Sunday, April 20, 2014

भाजपा नेता के बयान से पार्टी की किसी चूक का बदला चुकाया गया सा लगता है !

इसी प्रकार से सोसल मीडिया तक में भी लोग पार्टी को अपमानित करने वाले बयान,आचरण या अभद्र टिप्पणियाँ करके पार्टी के सुसंस्कारों की खिल्ली उड़ाने का मौक़ा दे रहे हैं !"जो गुड़ दीन्हें मरत हो क्यों बिष दीजै ताहि"किसी की प्रशंसा करके उससे बदला लेने की पुरानी परंपरा का ही उदाहरण तो ये नहीं है !

      केवल बिहार के ही एक नेता जी  नहीं अपितु ऐसे कई लोग अपने गंभीरता बिहीन  आचरणों एवं वक्तव्यों से जाने अनजाने में मोदी विरोधियों को मदद पहुँचाने का काम कर रहे हैं आखिर क्यों ऐसे लोग मोदी जी के किए कराए परिश्रम पर पानी फेरते जा रहे हैं ! जिन बयानों से पार्टी को शर्मिन्दा होना पड़े ऐसी बातों बयानों से बचा जाना चाहिए !

      वैसे भी किसी भी लोकतान्त्रिक देश में हर नागरिक को अपनी राय रखने का एवं विचार व्यक्त करने का स्वतन्त्र अधिकार होता है उससे यह कैसे कहा जा सकता है कि यदि आप हमारे जैसा नहीं सोचते हैं  अर्थात मोदी जी के समर्थन में बातें  नहीं करते हैं तो आप पाकिस्तान परस्त हैं !

    इस सारे प्रकरण के विषय में सोच कर आज  मुझे अचानक एक घटना याद आ गई मुझे नहीं पता कि वो कितनी प्रमाणित है किन्तु जो मैंने सुना वो ये है -

    आज के करीब तीन महीने पहले किसी कल्पित हिन्दू संगठन के एक मीडिया चर्चित युवा नेता ने आकर अपना नाम न बताने की शर्त पर हमें बोला था कि सत्ताधारी पार्टी से सम्बन्ध रखने वाले एक प्रसिद्ध बाबा जी ने उसे ठीक सा आर्थिक लालच देकर एक काम करने को कहा है तो मैंने पूछा क्या तो उसने बताया कि वो कह रहे थे कि वोटिंग होने के कुछ दिन पहले तुम्हें एक काम करना है कि लाल कपड़े पहनकर चन्दन वंदन लगाकर भाजपा का झंडा लिए हुए संसद के पास जाना है और 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा लगाते हुए संसद परिषर के पास तक चिल्लाते हुए पहुँच जाना वहाँ पहुँचने पर पुलिस तुम्हें पकड़ लेगी पत्रकार तुम्हें घेर कर पूछेंगे की तुम कौन हो ऐसा तुमने क्यों किया है तो तुम अपने संगठन हिंदू ..... अादि आदि का परिचय देना और शोर मचा मचाकर कहना कि 'अबकी बार मोदी सरकार ' और मोदी  सरकार बनते ही मुशलमानों की खैर नहीं भला चाहते हो तो पाकिस्तान भाग जाओ !

  बस इतना करने का उसे पेमेंट मिलना था इससे मुशलमानों के मन में मोदी जी को लेकर शंका होगी इससे भाजपा का खेल कुछ हद तक बिगाड़ा जा सकता है !

        इसी प्रकार से उसने दूसरी बात बताई  कि सत्ता धारी पार्टी की ओर से कुछ लोग फेस बुक आदि सोशल मीडिया पर सक्रिय किए जा रहे हैं उन्हें केवल इतने काम का पेमेंट किया जा रहा  है कि वे मोदी जी के प्रति हमदर्दी दिखाएँगे और बातों व्यवहारों में लगेगा कि वे मोदी जी के बहुत बड़े शुभ चिंतक हैं किन्तु फेस बुक पर भाजपा के ही कमल वाले चित्र लगाकर मोदी जी की भक्ति का नाटक करते हुए उनकी चाटुकारिता में उनके विरोधियों को गन्दी गन्दी गालियाँ या बातें लिखेंगे एवं और भी ऐसा बहुत सारा दुराचरण फैलाएँगे ताकि समाज में मोदी जी के प्रति घृणा का वातावरण पैदा हो !यह सब सुनकर मैंने उसे मना किया यद्यपि उसकी भी ऐसा कुछ करने की रूचि नहीं थी क्योंकि वो मोदी जी के प्रति स्वयं भी निष्ठा रखता था । 

        इस प्रकरण से केवल इतना ही लग रहा है कि भाजपा के विरोधी जो सोच रखते हैं यदि वैसी आवाजें पार्टी के अंदर से ही आने लगेंगी तो ये चिंता का विषय जरूर है ।

     मेरे  साथ भी आज ऐसा ही कुछ हुआ ऐसे ही किसी भाजपा विरोधी विचारधारा के प्राणी ने  मोदी जी का पक्ष लेने का नाटक करते हुए किसी कमेंट  में गालियों का प्रयोग किया था जिस उद्दंडता पर मैंने उसी क्षण अपनी मित्र सूची से खदेड़ कर उसे बाहर कर दिया और उसे शक्त सन्देश भी दिया ! यथा -

       "अपने कमेंट में गाली का शब्द प्रयोग करने के कारण .......  जी आप की मित्र सूची से मैंने अपने को अलग कर लिया है !
      हमारे साथ जुड़ने के लिए आपको भाषाई शिष्टाचार तो सीखना पड़ेगा अब हमारे पास इतना समय कहाँ है कि किसी को बात चीत करना भी समझाऊँ ! संभव है कि आप हमारी ही नहीं हमारे साथ जुड़े किसी भी मित्र की बात को न पसंद करते हों किन्तु उसके लिए भी अभद्र टिप्पणियाँ सहीं नहीं जा सकेंगीं ! महोदय ! इंसानों के बीच रहने उठने बैठने के लिए इंसानी भाषा में अपना विरोध दर्ज करना सीखिए ! वैसे भी मैं मित्र मंडली में किसी के साथ भी सम्मिलित होने से पूर्व  उसकी शिक्षा एवं उसके क्रिया कलाप आदि देखकर ही उससे जुड़ता हूँ फिर भी आपको पहचानने में मुझसे गलती हुई है जिसकी सारी जिम्मेदारी  अपने ऊपर लेते हुए मैं अपने आपको आपसे अलग करता हूँ !


         मैं सभी भाजपा के समर्पित सेवकों से निवेदन करता हूँ कि अपने आस पास छिपे हुए इस प्रकार के भाजपा द्रोहियों से सतर्क रहकर गाली गलौच समेत उस समस्त  भाषा व्यवहार का बहिष्कार कीजिए जिसमें संस्कारों की सुगंध न हो !अपनी मित्र सूची में संभ्रांत लोगों से विचार व्यवहार करने में ही भलाई है

 

Saturday, April 12, 2014

आपके संपर्क में रहने वाले किस नाम के व्यक्ति पर किसको करना चाहिए कितना विश्वास ?

  यदि आप हमारे संस्थान से इन विषयों में परामर्श लेना चाहते हैं - 

          यदि आप अपने परिवार के किसी बच्चे का नाम रखना या बदलना चाहते हैं या जानना चाहते हैं कि किस नाम के व्यक्ति (स्त्री - पुरुष) का उपयोग आप कैसे कर सकते हैं अर्थात किससे गुस्सा होकर काम निकाल सकते हैं किससे चाटुकारिता करके काम निकाल सकते हैं और किससे आपके सम्बन्ध चल ही नहीं सकते हैं इसी प्रकार से किसी को कर्जा देने और लेने के विषय में जान सकते हैं!

     घर में जो बहू  या दामाद लाने जा रहे हैं उसके गुणों का मिलान तो लड़के और लड़की का होता है बाक़ी पूरे घर के सदस्यों के साथ उसके कैसे रहेंगे सम्बन्ध यह जानने के लिए 

      घर में कोई बच्चा  या बच्ची हुई है उसका आप कोई नया नाम आप रखना चाहते हैं और जानना चाहते हैं कि  किस अक्षर से नाम रखें जिससे उसके माता पिता भाई बहन दादा दादी आदि समस्त परिवार के साथ वो भविष्य में बात व्यवहार कर सके !यह सब जानने के लिए

        इसी प्रकार से जिस शहर  या मोहल्ले में जिस नाम के मालिक या नौकरों और सहयोगियों के साथ आप काम करना चाहते हैं उनमें किसके साथ कैसे आप निभा पाएँगे !यह जानने के लिए

       किस नाम की पार्टी और संगठन का अपना क्या भविष्य है उसमें आपका क्या भविष्य है उसके प्रमुखों से आप कितना निभा पाएँगे साथ ही वो कितना आपको सहयोग दे पाएँगे यह जानने के लिए 

नोट - आप हमारे संस्थान के बैंक एकाउंट में सेवा शुल्क जमा करवा करके एक बार में किन्हीं तीन नामों के विषय में बिचार विमर्श कर सकते हैं इससे अधिक  के लिए प्रत्येक तीन तीन नामों के आधार पर समझा जाना चाहिए !

    -  यह सब जानने के लिए हमें जन्म तिथि एवं जन्म समय को जानने की आवश्यकता नहीं होती है दूसरी बात बुलाने के लिए रखे जाने वाले  नाम जन्म समय के आधार पर रखना  भी नहीं चाहिए !


Tuesday, April 8, 2014

 अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण का उपयुक्त समय और ज्योतिष -(19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)
श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर
       (19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)
हो सकता है अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण !!!
 वैसे तो धरती पर करोड़ों श्री राम मंदिर होंगे किन्तु जो अयोध्या में जो भगवान श्री राम see  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/08/blog-post_24.html


Monday, April 7, 2014

देखिए चुनावों से पहले ही चुनावी परिणामों के संकेत ....!

 मनमोहन चुनाव नतीजे से पहले ही जा सकते हैं रिटायरमेंट बंगले में ! -NDTV

    परखिए मोदी जी और मनमोहन सिंह जी की आत्मा की आवाज !

    मोदी जी और मनमोहनसिंह जी का मनोबल देखिए मोदी जी ने  गुजरात का शासन सँवारते सँवारते बड़े धूम धाम से जीतने की लालशा लिए राष्ट्रीय चुनावों में कूद कर हिला रखा है विरोधियों को, वहीँ दूसरी  ओर मन मोहन सिंह जी हिल रहे हैं!

     दूसरी बात मोदी जी पी.एम.निवास में पहुँचने के लिए हुंकार भर रहे हैं तो मनमोहनसिंह जी पी.एम.निवास खाली करना चाह रहे हैं ।

   तीसरी बात मोदी जी कह रहे हैं कि केंद्र सरकार सबसे अधिक भ्रष्ट है इसलिए इसे जाना चाहिए तो मनमोहन सिंह जी जाने को तैयार हैं !

        इतनी अच्छी सत्ता और विपक्ष की ट्यूनिंग पहले कभी शायद ही देखन को मिली हो !

   अब ये बात तो माननी पड़ेगी कि मनमोहनसिंह जी एक ईमानदार आदमी हैं उन्होंने चुनावों से पहले ही वो  स्वीकार करने का साहस किया है जो बड़े बड़े प्रशासकों में भी नहीं देखा गया है जैसे किसी विद्यार्थी को अपनी योग्यता और सफलता असफलता का अनुमान पहले ही लग जाता है ऐसे ही किसी शासक को अपनी कर्मकुंडली का पूर्वाभाष तो हो ही जाता है उन्हें अपने दस वर्ष के शासन काल के परिणाम पता हैं !ये अच्छी बात है इसका सीधा सा अर्थ है कि मोदी जी के सामने अभी तक ऊर्जावान विपक्ष ही नहीं है तो चुनौती किससे मानी जाए ?

 इस लेख को पढ़ें -

कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?एक ज्योतिष वैज्ञानिक की भविष्य वाणियाँ राजनेताओं के विषय में !

          आगामी चुनावों के समय किस  राजनेता का है  कैसा ग्रह योग ?

डॉ.मनमोहन सिंह जी - Mon,September 26, 1932Time of Birth: 14:00:00Place: Jhelum
     यद्यपि मनमोहन सिंह जी का 8-8-2014  तक राजनीति करने का समय अभी है किन्तु वर्तमान केंद्र सरकार का समय ज्योतिष की दृष्टि से 4 -6 -2013  पूरा हो चुका है इसलिए यह सरकार अब कभी भी गिर सकती है या चुनावों  तक घसीटी जा सकती है सन 8-8-2014 के बाद मनमोहन सिंह जी की राजनैतिक सहभागिता बहुत कमsee more....http://snvajpayee.blogspot.in/2013/10/sunday-september-17-1950-time-of-birth.html

 

Sunday, April 6, 2014

कोई मांसाहारी व्यक्ति सनातन धर्मी कैसे हो सकता है ! क्योंकि जैसा भोजन वैसा मन !

     क्योंकि धर्मवान व्यक्ति में दयालुता बहुत आवश्यक होती है और मांस पेड़ों में नहीं फलता है कैसी भी परिस्थिति में किसी की मांस खाने की इच्छा पूरी करने के लिए किसी को मरना ही पड़ता है !

 "मैं कमाऊँ और दूसरे लोग(प्राणी) खाएँ ये भावना सात्विक है"

"मैं कमाऊँ और मैं खाऊँ  ये भावना राजस है "

"दूसरे लोग (प्राणी)कमाएँ और मैं खाऊँ ये भावना तामस अर्थात राक्षसी है !"

     अर्थात ऐसा करने वाला प्राणी राक्षसी मनोवृत्ति का माना जाता है और जो दूसरों की कमाई तो छोड़िए यदि दूसरे प्राणियों को ही खाने लगे तो ऐसे लोग राक्षसी मनोवृत्तियों से भी अधिक भयंकर माने  गए हैं !

    हमारे कहने का मतलब यह है कि यदि राक्षसी मनोवृत्तियाँ बढ़ेंगी तो लूट और बलात्कार बढ़ेंगे ही क्योंकि रावण ने राक्षसों के धर्म का वर्णन करने हुए कहा है कि "ऐ राक्षसो !दूसरों की स्त्रियों से संसर्ग (सेक्स) करना एवं दूसरों का धन छीन लेना ये अपना धर्म है इसकी रक्षा करो "यथा -

       स्व धर्मं   रक्षतां भीरुः सर्वदैव न संशयः |

       गमनं वा परस्त्रीणां पर द्रव्यं प्रमथ्य च ||  


    सम्भवतः इसीलिए भारत वर्ष में जैसे जैसे मांसाहार बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे लूट और बलात्कार की घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं !धर्म शास्त्र मांसाहार का विरोध करते हैं जबकि बीमार आदमियों को ठीक करने के लिए बनाए गए आयुर्वेद में औषधि के रूप में मांस भक्षण की आज्ञा  चरक सुश्रुत आदि अधिकृत ग्रंथों में दी गई है । ऐसे ही प्रमाणों का संग्रह करके कुछ लोग कहते हैं कि देखो मांस भक्षण की आज्ञा दी गई है !ये भ्रम फैलाने वाला आचरण है । 

         आचार्य चाणक्य ने कहा है कि "अन्न (गेहूं, जौं ,चावल आदि ) से दस गुणी अधिक ताकत उसके आटे में होती है और आटे से दस गुणी  अधिक ताकत दूध में और दूध  से आठ गुणी अधिक ताकत मांस में होती है।" इसलिए जैसे जैसे ताकत बढ़ेगी तो वो जाएगी कहाँ जो गृहस्थ हैं वो तो ठीक हैं अन्यथा  बलात्कारी भावनाओं को कैसे रोका जा सकता है!

      आप स्वयं सोचिए कि जैसा भोजन खाया जाएगा वैसा मन बनेगा यदि ऐसा न होता तो देश के लोगों ने बलात्कारों को बंद करने के लिए फांसी जैसी कठोर सजा की मांग की थी वो मान भी ली गई जिससे कई अपराधियों को सजा के रूप में फांसी की सजा सुनाई भी गई है किन्तु देखना अब यह है कि उसका असर बलात्कारियों पर कितना पड़ रहा है !

   सम्भवतः यही कारण  है कि पुराने समय में ब्रह्मचारियों और साधू सन्यासियों को ताकत प्रदान करने वाली सारी  चीजें खाने के रूप में रोकी गई थीं  जबकि अब फैशन सा बन गया है कि अच्छा खाने भोगने के लिए लोग सधुअई को सबसे अच्छा धंधा मानते हैं समाज से मांग मांग कर हजारों करोड़ इकठ्ठा करके कोई ट्रस्ट बना कर उस ट्रस्ट में अपने सारे घर खानदान नाते रिश्तेदारी आदि के निठल्ले इकट्ठे कर लेते हैं फिर सबके साथ मिलजुल कर भोगते हैं बाबा जी सारे आश्रमी भोग और जब कोई  पूछता है तो  कहते हैं कि हमारे पास तो एक पैसा भी नहीं है अब उनसे कौन पूछे कि जब आपके पास पैसे हैं ही नहीं तो आपके शरीरों का बोझा ढोने के लिए जहाजों का टिकट कौन देता है आपकी दिनचर्या पर लाखों रूपए खर्च होता है ये कहाँ से आता है ?

       इसीलिए पुराने समय में जब चरित्रवान संत हुआ करते थे तब खानपान रहन सहन भोजन पान आदि में बहुत संयम का पालन करते थे! आज सबकुछ खाने वाले और सारे प्रपंचों में फंसे लोग भी अपने को साधू कहते हैं भगवान  ही बचावे ऐसे साधुओं से !यही कारण है कि बुढ़ापे में भी बाबाओं के पोटेंसी टेस्ट पाजिटिव निकलते हैं ये उनके बाजीकरण का ही परिणाम होता है । 

   इसीलिए पुराने ऋषि पत्ते खाते थे पानी पी लेते थे ताकि न ताकत आवे और न उस ताकत को पचाने के लिए कोई चेला चेली ढूँढनी पड़े !जब पत्ते हवा और जल खा पीकर रहने वाले पराशर जी और विश्वामित्र जी जैसे तपस्वी ऋषियों को भी क्रमशः मत्स्योदरी और मेनका के साथ रमण करना पड़ा अर्थात उनका भी संयम टूट गया तब आप स्वयं सोचिए कि काजू किसमिस समेत सभी प्रकार का गृहस्थों जैसा भोजन करके कोई कहे कि मैं ब्रह्मचारी  हूँ तो यही कहा जा सकता है कि उसकी माया वही जाने और क्या कहा जा सकता है किसी के विषय में !

     आयुर्वेद  में मनुष्य शरीर के तीन उपस्तम्भ माने गए हैं आहार(भोजन ) निद्रा और मैथुन (सेक्स )अर्थात ये तीनो अधिक होंगे तो शरीर रोगी होता है और कम होते हैं तो भी रोगी होता शरीर !किन्तु इन्द्रिय संयम पूर्वक दुनियाँ के प्रपंचों से दूर रहने वाले चरित्रवान साधू संत अपना संतुलन आज भी बनाए रहते हैं और जो ऐसा नहीं करते हैं वो फिर वैसा करते  हैं जैसा उनके साथ हो रहा है जो अपने मुख से अपने को आत्म ज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी आदि सब कुछ कहा करते थे आज कारागार में कैदी गण दुह रहे हैं उनका ब्रह्मज्ञान !

     कुल मिलाकर मेरे कहने का आशय ही ये है कि जैसा भोजन होगा वैसा मन बनेगा वैसा आचरण होगा आज सब तरफ वातावरण बिगड़ रहा है उसका मुख्यकारण है कि हमारा भोजन बिगड़ चुका है जिसे सुधारने की जरूरत है !किन्तु किसी भी परिस्थिति  में किसी के शरीर को खाने का अधिकार किसी को नहीं है और जो ऐसा करता है वो मनुष्यता बिहीन मनुष्य है !

      हाँ ,समय और परिस्थितियों के बशीभूत देश की रक्षा करने वाले सैनिक यदि ऐसा कुछ करते हैं तो उनके लिए निषेध नहीं है क्योंकि वो अपने शरीर को भी तो दूसरों की रक्षा में समर्पित कर देते हैं इसलिए कलियुग में सर्वमान्य ऋषि पारशर इसका विरोध न करके अपितु  प्रकारांतर से समर्थन भी करते हैं यथा -

 क्षणेन यान्त्येव हि तत्र वीराः प्राणान् सुयुद्धेन परित्यजन्तः|| 

        

 


Thursday, April 3, 2014

भागवत कथाओं में सेक्साचार ! लवलहे लड़के लड़कियाँ कूद रहे हैं भागवत के धंधे में !

  भागवत में भगदड़ मचा रखी है नचैयों गवैयों ने !

 " भागवत या भोगवत  "केवल धन जुटाने के लिए भागवत कथाओं के नाम पर नाचने गाने के उत्सव करना कहाँ तक ठीक है ! -
    पुराने जवाने में महिलाएँ हर महीने होने वाली अशुद्धि के चार दिनों तक अशुद्धि मनाती थीं इसमें वे पूजा पाठ नहीं करती थीं धार्मिक ग्रन्थ नहीं छूती थीं कई परिवारों की महिलाएँ तो भोजन भी नहीं बनाती थीं जिसकी जैसी परंपरा किन्तु शास्त्र की मान्यता चार दिन के अशुद्धि मानने की तो है इस विषय में शास्त्रों का ऐसा ही स्पष्ट उद्घोष है किन्तु आज जो महिलाएँ भागवत आदि कथाएँ करती हैं उनके कार्यक्रम महीनों पहले निश्चित कर दिए जाते हैं ऐसी परिस्थिति में वे अशुद्धि काल में शास्त्रीय मर्यादाओं का निर्वहन कैसे कर पा रही होंगी या फिर नहीं कर रही होंगी और जब  अशुद्धि काल सम्बन्धी शास्त्रों की बातों  का पालन वे स्वयं नहीं कर पा रही होंगी तो और किसी दूसरे को शास्त्रों का उपदेश किस आशा से करना ! जिन शास्त्र बचनों पर आपकी अपनी निष्ठा हो उन्हें ही आप उपदेश भी कर सकते हो अन्यथा नहीं ।

     भागवत कथाओं की दुर्दशा देख कर  नारद जी, व्यास जी ,शुकदेव जी, सूत जी,सूर्य भगवान और गोकर्ण पर क्या बीतती ये भगदड़ देखकर यदि वो लोग आज जीवित होते !ठीक रहा वो लोग समय से दुनियाँ छोड़कर चले गए वास्तव में वे धन्य थे-

              धन्या मृताः ते नराः !

  वैसे भी जहाँ नचैयों गवैयों के द्वारा ऐसी भागवतें होंगी वहाँ क्यों नहीं होंगे बसों में बलात्कार !हर समाज को अपने धार्मिक लोगों से ही सहारा होता है कि वो समाज को संयम सिखाएगा किन्तु जब वो ही बासना बह्नि से विदग्ध होकर बहने लगेंगे संगीत के रूप में तो फिर परमहंसी संहिता के अभिप्राय को समाज में  समझाएगा आखिर कौन ?

      आज धार्मिक मंडियों के बड़े बड़े  व्यापारी अपने धन की रक्षा तथा मन की भूख शांत करने एवं अपनी सुरक्षा हेतु राजनैतिक गंगा में लगाना  चाह रहे हैं गोते !

   आज नए नए लवलहे लड़के लड़कियाँ कूद रहे हैं भागवत के धंधे में आखिर  क्यों क्या उन्हें अचानक  कोई ज्ञान प्राप्त हो गया है या वैराग्य हो गया है या उन्होंने श्री मदभागवत जी के लिए कोई गम्भीर तपस्या कर ली है !

     ऐसा कुछ नहीं होते हुए भी भागवत वक्ता के नाम पर समाज से मिलता सम्मान काटता किसे है !श्रोताओं में बैठे कुछ लड़के लड़कियों की कटीली चितवनें एवं दीर्घदीर्घायित दृग्कोरों से निहारती नेत्रस्वामिनियाँ  अच्छे अच्छों को नाचने गाने मुख मटकाने और कमर हिलाने के लिए मजबूर कर देती हैं इसी दृष्टिघात से घायल भागवती शेर व्यास गद्दी रूपी प्लेटफार्म पर  बैठकर जैसे दहाड़ते हैं भगदड़ उठाते हैं क्या ऐसे होती हैं  भागवतें ! क्या भागवत कथाएँ कहने के यही नियम शास्त्रों में बताए गए हैं !क्या नारद जी, व्यास जी ,शुकदेव जी, सूत जी,सूर्य भगवान और गोकर्ण जी ने भी अपने अपने ज़माने में ऐसे ही की थीं भागवत कथाएँ !या इन भागवती गन्धर्व किन्नरों को कहीं ये गलत फहमी तो नहीं है वो लोग नाच गा नहीं पाते रहे होंगे अन्यथा सात दिन अवशेष आयु रह गई थी जिनकी ऐसे मोह ग्रस्त परिक्षित जी को शुकदेव जी क्या तबला ढोलक लेकर नाच गाकर सुनाते भागवत !बंधुओ ! आध्यात्मिक उपदेशों के माध्यम से मन के आपरेशन किए जाते हैं ताकि मन पर चढ़ी काम क्रोध लोभ मोह की परत साफ की जा सके !वैसे भी आपरेशन कहीं गीत संगीत से होते हैं क्या ?किन्तु कलियुग है किसे क्या कहा जाए !

    खैर, शिक्षा और तपस्या न करने का दोष तो इन लवलहे लोकगायक बेचारों को ही क्यों दिया जाए ये तो जब ये भी नहीं जानते थे कि भागवत कहते किसे हैं तभी इन्हें भागवत वक्ता घोषित कर दिया गया था -ये वही भागवत है जिसके विषय में कहावत है -

             'विद्यावतां भागवते परीक्षा'

      अर्थात विद्वानों की परीक्षा भागवत में होती है ! किन्तु आजकल तो बिलकुल ऐसा नहीं है अब तो भागवत केवल दिखाने के लिए चाहिए होती है गद्दी पर रखनी होती है उससे शोभा बनती है और बाकी वास्तविक भागवत न हो तो भी भागवत जैसा चमकीले कपड़े में लिपेटकर कुछ गद्दी पर रखना होता है वह चाहें लकड़ी का पाटा ही क्यों न हो कपड़ा लिपेट देने के बाद कहाँ पता लगता है कि पोथी है या लकड़ी का पाटा !उसे तो शोभा यात्रा में शिर पर रखकर घूमना होता है या फिर पोथी पूजन होता है तीसरी बात उसे रखकर आरती करनी होती है ।

    बाकी सारी कथा तो डायरी भागवत से ही करनी होती है जिसमें लिखी लोक कथाओं को सात  दिनों तक नंदी गण गा बजा रहे होते हैं जबकि इन सभी गणों का नेतृत्व करने वाले भोगवत वक्ता कर कर के बालों में डाई और मार मार के दाढ़ी मूछों का एक एक बाल लगा लगा के महँगी महँगी क्रीमें ,पहनकर लड़कियों की पसंद के कलर वाले कुर्ते और बस डाल के उन्हीं के दुपट्टे ,और थोड़ा सा नाक के बल पर बोलते हुए कथा के नाम पर इन्हें जान छोड़कर नाचना गाना मुख मटकाना और खुद भी मटकना होता है बीच खूच में जब होश आता है तो बोल देते हैं आज कृष्ण जन्म या रुक्मिणी विवाह होगा बस लोक कथाओं और लोक गीतों एवं कान फोड़ संगीतों के बीच हो जाती है श्री कृष्ण जन्म की घोषणा तबले की थाप पर नाचना गाना बजाना होता रहता है !इसके बाद शर्म छोड़कर माँगनी होती है बधाई या रुक्मिणी विवाह के नाम पर भीख !ऐसी भागवतों में केवल छोटे छोटे लड़के लड़कियाँ ही सम्मिलित नहीं होते बल्कि बड़े बड़े जिगोलो रेड़ मार रहे होते हैं भागवत भावना की !

       बंधुओ !ऐसे लोग केवल कुछ उस तरह के लोगों को पसंद आने लगे हैं जिन्हें भागवत की जगह भोगवत पसंद है तो बस वो उनके तथा उनके नाच गाने को देखकर खुश हो जाते हैं ! धर्म का क्षेत्र आज इतनी बड़ी व्यापार मंडी  है कि आप धार्मिक चोला ओढ़कर धार्मिक बातें करने लगें भजन गाने लगें तो कथा बाचक ! लोगों की समस्याएँ जो रट ले अर्थात लोग किस किस बात के लिए परेशान हो सकते  हैं या होते हैं यदि आपको ये याद हो जाए तो आप ज्योतिषी हो गए !इसीप्रकार से यदि बीमारियों के प्रकार याद हो गए तो आप योगी हो गए !आपने कुछ दिन पहले तक जिन्हें बीमारियों की लिस्ट रटकर टी. वी. पर सुनाते हुए सुना था आज वो अर्थशास्त्र और राजनीति के आँकड़े सुनाते घूम रहे हैं !

       भागवत  कथा का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व है    इससे न केवल प्रेतांशिक दोष छूट जाते हैं अपितु संतान सुखयोग बनता है।भगवान की भक्ति मिलती है मुक्ति तो मिलती ही है।ये सब भागवत  सुनने पढ़ने एवं भक्तिभाव से चिंतन करने से होता है।इसे कहने सुनने के भी इसके कुछ शास्त्रीय नियम होते हैं।
कथा कहने वाले के नियमः- 

 विरक्तो वैष्णवो  विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत ।
दृष्टटान्तकुशलोधीरोवक्ताकार्योतिनिःस्पृहः।। भागवते

अर्थः-वेद शास्त्र की स्पष्ट  व्याख्या करने वाला,अच्छे उदाहरणदेकर भागवत समझाने वाला, विवेकवान, निस्पृह, विरक्त, एवं विष्णुभक्त ब्राह्मण को बक्ता बनावे।
कथा वक्ता के दाढ़ी आदि के बाल बना लेने के नियमः-     

  वक्त्राक्षौरं प्रकर्तव्यं दिनादर्वाग्व्रताप्तये । भागवते

  अर्थः- कथा प्रारंभ करने के एक दिन पहले वक्ता को दाढ़ी आदि के बाल बना लेने चाहिए क्योंकि कथा प्रारंभ के बाद फिर सात दिन तक क्षौर नहीं करना होता है।

  ऐसे कथा कहने वाले से कथा न सुनेः-

  अनेकधर्म        भ्रान्ताः   स्त्रैणाः  पाखंडवादिनः। 

शुकशास्त्र कथोच्चारेत्याज्यास्ते यदि पंडिताः।।     

                                                               भागवते

   अनेकधर्म को मानने वाले ,एवं स्त्रियों को रिझाने के लिए तरह तरह की वेषभूषा  धारण करनेवाले,नाचने गाने वाले पाखंडी वक्ता से कथा न सुने।

 
 कथा कहने वाला धन का लोभी न होः-
   लोक वित्त धनागार पुत्र चिंतां व्युदस्य च।। भागवते
 
अर्थः-संसार संपत्ति धन घर पुत्रादि की चिंता छोड़कर केवल कथा में ध्यान दे।
कथा का समयः-

 आसूर्योदयमारभ्य   सार्धत्रिप्रहरान्तकम्।
वाचनीया कथा सम्यग्धीरकंठं सुधीमता।।

सूर्योदय से कथा आरंभ करके साढ़े तीन प्रहर अर्थात साढ़ेदस घंटे तक मध्यम स्वर से अच्छी तरह कथा बॉंचे।दोपहर में दो घटी अर्थात 48मिनट कथा बंद रखे उस समय लोगों को कथा के अनुशार ही संकीर्तन करना चाहिए।
   इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन 9घंटे42मिनट कथा बॉंचने पर सात दिन में विद्वान वक्ता कथा पूरी कर सकता है किंतु आजकल तो न इतने घंटे कथा होती है और न ही कथा बॉंची जाती है आजकल तो कथा कहने का रिवाज है। यहॉं ध्यान देने की बात है कि कथा कहने में जो मन आएगा वो बोला जाएगा किंतु कथा बॉंचने में तो जो लिखा है उसी की सीमा में रह कर बोलना होता है।उदाहरण भी उसी सीमा में रहकर देने होते हैं यहॉंतक कि दोपहर का संकीर्तन भी कथा के अनुरूप ही करना होता है ताकि अवकाश  के उस समय में भी कोई इधरउधर की चर्चा न करे अर्थात कथा परिषर में व्यर्थ का संगीत नाचना,गाना,या अभागवत चर्चा न हो।

    आज कल पहली बात तो यह है कि लोग भागवत कथा बॉंचते ही नहीं हैं।सब जो मन आता है सो कहते हैं उसका भागवत की पोथी से कोई लेनादेना ही नहीं होता है। दूसरा प्रतिदिन 9घंटे42मिनट जैसा कोई नियम नहीं होता है।तीसरा सारा समय नाचने गाने में ही चला जाता है कथा कब होती है पता नहीं सारी कथाएँ  रगड़ कर केवल उन्हीं में समय दिया जाता है जिनमें झॉंकियॉं बना सजा कर समाज के सामने भीख मॉगने के लिए रोना धोना कर सकें।सब के सब कथा गायक एक ही झूठ बोलते हैं कि पाठशाला के नाम पर दे दो।कन्याओं के विवाह के नाम पर दे दो।चिकित्सालय के नाम पर दे दो।वृद्धाश्रम के नाम पर दे दो।रूक्मिणी विवाह के नाम पर दे दो।सुदामा की भीख के नाम पर दे दो। अरे भाई! भागवत कथा में इन भिखारियों का क्या काम?यहॉं नाचने गाने का क्या काम?पहले तो कभी भागवत कथाओं में संगीत का सहारा लिया नहीं गया।कहीं ये बिना पढ़े लिखे लोग ऐसा तो नहीं समझते हैं कि व्यास जी और शुकदेव जी के बश  का संगीत था ही नहीं। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज,अखंडानंदजी महाराज,डोंगरेजी महाराज जैसे महापुरूषों  के द्वारा निभाई गईं प्राचीन परंपराओं का पालन भी हम नहीं कर सके हमें धिक्कार है।
   जिनके पैदा होने पर ख़रीदे गए सोठौरे का ऋण अभी देना बाकी है जिन्हें अपने माँ बाप नाते रिशतेदारों के नाम ठीक से नहीं याद हैं वो अपने को भागवत व्यास कहते हैं " विद्यावतां भागवते परीक्षा " कोई हँसी खेल है भागवत जैसी परमहंसी संहिता के मर्म को समझना और फिर किसी को समझाना तब उसका समाज पर असर पड़ेगा अन्यथा चोरी छिनारा बलात्कार सब कुछ बढ़ता ही रहेगा आखिर समाज की आध्यात्मिक खुराक कौन पूरी करेगा क्या ये धार्मिक लोगों के लिए शर्म की बात नहीं होनी चाहिए कि विश्वगुरु भारत के युवा बलात्कार के आरोपों में फाँसी की सजा भोगें किसने दिए हैं उन्हें ये कुसंस्कार ये धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में बढ़ते भ्रष्टाचार के साइड इफेक्ट्स हैं!   किसी फैक्टरी में चोरी हो जाती तो चौकीदार पकड़ लिए जाते किन्तु हमारे धार्मिक आध्यात्मिक प्रहरियों से क्यों नहीं पूछा  जाता है कि आप अपने काले धन की भूख में राजनैतिक क्षुधा पूर्ति में लगे हैं किन्तु तुम्हारे उस दायित्व का क्या होगा उसे कौन पूरा करेगा जिसके लिए दाढ़ा झोटा रखाया था !जब मजनूँ बने फिरते नचैया गवैया जिगोले टाईप के भागवत वक्ताओं ने  इस परमहंसी संहिता को भिखारियों की भीख मॉंगने वाली किताब बना दिया।इस आत्म रंजन की संहिता को मनोरंजन तक सीमित कर दिया।कैसे कर सकेगी यह लोगों का कल्यान?कैसे ज्ञान वैराग्य बढ़ेगा? कैसे घटेगा देश  का भ्रष्टचार?
    नचैया गवैया इन भागवती भिखारियों ने न केवल सनातनी संस्कृति की अपूरणीय क्षति की है अपितु चरित्रवान भागवत विद्वानों को खड़े होने लायक नहीं रखा है इतनी फिसलन पैदा की है।

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