने बेचारे वो भी जाते हैं! श्रृद्धांजलियों पुरुस्कारों में वो भी भाग लेते हैं!बलात्कारों के विरुद्ध अपराधियों को फाँसी की सजा उन्होंने भी माँगी थी! आन्दोलन में वो भी सहभागी होते हैं धरने प्रदर्शन उन्होंने भी किए थे! पुरुषों का अपराध क्या है?आखिर महिलाओं का  सम्मान पुरुषों की आलोचना के बिना पूरा क्यों नहीं हो सकता है?स्त्री पुरुषों को आपस में मिलजुलकर घरों में क्यों न रहने दिया जाए?  
     जिस  युग  के उदाहरण दे देकर महिलाओं के विरुद्ध पुरुषों को जिस प्रकार से कटघरे में खड़ा किया जाता है। उस युग में भी वैसा नहीं था जैसा आज सिद्ध करने का दुष्प्रयास  हो रहा है अपनी परम्पराओं को हर समय कोसते रहने वाले लोग केवल हीन भावना से ग्रस्त हैं पहले भी यहाँ ऐसा कुछ नहीं होता था जिससे शर्मिन्दा हुआ जाए !  
    उस युग की महिलाएँ स्वयं के कुछ  बनने की अपेक्षा अपने भाई,पति एवं बच्चों को बहुत कुछ बनाने के प्रयास में लगी रहती थीं। जिसका यश भी  उन्हें मिलता था।पिता.पुत्री,भाई.बहन, पति.पत्नी एवं माता.पुत्र जैसे संबंधों का निर्वाह जितने विश्वास एवं सफलता तथा सजीवता पूर्वक कर लेती थीं वह आज दुर्लभ है।विवाह के बाद कुछ महीनों वर्षों तक उन्हें अपनी सासू माता के कठोर अनुशासन में रहना होता था इसके बाद धीरे धीरे उनका अपना रुतबा बनने लगता था और वो स्थापित हो जाती थीं।यहाँ तक कि सासू माता के उस कठोर अनुशासन एवं संयुक्त परिवार और जगह की कमी तथा सामाजिक मर्यादाओं  के कारण उस समय महिलाओं का पति से मिल पाना बहुत कठिन होता था। पुरुष वर्ग अक्सर घरों के बाहर लेटता था एवं स्त्री वर्ग घरों के अन्दर लेटता था।
     बनारस के हमारे एक गुरू जी थे उन्होंने  पुरानी मर्यादाओं की बात करते हुए एक बार बताया था  कि उनके पास एक ही अँगौछा था नहाकर उससे ही  शरीर पोछना होता था, सुखा कर उसेही  शिर में बाँधना होता था, कहीं बिछा कर बैठने के काम भी आ जाता था अँगौछा । एक ही अँगौछा था पैसे भी उतने नहीं थे कि इतनी आसानी से दूसरा खरीद लिया जाए।ऐसा बहु उपयोगी अँगौछा लेकर बनारस से अपने गाँव बलिया स्थित अपने घर गए, वहाँ रात में  बिस्तर पर भूल बश अँगौछा छूट गया।अगले दिन सुबह उन्हें वापस बनारस लौटना था, किन्तु उस समय की सामाजिक परम्पराओं एवं मर्यादाओं के कारण  एकांत मिलन न संभव हो पाने से हमारी गुरुमाता वह अँगौछा हमारे गुरु जी को नहीं दे पाईं। इसके बाद शर्दी आदि के छै महीने गुरू जी को बिना अँगौछे के कठिनाई पूर्वक निकालने पड़े।  जब दूसरी बार घर आए तब उन्हें वह अँगौछा मिल सका। यहाँ एक और कठिनाई का सामना हमारी गुरुमाता को और करना पड़ा।  जब छै महीने बाद गुरू जी को वापस आना था तब तक वह अँगौछा छिपा कर रखते कहाँ?कोई देख लेता तो यही होता कि ये तुम्हें कैसे मिला? उस समय नन्द एवं सासु आदि महिलाएँ बहुओं के सामानों की तलाशी भी ले लिया करती थीं। इसलिए उस अँगौछे को गेहूँ आदि में छिपा छिपा कर किसी प्रकार समय निकलना पड़ा!    

       मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि ये उस समय की परम्पराएँ एवं मर्यादाएँ आदि ऐसी ही थीं। उस समय युवा जोड़ों पर इस प्रकार का अनुशासन बयो बृद्धों के द्वारा रखा जाता था ! उस समय की ये मर्यादाएँ स्त्री पुरुषों ने मिलकर बनाई एवं थीं।देवरानी-जेठानी,नन्द- भौजाई,सासु-बहू आदि में विवाद होते थे एवं इन्हीं के अनुशासन में नई बहू को रहना होता था। पुरुषों ने महिलाओं को बंधन में रखा ये पुरुषों के ऊपर गलत आरोप है। पुरुष तो लुकछिप कर कभी कभी अपनी पत्नी से मिल ही पाया  करते थे  वो अत्याचार कैसे करते?यदि कहीं किसी महिला को कोई पीड़ा हुई भी होगी तो उसकी जिम्मेदार कोई महिला ही होगी। 
    वर्तमान समय में भी यहाँ तक कि अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़कर जो लोग  प्रेम प्यार नाम का ड्रामा करते करते किसी अन्य महिला के चक्कर में फँस जाते हैं इसप्रकार घर में विवाहिता पत्नी और बच्चे उस एक महिला के दुष्कर्म के द्वारा दी गई पीड़ा के शिकार हुए।इसमें पुरुष निर्दोष नहीं है किन्तु बहिष्कार करने लायक ऎसे पुरुषों के जाल में फँस कर जिस महिला ने भी निंदनीय काम ही किया है फिर महिलादिवस के नाम पर केवल पुरुष विरोध क्यों?
    राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ  


यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी बनावटी ब्रह्मज्ञानी ढोंगी बनावटी तान्त्रिक बनावटी ज्योतिषी योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।

       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपने पन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना बाँटना  और सही जानकारी देना।

Friday, September 13, 2013

केंद्र तक पहुँचते पहुँचते भाजपा पीछे क्यों रह जाती है ?-ज्योतिष


भाजपाकी ज्योतिषीय एक और बड़ी  समस्या -  

   आखिर क्या कारण है कि अटल जी जैसे विराट व्यक्तित्व के रहते हुए भी भारतवर्ष  में भाजपा  अपने बल और नाम पर भारत के सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुँच पाई है इसीलिए उसे राजग का गठन करना पड़ा जबकि भाजपा से कम सदस्य संख्या वाले अन्यलोग  पहले भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं यही नहीं कई प्रान्तों में भाजपा की सरकारें सफलता पूर्वक चल रही हैं किंतु क्या कारण है कि केंद्र में ऐसा संयोग नहीं बन पाता है!

     दिल्ली प्रदेश के पिछले चुनावों में भाजपा के हारने का आखिर क्या कारण है?क्या  काँग्रेस बहुत अच्छा काम कर रही है इसलिए जीत जाती है चुनाव ?

            इसी प्रकार उत्तर प्रदेश से उमा भारती क्यों लौटीं खाली हाथ ?

      राजग टूटने का मुख्य कारण आखिर क्या है ?

अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारणक्या है ?

राम देव रामलीला मैदान से क्यों भगाए गए ?

अमर सिंह और मुलायम सिंह में क्यों हुआ मतभेद ?

                               आदि आदि !पढ़ें ध्यान से -

   ज्योतिष के अनुशार एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों का एक साथ काम कर पाना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है उसी का दंड भोग रही है भाजपा और राजग!

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंआदि इसीप्रकार

     भाजपा-भारतवर्ष की भी आपसी समस्या यही है।  यही कारण है कि चुनावों के समय इनकी आपसी तकरार बढ़ जाती है और विपक्षी फायदा उठा ले जाते हैं !राजग टूटने का कारण भी यही है -

               -राजग टूटने का कारण-

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-रेंद्रमोदी 

   इन तीनों में किसी एक की प्रमुखता दूसरे को बर्दाश्त नहीं हो पाती इसलिए राजग टूटना ही था !

       इस समस्या से भाजपा प्रदेशों में भी जूझती रही है 

भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण

दिल्ली भाजपा  का    राजनैतिक भविष्य ? 

 दिल्ली में भाजपा के चार विजयों  का एक  समूह एवं  पाँचवाँ नाम विजय शर्मा जी का है- 

                                     विजय शर्मा जी 

                        विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी

 ये पाँच वि एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम नहीं कर सकते या एक साथ रह नहीं सकते!जरूरी नहीं कि ऐसा राजनीति में ही हो!अन्य क्षेत्रों में भी जहाँ कहीं ऐसा संयोग बनता है कि किन्हीं भी  दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है- 

इसी प्रकार -

उत्तर प्रदेश में भाजपा

लराजमिश्र-कल्याण सिंह 

इसी प्रकार अबकी बार के चुनावों में त्तर प्रदेश से 

उमाभारती  को खाली हाथ लौटना पड़ा-

माभारती -   त्तर प्रदेश

     जिन प्रदेशों में ऐसा नहीं है वहाँ भाजपा का जनता में  ठीक ठीक विश्वास जमा हुआ है !

      इसलिए भाजपा को इस दृष्टि से भी और अधिक गंभीर मंथन करने  की आवश्यकता है इसके लिए भाजपा अभी जिस रास्ते की ओर  बढ़ रही है उसमें अपनी बढ़ी लोकप्रियता का भरोसा कम एवं वर्तमान सरकार की अलोकप्रियता का विश्वास अधिक है जो भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं कहे जा सकते।यह सोचकर  शीला दीक्षित जी को ही फायदा पहुँचाएगी भाजपा !

     इसप्रकार केंद्र से प्रान्तों तक भाजपा नाम समस्या जन्य इस बड़ी बीमारी से लगातार जूझती रही है इस कारण सत्ता में रह रही काँग्रेस विपक्षी पार्टी भाजपा  को लगातार कमजोर सिद्ध करती जा रही है दूसरी ओर भाजपा की ओर से भी समृद्ध एवं विश्वनीय संदेश  जनता में नहीं पहुँचाया जा सका है इसलिए  दिल्ली प्रदेश एवं संपूर्ण देश में जनता काँग्रेस के संवेदन हीन व्यवहार से दुखी तो है किंतु उस दुःख को घटाने में भाजपा कामयाब होगी इसका भी भरोसा भाजपा की ओर से समाज को नहीं मिल पा रहा है। इसलिए ज्योतिषीय संकेतों को समझते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए उसके परिणाम स्वरूप समाज भाजपा की भाषा पर भरोसा करेगा !

    एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी रहती है, अर्थात जिस पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि आदि को इनमें से कोई एक प्राप्त करना चाहेगा उसी को पाने की ईच्छा दूसरा भी रखता है,उसी तरह की भी नहीं बल्कि वही चीज चाहिए होती है ऐसे लोगों को जो किसी दूसरे के पास होती है।चूँकि एक ही चीज एक समय पर किसी दो या दो से अधिक के पास कैसे  रह सकती है! यही कारण है कि उसे पाने के लिए उस तरह के लोग एक दूसरे का नुकसान किसी भी स्तर तक गिरकर कर सकते हैं और उस पद-प्रतिष्ठा-और प्रसिद्धि को भी नष्ट कर देते हैं, अर्थात जो मुझे नहीं मिली वो किसी और को नहीं मिलने देंगे।

      इसलिए एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले दो या दो से अधिक लोग एक दूसरे को हमेंशा पीछे धकेला करते हैं ये लोग संगठित रूप से किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए  काम कर पाएँगे इसकी संभावना बहुत कम होती है।इनके बीच कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।इनमें आपसी तालमेल बेहतर बनाने के लिए किसी मजबूत व्यक्तित्व की व्यवस्था  समय रहते कर  लेना भाजपा के लिए उत्तम होगा।

    यही वो मजबूत कारण है जिसका दंड दिल्ली भाजपा को सत्ता से दूर रह कर पिछले दसों वर्षों से झेलना पड़ रहा है।चूँकि साहब सिंह वर्मा जी के बाद दूसरा  जनाधार वाला जो भी नेता दिल्ली भाजपा के शीर्ष पदों पर आया उसका नाम वि से प्रारंभ हुआ जो आपसी खींच तान में उलझ कर रह गया!इस अक्षर के अलावा आने वाला कोई और नाम यदि आया तो आम जनता में उसकी वैसी पकड़ नहीं बन सकी जैसी  राजनैतिक सफलता के लिए आवश्यक होती है,इस लिए उसे वैसी सफलता भी नहीं मिल सकी जैसी उसके लिए जरूरी थी।परिणाम स्वरूप दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काँग्रेस  के सदस्य के रूप में शीला दीक्षित जी ही  सुशोभित होती  रहीं! बात और है कि काँग्रेस इसे अपनी उत्तम प्राशासनिक क्षमता का परिणाम मानती हो किंतु ज्योतिषी सच्चाई यही है कि विपक्षी पार्टी भाजपा जनाधार संपन्न, लोकप्रिय, एवं स्वदल में अधिकाधिक स्वीकार्य नेता  दिल्ली  की  जनता के सामने उपस्थित कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो सकी है ।पहले वाले दिल्ली के चुनावों में पराजित हो चुकी भाजपा अभी भी उसी काम चलातू तैयारी के सहारे ही आगे बढ़ रही है!जो दिल्ली भाजपा के आगामी चुनावी  भविष्य के लिए चिंताप्रद है,साथ ही उसका यह तर्क कि इतने दिन तक लगातार काँग्रेस दिल्ली की सत्ता में रहने के कारण अलोकप्रिय हो चुकी है इसलिए जनता अबकी बार भाजपा को मौका देगी ही !मेरा विनम्र निवेदन है कि भाजपा के इस दावे या सोच में कोई दम नहीं है।इसलिए भाजपा को दिल्ली की चुनावी विजय के लिए चाहिए कि इन पाँचों विजयों की कार्य कुशलताओं का अन्य दूसरी तीसरी जगहों पर उपयोग करना चाहिए किन्तु दिल्ली के चुनावी मैदान में कोई एक विजय या किसी और नाम वाले व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए !अन्यथा आने वाले चुनावों में शीला दीक्षित जी की संभावित विजय को रोका नहीं जा सकेगा क्योंकि -

       अरविन्द केजरीवाल का म आदमी पार्टी

 में कोई भविष्य नहीं है जब से यह पार्टी बनी है तब सेरविन्द जी की लोकप्रियता घटी ही है बढ़ी तो है ही नहीं !म आदमी पार्टीवातावरण बिगड़ता ही जा रहा है।स्थिति कुछ दिनों में और साफ हो जाएगी। इसी नाम समस्या के कुछ और ज्वलंत उदाहरण हैं-

         अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण 

  न्नाहजारे-रविंदकेजरीवाल-सीमत्रिवेदी-   अग्निवेष- रूण जेटली - भिषेकमनुसिंघवी

                    सपा में फूट का कारण

  अमरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

    राम देव का आन्दोलन बिगड़ने का कारण

  रामदेव हवाई अड्डे पर मंत्रियों का ब्यवहार ठीक था किन्तु रामलीला मैदान पहुँचकर बात बिगड़ी ऊपर से राहुल गाँधी का हस्त क्षेप !

      रामदेव -रामलीला मैदान -राहुल गाँधी 

       रामदेव -राजीव गाँधी स्टेडियम-राहुल गाँधी

       रामदेव -म्बेडकर स्टेडियम -राहुल गाँधी

     दूसरी बार भी वैसा ही होता किंतु ये मैदान छोड़कर निकल पड़े इन्हें जाना था राजीव गाँधी स्टेडियम तो भी वही होता किन्तु ये पहुँच गए अम्बेडकर स्टेडियम

 इससे बचाव हो गया !  

  इसीप्रकार  और भी उदाहरण हैं ----

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद

रूण जेटली- भिषेकमनुसिंघवी 

  बामा-सामा 

  मायावती-मनुवाद

रसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी

 रवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

  नमोहन-मता-मायावती    

मरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन

 जैसे - अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे , अरविंदकेजरीवाल एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।


अन्नाहजारे की तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
       चूँकि अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। 

जैसेः- आजमखान अमिताभबच्चन  अनिलअंबानी  अभिषेक बच्चन आदि।
राहुलगॉधी - रावर्टवाड्रा - राहुल के पिता  श्री राजीव जी इन दोनों पिता पुत्र का नाम रा अक्षर  से था इसीप्रकार रावर्टवाड्रा  और उनके पिता श्री राजेंद्र जी इन दोनों पिता पुत्र का नाम  भी रा अक्षर  से ही था। दोनों को पिता के साथ अधिक समय तक रहने का सौभाग्य नहीं मिल सका ।
    अब राहुलगॉधी के राजनैतिक उन्नत भविष्य  के लिए रावर्टवाड्रा  का सहयोग सुखद नहीं दिख रहा है क्योंकि  यहॉं भी दोनों का नाम  रा अक्षर  से ही है।

                                  -निवेदक -

    राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान का निवेदन-

       यदि ज्योतिष, वास्तु ,नग नगीना यन्त्र तंत्र ताबीज ,धर्म शास्त्र ,रामायण,भागवत,गीता  या और भी धर्म एवं शास्त्र के किसी भी विषय  में आप भी कुछ जानना चाहते हैं या किसी ने कोई बहम डाल रखा है और आप परेशान हैं तो आप भी हमारे यहाँ फोन करके जान सकते हैं अपने प्रश्न का उत्तर पा सकते हैं अपनी भी शंका का समाधान ! विशेष बात यह है कि हमारे यहाँ  दिए गए उत्तरों एवं उपायों में आपको किसी प्रकार का कोई बहम नहीं होगा दूसरा वैदिक या लौकिक मंत्र जपने के उपाय बताए जाते हैं। नग नगीना यन्त्र तंत्र ताबीजों से सम्बंधित कोई उपाय नहीं बताए जाते हैं हाँ इनसे जुड़ी शंकाओं एवं बहमों का निवारण अवश्य किया जाता है।  

      इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमारे यहाँ संस्थान संचालन के लिए सहयोग राशि के रूप में अलग अलग प्रकार के प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए अलग अलग प्रकार की सहयोग राशि जमा करने का प्रावधान किया गया है!जो शुल्क केवल पारिश्रमिक रूप में ही लिया जाता है जो आगे सम्बंधित विद्वानों को देना होता है।जिनके बदले उनसे सम्बंधित विषयों के लिये  जाते हैं प्रमाणित उत्तर और यह बहम रहित सच्चाई सहित शास्त्रीय सेवा आपको कभी भी कहीं भी 24 घंटे के अंतराल में फोन पर भी उपलब्ध कराई जाती है ।

 संपर्क सूत्र -Dr. S.N.Vajpayee ,M.9811226973   संस्थापक-राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

        निवेदकः-ज्योतिष जनजागरण मंच

    
जपा पीछे क्यों रह जाती है ?