Friday, February 28, 2014

जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उनका भविष्य क्या होगा तथा उनके साथ क्यों किया जा रहा है सौतेला व्यवहार ?
     सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई इसमें उनका क्या दोष ?क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?आजादी भोगने के लिए सरकार एवं सरकारी कर्मचारी दो प्रकार के लोग ही बहुत हैं !बाकी  लोगों के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है क्या ? नरेगा,मरेगा एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है उन्हें! जो  चबा जाते हैं वही लोग जो या तो सरकार में हैं या सरकारी हैं आम जनता तो बचा खुचा जो कुछ पा जाती है तो पा जाती है बाकी उसकी थाली में दो रोटियाँ आगे पढ़ें … http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_5199.html

Thursday, February 27, 2014

सरकारी कर्मचारी !

जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उन लोगों के साथ क्यों किया जा रहा है सौतेला व्यवहार ?

     सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? नरेगा,मरेगा एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है उन्हें! जो  चबा जाते हैं वही लोग जो या तो सरकार में हैं या सरकारी हैं आम जनता तो बचा खुचा जो कुछ पा जाती है तो पा जाती है बाकी उसकी थाली में दो रोटियाँ आगे पढ़ें … http://snvajpayee.blogspot.in/2014/02/blog-post_5199.html

 

सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !

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आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ?

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नरेगा,मरेगा एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है क्या आम आदमी ?

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      इस देश का तथाकथित लोकतंत्र जो केवल गरीबों की सहनशीलता के कारण ही जीवित है बाकी इस देश में लोकतंत्र के नाम पर कुछ भी बचा नहीं है गरीब लोग कल यदि अपने अधिकार माँगने लगें तो इस तथाकथित शान्ति व्यवस्था के चीथड़े उड़ जाएँगे!

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     पचास पचास हजार सैलरी लेकर सरकारी लोग यदि अपनी माँगे मनवाने के लिए अपना अपना काम काज छोड़कर धरना प्रदर्शन कर सकते हैं तो आम आदमी ऐसी बाधा क्यों नहीं खड़ी कर सकता है जिसे सरकार कुछ नहीं देती है !

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किसान यदि ऐसे उपद्रव करना शुरू कर दे तो लोग क्या रूपया खाएँगे ?इसलिए अब आम जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए !

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सरकारी नौकरी में सैलरी तो मिलनी ही है फिर काम कराने के लिए क्यों देनी पड़ती है घूस!और क्यों दी जाती है पेंसन ?

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आम जनता बिना पेंशन के जी नहीं लेती है क्या ?फिर सरकारी कर्मचारियों को क्यों जरूरी है पेंशन ?

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अब जागना होगा आम जनता को और पूछना होगा सरकार से कि हम इस देश के नागरिक नहीं हैं क्या? हमारा इस देश की आजादी पर कोई अधिकार नहीं है क्या ?

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पाँच दस हजार सैलरी देकर प्राइवेट स्कूलों में अच्छी  पढ़ाई करवाई जा सकती है तो सरकारी स्कूलों में साठ  हजार देकर क्यों नहीं करवाई जा सकती है पढ़ाई?

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पाँच दस हजार सैलरी पाने वाले  कोरियर कर्मचारी कितनी जिम्मेदारी से कितनी ईमानदारी से कितने प्रेम से बात व्यवहार पूर्वक देते हैं अपनी सेवाएँ !और बचाए  हुए हैं उस डाक विभाग की इज्जत जिसके कर्मचारी पचासों हजार सैलरी लेकर भी काम तो नहीं ही करते हैं सीधे मुख बात भी नहीं करते हैं आखिर क्यों ?

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प्राइवेट मोबाईल कम्पनियाँ  पाँच दस हजार सैलरी देकर कितनी जिम्मेदारी से करा लेती हैं अपने काम सरकारी टेलीफोनों की फाल्ट महीनों महीनों तक चलती रहती है आखिर क्यों ?क्या सैलरी उनसे कम मिलती है इन्हें ?

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आखिर आम जनता कहाँ जाए किससे रोवे अपना दुःख?कौन सुनेगा उनकी आप बीती ?किसे चिंता है उनके दुःख दर्द की ?

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सरकार और सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य   लोगों के विषय में भी तो  सोचिए !क्या महँगाई उनके लिए नहीं है सरकारी कर्मचारियों की ऐसी विशेष कौन सी आवश्यकताएँ  हैं जो आम आदमी की नहीं होती हैं लेकिन सरकार मेहरबान केवल सरकारी कर्मचारियों के प्रति रहती है क्यों?बाक़ी सब कहाँ जाएँ ?

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प्राइवेट अस्पतालों में कितनी होती है साफ सफाई और कैसे दी जाती हैं चिकित्सा सुविधाएँ! उन्होंने ढक रखी है सरकारी अकर्मण्यता की पोल पट्टी! किन्तु सरकारी  अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?

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शिवरात्रि के पावन पर्व पर सबको बहुत बहुत बधाई !

                           शिवरात्रि के पावन पर्व  पर सबको बहुत बहुत बधाई !    
शिवरात्रि के पावन पर्व  पर भूत भावन भगवान् शिव  के चरणों में कोटि कोटि नमन ! साथ ही सभी देशों धर्मों जातियों सम्प्रदायों समूहों के सभी लोगों को हमारे भगवान् शिव  के इस पावन पर्व के परं पुनीत अवसर पर अनंतानंत मंगल कामनाएँ !
                                                                      निवेदक -
                                                              डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
                                                    संस्थापक -  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान 

                                                          व्रत के नियम -

      जिनका उपवास होगा अर्थात शिव के समीप वास होगा उसका खाने पर ध्यान कहाँ होगा और जिनका खाने पर ध्यान होगा उनका उपवास कैसा ?
        वैसे भी व्रत करने वालों के लिए  कुछ नियम बताए गए हैं यथा -
 1 . बार बार जल नहीं पीना चाहिए 
 2 .  पान नहीं खाना चाहिए
 3.   दिन में सोना  नहीं चाहिए  4 . एक दिन पहले से भोजन ऐसा करे ताकि व्रत के दिन कब्ज न हो
  5 . बासना(सेक्स ) से दूर रहना चाहिए
यथा-
         असकृत जलपानाच्च  सकृत ताम्बूल भक्षणात् ।
          उपवासः   प्रणश्येत्   दिवा  स्वापाच्च मैथुनात्॥  

                                                                           निवेदक -
                                                              डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
                                                    संस्थापक -  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान

Wednesday, February 26, 2014

जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उन लोगों के साथ क्यों किया जा रहा है सौतेला व्यवहार ?

जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उनके विषय में भी कुछ सोचा गया है क्या ? 

     सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई इसमें उनका क्या दोष ?क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?आजादी भोगने के लिए सरकार एवं सरकारी कर्मचारी दो प्रकार के लोग ही बहुत हैं !बाकी  लोगों के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है क्या ? नरेगा,मरेगा एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है उन्हें! जो  चबा जाते हैं वही लोग जो या तो सरकार में हैं या सरकारी हैं आम जनता तो बचा खुचा जो कुछ पा जाती है तो पा जाती है बाकी उसकी थाली में दो रोटियाँ डालकर उसके बच्चों को खाते हुए दिखाकर बना लिए जाते हैं वीडियो जो टी.वी. पर विज्ञापन के काम लाए जाते हैं !ऐसे सरकारी लोगों को शर्म इस बात की नहीं है कि आजादी के बाद सबसे अधिक दिन सत्ता में तुम रहे और तुम्हें पता था कि आम जनता भूख से तड़प रही है किन्तु जानबूझ कर लोगों को भूख से मारते रहे तुम !अबकी देखा कि जनता तुम्हें सबक सिखाने को तैयार है तब तुम्हें याद आई फूड सिक्योरिटी बिल की !बेशर्मी का आलम यह है कि उसका भी विज्ञापन कर रहे हो! अपनी पीठ थपथपा रहे हो ! और चाहते हो कि जनता इस निम्नता की भी प्रशंसा करे तुम्हारा एहसान माने कि तुमने उसे रोटियाँ दी हैं उचित तो यह  है कि अभी तक रोटियाँ छीनने की सजा मिलनी चाहिए तुम्हें !आज सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों की आमदनी के बीच इतनी गहरी खाई खोदती जा रही है सरकार कि जिस दिन इन दोनों के बीच आपसी विवाद बढ़ा वो जातीय द्वेष एवं सांप्रदायिक हिंसा से बहुत अधिक बिकराल होगा इसका स्वरूप !तब कौन बचाने आएगा इस देश के तथाकथित लोकतंत्र को!जो केवल गरीबों की सहनशीलता के कारण ही जीवित है बाकी इस देश में लोकतंत्र के नाम पर कुछ भी बचा नहीं है गरीब लोग कल यदि अपने अधिकार माँगने लगें तो इस तथाकथित शान्ति व्यवस्था के चीथड़े उड़ जाएँगे!पचास पचास हजार सैलरी लेकर सरकारी लोग यदि अपनी माँगे मनवाने के लिए अपना अपना काम काज छोड़कर धरना प्रदर्शन कर सकते हैं तो आम आदमी ऐसी बाधा क्यों नहीं खड़ी कर सकता है जिसे सरकार कुछ नहीं देती है ! किसान यदि ऐसे उपद्रव करना शुरू कर दे तो लोग क्या रूपया खाएँगे ?इसलिए अब आम जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए !

    सरकारी नौकरी में सैलरी तो मिलनी ही है फिर काम कराने के लिए क्यों देनी पड़ती है घूस!और क्यों दी जाती है पेंसन ?आम जनता बिना पेंशन के जी नहीं लेती है क्या ?फिर सरकारी कर्मचारियों को क्यों जरूरी है पेंशन ?

       अब जागना होगा आम जनता को और पूछना होगा सरकार से कि हम इस देश के नागरिक नहीं हैं क्या? हमारा इस देश की आजादी पर कोई अधिकार नहीं है क्या ?

    पाँच दस हजार सैलरी देकर प्राइवेट स्कूलों में अच्छी  पढ़ाई करवाई जा सकती है तो सरकारी स्कूलों में साठ  हजार देकर क्यों नहीं करवाई जा सकती है पढ़ाई?

    पाँच दस हजार सैलरी पाने वाले  कोरियर कर्मचारी कितनी जिम्मेदारी से कितनी ईमानदारी से कितने प्रेम से बात व्यवहार पूर्वक देते हैं अपनी सेवाएँ !और बचाए  हुए हैं उस डाक विभाग की इज्जत जिसके कर्मचारी पचासों हजार सैलरी लेकर भी काम तो नहीं ही करते हैं सीधे मुख बात भी नहीं करते हैं आखिर क्यों ?

     प्राइवेट मोबाईल कम्पनियाँ  पाँच दस हजार सैलरी देकर कितनी जिम्मेदारी से करा लेती हैं अपने काम सरकारी टेलीफोनों की फाल्ट महीनों महीनों तक चलती रहती है आखिर क्यों ?क्या सैलरी उनसे कम मिलती है इन्हें ?

     प्राइवेट अस्पतालों में कितनी होती है साफ सफाई और कैसे दी जाती हैं चिकित्सा सुविधाएँ! उन्होंने ढक रखी है सरकारी अकर्मण्यता की पोल पट्टी! किन्तु सरकारी  अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?

      बेचारे पुलिस विभाग की पोल पट्टी ढकने वाला कोई प्राइवेट विभाग होता ही नहीं है इसलिए आए दिन उठाए जाते हैं पुलिस विभाग पर प्रश्न चिन्ह ! किन्तु जब अन्य सरकारी विभागों में नहीं निभाई जा रही है जिम्मेदार भूमिका तो किसी एक विभाग से ही क्यों रखी जाएँ ऐसी बड़ी बड़ी उम्मीदें ? 

      आखिर आम जनता कहाँ जाए किससे रोवे अपना दुःख?कौन सुनेगा उनकी आप बीती ?किसे चिंता है उनके दुःख दर्द की ?

   सरकार और सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य   लोगों के विषय में भी तो  सोचिए !क्या महँगाई उनके लिए नहीं है सरकारी कर्मचारियों की ऐसी विशेष कौन सी आवश्यकताएँ  हैं जो आम आदमी की नहीं होती हैं लेकिन सरकार मेहरबान केवल सरकारी कर्मचारियों के प्रति रहती है क्यों?बाक़ी सब कहाँ जाएँ ?मुश्किल से चार घंटे स्कूलों में बैठकर चले जाने वाले प्राइमरी शिक्षकों की सैलरी पचास साठ हजार! आखिर किस बात के ?क्या पूछा नहीं जाना चाहिए उनसे ?यदि वो पढ़ाते ही होते तो लोग प्राइवेट स्कूलों में क्यों खा रहे होते धक्के ?सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भी तो अपने बच्चे नहीं पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में?आखिर उनसे क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि आप अपने काबिल शिक्षकों से क्यों नहीं पढ़वा लेते हैं अपने ही बच्चे ? मजे की बात तो यह है कि सरकारी शिक्षक भी नहीं पढ़ाते हैं अपने स्कूलों में अपने बच्चे जबकि प्राइवेट स्कूलों में सैलरी पाँच से दस हजार होती है फिर भी वे शिक्षक पढ़ा रहे हैं क्योंकि उन्हें भय होता है कि नहीं पढ़ाएँगे तो निकाल दिए जाएँगे किन्तु सरकारी शिक्षक क्यों पढ़ाएं आखिर उन्हें क्या भय है क्या कर लेगा उनका कोई !करना होता तो कर न लिया जाता !हर विभाग में यही लूट मार मची हुई है अपनी सैलरी बढ़ा लो और अपने कर्मचारियों की सुख सुविधाएँ जुटा लो बस !जनता बेचारी देखकर रह जाती है!एक जवान आदमी अपने परिवार के पालन पोषण के लिए जितने पैसे नहीं कमा पाता है उससे कई गुना अधिक पैसा पेंशन के रूप में  रिटायर्ड कर्मचारियों को दिया जाता है बुढ़ापा बिताने के लिए !

    सरकार और सरकारी कर्मचारियों  को छोड़कर और किसी को इंसान ही कहाँ समझा जाता है? आखिर इन्हें फायदा पहुँचाने की जरूरत क्या है जबकि  वर्तमान सैलरी में ही काम करने के लिए बेरोजगार युवाओं की भारी भरकम फौज सरकार से रोजगार माँग रही है । जो  सरकारी कर्मचारी अपनी वर्तमान  सैलरी से संतुष्ट नहीं हैं वे छोड़ें नौकरी और दें बेरोजगारों को अवसर!सरकार में बैठे लोग केवल अपने और अपने कर्मचारियों के विषय में ही क्यों सोचते हैं बाक़ी देशवासी आखिर किसके सहारे जिएँ ? 

       कभी चिंतन करने पर लगता है कि अभी तक तो राजनैतिक दलों ने आम समाज को जाति  संप्रदाय के चक्कर में उलझा रखा है तो लोग समझ रहे हैं कि हमारी गरीबी का कारण जाति  संप्रदाय है किन्तु जिस दिन सच्चाई पता लगेगी कि उनकी गरीबत का वास्तविक कारण सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों की ऐशो आराम की जिंदगी के संसाधन जुटाना है उस दिन उमड़ेगा भारतीय रोडों पर आम जनता का समुद्र तब कैसे सँभाल पाएगा कौन! इसलिए अभी सुधरने का समय  है उचित होगा कि आम आदमी को भी इंसान समझा जाए !

   हड़ताल करने वाले सरकारी कर्मचारियों की छुट्टी करके  योग्य बेरोजगारों को क्यों न दिया जाए रोजगार !इतनी अधिक सैलरी लेकर भी जिन लोगों का पेट नहीं भर रहा है सरकार उनके हाथ क्यों नहीं जोड़ देती है आखिर उन्हें मना मना कर बार बार नौकरी में रहने के लिए बाध्य क्यों किया जाता है और ऐसा तब किया जा रहा है जब उनसे अधिक या समान लोग बेरोजगार होकर मजदूरी करते घूम रहे हैं इसी बहाने सही सरकार उन गरीबों को भी अवसर क्यों नहीं दे रही है इससे एक सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दुबारा से इस तरह का ड्रामा हमेंशा हमेंशा के लिए बंद हो  जाएगा और घूस लेकर काम करने की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी! किन्तु सरकार ऐसा करने में डरती क्यों है क्या कहीं सरकार का कोई कमजोर बिंदु इनके पास दबा तो नहीं होता है अन्यथा इनके सामने सरकार दब्बू सी क्यों दिखाई देती है!आखिर सरकार को भी पता है कि सरकारी स्कूलों में पढाई नहीं होती है फिर भी सरकार साठ  हजार सैलरी देती है किन्तु सारे सरकारी कर्मचारी यहाँ तक कि सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को पढाते प्राइवेट स्कूल में है जहाँ शिक्षक की सैलरी पाँच दस हजार होती है!हमारे  कहने का उद्देश्य मात्र इतना है कि जो काम पाँच दस हजार रूपए खर्च करके बहुत अच्छा किया जा सकता है उसी काम को उससे बहुत कम अच्छा करवाने के लिए सरकार उससे दसगुनी सैलरी क्यों देती है! गरीब जनता का पैसा इसतरह बर्बाद किया जाता है आखिर सरकार की मंसा  क्या है सरकार के हर विभाग का यही हाल क्यों है !एक तरफ शिक्षित बेरोजगार मारे  घूम रहे हैं तो दूसरी जिन्हें रोजगार मिला है वो काम नहीं करना चाह  रहे हैं इसका कुछ निराकरण तो करना ही पड़ेगा !

     सरकारी कर्मचारियों को मनाया आखिर क्यों जाता है जाए सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार से बहुत निराश हैं देशवासी!पुलिस तो बदनाम है ही किन्तु हर विभाग बिक रहा है !किसी कवि ने कितना आहत होकर लिखा होगा कि 

 "हर चेहरे पर दाम लिखे हैं हर कुर्सी उपजाऊ है" 

        अर्थात पैसे लिए बिना लोग काम ही नहीं करना चाह रहे हैं एक साधारण सा पोस्टमैन त्यौहार माँगता है अर्थात देना हो तो दो अन्यथा कल तुम्हारी चेकबुक जैसे जरूरी कागजात दरवाजे पर  पड़े मिलेंगे !

     प्रिंटेड बुक्स के बंडलों को बुक करने के लिए पोस्ट आफिस जाओ तो प्रति बण्डल के हिसाब से पैसे दो तो ठीक और न दो तो तलाशी करने के नाम पर फाड़ दिए जाते हैं बण्डल !

       निगम कार्यालय,पुलिस विभाग और अदालती काम काज,बैंकों में लोन लेने के लिए जाओ तो ये लोग चलते ही पैसे के बल पर हैं।बैंकों में काउंटरों पर कितनी  भी लम्बी लाइन लगी हो भले ही लाइन और बढ़ती जा रही हो किन्तु काउंटर वाले बाबू जी जब तक मन आएगा तब तक मोबाईल पर बात करते रहेंगे काम तो बाद में कर ही लेंगे!ट्रेन टिकट लेने जाओ टिकट बाबू की यही स्थिति है सरकारी स्कूलों अस्पतालों का तो भगवान् ही मालिक है !ये लोग जनता के प्रति कतई जवाबदेय नहीं होते क्योंकि जनता इनको सैलरी नहीं देती है जो सैलरी नहीं देता है वो काम किस हक़ से करने को कह सकता है जो सैलरी देता है उसे काम देखने का समय कहाँ है!बिडम्बना यही है इसलिए यदि काम कराना है तो उसके बदले में पैसे तो देने ही पड़ेंगे ! जनता ने ऐसा मान भी लिया है इसलिए वो देती भी बड़े शौक से है इसे कोई भ्रष्टाचार कहे तो कहे !चुनावों के दो चार महीने पहले से अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए कोई सरकार घूस  लेने वालों पर कार्यवाही के नाम पर दो चार सौ लोगों को पकड़ कर उन पर कार्यवाही कर भी दे तो इससे क्या भ्रष्टाचार ख़तम हो रहा है जहाँ कुँए में ही भाँग पड़ी हो वहाँ क्या मायने रखते हैं दो चार सौ लोग !

       सैलरी के नाम पर सरकार अपने कर्मचारियों को इतना अधिक धन देती है न केवल इतना अपितु समय समय पर सैलरी भी बढ़ाती रहती है महँगाई भत्ता आदि बहुत कुछ देती ही रहती है फिर भी कईबार वो लोग मूड और मुद्दे बना बनाकर मनोरंजन के लिए अनशन धरना प्रदर्शन आदि किया करते हैं और सरकारें उनकी माँगे माना करती है !भाई बड़े दुलारे होते हैं सरकार को अपने कर्मचारी !ये लोग अपने आफिस में एक बार घूम आए तो उस दिन की हाजिरी लग जाती है कम से कम दो हजार रूपए के आदमी हो जाते हैं और अगर अपने सीनियर को किसी तरह खुश करके चल लेते हुए हों तो जाना भी नहीं पड़ता है दस पाँच  दिन की छुट्टी तो जेब में होती है!सरकारी प्राथमिक स्कूलों में तो पूरी तरह से ही रामराज्य है जब चाहें तब जा सकते हैं !

   दूसरी ओर किसान और मजदूर वर्ग के साथ साथ शिक्षित या अशिक्षित सभी  आम आदमियों की आजीविका के लिए सरकार की योजना है कि भोजन मिलेगा और साल में सौ दिन का काम मिलेगा इस प्रकार से उसे ढाई हजार रूपए महीने में देने की व्यवस्था है !

     मेरा प्रश्न केवल इतना है कि इसी देश के रहने वाले दो लोग समान रूप से शिक्षित हुए किन्तु एक की नौकरी लग गई उसकी तो सरकार को पूरी चिंता है उसे कम से कम पचास साठ  हजार रुपए तो मिलेंगे ही और पेंसन आदि सारी सुविधाएँ भी मिलेंगी आदि आदि ! ये तो नौकरी लगने के कारण मिलेंगी बाक़ी यदि काम करेंगे तो ऊपरी आमदनी भी होगी और यदि काम नहीं भी करेंगे तो भी फिलहाल सैलरी और पेंसन तो मिलेगी ही । 

      उसी के समान शिक्षित दूसरा व्यक्ति जिसे नौकरी नहीं मिली है सरकार की निगाह में उसकी औकाद ढाई हजार रूपए महीने की है! उसे ढाई हजार बस जिम्मेदारी उस पर भी उतनी ही है आवश्यकताएँ इच्छाएँ उसकी भी वैसी ही हैं संघर्ष उसने भी उतना ही किया है शिक्षा भी उतनी ही ली है ऐसी परिस्थिति में सरकार ये कैसे सोचती है कि दो समान शिक्षित लोगों में एक को गुजारे के लिए पचास हजार रूपए चाहिए तो दूसरा अपना गुजारा ढाई हजार रूपए महीने में कर लेगा !

     जब सरकारी कर्मचारियों का गुजारा साठ हजार में नहीं हो पाता और वो आंदोलन करने को निकल पड़ते हैं तो आम आदमी ढाई हजार में कैसे कर लेगा !भूख तो सबको बराबर लगती है बीमारी आरामी सुख दुःख सबके लगभग समान ही होते हैं !भले ही स्वाद,शौक और शान में नियंत्रण किया जा सकता है फिर भी कहाँ साठ हजार और कहाँ ढाई हजार !इतना अंतर एक देश के दो समान नागरिकों में अगर है तो यह न केवल गम्भीर चिंता का विषय है अपितु असहिष्णु लोगों में अपराध की भावना को जन्म देने वाला होता है!

      यह बात कोई एक आदमी नहीं कह रहा है अपितु पूरा देश न केवल कह रहा है अपितु  समझ भी रहा है इतना ही  नहीं सरकारी  कर्मचारियों से सारा देश निराश है और तो क्या कहें आज सरकारी कर्म चारियों का भरोसा सरकारी कर्मचारी  नहीं कर रहे हैं सरकारी डाक्टर; मास्टर, पोस्ट मास्टर और टेलीफोन विभाग के लोग भी अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों कराते हैं बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं मोबाईल प्राइवेट कंपनी का रखते है और अपना लेटर प्राइवेट कोरिअर को देते हैं इस प्रकार से सरकारी लोग ही जब सरकारी विभागों पर भरोसा नहीं करते हैं तो आम जनता कैसे करे विश्वास ?मजे की बात तो यह है कि प्राइवेट  विभागों में वही काम सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत कम खर्च में हो जाता है  इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों ने सरकारी स्कूलों को पीट रखा है प्राइवेट अस्पतालों नें सरकारी अस्पतालों को पीट रखा है प्राइवेट कोरिअर ने पोस्ट आफिसों को  पीट रखा है प्राइवेट फोन व्यवस्था नें सरकारी फोन विभाग को पीट रखा है !कहने को भले ही सरकारी विभागों को प्राइवेट विभाग पीट रहे हों किन्तु उन्हीं पीटने वालों ने ही उन उन विभागों की इज्जत भी बचा रखी है चूँकि सरकारी पुलिस विभाग को पीटने के लिए कोई प्राइवेट विभाग बनने की व्यवस्था ही नहीं है इसलिए उसे न कोई पीटने वाला है और न ही उसकी कोई इज्जत ही बचाने वाला है सम्भवतः इसीलिए हर कोई पुलिस विभाग पर ही अंगुली उठता रहता है न जाने लोग उसे इतना कमजोर विभाग क्यों समझते है  ?

      सरकार एवं कुछ सरकारी लोग जनता के लिए बड़ी समस्या बनते जा र हे हैंकाम चोर घूसखोर सरकारी मशीनरी की सैलरी का बोझ  अब देश की गरीब जनता पर नहीं पड़ने देने का संकल्प लेना होगा ।यह सबसे बड़ा पुण्य एवं पवित्र कार्य  होगा !

    ऐसी बातों से कम से कम सबको पता तो लग जाता है कि आम आदमी के विषय में इन की सोच क्या है! सच्चाई ये है कि ईमानदारी का अभाव एवं भ्रष्टाचार की अधिकता तथा जनता के प्रति संवेदन हीनता ने ऐसी सरकारों तथा ऐसे सरकारी कर्मचारियों को न केवल अविश्वसनीय बना दिया है अपितु ये देश के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं आखिर टैक्स रूप में दिए गए धन से जनता ऐसे लोगों का एवं उनके बीबी बच्चों का भार क्यों उठावे!जब कुछ कर पाना तो इनके बश का है ही नहीं किन्तु क्या इनकी बातों में भी संवेदन शीलता नहीं होनी चाहिए?

    सरकारी लोग जनता के दस लाख रूपए खर्च करके भी उतना काम नहीं कर पाते हैं जितना क्या और उससे  अच्छा एवं अधिक काम प्राइवेट लोग एक लाख रूपए में करके दिखा देते हैं। इसी प्रकार सरकारी स्कूल लाखों रूपए खर्च करके भी उतना अच्छा प्रतिफल नहीं दे पाता है प्राइवेट स्कूल जितना उनसे बहुत कम धन खर्च करके दे देता है!यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है ऐसी घातक काम चोरी एवं घूस खोरी होने के बाद सरकार को चाहिए कि देश एवं समाज पर बोझ बन चुके ऐसे लोगों की छुट्टी कर दे आखिर जनता अपनी गाढ़ी कमाई पर कहाँ तक ढोवे ऐसे कामचोर घूसखोर संवेदना विहीन लोगों को ?आज सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं कि नहीं पता ही नहीं लगता है आश्चर्य है !!! किन्तु सरकार ऐसे कर्मचारियों से भी खुश होकर  इनकी सैलरी बढ़ाया करती है क्योंकि ऐसी काली कमाई का हिस्सा ये सरकार तक पहुँचाते जो हैं। क्या अंधेर है! ये सब देखकर तो लगता है कि सरकार और सरकारी सारी मशीनरी  अपना दुश्मन केवल आम जनता को ही समझती है ।

      इस सरकार एवं सरकारी मशीनरी को ठीक करने की सारी  उम्मींद केजरीवाल जैसों से ही नहीं लगाना चाहिए हम सबको सभी पार्टियों एवं मीडिया तथा ईमानदार सरकारी कर्मचारियों की मदद से काम चोर घूसखोर सरकारी मशीनरी की सैलरी का बोझ अब देश की गरीब जनता पर नहीं पड़ने देने का संकल्प लेना चाहिए। यह सबसे बड़ा पुण्य एवं पवित्र कार्य इस समय के लिए होगा !इससे उन लोगों को भी एक सन्देश मिलेगा जो केवल बैठे की तनख्वाह लेने के  लिए सरकारी नौकरियाँ  ढूँढ़ते हैं उनकी भी भीड़ छँटेगी !ऐसे तो समाज में गलत सन्देश जा रहा है कि सरकार से लोन लेकर सरकारी कर्मचारियों को घूस   दे कर नौकरी पा लो फिर जीवन भर मजा करो कोई पूछने वाला ही नहीं होता है। 

  ऐसे तो धीरे धीरे केजरीवाल जैसे लोगों को गलत फहमी हो रही है कि जनता उन पर एवं आम आदमी पार्टी पर प्रभावित है किन्तु समाज उनसे प्रभावित किस बात से होगा उन्होंने अभी तक ऐसा कुछ किया ही नहीं है बोल अच्छा अच्छा रहे हैं जनता उनकी लोक लुभावनी बातें  सुनकर एक गेम उन पर भी लगा रही है जनता ने ऐसा ही भरोसा वी.पी.सिंह एवं भाजपा पर भी किया था किन्तु उसे वहाँ निराश होना पड़ा अब देखना ये है कि केजरी वाल जी जो बोल रहे हैं उसमें अमल कितना कर पाते हैं आशा है कि वो जनता को निराश नहीं करेंगे कम से कम भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास तो करेंगे ही केवल इतना ही नहीं अपितु दिखाई भी पड़ेगा कि वो भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कुछ कर भी रहे हैं।   

      अब समय आ गया है जब बहुत सारे सरकारी कर्मचारी लोग अपने लापरवाही पूर्ण आचरण से  धीरे धीरे अपनी उपयोगिता स्वयं समाप्त करते चले जा रहे हैं| आज सरकारी आफिसों  संस्थाओं में काम काज  का स्तर इतना गिर चुका है कि समाज इन पर क्रोधित तो नहीं है  इनसे निराश जरूर  है और हो भी क्यों न !
     एक ओर तो गरीब भारत है जिसे दिनरात परिश्रम करने पर भी भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा है तो दूसरा वह वर्ग है जो परिश्रम पूर्वक अपना जीवन संचालित कर रहा है तीसरा वर्ग सरकारी कर्मचारियों का है जो जिस काम के लिए नियुक्त किया गया है वह काम या तो करता नहीं है या भारी मन से अर्थात क्रोधित होकर करता है या फिर आधा अधूरा करता है या फिर घूस लेकर करता है| इन सबके बाबजूद भी उनका बेतन आम देशवासियों  के जीवन स्तर एवं देश की वर्तमान परिस्थितियों  के अनुशार  बहुत अधिक होता है उस पर भी सरकार अकारण ही उनकी सैलरी और बढ़ाए जा रही है|हर समय  पैसे पैसे का रोना रोने वाली सरकारों के पास  सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाते समय न जाने पैसा कहाँ से आ जाता है या सरकार का अपना भी कोई कमजोर बिंदु है जिसकी पोल सरकारी कर्मचारियों के पास दबी होती है जो कहीं खुल न जाए इस भय से उनकी सैलरी बढ़ाना कहीं सरकार की मज़बूरी तो नहीं है!
       यही अंधी आमदनी देखकर  सरकारी नौकरियाँ   पाने के लिए चारों तरफ मारामारी मची रहती है कोई आरक्षण माँग  रहा है कोई घूस देकर घुसना चाह रहा है क्योंकि एक बात सबको पता है कि बिना तनाव एवं बिना परिश्रम के भी यहाँ  जीवन आराम से काटा जा सकता है|
    कुछ विभागों के  सरकारी कर्मचारियों में कितनी काम चोरी घूस खोरी लूट मार आदि  मची हुई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो काम जितने अच्छे ढंग से  संतोष पूर्वक प्राइवेट संस्थाएं पाँच दस हजार रूपए मासिक पारिश्रमिक देकर करवा ले रही हैं वो काम उससे दस दस गुना अधिक बेतन देकर भी  उतने अच्छे ढंग से तो छोडिए बुरे ढंग से भी सही  सरकार अपने कर्मचारियों से नहीं करवा पा रही है आखिर क्यों ? फिर भी सरकार  पता नहीं इनके  किस आचरण से खुश होकर  इनकी सैलरी समय समय पर बढाया  करती है| प्राइवेट संस्थाएं  जिन कर्मचारियों  को  बिना बेतन के भी नहीं ढो सकती हैं  उन्हें अकारण ढोते रहने  में सरकार कि न जाने क्या मज़बूरी है!
      केवल यही न कि प्राइवेट संस्थाएँ कमा कर अपने पैसे से सैलरी बाँटती हैं इसलिए उन्हें पैसे की बर्बादी होने से कष्ट होता है  जबकि सरकार को कमा कमाया बिना किसी परिश्रम के जनता का पैसा टैक्स रूप में मिलता है यही कारण  है कि पराई कमाई अर्थात जनता के धन से किसी को क्यों लगाव हो ?बर्बाद हो तो होने दो !
      इस प्रकार सरकारी कर्मचारियों की इन्हीं गैर जिम्मेदार प्रवृत्तियों  ने  सरकारी संस्थाओं को उपहास का पात्र बना दिया है! क्या भारतीय लोकतंत्र को बचाए रखने की सारी जिम्मेदारी केवल आम जनता एवं गरीब वर्ग की ही है बाकी लोग ऐश करें! सरकारी कार्यक्रमों में होने वाला खर्च  देखिए,नेताओं एवं  सरकारी कर्मचारियों का खर्च देखिए बहाया जा रहा होता है पैसा? इनके भाषणों के लिए करोड़ों  के मंच तैयार किए जाते हैं आम आदमी अपनी कन्या के विवाह के लिए बेचैन घूम रहा होता है उसके पास कन्या के हाथ पीले करने के लिए धन नहीं होता है क्या करे बेचारा गरीब आम आदमी! कुछ उदाहरण आपके सामने भी रखता हूँ आप भी सोचिए कि लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर आखिर यह अंधेर कब  तक चलेगी!    

     कई बार तब बहुत आश्चर्य होता है जब ये पता लगता है कि जो कानून पालन करने के लिए बने थे वो पालन करने के बजाए केवल बनाए और बेचे जा रहे हैं तो बड़ा कष्ट होता है!

     एक बार किसी ने गुंडई के स्वभाव से हमारे निजी लोगों को मारा उनके शिर में काफी चोट लगी थी मैं उन्हें लेकर थाने गया उनका खून बहता रहा किंतु दूसरा पक्ष तीन घंटे बाद थाने में आया तब तक उन्हें इलाज भी नहीं उपलब्ध कराया गया जब वो किसी नेता को लेकर आए तो दरोगा जी ने उनसे हाथ मिलाया बात की इसके बाद हमें बुलाकर समझौते का दबाव डाला जब हम नहीं माने तो दरोगा जी ने हमारे सामने तीन आप्सन रखे कि यदि मैं उन्हें थाने में बंद कराना चाहता हूँ तो हमें कितने पैसे देने पड़ेंगे,यदि मैं किसी उचित धारा में बंद कराना चाहता हूँ तो क्या देना पडे़गा,अन्यथा दोनों पक्षों को बंद कर देंगे। हमने कहा मैं पैसे तो नहीं दूँगा जो उचित हो सो कीजिए हमें कानून पर भरोसा है तो उन्होंने कहा कानून क्या करेगा और क्या कर लेगा जज?देखना उसे भी हमारी आँखों से ही  है वो लोग तो कहने के अधिकारी होते हैं बाकी होते तो सब हमारी कलम के गुलाम ही हैं जैसा  हम लिखकर भेजेंगे वैसा ही केस चलेगा और हम वही लिखकर भेजेंगे जैसे हमें पैसे मिलेंगे! उसी के अनुशार केस चलेगा जज तुम्हारे शिर का घाव थोड़ा देखने आएगा!और देखे भी तो क्या कर लेगा जब हम लिखेंगे ही नहीं!वैसे भी घाव कब तक सॅभाल कर रख लोगे? हमारे यहॉं जितने दिन मुकदमें चलते हैं उतने में समुद्र सूख जाते हैं घाव क्या चीज है!
    इसी प्रकार दूसरे पक्ष से भी क्या कुछ बात की गई पता नहीं अंत में दोनों पक्षों को थाने में बंद कर दिया गया।एक कोठरी में ही बंद होने के कारण दोनों पक्षों की आपस में बात चीत होने लगी तो पता लगा कि दरोगा ने उन्हें भी इसी प्रकार धमकाया था कि इसमें कौन कौन सी दफाएँ  लग सकती हैं जिन्हें हटाने के लिए कितना कितना देना पड़ेगा!उन्होंने भी देने को मना कर दिया तो दोनों पक्ष बंद कर दिए गए!

    इसी प्रकार दिल्ली जैसी राजधानी में कागज, हेलमेट आदि की जॉंच के नाम पर किससे कितने पैसे लेकर छोड़ना है रेट खुले होते हैं!रोड के किनारे सब्जी बेचते रेड़ी वाले से पैसे लेकर बीट वाला उसे वहॉं खड़ा होने देता है।पार्कों में अश्लील हरकतें करने वाले जोड़ों को  भी पैसे के बल पर कुछ भी करने की छूट मिल जाती है। किसी भी खाली जगह पर खड़ी गाड़ी के बीट वाला कब पैसे मॉंगने लगेगा उसका मन!कानून के रखवाले इमान धरम के साथ साथ सब कुछ बेच रहे हैं खरीदने वाला चाहिए!देश  की राजधानी का जब यह हाल है तो देश  के अन्य शहरों के लोग क्या कुछ नहीं सह रहे होंगे!ये धोखा धड़ी क्या अपनों के साथ ! आश्चर्य है !!!

    पचासों हजार सैलरी पाने वाले डाक्टर मास्टर  पोस्ट मास्टर फोन मोबाइल आदि सभी सरकारी विभागों को अपने अपने क्षेत्र के प्राइवेट विभागों से पिटते देख रहा हूँ फिर भी बेशर्मी का आलम यह है कि काम हो या न हो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी समय से बढ़ा दी जाती है।इसका कारण कहीं यह तो नहीं है कि भ्रष्टाचार के द्वारा कमाकर सरकारी कर्मचारियों ने जो कुछ सरकार को दिया होता है उसका कुछ अंश  सैलरी बढ़ाकर न दिया जाए तो पोल खुलने का भय होता है!
    ऐसे सभी प्रकार के अपराधों एवं अपराधियों के लिए सभी पार्टियों की सरकारें जिम्मेदार हैं जो दल जितने ज्यादा दिन सत्ता में रहा है वह उतना ही अधिक जिम्मेदार है जो दल सबसे अधिक सरकार में रहा उसने सभी प्रकार के अपराधों को सबसे अधिक पल्लवित किया है उसका कारण सरकारी निकम्मापन एवं अनुभवहीनता से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार आदि कुछ भी हो सकता है।
   अपराधियों का बोलबाला राजनीति में भी है हर अपराधी की सॉंठ गॉंठ लगभग हर दल में होती है क्योंकि वे इस सच्चाई को भली भॉंति जानते हैं कि अपराध करके बचना है तो अपना आका राजनीति में जरूर बनाकर रखना होगा या राजनीति में सीधे कूदना होगा और वो ऐसा कर भी रहे हैं, इसमें सभी दल उनकी मदद भी कर रहे हैं!यही कारण है कि  आजकल सामान्य अपराधियों के साथ साथ अपराधी बाबा लोग भी अपनी संपत्ति की सुरक्षा आदि को लेकर घबड़ाए हुए हैं, उनके द्वारा किए जा रहे बलात्कार आदि गलत कार्यों में कहीं उनकी पोल न खुल जाए कहीं कानून का शिकंजा उन पर  न कसने लगे इसलिए जिताऊ कंडीडेट के समर्थन में चीखते चिल्लाते घूमने लगते हैं दिखाते हैं कि जैसे सबसे बड़े देश भक्त एवं उस नेता के प्रति समर्पित वही हैं।

    बलात्कार और भ्रष्टाचार  रोकने के लिए अभी तक कितने भी कठोर कानून बनाए गए हों किन्तु उनका भय आम अपराधियों में बिलकुल नहीं रहा क्योंकि वे किसी नेता या प्रभावी बाबा से जुड़े होते थे जिनसे उन्हें अभय दान मिला करता था किन्तु अब जबसे बड़े बड़े बाबा और बड़े बड़े नेता लोग भी जेल भेजे जाने लगे तब से अपराधियों में हडकंप मच हुआ है कि अब क्या होगा! मेरा अनुमान है कि भ्रष्ट नेताओं एवं भ्रष्ट बाबाओं की दूसरी किश्त जैसे ही जेल पहुंचेगी तैसे ही अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से घटेगा और फिर एक बार जनता में सरकार एवं प्रशासन के प्रति विश्वास जागना शुरू हो जाएगा! 

     सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वहाँ के सरकार दुलारे शिक्षक या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर बालों की याद सताई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की चर्चा वहाँ  कहाँ और कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!

    अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?

    सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का यही  बुरा हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 

     इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?

     मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!

     

Friday, February 21, 2014

भाजपा उत्तराधिकार प्रक्रिया में कहीं कुछ भूल तो नहीं गई है आखिर क्यों लगाई जाने लगती हैं अटकलें ?

    भाजपा का नाम लेते ही अटल अडवाणी जोशी जी जैसे राजनैतिक आदर्श लोगों की बेदाग छवि  सहसा कौंध ही जाती है मानस पटल पर !
     बंधुओ ! वर्तमान भाजपा ने अपने शीर्ष नेताओं  से उत्तराधिकार लिया है या उन्होंने दिया है !और यदि  अपनी इच्छा से दिया है तो उनके असंतोष की खबरें क्यों ?ये अटकलें हैं या अफवाहें और या फिर कुछ सच्चाई भी !खैर जो भी हो किंतु ऐसे संदेश पार्टी साधकों के लिए सुखद नहीं हो सकते !        इधर कुछ वर्षों महीनों से कई स्थलों पर देखा गया है कि अपनी प्रशंसा सुनते ही अडवाणी जी की आँखों में अक्सर आँसू आ ही  जाते हैं ! मैं ये बात उस महापुरुष के विषय में निवेदन कर रहा हूँ जिनका हृदय इतना कमजोर नहीं है यह भी सच है कि हमारे लौह पुरुष  विरोधियों से घिरने पर भी कभी भयभीत नहीं दिखे किन्तु अपनों से मिली ठेस न कही जा सकती है और न ही सही जा सकती है इस ठेस से धधकते हृदय आँसुओं से शीतलता का अनुभव करते हैं इसलिए आँसू अक्सर आ ही जाते हैं !कहें कैसे सहें कैसे वाली स्थिति है । 

       यह स्थिति उनकी है जिन्होंने अपनी पार्टी एवं पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुमूल्य अपनापन दिया है सम्पूर्ण समर्पण के साथ अपनी पार्टी को खड़ा किया है मैंने चर्चाओं में सुना है कि श्रद्धेय अटल जी को प्रधान मंत्री पद के लिए न केवल उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया था अपितु उन्होंने ही उनके नाम को प्रस्तावित किया था !उस समय अडवाणी जी की लोकप्रियता कम नहीं थी यदि उनमें पद लोलुपता होती तो अटल जी को प्रधानमंत्री बनाकर वे प्रसन्न न हुए होते! अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कृतकार्यता का कितना उत्साह था उनके मुखमंडल पर !इस युग में कहाँ पाए जाते हैं ऐसे राजनेता ! जो किसी और को कुछ बनाकर प्रसन्न होते देखे जाते हों !उन्होंने अपने स्तर पर बंशवाद को भी बढ़ावा नहीं दिया है !वो आंदोलन से उपजे नेता हैं अपने त्याग तपस्या संयम साधना से देदीप्यमान व्यक्तित्व के स्वामी हैं सत्ता में रहकर भी उन पर भ्रष्टाचार सम्बन्धी किसी प्रकार कोई आरोप नहीं लगा सका, लाखों विरोधियों की कलम कुंद  हो गई किन्तु खोज नहीं पाए कोई दाग जिनका व्यक्तित्व ही इतना निर्मल है!विरोधी भी जिनकी प्रशंसा करते हों उस महापुरुष की आँखों के आँसू अकारण और निरर्थक नहीं कहे जा सकते हैं और न ही इन आँसुओं के पीछे उनका कोई निजी कारण लगता है यदि ऐसा होता तो  उनकी यह पीड़ा सार्वजनिक मंचों पर प्रकट नहीं होती जहाँ की पीड़ा है वहीँ प्रकट होगी स्वाभाविक है !अतएव इन आँसुओं की भाषा पढ़ा जाना भाजपा की भलाई के लिए बहुत जरूरी है अभी समय है अभी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है।निजी तौर पर मैं उनके तपस्वी जीवन एवं विराट व्यक्तित्व को नमन करता हूँ और आशा करता हूँ आज की युवा पीढ़ी अटल जी एवं अडवाणी जी जैसे राजनैतिक ऋषियों की पारदर्शी एवं कर्मठ जीवन शैली से पवित्र प्रेरणा ले !

      सच्चाई क्या है मुझे नहीं पता है किन्तु हम तो आम आदमी है हममें बुद्धि कितनी ! किन्तु भावना तो हम में भी है उसे प्रकट करने का अधिकार हमें भी होना चाहिए उसी के तहत मैं अपनी बात लिख रहा हूँ । बीते कुछ महीनों वर्षों में पार्टीजनों की गतिविधियों से समाज में ऐसा संदेश गया है कि पार्टी अपने वृद्ध जनों को सह नहीं पा रही है! हो सकता है कि वास्तविकता ऐसी न हो किन्तु यदि ऐसा है तो पार्टी के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र प्रभावी  सन्देश दिया जाना चाहिए जिससे समाज का भ्रम भंजन हो सके जो वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है! अन्यथा भाजपा के प्रति समाज में एक सोच पनप रही है कि  भाजपा को छोड़कर हर पार्टी में एक स्थिर मुखिया है ऐसा भाजपा में क्यों नहीं हो सकता ?आखिर लोग किसको देखकर दें भाजपा वोट ?जबकि समय समय पर हर कोई हिलने  लग जाता है !

      यद्यपि टी. वी. देखने का मुझे समय नहीं मिल पाता है फिर भी एक कोई कार्यक्रम टी. वी. पर मैंने देखा था जिसमें एक घर की परिकल्पना होती है उस घर वालों को बिग बॉस नाम के किसी प्राणी की अज्ञात आवाजों के इशारों के अनुशार चलना होता है अथवा यूँ कह लें कि उस कल्पित पूरे परिवार के हर छोटे बड़े सदस्य को उस सशक्त वाणी के सामने केवल दंडवत करना होता है जो ऐसा न करना चाहे उसे घर के बाहर जाना होता है क्या भाजपा भी अब बिग बॉस का घर बनती जा रही है !एक पार्टी के रूप में उसे भी तो अपने पार्टी परिवार के स्थाई मुखिया के पद को भी प्रतिष्ठित बनाकर रखना ही चाहिए !हर परिवार का कोई न कोई मुखिया तो होता  ही है इसलिए भाजपा का भी होना चाहिए !

       भाजपा कहते ही श्री अटल जी एवं  श्री अडवाणी जी का चित्र मानस पटल पर सहज ही उभर आता  है माना जा सकता है कि आज अटल जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है किन्तु ईश्वर कृपा से श्री अडवाणी जी भाजपा की द्वितीय पंक्ति के नेताओं की अपेक्षा कम सक्रिय नहीं हैं उन्होंने  भाजपा को आगे बढ़ाने के लिए श्रम भी कम नहीं किया है फिर भी यदि उन्हें उनके पदों या उनके योग्य प्रतिष्ठा  से हिलाया जाएगा तो उनका दुखी होना स्वाभाविक है दूसरी बात यदि ऐसा होता है तो भाजपा की पहचान किसके बल पर बनेगी ?वैसे भी घरों की तरह ही दलों में भी क्रमिक उत्तराधिकार की व्यवस्था है अच्छा होता कि उसका सम्मान पूर्वक क्रमिक अनुपालन होता रहता किन्तु मीडिया तक पहुँचने से अच्छा नहीं रहा !खैर ,जो भी हो किन्तु भाजपा के हाईकमान में ऐसे कितने सदस्य हैं जिनका निजी व्यक्तित्व जनाकर्षक हो !जबकि राजनैतिक दलों का विकास ही जनाकर्षण से जुड़ा होता है ऐसी परिस्थिति में लोका- कर्षक नेताओं का  यदि वजूद बरकार नहीं रखा जाएगा तो संगठन चलेगा किसके बल पर ?जिसमें माननीय अडवाणी जी तो निष्कलंक ,सदाचारी एवं स्पष्ट वक्ता हैं उन्हें अपनी कही हुई बातों की सफाई नहीं देनी पड़ती है उन्हें यह नहीं कहना पड़ता है कि हमारी बात को मीडिया ने गलत छाप दिया होगा वैसे भी वो अप्रमाणित बात नहीं बोलते शिथिल बात नहीं बोलते हैं सम्भवतः ऐसी ही तमाम उनकी अच्छाइयों के कारण उनका सामाजिक राजनैतिक आदि गौरव सुरक्षित बना हुआ है कुछ दलों के कुछ छिछोरे नेताओं को छोड़कर बाकी लोग आज भी उनका नाम बड़े सम्मान पूर्वक ढंग से लेते वैसे भी यदि हम अटल जी का सम्मान करते हैं तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अटल जी भी उनसे स्नेह करते हैं इसलिए उनकी लोकप्रिय अच्छाइयाँ स्पष्ट हैं न जाने क्यों उनका गौरव सुरक्षित रखने में जाने अनजाने बाहर की अपेक्षा अंदर से इस उम्र में उतना गम्भीर सहयोग नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए !

        भाजपा के वर्त्तमान केंद्रीय हाईकमान में शीर्ष पदों पर रह चुके लोग अपने गृह प्रदेश में इतने विश्वसनीय और लोकप्रिय नहीं हो सके कि अपने बल पर वहाँ पार्टी को चुनाव जीता सकें आखिर क्यों वहाँ भी मोदी जी का ही सहारा है आखिर उन्होंने उन प्रदेशों में वरिष्ठ पदों पर रहकर किया क्या है यदि मोदी जी ने अपना प्रदेश भी सम्भाला है और दूसरे प्रदेशों में भी अपनी लोकप्रियता बधाई है तो ऐसे ही कद्दावर पदों पर रह चुके अन्य लोगों ने ऐसा क्यों नहीं किया या कर नहीं पाए और यदि कर नहीं पाए तो हाई कमान किस बात के ?

  मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ क्योंकि जब ये बात में सोचता हूँ तो एक सच्चाई सामने आती है कि काँग्रेस हमेशा से गलतियाँ करती रही है पहले जब भाजपा का हाईकमान हिलता नहीं था अर्थात हिमालय की तरह सुस्थिर था तब तक काँग्रेस का विरोध करने की क्षमता भाजपा में थी इसीलिए भाजपा आगे बढती चली गई !

     किन्तु जब सर्व सम्मानित अटल जी  एवं अडवाणी जी को संन्यास लेने की सलाहें अंदर से ही आने लगीं। इस पर उस समाज को भयंकर ठेस लगी जिसके मन में भाजपा का नाम आते ही अटल जी  एवं अडवाणी जी सहसा कौंध जाया करते थे उसने सोचना शुरू किया कि यदि ये नहीं तो कौन?जनता को इसका उचित उपयुक्त एवं सुस्थिर जवाब अभी तक नहीं मिल सका है क्योंकि बार बार बनने बिगड़ने बदलने वाला निष्प्रभावी हाईकमान जनता को अभी तक मजबूत सन्देश देने में सफल नहीं हो सका है जो पार्टी में हार्दिक रूप से सर्वमान्य हो !

  



 



    

Thursday, February 20, 2014

केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए सब कुछ ! बाक़ी लोगों का देश की आजादी में कोई योगदान नहीं है क्या ?

    पाँच दस हजार सैलरी देकर प्राइवेट स्कूलों में अच्छी पढ़ाई करवाई जा सकती है तो सरकारी स्कूलों में पचास साठ  हजार देकर क्यों नहीं हो सकती है अच्छी पढ़ाई?

    पाँच दस हजार सैलरी पाने वाले  कोरियर कर्मचारी कितनी जिम्मेदारी से कितनी ईमानदारी से कितने प्रेम से बात व्यवहार पूर्वक देते हैं अपनी सेवाएँ और बचे हुए हैं उस डाक विभाग की इज्जत जिसके कर्म चारी पचासों हजार सैलरी लेकर भी काम तो नहीं ही करते हैं सीधे मुख बात भी नहीं करते हैं आखिर क्यों ?

      प्राइवेट मोबाईल कम्पनियाँ  पाँच दस हजार सैलरी देकर कितनी जिम्मेदारी से करा लेती हैं अपने काम सरकारी टेलीफोनों की फाल्ट महीनों महीनों तक चलती रहती है आखिर क्यों ?क्या सैलरी उनसे कम मिलती है इन्हें ?

      प्राइवेट अस्पतालों में कितनी होती है साफ सफाई और कैसे दी जाती हैं चिकित्सा सुविधाएँ उन्होंने ढक रखी है सरकारी अकर्मण्यता की पोल पट्टी! किन्तु सरकारी  अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?

      बेचारे पुलिस विभाग की पोल पट्टी ढकने वाला कोई प्राइवेट विभाग होता ही नहीं है इसलिए आए दिन उठाए जाते हैं पुलिस विभाग पर प्रश्न चिन्ह ! किन्तु जब अन्य सरकारी विभागों में नहीं निभाई जा रही है जिम्मेदार भूमिका तो किसी एक विभाग से ही क्यों रखी जाएँ बड़ी बड़ी उम्मीदें ? 

     आखिर आम जनता कहाँ जाए किससे रोवे अपना दुःख?कौन सुनेगा उनकी आप बीती ?किसे चिंता है उनके दुःख दर्द की ?

सरकार और सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य   लोगों के विषय में भी तो  सोचिए !क्या महँगाई उनके लिए नहीं है सरकारी कर्मचारियों की ऐसी विशेष कौन सी आवश्यकताएँ  हैं जो आम आदमी की नहीं हैं लेकिन सरकार मेहरबान केवल सरकारी कर्मचारियों के प्रति रहती है क्यों ?मुश्किल से चार घंटे स्कूलों में बैठकर चले जाने वाले प्राइमरी शिक्षकों की सैलरी पचास साठ हजार आखिर किस बात के !क्या पूछा नहीं जाना चाहिए उनसे ?यदि वो पढ़ाते ही होते तो लोग प्राइवेट स्कूलों में क्यों खा रहे होते धक्के ?सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भी तो अपने बच्चे नहीं पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में?आखिर उनसे क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि आप अपने काबिल शिक्षकों से क्यों नहीं पढ़वा लेते हैं अपने बच्चे?जबकि प्राइवेट स्कूलों में सैलरी पाँच से दस हजार होती है फिर भी वे शिक्षक पढ़ा रहे हैं क्योंकि उन्हें भय होता है कि नहीं पढ़ाएँगे तो निकाल दिए जाएँगे किन्तु सरकारी शिक्षक क्यों पढ़ाएं आखिर उन्हें क्या भय है क्या कर लेगा उनका कोई !करना होता तो कर न लिया जाता !हर विभाग में यही लूट मार मची हुई है अपनी सैलरी बढ़ा लो और अपने कर्मचारियों की जनता बेचारी देखकर रह जाती है!एक जवान आदमी अपने परिवार के पालन पोषण के लिए जितने पैसे नहीं कमा पाता उससे कई गुना अधिक पैसा रिटायर्ड कर्मचारियों को दिया जाता है बुढ़ापा बिताने के लिए !

सरकार और सरकारी कर्मचारियों  को छोड़कर और किसी को इंसान ही कहाँ समझा जाता है आखिर इन्हें फायदा पहुँचाने की जरूरत क्या है जबकि  वर्तमान सैलरी में ही काम करने के लिए बेरोजगार युवाओं की भरी भरकम फौज सरकार से रोजगार माँग रही है जो  सरकारी कर्मचारी अपनी वर्तमान  सैलरी से संतुष्ट नहीं हैं वे छोड़ें नौकरी और दें बेरोजगारों को अवसर!सरकार में बैठे लोग केवल अपने और अपने कर्मचारियों के विषय में ही क्यों सोचते हैं बाक़ी देशवासी आखिर किसके सहारे जिएँ ?

   हड़ताल करने वाले सरकारी कर्मचारियों की छुट्टी करके  योग्य बेरोजगारों को क्यों न दिया जाए रोजगार !इतनी अधिक सैलरी लेकर भी जिन लोगों का पेट नहीं भर रहा है सरकार उनके हाथ क्यों नहीं जोड़ देती है आखिर उन्हें मना मना कर बार बार नौकरी में रहने के लिए बाध्य क्यों किया जाता है और ऐसा तब किया जा रहा है जब उनसे अधिक या समान लोग बेरोजगार होकर मजदूरी करते घूम रहे हैं इसी बहाने सही सरकार उन गरीबों को भी अवसर क्यों नहीं दे रही है इससे एक सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दुबारा से इस तरह का ड्रामा हमेंशा हमेंशा के लिए बंद हो  जाएगा और घूस लेकर काम करने की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी! किन्तु सरकार ऐसा करने में डरती क्यों है क्या कहीं सरकार का कोई कमजोर बिंदु इनके पास दबा तो नहीं होता है अन्यथा इनके सामने सरकार दब्बू सी क्यों दिखाई देती है!आखिर सरकार को भी पता है कि सरकारी स्कूलों में पढाई नहीं होती है फिर भी सरकार साठ  हजार सैलरी देती है किन्तु सारे सरकारी कर्मचारी यहाँ तक कि सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को पढाते प्राइवेट स्कूल में है जहाँ शिक्षक की सैलरी पाँच दस हजार होती है!हमारे  कहने का उद्देश्य मात्र इतना है कि जो काम पाँच दस हजार रूपए खर्च करके बहुत अच्छा किया जा सकता है उसी काम को उससे बहुत कम अच्छा करवाने के लिए सरकार उससे दसगुनी सैलरी क्यों देती है! गरीब जनता का पैसा इसतरह बर्बाद किया जाता है आखिर सरकार की मंसा  क्या है सरकार के हर विभाग का यही हाल क्यों है !एक तरफ शिक्षित बेरोजगार मारे  घूम रहे हैं तो दूसरी जिन्हें रोजगार मिला है वो काम नहीं करना चाह  रहे हैं इसका कुछ निराकरण तो करना ही पड़ेगा !

     सरकारी कर्मचारियों को मनाया आखिर क्यों जाता है जाए सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार से बहुत निराश हैं देशवासी!पुलिस तो बदनाम है ही किन्तु हर विभाग बिक रहा है !किसी कवि ने कितना आहत होकर लिखा होगा कि 

 "हर चेहरे पर दाम लिखे हैं हर कुर्सी उपजाऊ है" 

        अर्थात पैसे लिए बिना लोग काम ही नहीं करना चाह रहे हैं एक साधारण सा पोस्टमैन त्यौहार माँगता है अर्थात देना हो तो दो अन्यथा कल तुम्हारी चेकबुक जैसे जरूरी कागजात दरवाजे पर  पड़े मिलेंगे !

     प्रिंटेड बुक्स के बंडलों को बुक करने के लिए पोस्ट आफिस जाओ तो प्रति बण्डल के हिसाब से पैसे दो तो ठीक और न दो तो तलाशी करने के नाम पर फाड़ दिए जाते हैं बण्डल !

       निगम कार्यालय,पुलिस विभाग और अदालती काम काज,बैंकों में लोन लेने के लिए जाओ तो ये लोग चलते ही पैसे के बल पर हैं।बैंकों में काउंटरों पर कितनी  भी लम्बी लाइन लगी हो भले ही लाइन और बढ़ती जा रही हो किन्तु काउंटर वाले बाबू जी जब तक मन आएगा तब तक मोबाईल पर बात करते रहेंगे काम तो बाद में कर ही लेंगे!ट्रेन टिकट लेने जाओ टिकट बाबू की यही स्थिति है सरकारी स्कूलों अस्पतालों का तो भगवान् ही मालिक है !ये लोग जनता के प्रति कतई जवाबदेय नहीं होते क्योंकि जनता इनको सैलरी नहीं देती है जो सैलरी नहीं देता है वो काम किस हक़ से करने को कह सकता है जो सैलरी देता है उसे काम देखने का समय कहाँ है!बिडम्बना यही है इसलिए यदि काम कराना है तो उसके बदले में पैसे तो देने ही पड़ेंगे ! जनता ने ऐसा मान भी लिया है इसलिए वो देती भी बड़े शौक से है इसे कोई भ्रष्टाचार कहे तो कहे !चुनावों के दो चार महीने पहले से अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए कोई सरकार घूस  लेने वालों पर कार्यवाही के नाम पर दो चार सौ लोगों को पकड़ कर उन पर कार्यवाही कर भी दे तो इससे क्या भ्रष्टाचार ख़तम हो रहा है जहाँ कुँए में ही भाँग पड़ी हो वहाँ क्या मायने रखते हैं दो चार सौ लोग !

       सैलरी के नाम पर सरकार अपने कर्मचारियों को इतना अधिक धन देती है न केवल इतना अपितु समय समय पर सैलरी भी बढ़ाती रहती है महँगाई भत्ता आदि बहुत कुछ देती ही रहती है फिर भी कईबार वो लोग मूड और मुद्दे बना बनाकर मनोरंजन के लिए अनशन धरना प्रदर्शन आदि किया करते हैं और सरकारें उनकी माँगे माना करती है !भाई बड़े दुलारे होते हैं सरकार को अपने कर्मचारी !ये लोग अपने आफिस में एक बार घूम आए तो उस दिन की हाजिरी लग जाती है कम से कम दो हजार रूपए के आदमी हो जाते हैं और अगर अपने सीनियर को किसी तरह खुश करके चल लेते हुए हों तो जाना भी नहीं पड़ता है दस पाँच  दिन की छुट्टी तो जेब में होती है!सरकारी प्राथमिक स्कूलों में तो पूरी तरह से ही रामराज्य है जब चाहें तब जा सकते हैं !

   दूसरी ओर किसान और मजदूर वर्ग के साथ साथ शिक्षित या अशिक्षित सभी  आम आदमियों की आजीविका के लिए सरकार की योजना है कि भोजन मिलेगा और साल में सौ दिन का काम मिलेगा इस प्रकार से उसे ढाई हजार रूपए महीने में देने की व्यवस्था है !

     मेरा प्रश्न केवल इतना है कि इसी देश के रहने वाले दो लोग समान रूप से शिक्षित हुए किन्तु एक की नौकरी लग गई उसकी तो सरकार को पूरी चिंता है उसे कम से कम पचास साठ  हजार रुपए तो मिलेंगे ही और पेंसन आदि सारी सुविधाएँ भी मिलेंगी आदि आदि ! ये तो नौकरी लगने के कारण मिलेंगी बाक़ी यदि काम करेंगे तो ऊपरी आमदनी भी होगी और यदि काम नहीं भी करेंगे तो भी फिलहाल सैलरी और पेंसन तो मिलेगी ही । 

      उसी के समान शिक्षित दूसरा व्यक्ति जिसे नौकरी नहीं मिली है सरकार की निगाह में उसकी औकाद ढाई हजार रूपए महीने की है! उसे ढाई हजार बस जिम्मेदारी उस पर भी उतनी ही है आवश्यकताएँ इच्छाएँ उसकी भी वैसी ही हैं संघर्ष उसने भी उतना ही किया है शिक्षा भी उतनी ही ली है ऐसी परिस्थिति में सरकार ये कैसे सोचती है कि दो समान शिक्षित लोगों में एक को गुजारे के लिए पचास हजार रूपए चाहिए तो दूसरा अपना गुजारा ढाई हजार रूपए महीने में कर लेगा !

     जब सरकारी कर्मचारियों का गुजारा साठ हजार में नहीं हो पाता और वो आंदोलन करने को निकल पड़ते हैं तो आम आदमी ढाई हजार में कैसे कर लेगा !भूख तो सबको बराबर लगती है बीमारी आरामी सुख दुःख सबके लगभग समान ही होते हैं !भले ही स्वाद,शौक और शान में नियंत्रण किया जा सकता है फिर भी कहाँ साठ हजार और कहाँ ढाई हजार !इतना अंतर एक देश के दो समान नागरिकों में अगर है तो यह न केवल गम्भीर चिंता का विषय है अपितु असहिष्णु लोगों में अपराध की भावना को जन्म देने वाला होता है!

      यह बात कोई एक आदमी नहीं कह रहा है अपितु पूरा देश न केवल कह रहा है अपितु  समझ भी रहा है इतना ही  नहीं सरकारी  कर्मचारियों से सारा देश निराश है और तो क्या कहें आज सरकारी कर्म चारियों का भरोसा सरकारी कर्मचारी  नहीं कर रहे हैं सरकारी डाक्टर; मास्टर, पोस्ट मास्टर और टेलीफोन विभाग के लोग भी अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों कराते हैं बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं मोबाईल प्राइवेट कंपनी का रखते है और अपना लेटर प्राइवेट कोरिअर को देते हैं इस प्रकार से सरकारी लोग ही जब सरकारी विभागों पर भरोसा नहीं करते हैं तो आम जनता कैसे करे विश्वास ?मजे की बात तो यह है कि प्राइवेट  विभागों में वही काम सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत कम खर्च में हो जाता है  इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों ने सरकारी स्कूलों को पीट रखा है प्राइवेट अस्पतालों नें सरकारी अस्पतालों को पीट रखा है प्राइवेट कोरिअर ने पोस्ट आफिसों को  पीट रखा है प्राइवेट फोन व्यवस्था नें सरकारी फोन विभाग को पीट रखा है !कहने को भले ही सरकारी विभागों को प्राइवेट विभाग पीट रहे हों किन्तु उन्हीं पीटने वालों ने ही उन उन विभागों की इज्जत भी बचा रखी है चूँकि सरकारी पुलिस विभाग को पीटने के लिए कोई प्राइवेट विभाग बनने की व्यवस्था ही नहीं है इसलिए उसे न कोई पीटने वाला है और न ही उसकी कोई इज्जत ही बचाने वाला है सम्भवतः इसीलिए हर कोई पुलिस विभाग पर ही अंगुली उठता रहता है न जाने लोग उसे इतना कमजोर विभाग क्यों समझते है  ?

      सरकार एवं कुछ सरकारी लोग जनता के लिए बड़ी समस्या बनते जा र हे हैंकाम चोर घूसखोर सरकारी मशीनरी की सैलरी का बोझ  अब देश की गरीब जनता पर नहीं पड़ने देने का संकल्प लेना होगा ।यह सबसे बड़ा पुण्य एवं पवित्र कार्य  होगा !

    ऐसी बातों से कम से कम सबको पता तो लग जाता है कि आम आदमी के विषय में इन की सोच क्या है! सच्चाई ये है कि ईमानदारी का अभाव एवं भ्रष्टाचार की अधिकता तथा जनता के प्रति संवेदन हीनता ने ऐसी सरकारों तथा ऐसे सरकारी कर्मचारियों को न केवल अविश्वसनीय बना दिया है अपितु ये देश के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं आखिर टैक्स रूप में दिए गए धन से जनता ऐसे लोगों का एवं उनके बीबी बच्चों का भार क्यों उठावे!जब कुछ कर पाना तो इनके बश का है ही नहीं किन्तु क्या इनकी बातों में भी संवेदन शीलता नहीं होनी चाहिए?

    सरकारी लोग जनता के दस लाख रूपए खर्च करके भी उतना काम नहीं कर पाते हैं जितना क्या और उससे  अच्छा एवं अधिक काम प्राइवेट लोग एक लाख रूपए में करके दिखा देते हैं। इसी प्रकार सरकारी स्कूल लाखों रूपए खर्च करके भी उतना अच्छा प्रतिफल नहीं दे पाता है प्राइवेट स्कूल जितना उनसे बहुत कम धन खर्च करके दे देता है!यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है ऐसी घातक काम चोरी एवं घूस खोरी होने के बाद सरकार को चाहिए कि देश एवं समाज पर बोझ बन चुके ऐसे लोगों की छुट्टी कर दे आखिर जनता अपनी गाढ़ी कमाई पर कहाँ तक ढोवे ऐसे कामचोर घूसखोर संवेदना विहीन लोगों को ?आज सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं कि नहीं पता ही नहीं लगता है आश्चर्य है !!! किन्तु सरकार ऐसे कर्मचारियों से भी खुश होकर  इनकी सैलरी बढ़ाया करती है क्योंकि ऐसी काली कमाई का हिस्सा ये सरकार तक पहुँचाते जो हैं। क्या अंधेर है! ये सब देखकर तो लगता है कि सरकार और सरकारी सारी मशीनरी  अपना दुश्मन केवल आम जनता को ही समझती है ।

      इस सरकार एवं सरकारी मशीनरी को ठीक करने की सारी  उम्मींद केजरीवाल जैसों से ही नहीं लगाना चाहिए हम सबको सभी पार्टियों एवं मीडिया तथा ईमानदार सरकारी कर्मचारियों की मदद से काम चोर घूसखोर सरकारी मशीनरी की सैलरी का बोझ अब देश की गरीब जनता पर नहीं पड़ने देने का संकल्प लेना चाहिए। यह सबसे बड़ा पुण्य एवं पवित्र कार्य इस समय के लिए होगा !इससे उन लोगों को भी एक सन्देश मिलेगा जो केवल बैठे की तनख्वाह लेने के  लिए सरकारी नौकरियाँ  ढूँढ़ते हैं उनकी भी भीड़ छँटेगी !ऐसे तो समाज में गलत सन्देश जा रहा है कि सरकार से लोन लेकर सरकारी कर्मचारियों को घूस   दे कर नौकरी पा लो फिर जीवन भर मजा करो कोई पूछने वाला ही नहीं होता है। 

  ऐसे तो धीरे धीरे केजरीवाल जैसे लोगों को गलत फहमी हो रही है कि जनता उन पर एवं आम आदमी पार्टी पर प्रभावित है किन्तु समाज उनसे प्रभावित किस बात से होगा उन्होंने अभी तक ऐसा कुछ किया ही नहीं है बोल अच्छा अच्छा रहे हैं जनता उनकी लोक लुभावनी बातें  सुनकर एक गेम उन पर भी लगा रही है जनता ने ऐसा ही भरोसा वी.पी.सिंह एवं भाजपा पर भी किया था किन्तु उसे वहाँ निराश होना पड़ा अब देखना ये है कि केजरी वाल जी जो बोल रहे हैं उसमें अमल कितना कर पाते हैं आशा है कि वो जनता को निराश नहीं करेंगे कम से कम भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास तो करेंगे ही केवल इतना ही नहीं अपितु दिखाई भी पड़ेगा कि वो भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कुछ कर भी रहे हैं।   

      अब समय आ गया है जब बहुत सारे सरकारी कर्मचारी लोग अपने लापरवाही पूर्ण आचरण से  धीरे धीरे अपनी उपयोगिता स्वयं समाप्त करते चले जा रहे हैं| आज सरकारी आफिसों  संस्थाओं में काम काज  का स्तर इतना गिर चुका है कि समाज इन पर क्रोधित तो नहीं है  इनसे निराश जरूर  है और हो भी क्यों न !
     एक ओर तो गरीब भारत है जिसे दिनरात परिश्रम करने पर भी भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा है तो दूसरा वह वर्ग है जो परिश्रम पूर्वक अपना जीवन संचालित कर रहा है तीसरा वर्ग सरकारी कर्मचारियों का है जो जिस काम के लिए नियुक्त किया गया है वह काम या तो करता नहीं है या भारी मन से अर्थात क्रोधित होकर करता है या फिर आधा अधूरा करता है या फिर घूस लेकर करता है| इन सबके बाबजूद भी उनका बेतन आम देशवासियों  के जीवन स्तर एवं देश की वर्तमान परिस्थितियों  के अनुशार  बहुत अधिक होता है उस पर भी सरकार अकारण ही उनकी सैलरी और बढ़ाए जा रही है|हर समय  पैसे पैसे का रोना रोने वाली सरकारों के पास  सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाते समय न जाने पैसा कहाँ से आ जाता है या सरकार का अपना भी कोई कमजोर बिंदु है जिसकी पोल सरकारी कर्मचारियों के पास दबी होती है जो कहीं खुल न जाए इस भय से उनकी सैलरी बढ़ाना कहीं सरकार की मज़बूरी तो नहीं है!
       यही अंधी आमदनी देखकर  सरकारी नौकरियाँ   पाने के लिए चारों तरफ मारामारी मची रहती है कोई आरक्षण माँग  रहा है कोई घूस देकर घुसना चाह रहा है क्योंकि एक बात सबको पता है कि बिना तनाव एवं बिना परिश्रम के भी यहाँ  जीवन आराम से काटा जा सकता है|
    कुछ विभागों के  सरकारी कर्मचारियों में कितनी काम चोरी घूस खोरी लूट मार आदि  मची हुई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो काम जितने अच्छे ढंग से  संतोष पूर्वक प्राइवेट संस्थाएं पाँच दस हजार रूपए मासिक पारिश्रमिक देकर करवा ले रही हैं वो काम उससे दस दस गुना अधिक बेतन देकर भी  उतने अच्छे ढंग से तो छोडिए बुरे ढंग से भी सही  सरकार अपने कर्मचारियों से नहीं करवा पा रही है आखिर क्यों ? फिर भी सरकार  पता नहीं इनके  किस आचरण से खुश होकर  इनकी सैलरी समय समय पर बढाया  करती है| प्राइवेट संस्थाएं  जिन कर्मचारियों  को  बिना बेतन के भी नहीं ढो सकती हैं  उन्हें अकारण ढोते रहने  में सरकार कि न जाने क्या मज़बूरी है!
      केवल यही न कि प्राइवेट संस्थाएँ कमा कर अपने पैसे से सैलरी बाँटती हैं इसलिए उन्हें पैसे की बर्बादी होने से कष्ट होता है  जबकि सरकार को कमा कमाया बिना किसी परिश्रम के जनता का पैसा टैक्स रूप में मिलता है यही कारण  है कि पराई कमाई अर्थात जनता के धन से किसी को क्यों लगाव हो ?बर्बाद हो तो होने दो !
      इस प्रकार सरकारी कर्मचारियों की इन्हीं गैर जिम्मेदार प्रवृत्तियों  ने  सरकारी संस्थाओं को उपहास का पात्र बना दिया है! क्या भारतीय लोकतंत्र को बचाए रखने की सारी जिम्मेदारी केवल आम जनता एवं गरीब वर्ग की ही है बाकी लोग ऐश करें! सरकारी कार्यक्रमों में होने वाला खर्च  देखिए,नेताओं एवं  सरकारी कर्मचारियों का खर्च देखिए बहाया जा रहा होता है पैसा? इनके भाषणों के लिए करोड़ों  के मंच तैयार किए जाते हैं आम आदमी अपनी कन्या के विवाह के लिए बेचैन घूम रहा होता है उसके पास कन्या के हाथ पीले करने के लिए धन नहीं होता है क्या करे बेचारा गरीब आम आदमी! कुछ उदाहरण आपके सामने भी रखता हूँ आप भी सोचिए कि लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर आखिर यह अंधेर कब  तक चलेगी!    

     कई बार तब बहुत आश्चर्य होता है जब ये पता लगता है कि जो कानून पालन करने के लिए बने थे वो पालन करने के बजाए केवल बनाए और बेचे जा रहे हैं तो बड़ा कष्ट होता है!

     एक बार किसी ने गुंडई के स्वभाव से हमारे निजी लोगों को मारा उनके शिर में काफी चोट लगी थी मैं उन्हें लेकर थाने गया उनका खून बहता रहा किंतु दूसरा पक्ष तीन घंटे बाद थाने में आया तब तक उन्हें इलाज भी नहीं उपलब्ध कराया गया जब वो किसी नेता को लेकर आए तो दरोगा जी ने उनसे हाथ मिलाया बात की इसके बाद हमें बुलाकर समझौते का दबाव डाला जब हम नहीं माने तो दरोगा जी ने हमारे सामने तीन आप्सन रखे कि यदि मैं उन्हें थाने में बंद कराना चाहता हूँ तो हमें कितने पैसे देने पड़ेंगे,यदि मैं किसी उचित धारा में बंद कराना चाहता हूँ तो क्या देना पडे़गा,अन्यथा दोनों पक्षों को बंद कर देंगे। हमने कहा मैं पैसे तो नहीं दूँगा जो उचित हो सो कीजिए हमें कानून पर भरोसा है तो उन्होंने कहा कानून क्या करेगा और क्या कर लेगा जज?देखना उसे भी हमारी आँखों से ही  है वो लोग तो कहने के अधिकारी होते हैं बाकी होते तो सब हमारी कलम के गुलाम ही हैं जैसा  हम लिखकर भेजेंगे वैसा ही केस चलेगा और हम वही लिखकर भेजेंगे जैसे हमें पैसे मिलेंगे! उसी के अनुशार केस चलेगा जज तुम्हारे शिर का घाव थोड़ा देखने आएगा!और देखे भी तो क्या कर लेगा जब हम लिखेंगे ही नहीं!वैसे भी घाव कब तक सॅभाल कर रख लोगे? हमारे यहॉं जितने दिन मुकदमें चलते हैं उतने में समुद्र सूख जाते हैं घाव क्या चीज है!
    इसी प्रकार दूसरे पक्ष से भी क्या कुछ बात की गई पता नहीं अंत में दोनों पक्षों को थाने में बंद कर दिया गया।एक कोठरी में ही बंद होने के कारण दोनों पक्षों की आपस में बात चीत होने लगी तो पता लगा कि दरोगा ने उन्हें भी इसी प्रकार धमकाया था कि इसमें कौन कौन सी दफाएँ  लग सकती हैं जिन्हें हटाने के लिए कितना कितना देना पड़ेगा!उन्होंने भी देने को मना कर दिया तो दोनों पक्ष बंद कर दिए गए!

    इसी प्रकार दिल्ली जैसी राजधानी में कागज, हेलमेट आदि की जॉंच के नाम पर किससे कितने पैसे लेकर छोड़ना है रेट खुले होते हैं!रोड के किनारे सब्जी बेचते रेड़ी वाले से पैसे लेकर बीट वाला उसे वहॉं खड़ा होने देता है।पार्कों में अश्लील हरकतें करने वाले जोड़ों को  भी पैसे के बल पर कुछ भी करने की छूट मिल जाती है। किसी भी खाली जगह पर खड़ी गाड़ी के बीट वाला कब पैसे मॉंगने लगेगा उसका मन!कानून के रखवाले इमान धरम के साथ साथ सब कुछ बेच रहे हैं खरीदने वाला चाहिए!देश  की राजधानी का जब यह हाल है तो देश  के अन्य शहरों के लोग क्या कुछ नहीं सह रहे होंगे!ये धोखा धड़ी क्या अपनों के साथ ! आश्चर्य है !!!

    पचासों हजार सैलरी पाने वाले डाक्टर मास्टर  पोस्ट मास्टर फोन मोबाइल आदि सभी सरकारी विभागों को अपने अपने क्षेत्र के प्राइवेट विभागों से पिटते देख रहा हूँ फिर भी बेशर्मी का आलम यह है कि काम हो या न हो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी समय से बढ़ा दी जाती है।इसका कारण कहीं यह तो नहीं है कि भ्रष्टाचार के द्वारा कमाकर सरकारी कर्मचारियों ने जो कुछ सरकार को दिया होता है उसका कुछ अंश  सैलरी बढ़ाकर न दिया जाए तो पोल खुलने का भय होता है!
    ऐसे सभी प्रकार के अपराधों एवं अपराधियों के लिए सभी पार्टियों की सरकारें जिम्मेदार हैं जो दल जितने ज्यादा दिन सत्ता में रहा है वह उतना ही अधिक जिम्मेदार है जो दल सबसे अधिक सरकार में रहा उसने सभी प्रकार के अपराधों को सबसे अधिक पल्लवित किया है उसका कारण सरकारी निकम्मापन एवं अनुभवहीनता से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार आदि कुछ भी हो सकता है।
   अपराधियों का बोलबाला राजनीति में भी है हर अपराधी की सॉंठ गॉंठ लगभग हर दल में होती है क्योंकि वे इस सच्चाई को भली भॉंति जानते हैं कि अपराध करके बचना है तो अपना आका राजनीति में जरूर बनाकर रखना होगा या राजनीति में सीधे कूदना होगा और वो ऐसा कर भी रहे हैं, इसमें सभी दल उनकी मदद भी कर रहे हैं!यही कारण है कि  आजकल सामान्य अपराधियों के साथ साथ अपराधी बाबा लोग भी अपनी संपत्ति की सुरक्षा आदि को लेकर घबड़ाए हुए हैं, उनके द्वारा किए जा रहे बलात्कार आदि गलत कार्यों में कहीं उनकी पोल न खुल जाए कहीं कानून का शिकंजा उन पर  न कसने लगे इसलिए जिताऊ कंडीडेट के समर्थन में चीखते चिल्लाते घूमने लगते हैं दिखाते हैं कि जैसे सबसे बड़े देश भक्त एवं उस नेता के प्रति समर्पित वही हैं।

    बलात्कार और भ्रष्टाचार  रोकने के लिए अभी तक कितने भी कठोर कानून बनाए गए हों किन्तु उनका भय आम अपराधियों में बिलकुल नहीं रहा क्योंकि वे किसी नेता या प्रभावी बाबा से जुड़े होते थे जिनसे उन्हें अभय दान मिला करता था किन्तु अब जबसे बड़े बड़े बाबा और बड़े बड़े नेता लोग भी जेल भेजे जाने लगे तब से अपराधियों में हडकंप मच हुआ है कि अब क्या होगा! मेरा अनुमान है कि भ्रष्ट नेताओं एवं भ्रष्ट बाबाओं की दूसरी किश्त जैसे ही जेल पहुंचेगी तैसे ही अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से घटेगा और फिर एक बार जनता में सरकार एवं प्रशासन के प्रति विश्वास जागना शुरू हो जाएगा! 

     सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वहाँ के सरकार दुलारे शिक्षक या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर बालों की याद सताई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की चर्चा वहाँ  कहाँ और कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!

    अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?

    सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का यही  बुरा हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 

     इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?

     मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!

     

Wednesday, February 19, 2014

दमदार नेताओं के दुमदार अफसर छूते हैं पैर !

    अशिक्षित मंत्रियों  के रौब का शिकार बनते हैं सुशिक्षित अफसर पैर न छुवें तो क्या गाली खाएँ !आखिर कितनी दहशत में जीते होंगे वो लोग!वारे लोकतंत्र !!!जो बाप के पैर नहीं छूते  हैं वो आपके छूते  हैं वारे नेता जी!!! 
     वर्त्तमान समाज अब आत्म संयम से विमुख होने के कारण अनैतिकता की ओर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है न केवल इतना अपितु समाज का एक बड़ा वर्ग धर्म कर्म से विमुख होकर अन्यायार्जित धन से उदर पोषण करने लगा है जिसके परिणाम स्वरूप बलात्कार ,भ्रष्टाचार आदि में सम्मिलित आम जनता  के एक वर्ग के साथ साथ कुछ  साधू महात्मा,कई पत्रकार, अनेक  राजनेता तथा कई नौकरी करने वाले लोग भी देखे जा रहे हैं।इसे देखकर यह कह पाना अत्यंत कठिन है कि समाज बदल रहा है या बिगड़ रहा है!किन्तु संसद भवन से लेकर विधान सभाओं में भी बिगत कुछ वर्षों से जो कुछ देखने को मिल रहा है उसमें बहुत कुछ अच्छा हो रहा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु कुछ सांसदों विधायकों के अमर्यादित आचरणों ने देश एवं प्रदेशों को एक नहीं अपितु कई बार शर्मसार किया है! ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए देश के चरित्रवान राजनेताओं को  आगे आना चाहिए और अमर्यादित आचरण करने वाले  उन भ्रष्ट, निर्लज्ज नेताओं को अपनी अपनी पार्टियों से बाहर करने का सभी दलों को सामूहिक संकल्प लेना चाहिए !
     वैसे भी नेता का अर्थ गुंडा तो नहीं ही होता है फिर नेतागिरी चमकाने के लिए लोग गुंडई क्यों करने लगे  हैं? जो नेता किसी दरोगा जी या किसी अन्य अफसर को समाज में खड़ा करके बेइज्जत कर दे या दो चार हाथ लात मार दे इससे भयभीत होकर वह अफसर उस नेता के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगे तो आम समाज में मान लिया जाता है कि ये बहुत दमदार नेता हैं।इस प्रकार से किसी गुंडा मवाली उपद्रवी नेता को दमदार सिद्ध करने के लिए अहंकारी राजनैतिक दल अपने अपने मन मुताविक  दुमदार अफसरों की फौज अपने आगे पीछे रखते हैं उन्हें नेता जी के पैर छूने के लिए मजबूर किया जाता है उनकी ड्यूटी ही इसीलिए और ऐसी जगहों पर लगाई जाती है कि नेता जी के प्रकट होते ही अफसर उनके चरण चूमते दिखें !कितनी दहशत है अफसरों में नेताओं के नाम पर ?
   पुराने समय में जो अफसर अपने अच्छे कामों के बल पर उस समय के चरित्रवान नेताओं एवं समस्त समाज का दिल जीत लिया करते थे आज उन्हीं में से कुछ कायर कामचोर अफसर नेता जी के सामने दुम हिलाकर एवं उनके चरण चूमकर चाटुकारिता के बलपर नेताओं की कृपा से बिना कुछ करके भी राज कर रहे हैं इससे  कानून व्यवस्था चरमराती चली जा रही है किन्तु किसी की जवाब देही नहीं दिखती है और दिखे भी क्यों "सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का"! 
   जब तक अफसरों से पैर छुवाने के शौकीन अहंकारी निकम्मे नेता रहेंगे एवं नेताओं के चरण चूमने वाले मक्कार अफसर रहेंगे तब तक सरकार एवं ऐसे सरकारी कर्मचारियों की सड़ाँध मारती कार्य शैली सुधर पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है ऐसे तो स्वस्थ राजनीति की परिकल्पना भी कैसे की जा सकती है !
    इसलिए ईमानदारी पूर्वक जनसेवा व्रती राजनैतिक कार्यकर्ताओं को चाहिए कि अपने दल से ऐसे नेताओं को निकाल बाहर करें जो अपने को स्वामी समझते हों क्योंकि राजनीति तो सेवाकार्यों के लिए है रौब मारने के लिए नहीं ! और सरस्वती पुत्र ईमानदार अफसरों को भी चाहिए कि कर्तव्य पालन करते समय उन्हें विद्यादायिनी देवी सरस्वती को साक्ष्य मानकर कार्य करना चाहिए जिनकी कृपा बल एवं जन्म जन्मान्तर के पुण्यों के प्रभाव से दुर्लभ विद्या की प्राप्ति हुई है उसी विद्या के प्रभाव से नौकरी मिली है ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि भ्रष्टाचार  में सम्मिलित होकर आखिर क्यों लजाते हैं माँ सरस्वती का दूध?अर्थात ऐसे सरस्वती पुत्र बिना चाटुकारिता के केवल कर्तव्य पालन करते रहें तो भगवती सरस्वती स्वयं उनकी  रक्षा करती रहेंगी।वैसे भी कर्तव्य भय से भयभीत होकर किसी नेता के सामने दुम हिलाने से क्या होगा? आज का सामाजिक एवं राजनैतिक वातावरण दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा है कोई किसी की बात सुनने एवं सहने को तैयार ही नहीं है आश्चर्य !
    मैं राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सभी राजनैतिक दलों से जानना चाहता हूँ कि भारतीय समृद्ध लोकतंत्र को खोखला करने वाला यह अयोग्य नेताओं का नंगा नाच आखिर कैसे बंद होगा! कब तक फेंके जाएँगे विधान सभाओं में माईक,कब तक विधायक उतार कर खड़े हो जाएँगे कपड़े और कब तक मार्शलों को पिटना पड़ेगा और कब तक करेंगे ऐसे बदजुबान प्राणी आपस में गाली गलौच और मारपीट!संसद में फेंके  गए मिर्च पाउडर जैसी  शर्मनाक दुर्घटनाएँ आखिर कबतक सहनी पड़ेंगी देश को ?ऐसे नेताओं से क्या आशा करे देश और समाज ?
    अपने पवित्र लोकतंत्र को इस प्रकार के सभी विकारों से बचाने के लिए एक ही रास्ता है कि चुनावी राजनीति में भी उच्च शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए जिससे उन नेताओं के आदर्श आचरणों से उनकी शैक्षणिक योग्यता की सुगंध का एहसास सबको हो साथ ही साथ उच्च शिक्षा से संपन्न बड़े बड़े अधिकारियों से बातचीत करने की शालीनता का विकास नेताओं में भी हो! साथ ही अपनी अयोग्यता के कारण कल तक अधिकारियों से डरते रहने वाले हीन भावना से ग्रस्त नेता जी आज मंत्री बन कर सुशिक्षित एवं सुयोग्य अधिकारियों को डरवाते घूमा करते हैं या यूँ कह लें कि उनका अपमान करते रहते हैं ,वैसे भी कोई अयोग्य आदमी किसी योग्य आदमी पर शासन कैसे कर सकता है और कोई योग्य आदमी किसी अयोग्य आदमी का अनुशासन कैसे बर्दाश्त कर सकता है अर्थात सम्भव ही नहीं है। यही कारण है कि योग्य अफसर जो निर्णय करेगा वो अयोग्य नेता को समझ में नहीं आएगा और अयोग्य नेता जो निर्णय करेगा वो मानने के लिए किसी योग्य अधिकारी का मन नहीं मानेगा ! सम्भवतः यही कारण है कि देश की कानून व्यवस्था बिलकुल ठप सी पड़ी है!जैसे सब को पता है कि बलात्कार रोके जाने चाहिए किन्तु समझ में नहीं आ रहा है कि रोके कैसे जाएँ !ऐसे ही और भी बहुत सारे क्षेत्र हैं जो जाम से पड़े हैं । जिन क्षेत्रों में योग्य अधिकारियों को सुयोग्य एवं सुशिक्षित मंत्रियों का सान्निध्य प्राप्त होता है उन क्षेत्रों में काम की गुणवत्ता अन्य जगहों की अपेक्षा विशेष अच्छी होती है । 
    इसलिए देश और समाज के हित में राजनैतिक सेवा करने के लिए सभी दलों के कार्यकर्ताओं में शैक्षणिक सुयोग्यता एवं सदाचरण आदि को न केवल महत्त्व दिया जाना चाहिए अपितु नेताओं में भी उच्च शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य की जानी चाहिए !
      यद्यपि इस तरह का दम्भ तो सभी राजनैतिक दल भरते हैं कि वो योग्य एवं ईमानदार लोगों को ही अपना चुनावी प्रत्याशी बनाने के लिए टिकट देंगे किन्तु ऐसा वो या तो करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या करना ही नहीं चाहते हैं न जाने क्यों ?
    अभी अभी  लगभग एक डेढ़ वर्ष पूर्व अपने देश में एक नया राजनैतिक दल बना है जो अपने अलावा सभी दलों के अधिकाँश नेताओं को बेईमान न केवल समझता है अपितु कहता भी है किन्तु उसकी अपनी ईमानदारी संदेह के घेरे में रहती है !मैंने सुना है कि किसी सीट के लिए वो लोग अपना उम्मीदवार पहले ही तय कर लेते हैं बाद में जनमत संग्रह का नाटक करते हैं ।मैं पूछना चाहता हूँ कि ऐसी ईमानदारी किस काम की ! मेरा सभी दलों से निवेदन है कि ईमानदारी का पालन ईमानदारी पूर्वक किया जाना चाहिए ।यदि ऐसा नहीं हो सका तो अभी तक तो कुछ खास नहीं बिगड़ा है किन्तु  ऐसे तो दिनोंदिन वातावरण बिगड़ना ही है !इसलिए अभी भी समय है कि सुशिक्षित एवं सुयोग्य लोगों को सक्रिय राजनीति में जोड़ा जाए !

     यदि ऐसा कोई विचार हो तो सभी दल के राजनेता गण मेरा  भी निवेदन स्वीकार करें! मैं भी सक्रिय  रूप से राजनीति से जुड़कर देश एवं समाज की सेवा करना चाहता हूँ क्या मुझे भी मेरी शैक्षणिक योग्यता के अनुशार आप लोगों के द्वारा हमें भी किसी  उचित स्थान पर जोड़ने की कृपा की जाएगी !मैं इसी आशा से आप सब के लिए यह निवेदन रहा हूँ इसमें हमारे द्वारा किए जा रहे कार्य एवं शैक्षणिक योग्यता के भी संकेत सम्मिलित हैं यदि उचित लगे तो मुझे भी अवसर प्रदान करें ।

            
             भवदीय -


 आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
                    संस्थापकः
    राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान
                         तथा
                   दुर्गा पूजा प्रचार परिवार 
                                  एवं  
             ज्योतिष जन जागरण मंच 
शिक्षा-                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी   ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
 संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी  
   एम.ए.      हिन्दी    
कानपुर   विश्व  विद्यालय 
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता 
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी 
 पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)   
  बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू.  वाराणसी
  विशेषयोग्यताः-वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीनवाङ्मयएवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय 
 प्रकाशितः-पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
कारगिल विजय      (काव्य )     

श्री राम रावण संवाद  (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती     (काव्य अनुवाद ) 

श्री नवदुर्गा पाठ      (काव्य)                               
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य ) 

 श्री परशुराम(एक झलक)
 श्री राम एवं रामसेतु  
 (21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन
कुछमैग्जीनोंमेंसंपादन,सहसंपादनस्तंभलेखनआदि। 
अप्रकाशितसाहित्यः-श्रीशिवसुंदरकांड,श्रीहनुमतसुंदरकांड,
संक्षिप्तनिर्णयसिंधु,   
ज्योतिषायुर्वेद,श्रीरुद्राष्टाध्यायी,

वीरांगनाद्रोपदी,दुलारीराधिका,
ऊधौगोपीसंवाद,    
श्रीमद्भगवद्गीता‘काव्यानुवाद’
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
ब्लॉग -स्वस्थसमाज \ भारतजागरण \ समयविज्ञान \ सहजचिंतन
जन्मतिथिः9.10.1965                                                    
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव-इंदलपुर, पो.संभलपुर, जि.कानपुर,उत्तरप्रदेश                                       वर्तमान पता  के -71, छाछी बिल्डिंग चौक , कृष्णानगर,दिल्ली51                                                        01122002689,01122096548,मो.09811226973,09968657732







 
                                            



                पांचजन्य में प्रकाशित अंश 


                                                                                                                                                                                                                                                                                    

Arogya Mela

Posted By:

Anon

Mon Feb 11, 2002 8:16 am  |

Friends,

Appended below is a news item on the "Arogya Mela" carried in the Hindustan

Times of 10th Feb.. The Mela is being organised by the Swadeshi Jagaran

Manch in New Delhi and is reportedly drawing huge crowds. It is reported to

have received funds drom the Ministries of Health, Chemicals and S&T! I feel

that the JSA should react to this. Please send your views.

Amit

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Banish the spirit, cure the ‘disease’ at Arogya mela

Sutirtho Patranobis

(New Delhi, February 9)

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If you have a stomach problem or a throbbing headache, look behind.

According to Dr Shesh Narayan Vajpayee, an astrologer who looks up to the

planets to treat patients, ‘spirits’ often follow people around and are

responsible for prolonged illnesses.

These ‘spirits’ are mischievous as well, Vajpayee says. “They are aware when

the person is going for a check-up. So, they disappear and the test results

come out normal. Step out of the clinic, the spirit is back,” he says,

rather seriously. The only way you can get rid of them is to perform ‘puja

and havan’ and appease the planets.

Vajpayee is busy these days at the Swadeshi Arogya Mela at the Jawaharlal

Nehru Stadium, catering to people waiting to get their hands and bodies

checked. The Mela has been organised by the Centre for Bharatiya Marketing

Development (CBMD)—a unit of Swadeshi Jagran Foundation—and National Medicos

Organisation, an NGO.

The Government, according to a CBMD official has just provided logistical

support. The official, however, declines to comment on the financial

aspects, saying the details would be available after the fair concludes on

February 12.

Besides Vajpayee, numerous doctors and medical companies, dabbling in Indian

systems of medicine, have put up stalls at the Mela, which was inaugurated

on Thursday by Union Human Resources Development Minister Dr Murli Manohar

Joshi. Some are selling ayurvedic herbs to treat baldness and some others

are selling clothes made with ‘vastra vigyan’, designed to make the buyer

feel happy about life.

The fair is an attempt to spread awareness about the Indian systems of

medicine, says Delhi's former Health Minister Dr Harsh Vardhan. “Even if

‘health for all’ has not been achieved so far, we want to show that Indian

systems of medicine have the potential to cure many diseases,” he says.

Vajpayee, meanwhile, says the premise of his treatment is that diseases are

related to planetary movement.