Sunday, May 4, 2014

सांप्रदायिक विद्वेष के लिए कितने दोषी हैं मोदी ?

जाति, धर्म, समुदाय, संप्रदाय के आधार पर अब बंद होनी चाहिए राजनीति !

   असम में हिंसा प्रभावित लोगों की रक्षा करना  सरकार का प्रमुख दायित्व है।प्रत्येक व्यक्ति के बहुमूल्य जीवन की रक्षा सभी प्रकार से सभी संसाधनों के द्वारा की जानी चाहिए ! और हम सभी देश वासियों का कर्तव्य है कि हमें भी अपने अपने स्तर से शान्ति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए । 

     दूसरी बात जाति  और धर्म के आधार पर सरकारें  आरक्षण एवं अन्य सुविधाएँ  देना या नीतियों का निर्माण करना बंद करें ! सभी जाति, धर्म, समुदाय, संप्रदाय के सभी गरीब व्यक्तियों का सहयोग समान रूप से किया जाना चाहिए ! जब गरीबत जाति, धर्म, समुदाय, संप्रदाय  देखकर  नहीं आती तो गरीबों के सहयोग के लिए बनाई गई नीतियों में जाति, धर्म, समुदाय, संप्रदाय आदि के आधार पर भेद भाव क्यों किया जाता है ?ऐसी सरकारी नीतियों से पनपता है आपसी विद्वेष !जिसे रोका  जाना चाहिए । 

     दूसरी बड़ी बात जाति, धर्म, समुदाय, संप्रदाय के आधार पर चुनाव लड़ने की प्रक्रिया को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए !उदाहरण  के तौर पर मोदी जी को ही लिया जाए जबसे उनकी पार्टी ने उन्हें प्रधान मंत्री पद का प्रत्याशी बनाया है तब से उनके लिए राक्षस ,हत्यारा,  कातिल जैसे असह्य कठोर शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा आखिर क्यों ? क्या उनकी पार्टी ने उन्हें प्रधान मंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर कोई संवैधानिक अपराध किया था या प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी बनकर  मोदी से कोई भूल हो गई थी !और यदि ऐसा नहीं था तो उनका इस प्रकार से बहिष्कार क्यों किया जा रहा है और ये आशा कैसे की जा रही है कि ऐसे आचरणों के परिणाम सुख शांतिपूर्ण होंगे !

    क्या मोदी जी वास्तव में राक्षस ,हत्यारे और  कातिल  हैं और यदि केंद्र सरकार के लोगों को लगता है कि ऐसा ही  है तो क्या हमारे कानून में इतनी क्षमता नहीं है कि ऐसे व्यक्ति की न्यायिक जांच करवा कर दोषी सिद्ध होने पर उन्हें न केवल सजा दी जाए अपितु फिर उन्हें देश के किसी भी  प्रदेश का मुख्य मंत्री ही क्यों रहने दिया जाए और क्यों लड़ने दिया जाए चुनाव !

        किन्तु ऐसा तो किया नहीं जा रहा है तो फिर ऐसा ही कर लिया जाता कि मोदी जी समेत सभी नेताओं के भाषणों  आचरणों पर सतर्कता पूर्वक निगरानी रखी जानी चाहिए थी जब कहीं कोई गलती पकड़ी जाती तो चुनाव आयोग  स्वयं कार्य वाही करता किन्तु निराधार दोषारोपण की आदत ठीक नहीं है । 

     जैसे ही मोदी जी के नाम की घोषणा हुई  वैसे ही उनके प्रति असभ्य शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा जिसमें सत्तासीन पार्टी के कुछ नेता गण भी सम्मिलित थे आखिर क्यों नहीं की गई उन सब  पर कोई कार्यवाही ?ये जिम्मेदारी सरकार की थी जो सरकार ने नहीं निभाई !इतना ही नहीं सरकार में सम्मिलित लोग भी एक भयंकर भूल करते रहे हैं उन्होंने भी मोदी जी की आलोचना करते समय संयम का परिचय बिलकुल नहीं दिया है और ऐसे नेताओं के द्वारा हर संभव ये प्रयास किया जाता रहा है कि मोदी का भय संप्रदाय विशेष में व्याप्त हो जिससे वोटों का ध्रुवी करण हो और अपनी गद्दी बचाई जा सके !अपनी अपनी गद्दी बचाने और चुनाव जीतने के लिए आखिर क्यों खेला  जाता  रहा है इतना भयंकर खेल ?

    मोदी जी के ऊपर सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगाने की इतनी जल्दबाजी क्यों है यदि उनका आचरण ठीक नहीं  है तो जनता स्वयं ही उनका बहिष्कार कर देगी आखिर जनता पर तो भरोसा रखना ही पड़ेगा ! मोदी जी सांप्रदायिक हैं इसका निर्णय कैसे कर लिया गया यही न कि उनके कार्यकाल में गुजरात में दंगे हुए थे संभव ये भी है कि गोदरा की   प्रतिक्रिया में भड़के हों गुजरात में दंगे और क्रिया प्रतिक्रिया के सिद्धांत से बढ़ते चले गए हों दंगे जिन्हें मोदी जी समय से रोक न पाए हों उस समय वो नए नए मुख्य मंत्री बने थे संभव है कि अनुभव विहीनता के कारण ऐसा हुआ हो !किन्तु इसका मतलब यह कैसे निकल जाता है कि मोदी कातिल हैं हत्यारे हैं आदि आदि और भी बहुत कुछ ?इसका मतलब तो यह है कि जिस प्रदेश में बलात्कार  हो वहाँ के मुख्यमंत्री को ही बलात्कारी कहा जाने लगे ये कहाँ का न्याय है !

         एक और विशेष बात है कि मोदी जी को सांप्रदायिक या इस प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रस्त मानने के लिए कुछ तो आधार चाहिए इसके लिए हमें देखना होगा उनकी सरकार का समस्त कार्यकाल अर्थात मोदी जी सरकार में तो आज भी हैं और सन 2002 से लगातार वही गुजरात के मुख्यमंत्री हैं फिर तो ऐसा कभी नहीं हुआ !फिर भी केंद्र सरकार में काँग्रेस रही और लम्बे समय अर्थात अभी तक रही यदि उसे लगता है कि मोदी जी दोषी थे तो क्यों नहीं हुई उन पर कोई कार्यवाही !यह प्रश्न जनता के मन में भी है इस भ्रम को दूर किया जाना बहुत आवश्यक है । 

      किसी भी दंगे का शिकार जो भी भारतीय हुआ है उसके बहुमूल्य जीवन की रक्षा की ही जानी चाहिए थी किन्तु किससे कैसे कहाँ क्या चूक हुई ये तो ईश्वर को ही पता है किन्तु  केंद्र सरकार को समाज के सामने सच्चाई तो रखनी ही चाहिए थी ।


     

      


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