Thursday, July 31, 2014

शंकराचार्य जी का आह्वान साईं घुसपैठियों से सावधान !

 साईं घुसपैठिए जगद्गुरू शंकराचार्य जी के जन जागरण से भयभीत क्यों हैं ?                  

    शंकराचार्य जी ने साईं घुसपैठियों को धार्मिक तस्करी करने से रोककर गलत क्या किया है ! कोई चोर रँगे हाथों पकड़ा जाए तो उसे बुरा तो लगेगा ही लगे तो लगने दो किसी को बुरा लगने के भय से हम अपनी धार्मिक मान्यताएँ क्या मिट जाने देंगे !

   "साईं संप्रदाय का सबसे बड़ा झूठ  'साईं डे ' अर्थात  साईं बाबा का दिन "

     बृहस्पति वार से साईं का सम्बन्ध क्या है ?इस दिन अनंत काल से बृहस्पति देवता एवं भगवान विष्णु की पूजा होती चली आ रही है सारी  दुनियाँ जानती भी इस दिन को इसी नाम से है ये करोड़ों वर्षों की शास्त्रीय संस्कृति भी है और परंपराओं  में भी यही माना जाता रहा है और अभी तक यही माना जा रहा है इसी बात के प्रमाण भी हैं किन्तु अभी कुछ वर्षों से साईं के घुसपैठियों ने इस बृहस्पति वार में साईं बुड्ढे को जबर्दश्ती घुसाना शुरू कर दिया है इसके पीछे इन लोगों के पास न कोई तर्क है न कोई प्रमाण न और कोई आधार !है तो केवल निर्लज्जता !!

  बृहस्पति वार को साईंवार कहने के नुक्सान !

      ज्योतिषीय दृष्टि से बृहस्पति  देवता के दिन को किसी ऐरे गैरे के नाम ऐसे कैसे कर दिया जाएगा और जो करेगा उससे बृहस्पति  देवता को बुरा तो लगेगा ही इससे बृहस्पति  देवता क्रोधित तो होंगे ही और ऐसे लोगों की जन्म पत्रियों में बृहस्पति देवता अच्छे की जगह अपना बुरा फल देने लगते हैं जिससे लोगों का नुक्सान होता है ! ऐसे लोगों  को बृहस्पतिदेवता से सम्बंधित जो जो लाभ मिलने चाहिए उनसे वे  बंचित रह जाते हैं और बृहस्पति देवता से सम्बंधित जो लाभ होने चाहिए उन्हीं उन्हीं  क्षेत्रों से जुड़े लाभ न होकर नुक्सान होने लगते हैं ! 

  

बृहस्पति के क्रोधित होने से नुक्सान क्या हो सकते हैं ?

बंधुओ! बृहस्पति के क्रोधित होने से हृदय रोग होने लगता है,घर से शिक्षा का वातावरण समाप्त होने लगता है, पढ़ने में मन नहीं लगता, भगवानों की पूजा में मन नहीं लगता,बड़े बूढ़ों का सम्मान समाप्त होने लगता है घर में कलह बढ़ने लगता है, विवाह विच्छेद होते देखे जाते हैं, बच्चे बच्चियों का सुख समाप्त होने लगता है बेटा बेटियाँ माता पिता के पदों को सस्पेंड करके शादी सम्बन्धी ऊँच नीच फैसले स्वयं करने लगते हैं जिससे गृह क्लेश बढ़ता है !संतान होने में बाधा होती है ऐसे लोगों को बृहस्पति सम्बन्धी कार्यों में नुक्सान होने लगता है जैसे सोना पीतल आदि से जुड़े पीले रंग के कार्य धन हानि करते हैं इनसे जुड़ी संपत्ति के खोने का भय बना रहता है और सबसे बड़ी बात कि सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है आदि आदि ! इसलिए बृहस्पतिवार को बृहस्पतिवार ही कहा जाए इसी में भलाई है और समाज के लिए यही शुभ फलदायक है !

 जब साईं  नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईंवार कैसे हो सकता है?

   साईं घुसपैठियों का बृहस्पतिवार को साईं वार कहने का ड्रामा !बृहस्पतिवार को साईं वार कहना कितना सही है !आप स्वयं सोचिए कि ग्रहों के दिन वही हो सकते हैं जिनके नाम के आकाश में ग्रह होते हैं वो ग्रह अपने अपने दिनों में शुभ या अशुभ फल दिया करते हैं किन्तु साईं वार का मतलब क्या है क्या इन्होंने साईं नाम का कोई ग्रह बनवाकर साईं पत्थरों को मंदिरों में घुसाने की तरह ही आकाश में भी साईं पत्थर घुसा कर टाँग रखा है क्या ?और यदि नहीं तो फिर ये धोखाधड़ी क्यों !आखिर क्यों मिस गाइड किया जा रहा है समाज को ? जब साईं  नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईं वार कैसे हो सकता है !फिर भी साईं घुस पैठियों के द्वारा शास्त्रीय मान्यताओं से समाज को भटकाने का उद्देश्य आखिर क्या है इसकी जाँच होनी चाहिए ! 

   

    साईं पत्थरों को मंदिरों में रखने से हानियाँ !

   मंदिरों में नाक मुख आँखें कान आदि बनाकर रखे गए साईं नाम के पत्थर पूजने से अनेकों प्रकार के नुक्सान हैं !मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजने से समाज को भारी  भ्रम होगा और कहीं आगामी पीढ़ियाँ भगवानों की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को भी साईं पत्थरों की तरह ही पत्थर न समझने लगे जिससे अनादि कालीन सनातन संस्कृति से जुड़ी संतानें  भ्रमित होकर भटक न जाएँ इसलिए सनातन धर्मियों को मिलजुलकर अपने मंदिरों से साईं पत्थरों को जल्दी से जल्दी बाहर करना होगा अन्यथा सनातन मंदिरों का आस्तित्व ही समाप्त होता दिख रहा है कई सनातन धर्म के देव मंदिर आज साईं मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध होने लगे हैं ये चिंता का विषय है !



Monday, July 28, 2014


'साईं एक समस्या अनेक ' 'ये हैं साईं के साइड इफेक्ट' संस्कारों के संकट से गुजर रहा है समाज !
 "साईं धर्म का सिद्धांत"केवल साईं पूजा कर लेने से मिल जाता है सबका  अपमान करने का लाइसेंस?
    'साईं पूजा के साइड इफेक्ट' हैं -  टूटते परिवार, बिखरता समाज और बर्बाद होते बच्चे !छिन्न भिन्न होतीं शास्त्रीय परम्पराएँ, विभाजित होता धार्मिक see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

     इस समय समाज में दो चीजें ही  हैं बढ़ रही हैं एक तो भ्रष्टाचार और दूसरा साईं की संपत्ति !क्या इन दोनों के बीच कोई सम्बन्ध है ?कहीं ये 'साईं के साइड इफेक्ट' तो नहीं हैं! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html



आज घरों से  फेंकी गई  बच्चियाँ कचरे के डिब्बे में पड़ी मिल रही हैं कहाँ पहुँच रहे हैं हम !
      जब साईं पूजा नहीं थी तब कभी सुने जाते थे इतने बलात्कार !पाँच पाँच वर्ष की कन्याओं के साथ दुराचार! बच्चियों के साथ एक से एक जघन्यतम अत्याचार ,ये साईं बाबाओं को भगवान बनाने का ही दुष्परिणाम है!see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html



संस्कृत विद्यालयों के छात्रों ने पढ़ने में रूचि कम कर दी है वो सोचने लगे हैं कि क्या करना है पढ़ लिख कर जब बिना पढ़े लिखे लोग  भी साईं को दिखाकर खूब   कमाई कर रहे हैं !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html





    सुना है कि साईं के समर्थन में लाबिंग करने करवाने के लिए बाबाओं और पंडितों को खरीदा जाएगा वो लोग साईं का पक्ष ले लेकर लड़ेंगे सनातन धर्मियों से !साईं वाले ये सारा खेल पैसे के बल पर कराएँगे और खुद दूर बैठकर देखेंगे और हँसेंगे !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

अबकी गुरुपूर्णिमा के दिन चढ़ावे के नाम पर चंदा इकठ्ठा करके मोटा फंड जुटाया गया है !सुना जा रहा है कि ये सूचना बाबाओं एवं पंडितों के पास भी भेजी जा रही है कि वो शिर्डी आवें और साईं को सनातन धर्म का अंग बताते हुए साईं को भगवान मान कर पूजा करने की वकालत मीडिया के सामने करें !इसके बाद पेमेंट लें अपने घर जाएँ !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html




साईं के यहाँ विधि निषेध का विधान न होने से समाज में बढ़ रहा है अपराध !
लव के लिए लबाते जवान लड़के लड़कियाँ , खुला नंगपन बेचने  वाले कुछ अभिनेता अभिनेत्रियाँ, मॉडलिंग  की दुनियाँ से जुड़े अधिकाँश लोग,इसी प्रकार से और भी ऐसे वैसे लोग साईं संप्रदाय से ही जुड़ना अधिक पसंद कर रहे हैं !क्योंकि साईं के यहाँ विधि निषेध करने वाला कोई शास्त्र न होने स्वेच्छाचारी लोगों को वहाँ सुविधा रहती है  क्योंकि वहाँ गलत काम करने वालों को रोका नहीं जाता है आखिर किस नियम का हवाला दिया जाएगा किसी को !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

साईं संप्रदाय का उद्देश्य धर्म का व्यापारीकरण-
      साईं का सम्पूर्ण कारोबार धार्मिक लोगों के आधीन न होकर व्यापारियों के आधीन है वहाँ सारी ऊर्जा अधिक से अधिक धन इकठ्ठा करके सनातन धर्म में घुसपैठ करने पर लगाई जाती है। इसलिए वहाँ धर्म का कोई वातावरण ही नहीं है साईं संप्रदाय विशुद्ध रूप से धर्म के व्यापारीकरण पर टिका हुआ हैsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html


आखिर साईं संप्रदाय के लोगों ने शंकराचार्य जी को टी.वी. चैनलों पर बैठकर गालियाँ क्यों दी हैं ?उनसे माफी माँगने के लिए क्यों कहा है !वो लोग ये कैसे भूल गए कि शंकराचार्य जी को सनातन धर्म में क्या गौरव हासिल है !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

   सनातन धर्म के मंदिरों , मूर्तियों ,पूजा पद्धतियों को करप्ट करने वाले  साईं नाम के वायरस से सनातन धर्मियों को सावधान करना शंकराचार्य जी की शास्त्रीय जिम्मेदारी है वही वो कर रहे हैं ! वो कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html


शंकराचार्य जी ने इस घुसपैठ का विरोध क्या कर दिया साईंयों ने उन्हें गालियाँ देनी शुरू कर दीं , रैलियाँ निकालने लगे,केस करने लगे मीडिया को पैसे देकर साईं समर्थन में धर्म संसदें आयोजित कराने  लगे !कुल मिलाकर ये लोग तो एक दम पागल हो उठे see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html













Friday, July 25, 2014

- माता पिता के साथ भी गद्दारी-

                   पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है किन्तु अपवित्र प्रेम क्या होता है ?

      जब तक मित्रता है तब तक ही प्रेम पवित्र रहता है तब तक किसी को किसी से कोई खतरा नहीं होता है किन्तु मित्रता के संबंध जब मूत्रता में बदलने लगें तो पवित्रता नहीं रह जाती इसलिए वहाँ परमात्मा भी नहीं रहता इसलिए वहाँ जितना भी बड़ा धोखा मिले उसे छोटा ही समझना चाहिए अर्थात कुछ भी घटित हो सकता है  तैयार  रहना चाहिए ! या तो सहने के लिए या अलग रहने के लिए !मर्जी अपनी अपनी !!!


                                          - युवाओं की माता पिता के साथ भी गद्दारी-  
        कुछ लोग अपने माता पिता से छिपकर किसी लड़की या लड़के से प्रेम करते हैं ऐसे लोग जब अपने माता पिता के नहीं हुए तो किसी और के क्या होंगे ! सुख दुःख हैरानी परेशानी आदि सभी परिस्थितियों में अपनी संतानों के साथ तन मन धन से साथ खड़े रहने वाले माता पिता के साथ भी गद्दारी करने वाली संताने सुखी कैसे हो सकती हैं !


       जो लोग मनोकामनाओं की पूर्ति के भ्रम में अपने भगवान को बदल कर साईं को भगवान बना बैठे ऐसे लोग अपने जीवन में कब क्या बदल लेंगे विश्वास नहीं किया जा सकता !

                     आज हार्ट अटैक की घटनाएँ बढ़ क्यों रही हैं ?इससे क्या है पुत्रियों का सम्बन्ध ?
     पुत्र तन का पोषण करता है खाना पीना रहन सहन आदि किन्तु पुत्री मन का पोषण करती है जब बुढ़ापे में एकांत में उदास बैठे होगे उस समय आया हुआ पुत्री का एक फोन या पत्र भी सारे दुःख दूर कर देता है वो सुख धरती पर और कहीं नहीं मिल पाएगा जिनके पुत्रियाँ नहीं है पूछो उनसे उनके बुढ़ापे का हाल हृदय में कितने घाव हैं है कोई भाव का लेप लगाने वाला !

Wednesday, July 23, 2014

-आदरणीय चन्द्र शेखर आजाद जी को नमन -





प्यारे चन्द्र शेखर जी प्रार्थना हमारी है ये
                            एक बार भारत में फिर से पधारिए ॥
ऐसी ही स्वतंत्रता की कल्पना थी आपकी क्या,
                           चारों ओर लूट लतखोरी है निहारिए ॥
रेप से रँगे हैं अखवारों के अनंत पृष्ठ
                      छोटी छोटी बेटियों की विपति बिचारिए ।
शासकों से साँठ गाँठ होती अपराधियों की,
                           ऐसे राष्ट्र नायकों की नियत सुधारिए ॥
                                                            - डॉ.एस.एन. वाजपेयी 

'' साईं भगवान हैं या नहीं ' इस विषय पर बहस ही क्यों ?

     आखिर पैदा ही क्यों हुआ धर्म में साईं संकट ?

      साईं को भगवान की तरह ,भगवान के मंदिरों में, भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों की भाँति, भगवान के मन्त्रों एवं पूजा पद्धति से पूजा जाना ही  सनातन धर्म पर विधर्मियों का बहुत बड़ा हमला है !

   इसलिए सनातन धर्मियों का फाइनल फैसला यही है कि साईं बुड्ढे में भगवान की कल्पना  भी नहीं जा सकती !अतः इस विषय पर बहस का औचित्य क्या है !

      अभी तक सनातन  धर्म द्रोहियों के द्वारा किसी के धर्म के विषय में दुष्प्रचार तो किया जाता रहा है किसी के धार्मिक ग्रंथों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है,किसी के धार्मिक महापुरुषों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है किन्तु अब तो भगवान के आस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया गया है।ऐसे तो कभी भी कोई भी ऐरा गैरा  बन जाएगा हिन्दुओं का भगवान !

     सनातन धर्मियों के भगवान , भगवान की मूर्तियों ,भगवान की पूजा पद्धतियों, भगवान के मंदिरों जैसी अत्यंत पवित्र अवधारणा पर ही अब तो साईं नाम  का हमला हुआ है अब हम लोग पंचायत करते घूम रहे हैं कभी टी. वी. चैनलों पर तो कभी वैसे और वो भी इस विषय पर कि साईं भगवान हैं कि नहीं !ये विषय बिचार करने के लिए लाया जाना भी साईं के आस्तित्व को न्यूनाधिक रूप से स्वीकार करना ही है जबकि उचित तो यह है कि इस विषय को जड़ से ख़ारिज ही किया जाना चाहिए !

     वैसे भी इस विषय में सनातन धर्मशास्त्र के अनुशार शास्त्रीय संतों के धर्मशास्त्रीय विचार ही विश्वनीय माने जा सकते हैं किन्तु साईं किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होंगे ! फिर भी यदि सौभाग्य से सनातन धर्म के शास्त्रीय संतों की सभा होनी ही है तो आत्ममंथन इस विषय पर हो कि साईं नाम की समस्या पैदा ही क्यों हुई ?इससे निपटा कैसे जाए ?दूसरी बात वर्तमान समय के सनातन धर्म के जिम्मेदार महापुरुषों से चूक आखिर कहाँ हुई है ,आखिर क्यों पैदा हुआ है धर्म में साईं संकट ?और दुबारा ऐसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए क्या किया जाएगा !

      साईं पूजा के समर्थन में जिन धर्माचार्यों ने जो बयान  दिए हैं वो कहाँ तक उचित हैं उस पर शास्त्रीय संत समाज का रुख स्पष्ट किया जाए !साईं के संदर्भ में शास्त्रीय सच्चाई समाज के सामने रखने के लिए सनातन धर्म के अधिकृत शास्त्रीय संत क्या कुछ करने का आदेश देंगे वही सनातन धर्मियों को मान्य होगा  !

     साईं शब्द के प्रारम्भ में ॐकार और अंत में राम लगाकर ,झूठ मूठ में साईं गायत्री बना एवं बताकर मंदिरों में साईं की मूर्तियाँ घुसा कर जिन सनातन धर्मियों को भगवान के भ्रम में साईंयों के द्वारा फाँसा गया है उनके सामने शास्त्रीय सच्चाई कौन रखेगा किस प्रकार से रखी जाएगी आदि आदि बातों पर देश काल परिस्थिति के अनुशार शास्त्रीय संत विचार करें !

    अंधेर हो गई साईं भगवान बनेंगे !"जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम"    वर्तमान समय में तो साईंयों ने जो घृणापन  फैला रखा है उसके आधार पर साईं को संत भी नहीं माना जा सकता है क्योंकि "संत वही भगवंत जो मानै"और जो भगवान की जगह अपनी पूजा कराने लगे ये तो सनातन हिन्दुओं की परंपरा ही नहीं है और जो हिन्दुओं की परंपरा का पालन ही न करता हो वो जब हिन्दू ही नहीं हैं तो संत कैसे हो सकते हैं और जहाँ तक बात भगवान की है वो तो कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि भगवान हमारे निश्चित  हैं उनकी संख्या घटाई बढ़ाई कैसे जा  सकती है !

     साईं संकट कोई आम घटना नहीं है ये सब कुछ सुनियोजित सा लगता है । अभी हाल ही में पैदा हुआ एक अदना सा  टी.वी.चैनल धर्म ,धर्मशास्त्रों ,धार्मिक महापुरुषों ,धर्माचार्यों एवं श्रद्धेय साधूसंतों की  छीछालेदर करने के बल पर ही आज राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय आदि जो कुछ कहें सो हो गया है! लाख टके का सवाल यह है कि केवल एक टी.वी. चैनल चलाने के लिए धर्म जैसे संवेदन शील विषय की तथ्यहीन एवं लक्ष्य हीन चीड़फाड़ करना या कराना कहाँ तक उचित एवं नैतिक है ! वह भी तब जब एक धर्म विशेष के आस्था महापुरुषों की पोशाक की नक़ल करने मात्र से बवाल हो चुका हो किन्तु आज सनातन धर्मियों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को कैसे और क्यों दिया जा रहा है कोई झिझक क्यों नहीं होती! ऐसी बातें सनातन हिन्दू धर्म एवं धर्मशास्त्रों के विरुद्ध बोलने पर ? 

      हिन्दुओं का भगवान  कैसे बनाया जा सकता है साईं भगवान हैं या नहीं इस  पर बहस ही क्यों और किस बात के लिए  बहस !और बहस से यदि  ये सिद्ध भी कर दिया जाएगा कि साईं भगवान हैं तो क्या श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश हनुमान जी जैसे देवी देवताओं के बराबर साईं को बैठाया जाना स्वीकार कर लिया जाएगा !

   हिन्दुओं के धर्म एवं धर्मशास्त्रीय विषयों का निर्णय  कुचक्रपाणियों ,आमोद प्रमोदों ,प्रज्ञाकुंदों से कराया जाना कहाँ तक ठीक है ? जिनका शास्त्र से कोई सम्बन्ध ही नही है ये बिना पेंदी के लोटे जिधर पैसे देखते हैं उधर लुढक जाते हैं ऐसे लोगों से ही टी.वी.चैनलों को भी मजा आ रहा है धर्मसंसद के नाम पर अशास्त्रीयता को स्थापित करने में टी. वी.चैनल भी महती भूमिका अदा कर रहे हैं ।

      पाखंडियों ने धर्म को विकृत करने की कसम सी खा रखी है अग्निवेश कह रहे हैं कि "बाबा अमरनाथ में शिव लिंग केवल बर्फ का पुतला है " 

    आखिर  यह कहकर अग्निवेश जी समझाना क्या चाहते हैं ,कहीं ये तो नहीं कि वो सामान्य बर्फ पिंड मात्र है इसके अलावा कुछ नहीं है यदि उनके कहने का वास्तव में यही मतलब है जो मैं समझ पा रहा हूँ तो मैं अग्निवेश जी से जानना चाहता हूँ कि हमारा और उन जैसों का शरीर भी उस दृष्टि से तो मांस पिंड  ही है अर्थात इसमें शरीर की दृष्टि से केवल मीट ही मीट है इसके अलावा  कुछ भी  नहीं है किन्तु क्या हमारे शरीरों की तुलना कसाई की दूकान पर रखे मीट से की जा सकती है ! यदि हम लोग केवल मांस पिंड  अर्थात मीट के लोथड़े मात्र हैं तो आपका विचार अपनी दृष्टि से सही माना जा सकता है !

     अज्ञानी अग्निवेश जी ! आपकी धर्म एवं धर्म द्रोह करने की आदत ठीक नहीं है आखिर क्यों करते हैं बुढ़ापे में भी गाली खाने का काम ?माना कि आपको धार्मिक होने का सम्मान नहीं मिल पाया इसलिए आपको अपनी इज्जत की परवाह नहीं अपितु धर्म से चिढ है किन्तु कौशेय वस्त्रों की तो मर्यादा बनी रहने दीजिए !संतों की सी वेष  भूषा बनाकर घूमने वाले किसी व्यक्ति के मुख से ये मंदिरों में स्थापित मूर्तियों की आलोचना एवं बाबा अमर नाथ जी के बर्फ लिंग की आलोचना सुन कर न केवल सम्पूर्ण हिन्दू समाज हतप्रभ  है अपितु उसके बाद से लोग आपको कलियुग  का  कालनेमि कहने लगे हैं !

     कुल मिलाकर हमारा तो सभी सनातन धर्मी साधू संतों विचारकों से यही निवेदन है कि चोरों को गाली देने की अपेक्षा अपना घर ही क्यों न सँभाल लिया जाए !

Monday, July 21, 2014

saai 5

 धर्म की ये दुर्दशा -

   बड़े बड़े  मलमलबाबाओं, तमाशारामों, आमोदप्रमोदों तथा कुचक्रपाणियों के मनमाने ऊलजुलूल एवं धर्म के नाम पर धर्म विहीन अधार्मिक अशास्त्रीय निर्णयों वक्तव्यों आचरणों से सनातन धर्मी समाज अब तंग आ चुका है । जब होता है तब सनातन धर्म कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है आखिर क्यों और कोई धर्म क्यों नहीं ? सनातन धर्म शास्त्रों में लिखी बातों का उपहास उड़ाया जाता है सनातन धर्म के बड़े से बड़े साधू संतों को टी.वी.चैनलों पर बैठकर लोग गाली दे देते हैं ,ऐसे लोग जिनकी धार्मिक शिक्षा बिलकुल शून्य है वो भी टी.वी.चैनलों पर बैठकर धार्मिक विन्दुओं पर हमारे साधू संतों से माफी माँगने की माँग करते हैं उनका इतना दुस्साहस !

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 धर्म की ये दशा -

भगवा वस्त्रों में शरीर लिपेट कर रहने वाला कोई सनातन धर्म शास्त्र द्रोही हिन्दुओं के प्राण रूप भगवान श्री राम और श्री कृष्ण को आम इंसान बता देता है भगवान की मूर्तिओं को आम पत्थर बता देता है ऐसे निकृष्ट व्यक्ति का भी सम्मान करने की एवं उसे स्वामी जी कहने की हिन्दू समाज की आखिर क्या मजबूरी है!

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 धर्म की ये दशा -

राजनीति करने के लिए कुछ लोग धर्म से जुड़े हैं धार्मिक वेष भूषा बनाए फिरते हैं अधिकांश ऐसे साधुओं ने ही साईं पूजा का समर्थन किया है उनकी बातों का विश्वास आखिर कैसे किया जाए क्योंकि वो पूर्णतया धार्मिक नहीं होते हैं आधे धार्मिक और आधे नेता होते हैं तो धार्मिक वेष भूषा में रहते हुए भी राजनैतिक दोष दुर्गुण उनमें आ जाना स्वाभविक ही है ,आखिर  चुनाव लड़ने के लिए उन्हें बहुत पैसा चाहिए दुनियां जानती है कि उनका कोई कारोबार नहीं है उन्हें यदि चुनावी चंदा चाहिए तो  माँगना ही पड़ेगा !उस धन के लिए वो साईं की वकालत करें या किसी और प्रकार की दलाली या कमीशन का कुछ और काम धंधा देखें ,कुछ न कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा उन्हें अन्यथा आखिर कहाँ से आएगा वो भारी भरकम धन जो चुनाव लड़ने के लिए चाहिए इसलिए धन के लिए कोई भी अशास्त्रीय समझौता करना उनकी मजबूरी हो सकती है किन्तु आम आदमी जो बिलकुल आम बनकर जी लेना चाहता है आखिर वो अपने देवी देवताओं ,धर्म शास्त्रों ,मंदिरों एवं महापुरुषों की प्रतिष्ठा से समझौता क्यों करे !

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 धर्म की ये दशा -

हिन्दुओं के यहाँ भगवानों की कोई वैकेंसी खाली नहीं है !

    जहाँ साईं को भर्ती कर लिया जाए !भगवान बनाकर पूजने की लिस्ट में साईं का कहीं नंबर ही नहीं है !

     सबसे अधिक देवी देवता हिन्दुओं में ही हैं, इसलिए  साईं को कृपा करके उन धर्मों पर थोपा जाए जिनके यहाँ भगवानों की कमी है !हिन्दू अपने धर्मों एवं परंपराओं से बाहर जाकर किसी तथाकथित भगवान को गोद नहीं ले सकता !ये मजबूरी सबको समझनी चाहिए ,वैसे भी हिन्दुओं को यदि किसी को भगवान बनाकर ही पूजना होगा तो उनके स्वयं असंख्य साधू संत महापुरुष आदि दिव्यातिदिव्य हो चुके हैं जिन्होंने देश समाज धर्म एवं धर्म शास्त्रों के लिए बहुत कुछ किया है जिनके योगदान को

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 धर्म की ये दशा -

यदि हमें भगवान बनाकर ही पूजना ही होगा तो हम अपने पूर्वजों को पूजेंगे, उनके मंदिर बनाएँगे उनकी मूर्तियाँ लगाएँगे । जिनके चरित्र  से दुनियाँ सुपरिचित है उनके योगदान के विषय में कोई एक प्रश्न करेगा तो सौ उत्तर देंगे आखिर उनके आचरण ही ऐसे उत्तमश्लोक होंगें कि उनकी पहचान बताने और प्रशंसा करने में हमें शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा बगलें नहीं झाँकनी पड़ेंगी ,टी.वी. पैसा देकर झूठी प्रशंसा नहीं करवानी पड़ेगी !

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 धर्म की ये दशा -

साईं सनातन धर्म के प्रति समर्पित व्यक्ति नहीं थे वो सभी धर्मों को मानने वाले थे इसलिए जिसे हमारे धर्म के प्रति भरोसा नहीं था उस पर हम ही भरोसा क्यों कर लें ? सभी धर्मों के लोग उन्हें जितना मानेंगे हिन्दू  भी उतना मानेंगे वो जिसकी इच्छा होगी ।  

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 धर्म की ये दशा -

साईं बूढ़े थे इस नाते उनका सम्मान उसी तरह किया जा सकता है जितना सभी वृद्धों का होता है आखिर साईं वीआईपी बूढ़े क्यों माने जाएँ !आखिर हमें क्यों लगता है कि हमारे माता पिता दादा दादी आदि पूर्वज भगवान बनने के लायक नहीं थे उनमें ऐसी क्या कमी थी जिसे साईं पूरी करते हैं अगर कोई कहता है कि साईं मनोकामना पूरी कर देते हैं याद रखिए बड़े बूढ़ों की सेवा से जो आशीर्वाद मिलता है वो अमोघ कवच होता है वो अनंत पुण्यफल प्रदान करता है उससे बड़ी बड़ी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं ये स्वाभाविक है हमारे धर्म शास्त्रों का ये उद्घोष है कि वृद्धों की सेवा से ये चार चीजें प्रतिदिन बढ़ती हैं -

      चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्

               आयु, विद्या,यश और बल   

    इसका अनुभव वही बता सकते हैं जिन्होंने अपने घर के वृद्धों का सम्मान किया है पूजन किया है जो अपने घर के वृद्धों का हक़ मार  करके दूसरे के वृद्धों(साईं ) का पूजन करते घूमते हैं उन्हें फल तो भगवान देते हैं किन्तु वो फल नहीं मिलता है जो अपने बृद्धों के पूजन से मिलता है आखिर हम दूसरे के बूढ़ों को पूजते घूमेंगे तो हमारों को कौन पूजेगा इसलिए वो फल नहीं मिलता दूसरा फिर अपने परेशान करते हैं अर्थात पितृदोष होता है !

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 धर्म की ये दशा -

ऐसे कितने लोग हैं जो अपने पितरों का पूजन करते हैं श्राद्ध करते हैं और उन्हें छोड़कर साईं बाबा जैसे दूसरे के बूढ़े को पूजते घूमते हैं !अपने माता पिता सास श्वसुर आदि की पूजा न करके दूसरे बूढ़ों (साईं )को पूजते हैं तो उनका श्राप लगता है बेशक वोमाता पिता आदि जीवित ही क्यों न हों बेशक वो श्राप न दें किन्तु भगवान ही ऐसा न्याय करते हैं यदि ऐसा नहीं होगा तो दुनियाँ साईं को पूजने लगेगी और अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज आएगी या उनकी उपेक्षा करने लगेगी !

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 धर्म की ये दशा -

यह तो सब लोग मानते हैं कि साईं और कुछ भी हों किन्तु हिन्दुओं के भगवान नहीं हो सकते !यदि यह सच है तो यह भी मानना पड़ेगा कि साईं की मूर्तियाँ मंदिरों में नहीं रखी जा सकतीं क्योंकि मंदिर भगवान के लिए बनाए जाते हैं ! जितना यह सच है उतना ही सच यह भी है कि साईं की मूर्तियाँ प्राण प्रतिष्ठित नहीं हो सकतीं क्योंकि वेदों में मन्त्र तो देव प्रतिष्ठा के लिए होते हैं और बिना प्राण प्रतिष्ठा की हुई मूर्तियों का पूजन करने से हिन्दुओं के देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा के विषय में भी संशय होगा कि शायद ये भी देव मूर्तियाँ न होकर पत्थरों के खंड ही पुरुषाकृति के बनाकर फूल मालाएँ चढ़ाकर कर गाया बजाया  जाने  लगा हो जबकि देवी देवताओं की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है जो साईं की मूर्ति में संभव ही नहीं है । हो सकता है साईं साधू संत या कोई दूसरे धर्म के फकीर रहे हों किन्तु मंदिरों में साईं की मूर्ति रखकर देव पूजा पद्धति से साईं की पूजा तो नहीं  ही की जा सकत है क्योंकि यह शास्त्र सम्मत नहीं है ।

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 धर्म की ये दशा -

साईं को साधू संत यदि मान भी लिया जाए तो शास्त्र को एक तरफ रखकर आँखें मूँद कर साधुवेष पर भी अंध विश्वास तो नहीं ही किया जा सकता है वैसे भी अंध आस्था के कारण ही माता सीता का हरण हुआ था सनातन हिन्दुओं को उस घटना से बहुत कुछ सीखना होगा !

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 धर्म की ये दशा -

साईं को साधू संत यदि मान भी लिया जाए तो शास्त्र को एक तरफ रखकर आँखें मूँद कर साधुवेष पर भी अंध विश्वास तो नहीं ही किया जा सकता है वैसे भी अंध आस्था के कारण ही माता सीता का हरण हुआ था सनातन हिन्दुओं को उस घटना से बहुत कुछ सीखना होगा !

     इसलिए कुछ धार्मिक लोग भी  यदि साईंपूजा का समर्थन कर देंगे तो भी ऐसे स्वयंभू नीति नियामकों को सनातन धर्मी हिन्दू समाज अपना धार्मिक प्रतिनिधि क्यों मान लेगा यदि वो शास्त्र सम्मत न बोलकर अपितु धर्मशास्त्रों की आवाज दबाकर अपना मनगढंत फतवा जारी करेंगे!सनातन धर्मी हिन्दू किसी का  बँधुआ मजदूर तो नहीं है जो धर्म के नाम पर उसे जैसा समझा दिया जाएगा वैसा मान लेगा !यदि वो शास्त्र पढ़ सकता है तो स्वयं भी पढ़ेगा और समझेगा तब मानेगा !

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 धर्म की ये दशा -

केवल धार्मिक वेष भूषा धारण कर लेने से किसी को संत नहीं माना जा सकता! संत स्वयंभू नहीं हो सकते !साधू संत वेद पुराणों एवं धर्म शास्त्रों को मानते हैं भगवान को भगवान मानते हैं इसलिए हिन्दू समाज उन्हें भगवान की तरह मानता है !किन्तु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि धर्मवेष धारण करने वाले ऐसे कुछ लोग किसी अनाम बुड्ढे को भगवान बनाकर पूजने के लिए सनातन हिन्दुओं पर थोप देंगें ! अब सनातन धर्मी हिन्दू समाज किसी के भी ऐसे आदेश को स्वीकार नहीं करेगा जिससे उसके धर्म शास्त्रों की उपेक्षा होती हो देवताओं का गौरव घटता हो जिससे उसके आस्था प्रतीकों मंदिरों की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया जाता हो !

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Sunday, July 13, 2014

साईं संप्रदाय के लोगों को हमारे ज्योतिषी होने पर आपत्ति क्यों ?

   

       मुझे यह समझ में नहीं आता है कि यदि हमने  सरकारी पाठ्यक्रम के हिसाब से भारतीय कानून का अनुपालन करते हुए हिंदी (ज्योतिष)) में डॉक्टरेड किया है फिर भी यदि किसी को ज्योतिष अंधविश्वास लगता है तो उसे शिकायत हमसे नहीं सरकार से होनी चाहिए इसलिए हम फेस बुक के अपने सभी मित्रों से केवल इतना ही निवेदन करते हैं ! 

      यदि कोई ज्योतिष या वास्तु के किसी भी  विषय में कोई भविष्यवाणी करता है और वह गलत हो जाती है अथवा वो किसी के जीवन से जुड़ी कोई समस्या या उसके समाधान बताता है किसी को किसी आधार पर लगता है कि वो गलत हैं या उसे भ्रमित किया जा रहा है या उसके साथ धोखाधड़ी की जा रही है ऐसी परिस्थिति में उसके लिए चिकित्सा पद्धति की तरह ही इसमें भी कानून के दरवाजे खुले हैं कानूनी प्रक्रिया में वो जवाब देय होगा कि किन ग्रंथों प्रमाणों के आधार पर ज्योतिर्विद ने ऐसी बात कही है वो काम उसका है वो अपना पक्ष कोर्ट में रखेगा या सजा भुगतेगा !

      हर भविष्यवाणी  गलत होने पर गलती ज्योतिषी की ही नहीं होती है क्योंकि ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को सँवार कर फलित करने की सारी जिम्मेदारी केवल ज्योतिष वैज्ञानिकों की ही नहीं है आम समाज को इसमें सहयोग करने की आवश्यकता है ।कई बार जन्म पत्रियाँ गलत होती हैं या कम्प्यूटर से बनी हुई होती हैं उनमें उतनी शुद्धता न होने के कारण वो पूर्ण विश्वनीय नहीं होती हैं कई बार  जिसकी  जन्मपत्री लोग दिखाते हैं किन्तु दोष उसमें नहीं होता दोष घर  के किसी अन्य सदस्य की कुण्डली या वास्तु आदि का होता है जिसे भुगत वो रहा होता है ऐसी परिस्थिति में उन सारी  चीजों की गहन जाँच  करनी होगी ,उसका खर्च भी अधिक आएगा और समय भी अधिक लगेगा ये स्वाभाविक है किन्तु जो लोग अज्ञान,कंजूसी या चालाकी के कारण उस पर लगने वाला खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम अपनी श्रद्धा से जो चाहें सो दें पंडित जी वो लेंगे और पंडित जी मेहनत पूरी करेंगे !किन्तु ऐसा कभी नहीं होता है ज्योतिषी के साथ जैसा व्यवहार आप करेंगे ज्योतिषी भी वैसा ही व्यवहार आपके साथ करेगा ! ये कभी नहीं सोचना चाहिए कि ज्योतिषी यदि विद्वान है तो वो तो हमारा भाग्य सही सही बताएगा ही उसे परिश्रम चाहें  जितना करना पड़े !ये भ्रम है जैसे बिजली किसी जगह चाहें जितनी हो किन्तु जितने बाड का बल्व लगा होता है प्रकाश उतना ही होता है ।इसी प्रकार से समुद्र में पानी चाहे जितना हो किन्तु पानी उतना ही देता है जितना बड़ा बर्तन होगा ठीक इसी प्रकार से कोई ज्योतिषी विद्वान चाहे जितना हो और किसी से सम्बन्ध चाहे जितने अच्छे हों किन्तु जितना आपका धन लगता है उतना ही ज्योतिषी का मन लगता है यदि धन नहीं तो मन नहीं, हाँ ,जैसे और जितनी चिकनी चुपड़ी बातें आप करके चले आओगे उतनी ही चिकनी चुपड़ी बातें करके ज्योतिषी लोग आपको प्रेम पूर्वक भेज देंगे !यदि आप सोचते हैं कि मैंने चतुराई से काम निकाल लिया तो ज्योतिषी सोचता है कि मैंने परन्तु  पैसे कम देने में आप भले सफल हो गए हों किन्तु जिस काम के लिए आप ज्योतिषी के पास गए थे वो काम आप बिलकुल बिगाड़ कर चले आए हो लेकर कई लोग अपनी समस्याओं से निपटने के लिए ज्योतिष पर उतना विश्वास नहीं कर पाते हैं जितना अन्य माध्यमों पर जैसे कोई बीमार है तो डाक्टर जाँच पर जाँच  बताते जाएँगे इलाज पर इलाज बदलते जाएँगे उसमें धन खर्च करने में उतनी दिक्कत नहीं होती है किन्तु ज्योतिष विद्वान यदि उस हिसाब से समस्या की जड़ तक पहुँचना चाहे तो काम बढ़ जाएगा जिसका खर्च भी बढ़ेगा जिसके लिए लोग तैयार नहीं होते ऐसी परिस्थिति में ज्योतिषी भी उस कठिन परिश्रम से बचते हुए उतने में ही जो कुछ संभव हो पता है वो बता कर अपना पीछा छुड़ा लेता है ऐसे लोग बाद में सोचते हैं कि भविष्यवाणी गलत हो गई जो गलत है। मेरी तो सलाह ऐसे लोगों को है कि आधी अधूरी श्रद्धा लेकर किसी ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जाना क्यों आखिर कोई विद्वान किसी के घर बुलाने तो जाता नहीं है कि हमें दिखा लो अपनी कुंडली !               

        इसी प्रकार से विवाह विचार में लड़के लड़की की कुंडली मिले जाती है और सास बहू की लड़ाई होकर तलाक हो जाता है इसमें ज्योतिष का क्या दोष ?या तो पहले ही विचार सारे घर के सदस्यों को लेकर किया गया  हो फिर तो बात है । इसीप्रकार विवाह के दस वर्ष बाद एक बीमार हो जाता है या नहीं रहता है या संतान नहीं होती  है या व्यापार बिगड़ जाता है इसमें ज्योतिष गलत कहाँ है ? इन विषयों में विचार करने के लिए ज्योतिषी को पर्याप्त काम करने की उतनी आर्थिक स्वतन्त्रता ही नहीं मिली !इसमें ज्योतिष का क्या दोष ?

        रही बात वास्तु की इसे  हमेंशा तीन भागों में बाँट कर चलना होता है 33 प्रतिशत उसकी जन्म पत्री में,33 प्रतिशत वास्तु भूमि के अंदर ,और 33 प्रतिशत भवन निर्माण कला में होता है। जन्मपत्री से हमारा अभिप्राय यह है कि जब भाग्य में भवन सुख होगा तभी तो मिलेगा ऐसा प्रत्यक्ष तब देखा जाता है जब कोई किसी  एक कमरे में रहते रहते एक कोठी बना लेता है जबकि उस कमरे में जगह की कमी के कारण वह किन्हीं वास्तु नियमों का पालन नहीं कर पाया फिर भी कोठी बन गई ये भाग्य है इसमें जन्मपत्री का विषय होता है। दूसरा वास्तु भूमि के अंदर से आशय उस विषय से है जब जमीन  के अंदर कुछ ऐसी चीज गाड़ी गई हो या गड़ी हो जो वहाँ किसी को बसने न दे रही हो जैसे जीवित शल्य अर्थ  ऐसे व्यक्ति की हड्डी जो पूर्णायु का भोग किए बिना ही किसी दुर्घटना आदि में शरीर छूट गया हो उसकी हड्डियाँ जीवित शल्य होती हैं जिनका दुरूपयोग तांत्रिक लोग किया करते हैं जो गलत है ऐसी जमीनों को शुद्ध करने के लिए ज्योतिषीय गणित के द्वारा पहले उनका पता लगाया जाता है फिर उन्हें शास्त्रीय शल्यानयन विधि से निकला जाता है । उसके बाद वहाँ रहने लायक भवन बनाया जा सकता है तीसरे नंबर 33 प्रतिशत भूमिका वास्तुकला की होती है जिसमे किस दिशा में क्या बनाना है इसमें आवश्यकतानुशार कुछ समझौते भी किए जा सकते हैं जिनका बहुत बड़ा असर नहीं होता है यदि बाकी  दोनों चीजें सही हुईं तो और यदि वो दो बिगड़ गईं तो सब कुछ बिगाड़ा ही जानना चाहिए ऐसी परिस्थिति में केवल वास्तु कला किसी काम नहीं आएगी इसीलिए केवल वास्तु कला मानकर नहीं चला जा सकता है जैसा आजकल हो रहा है क्योंकि  अधिकाँश  दोष जमीन के अंदर होते हैं और विशेष प्रभाव वास्तु का होता है।

        अब बात मौसम की सरकारी मौसम विभाग आजकल बड़ी चालाकी से काम ले रहा है जैसे अबकी बार ही अभी से बोल दिया कि सूखे की संभावना है इसका प्रमुख कारण है कि यदि पानी बरस जाएगा तो लोग खुश होकर ऐसी भविष्य वाणियाँ भूल जाएँगे और यदि बरसा नहीं हुई तो भविष्य वाणी तो सच हो ही गई !यदि इन्होंने अच्छी वर्षा होने की भविष्यवाणी की होती और फिर सूखा पड़ जाता तो दुःख में भविष्यवाणियाँ बहुत याद आती हैं सुखी लोग कहाँ सोचते हैं भविष्यवाणियों के विषय में !

       सरकारी मौसमविभाग केवल चालाक ही नहीं कृषि आदि के कुछ विषयों में अप्रासंगिक भी है जैसे पशुओं का चारा आनाज आदि खाद्य सामग्री तो फसल पर ही संग्रह करना होता है इसलिए अगले काम से कम छै महीने अथवा पूरे वर्ष के मौसम की जानकारी किसान को फसल तैयार होने से पहले हो जानी चाहिए इससे वो फसल तैयार होने पर अपने एवं अपने पशुओं के लिए खाद्य सामग्री का संग्रह वर्ष भर के लिए कर लेता है !किन्तु जब वो फसल तैयार करके कुछ महीनों की खाद्य सामग्री का संग्रह करके बाक़ी फसल बेच लेता है क्योंकि उसे पता होता है कि कुछ महीने में अगली फसल आनी है। इसके कुछ  महीने बाद  मौसम विभाग यदि सूखे की भविष्यवाणी कर भी देता है तो किसान के किस काम की और सरकार के किस काम की क्योंकि सरकार यदि किसी अन्य देश से लेकर आपूर्ति करना भी चाहे तो समय तो उसके लिए भी चाहिए !

       ऐसी परिस्थिति में मौसम विभाग क्या करता होगा कैसे करता होगा उसकी तो वाही जानें किन्तु ज्योतिषीय मौसम विभाग के विषय में विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि कोई भी भविष्यवाणी पचास से साथ प्रतिशत तो सच होगी ही किन्तु इसका एक लाभ और है कि इस ज्योतिषीय मौसम भविष्यवाणी को कुछ महीनों ही नहीं अपितु वर्षों पहले भी किया जा सकता है!मेरे कहने का अभिप्राय है कि यदि पचास प्रतिशत का इशारा भी किसानों तथा सरकार एवं सरकारी संस्थाओं को पहले से मिल जाए तो वो यथासंभव आवश्यक व्यवस्था कर लेंगी किन्तु ज्योतिषीय मौसम भविष्यवाणी के लिए सरकार को संसाधन उपलब्ध कराने से लेकर आर्थिक सहयोग तक में पूर्ण रूचि लेनी होगी और परिणामों में जितनी छूट सामान्य वैज्ञानिकों को मिलती है उतनी ही ज्योतिष वैज्ञानिकों  को भी देनी होगी मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि इसे देश एवं समाज का महत्वपूर्ण लाभ होगा ।

         इसी प्रकार से किसी की बीमारी आदि के विषय में मान लीजिए उसे ग्रह जनित दुष्प्रभाव से बीस से सत्ताईस वर्ष बीमार रहना है तो इसका पता जन्म के समय भी लगाया जा सकता है जिससे सतर्क रहते हुए उसके उपाय करते हुए पाठ्य परहेज पूर्वक उस समय को निकला जा सकता है अन्यथा जाँच चिकित्सा में डाक्टर बदलते अस्पताल बदलते शहर शहर में या विदेशों में भी इलाज के नाम पर भटककर समय पार करना पड़ता है कई लोग तो इलाज कराते कराते सब जगह से थक हारकर किसी तीर्थ में यह सोचकर बस जाते हैं कि सब जगह इलाज कराकर थक गए अब जो होगा सो होगा और वहीँ किसी वैद्य आदि के यहाँ से कोई सामान्य दवा काढ़ा आदि लेते हैं देवी देवताओं बाबा बैरागियों आदि के दर्शन करते  रहते हैं । इसी बीच वो अचानक ठीक होने लगता है और ठीक हो जाता है तब तक उसका वो बीस से सत्ताईस वर्ष अर्थात सातवर्ष का समय पार हो जाता है अब वो अपने ठीक होने का श्रेय उन उन लोगों को देने लगता है जो जो उपाय उसने बाद में किए थे जब कि वो समय के प्रभाव से बीमार हुआ था समय के प्रभाव से ठीक हो गया !यही कारण  है कि प्रतिकूल समय में दवाएँ भी उतना असर नहीं करती हैं जितना करना चाहिए। इसलिए किसी व्यक्ति पर चिकित्सा को प्रभावी बनाने के लिए ज्योतिष का भी इस रूप में सहयोग लिया जा सकता है।  

       इन समस्त बातों में कहीं कोई लीपा पोती नहीं है चिकित्सा के क्षेत्र की तरह ही सारी सरकारी एवं कानूनी पारदर्शिता है जिसे सबको मिलजुलकर पालन करना चाहिए ज्योतिष शास्त्र को गाली देना ठीक नहीं नहीं है और न ही ज्योतिषियों को !जैसे कोई किसी अन्य सब्जेक्ट का अध्ययन करता है वैसे ही कोई ज्योतिषी ज्योतिष विषय का जैसे चिकित्सा आदि किसी अन्य क्षेत्र में डिग्रियाँ सरकारी विश्व विद्यालयों द्वारा छात्रों को दी जाती हैं वैसे ही ज्योतिष पढ़ने वाले छात्रों को पढ़ाई पूरी करने पर सरकारी विश्व विद्यालय डिग्रियाँ देते हैं ।भारतीय संविधान के दायरे में रहकर जैसे कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय को पढ़ने में स्वतन्त्र होता है इसी स्वतंत्रता से ज्योतिषी लोग ज्योतिष पढ़ते हैं तो उनका अपराध क्या है ?

Saturday, July 12, 2014

भूख हड़ताल से मुझे कोई लाभ नहीं हुआ : केजरीवाल

    किन्तु लाभ कैसे होता आप दुबले पतले आदमी ठहरे आपको तो खूब खाना चाहिए किसी ने आपको  सलाह ही उलटी दे दी कि आप भूख हड़ताल करो आज के बाद आप ऐसा कभी मत करना ये आपके स्वास्थ्य के लिए हानि कारक है आपको जिसने ऐसी सलाह दी है ये तो किसी उच्चस्तरीय जाँच का विषय हो सकता है कहीं इसमें काँग्रेस और भाजपा वालों की कोई साजिश तो नहीं है आखिर आपको भूखा क्यों रखा गया या आप स्वयं भूखे रहे या आपको भूख ही नहीं लगी जांच इसकी भी होनी चाहिए उससे यह भी पता लग जाएगा कि आपको भूखा रखने में किसी अम्बानी अडानी की कोई साजिश तो नहीं थी राम ! राम !!

    आप अब ऐसा कभी मत करना !राजनीति में तो लोग जाते ही खाने सोने को हैं आप ने देखा नहीं कि संसद में बड़े बड़े लोग कैसे सोते हैं ! राजनीति में तो भूख हड़ताल में भी भोजन का विशेष प्रबंध रखा जाता है ये कोई व्रत थोड़ा है जो एकांत में भी देवता देखते होंगे ! राजनीति तो नजर का खेल है जितना अधिक से अधिक जनता की नजर बचा सकते हो उतना बचाओ बाकी सब कुछ खाओ ,जनता कुछ करते देख न ले बस इतनी सी बात है इसी में सारी  राजनीति छिपी होती है जिन्हें ये फार्मूला जितनी जल्दी समझ में आ गया वे उतनी जल्दी मालामाल हो जाते हैं राजनीति में सबसे बड़ी शत्रु तो जनता ही होती है इससे सतर्क रहो और सब कुछ करो !राजनीति में किया सबकुछ जाता है किन्तु लोगों की आँख बचाकर ! 

      राजनीति में सम्मिलित प्रायः लोग जनता की निगाहों में त्यागी तपस्वी आदि आदि सब कुछ होते हैं किन्तु जब से राजनीति में सम्मिलित हुए थे तब से आज तक की जांच यदि ईमानदारी से हो जाए तो पता ये भी चल जाएगा कि प्रशासन पर से सरकारों का नियंत्रण क्यों घटता जा रहा है या तो पैसा कमवा लो या फिर कानून व्यवस्था ठीक कर लो!

   नेताओं की आय का हिसाब लगा लो तो बिना कुछ किए हुए ,जहाजों पर घूमते हुए सारे सुख भोग भोगते हुए भी करोड़ों अरबों तक पहुंचते देर ही नहीं लगती है ! ये फंड इस प्रकार से बढ़ा कैसे जिस दिन इसका राज खुल जाएगा उसी दिन देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा किन्तु ये राज खोलेगा कौन ?ये लाख टके का सवाल है चुनावों के समय सब सबको बेईमान बताते हैं किन्तु चुनावों में जो जीत जाता है वो इतना शरीफ हो जाता है स्पष्ट कह देता है कि हमारी सरकार बदले की भावना से कोई कार्यवाही नहीं करेगी !इस वाक्य से उनको क्लीन चिट मिल जाती है जिन्हें चुनाव प्रचार में चिल्ला चिल्लाकर चोर और भ्रष्टाचारी आदि कहा जाता रहा है समझदारी की बात यही है कि सत्ता भोगने के लिए ही मिलती है इसलिए क्यों किसी से पंगा लेना !मजे की बात ये भी है कि बात बात में मान हानि के मुक़दमे की बात करने वाले नेता इसबात के लिए कभी कोर्ट नहीं जाते कि हमारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए क्यों गए थे अब जांच कराई जाए !नीति तो यही कहती है कि अभी तक जिस पर करोड़ों के घोटाले के आरोप लगे थे अब आपकी सरकार बन गई तो अब या तो आप उन घोटालों की जांच कराइए और उसका सच जनता के सामने लाइए और या फिर जनता के सामने कह दीजिए कि हीं हीं हीं हमने तो चुनाव जीतने के लिए झूठे आरोप लगाए थे अन्यथा आप पर विश्वास कैसे किया जाए किन्तु ये तो रही नैतिकता की बात अब बात राजनीति की वहां यही सब कुछ चलता है इसलिए केजरीवाल जी !इन  लोगों से आप भी कुछ सीखिए -

 पढ़िए और देखिए संसद की कार्यवाही का हाल सुना है कि सेकंडों के हिसाब से खर्च आता है -

 लोक सभा की नींद का आनंद ही कुछ और है !
खबरदार कोई डिस्टर्ब न करे इस समय बड़े लोग शयन कर रहे हैं !सुना जाता है कि मोदी जी दिन रात काम ले रहे हैं किन्तु ये तो यहीं पोल खोल रहे हैं बाकी का भगवान मालिक !
रात रात  भर जगते रहते इतनी मेहनत इतना काम।
कहाँ भाग्य में बदी सभी के यह संसद सदनी आराम ॥  
मोदी जी का राज सुखद है बहुमत भी है अपने पास।
शीतल मंद सुगंध पवन है अच्छे अवसर का एहसास ॥
मंत्री पद पर हुई प्रतिष्ठा और न है कोई अभिलाष ।
इतने में संतोष हमें है होगा अपने आप विकास ॥
संसद शयन सुरक्षित सुन्दर सुखद स्वप्न के सारे रंग ।
चिंता रहित मस्त यह जीवन संसद में अतुलित आनंद ॥                                                                                                 
-डॉ.एस.एन.वाजपेयी see more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_11.html

साईं को भगवान मानने का सवाल ही नहीं उठता ! बेटा बेटी गोद लिए जाते हैं किन्तु बाप नहीं !

   साईं संप्रदाय की सोच ही न केवल झूठ पर टिकी हुई है अपितु काल्पनिक है मनगढंत है तर्क संगत भी नहीं है !और अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली है ! वैसे भी सनातन धर्म का अंग बने रहकर धर्म शास्त्रीय सीमाओं से बाहर जाकर किसी को भगवान स्वीकार ही नहीं किया जा सकता !

       जिसके कार्यों का तत्कालीन इतिहास में कहीं कोई जिक्र न मिलता हो, जिसका उस समय की आजादी की लड़ाई में कोई योगदान न मिलता हो, जिसके जन्म का पता न हो कर्म का पता न हो जिसके कुल खानदान का पता न हो, जिसके माता पिता का नाम पता न हो जिसके नाम का पता न हो जिसका नाम भी लोगों ने देखा देखी रख लिया हो, जिसके विषय में कुछ भी पता न हो जिसके धर्म और उपासना पद्धति के विषय में किसी को कोई ज्ञान ही न हो उसके विषय में इधर उधर से सुन सुनाकर कोरी कल्पनाएँ करके सतही बातों का आश्रय लेकर कुछ लिख पढ़ दिया गया हो किन्तु ऐसे किसी भी बेनाम खानाबदोस आदमी को कोई अपने घर का नौकर तो रखता नहीं है फिर सनातन धर्मी लोग ऐसे लोगों को भगवान कैसे और क्यों मान लें ! क्या अपने यहाँ भगवानों की कोई कमी है क्या ?क्या श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश हनुमान जी जैसे देवी देवताओं के मंदिर हमने यूँ ही दिखावा में बना रखे हैं इनके प्रति हमारी कोई आस्था ही नहीं है हमारे पूर्वज इनकी पूजा बेकार में ही करते रहे क्या या उन्हें समझ नहीं थी अन्यथा वो भी कोई रोड छाप आदमी पकड़ कर  ले आते और उसे बना लेते अपना भगवान किन्तु वो समझदार थे उन्हें अपने भगवानों की पहचान थी । कहने को तो वो गाय और कुतिया में एक दृष्टि से समानता मानते थे कि दोनों में भगवान है इतने तक किन्तु उनके पास इतना विवेक था कि वो दूध हमेंशा गाय का ही पीते थे कुतिया का नहीं !

      आज साईं प्रकरण में समझदारी की कमी के कारण  समस्या ये है कि लोग हमें समझा रहे हैं कि जब गाय और कुतिया  दोनों में ही भगवान हैं तो हम गाय का ही दूध क्यों पिएँ आखिर कुतिया का क्यों न पिएँ ?ये हमारा स्वतन्त्र अधिकार है हम किसी का भी दूध पी सकते हैं हमारी अपनी आस्था हमें रोकने वाला कोई कौन होता है बात ये भी सही है किन्तु शंकराचार्य जी कहते हैं कि हम तो चाहते हैं कि हर किसी को इतना विवेक हो कि कोई कुतिया का दूध न पिए क्योंकि उसमें विकार होते हैं फिर भी जो लोग तमाम ऊट पटांग तर्क देकर कुतिया के दूध के गुण समझाने पर आमादा हैं तो शंकराचार्य जी का अभिप्राय यह है कि ऐसा करने को हम यद्यपि सबको रोकते हैं फिर भी जो लोग कुतिया का दूध पीना ही चाहें तो हम उन्हें रोकते नहीं हैं किन्तु वो हमसे अलग बैठकर पिएँ क्योंकि हमारा शास्त्र उसे अशुद्ध मानता है दूसरी बात उसे कुतिया का दूध ही कहें गाय का दूध न कहें क्योंकि इससे भ्रम  पैदा होता है तो इसमें गलत क्या है !आखिर यह समझने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है कि कुतिया के दूध को भी गाय का दूध कहने से हमारे गाय के दूध को भी लोग कुतिया की श्रेणी में समझने लगेंगे !

    कुल मिलाकर कोई कुतिया को कुतिया कहते हुए स्वाभिमान पूर्वक कुतिया का दूध क्यों नहीं पीता है यदि ऐसा करे तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है किन्तु दूध  कुतिया का ही पियूँगा और उस कुतिया को ही गाय कहूँगा ये जबरदस्ती आखिर कैसे चलेगी !समाज में रहने के लिए कुछ तो मानना पड़ेगा!

         वैसे भी जब कुतिया और कुतिया के दूध पर इतनी ही आस्था है तो उसके कुतिया नाम से इतनी चिढ़ क्यों है आखिर उस कुतिया का नाम गाय रखना क्यों जरूरी है कुतिया को कुतिया के रूप में में ही रहने में क्या बुराई है ! उसे गाय रूप में प्रतिष्ठित करने का मतलब ही है कि लगाव उनका भी गाय के प्रति ही है कुतिया के प्रति नहीं ,उन्हें भी पता है कि सम्मान गाय के नाम से ही मिल पाएगा कुतिया के नाम से नहीं इसका सीधा सा मतलब है कि कुतिया के गुणों और दूध में ताकत बिलकुल नहीं है अन्यथा वो अपने नाम से भी पुज सकती थी । सम्मान गाय का ही है इसीलिए तो गाय कहने के पीछे पड़े हुए हैं ! 

       किसी का नाम भगवान रखने का मतलब है भगवान ने जो भी उत्तम कार्य किए हैं उनके श्रेय में घुस पैठ कर लेना इन श्रेयतस्करों को ये समझ में नहीं आता है कि कवीर ,सूर, तुलसी, मीरा, रसखान,चैतन्य महाप्रभु ,रविदास जैसे असंख्य महापुरुषों ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बलपर इस संसार में अपने को स्थापित किया है भगवान बनके नहीं !भगवान ही बनाना होगा तो उन्हें बनाया जाएगा जिन्होंने देश और समाज की मुशीबत में कन्धा लगाया है अन्यथा केवल धंधा करने के लिए किसी खानाबदोश आदमी को क्यों बना लेंगे अपना भगवान?कहावत है -

                  "जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम "

      ये तो अजीब बात है एक घर में सगे दो भाई हैं एक भाई बाजार गया और  वहां से एक बुड्ढे का हाथ पकड़ कर चला आवे और घर वालों से कहे कि ये हमारे पिता जी हैं घर वाले उस पर गुस्सा हों तो वो कहे कि ये तो हमारी आस्था है हम रखेंगे भी इसी घर और मानेंगे भी इसी को अपना बाप !गाँव वाले लोगों को सुन सुन कर मजा आवे दूसरों के विवाद में पञ्च कौन नहीं बनना चाहता है विवाद बढ़ा तो राजदरवार में बात पहुंची सबको बुलाया गया तो सबने अपनी अपनी बात रखी सब की बात सुनकर राज सभा ने सर्व सम्मति से निर्णय लिया कि वो उसे अपना पिता मानकर घर में रखता है तो रखने दो तुम्हें इसमें क्या आपत्ति !इस पर उसकी माँ ने कहा कि राजा साहब आप केवल इसके अधिकारों के विषय में सोच रहे हैं हमारे कोई अधिकार ही नहीं हैं क्या ?आप ये क्यों नहीं सोचते कि जब हमारा बेटा इसे अपना बाप बना कर घर में रखेगा तो हम मानें या न मानें किन्तु लोग इसे समझेंगे तो हमारा आदमी ही इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं उसके भाई से पूछा गया तो उसने कहा कि राजा साहब हमारा तो घर से निकलना मुश्किल हो गया है हर कोई चिढ़ाता है कि और आपके नए पिता जी के क्या हाल चाल हैं ! हम उनसे कितना भी कहते हैं कि वो हमारे पिता नहीं हैं तो लोग कहते हैं कि ऐसा कहीं होता है कि दो सगे भाइयों के पिता अलग अलग हों इसलिए इसका अपमान हमें भी झेलना पड़ता है!ये सब बातें सुनकर राजा को उसकी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने  फैसला सुनाया कि तू इसका नाम और कुछ भी रख ले जिससे तुम्हारे घरवालों की प्रतिष्ठा न जुड़ी हो किन्तु किसी को पिता नहीं बना सकते क्योंकि इससे तेरे घरवाले भी प्रभावित हो रहे हैं !

   यही स्थिति कुछ लोगों के द्वारा साईं को भगवान मानने में है इससे  सारे हिन्दू प्रभावित हो रहे हैं ! साईं को साईं कहकर साईं की तरह मानने में किसी को कहाँ दिक्कत है सारी आपत्ति तो साईं को भगवान कहने में है !इसे भी मूर्खता ही कहा जाएगा कि जिन लोगों ने अपना आस्था पुरुष(साईं)अलग गढ़ लिया उसकी अलग मूर्तियाँ पूजने लगे,अलग मंदिर बनाने लगे,उसकी अलग पूजा पद्धति बनाने लगे, इन धर्म नकलचियों को जब सब कुछ नक़ल सनातन धर्म की ही करनी है तो अलग भगवान बनाने की जरूरत क्या थी?

      सनातन धर्म में रहते हुए साईं को भगवान मानना धर्मापराध है चूँकि सनातन धर्म की सशास्त्रीय अवधारणा इसकी अनुमति नहीं देती है जगद्गुरु शंकराचार्य जी की जिम्मेदारी है कि वो इसके विरुद्ध समाज को जागृत करें वो अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं।शास्त्रीय साधू संतों  विद्वानों का समर्थन उन्हें प्राप्त है फिर कोई भी हिन्दू उनके शास्त्रीय आदेश पर अंगुली कैसे उठा सकता है वो भी तब जबकि धर्म शास्त्र सम्मत हो ! 

     जो लोग यह कहते हैं कि तुम भगवान मानो न  मानो किन्तु हमें तो मानने दो !मैं पूछता हूँ  कि इतनी उदारता केवल सनातन धर्म के क्षेत्र में ही क्यों है ?सामजिक क्षेत्र में क्यों नहीं ?चोर,लुटेरे,हत्यारे बलात्कारी आदि ऐसे तो सब कहने लगेंगे कि तुझे गलत काम नहीं करना है मत कर मुझे तो करने दे ! क्या देना संभव है उन्हें छूट ?

     इसलिए सनातन धर्म और शास्त्र विरुद्ध कार्य औरों को भी कैसे कर लेने दे चूँकि इसी धर्म के अंग हम भी हैं इनके किसी गलत काम का दंड हमें भी भोगना होगा चूँकि धर्म व्यक्तिगत नहीं होता है ! वैसे भी कोई धर्म अपने धार्मिक और शास्त्रीय सिद्धांतों के विरुद्ध किसी की कोई हरकत बर्दाश्त करता है क्या ?आखिर सनातन धर्म को छोड़ कर ये सीख किसी और को क्यों नहीं दी जाती है अभी कुछ दिन पहले ही तो धर्म विशेष के आस्था महापुरुष की पोशाक की नकल किसी ने कर ली थी तो जो बवाल हुआ था सारी दुनियाँ ने देखा था किन्तु वहाँ तो पोशाक की नक़ल थी यहाँ तो हमारे भगवानों की नक़ल की जा रही है और हम्हीं को ऐसा स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जा रहा है ये हमारी कायरता का ही परिणाम है अगर मीडिया में हिम्मत थी तो पोशाक प्रकरण में लगा कर दिखा देते धर्म संसद !सबकी सारी  बकवास केवल सनातन धर्मियों के लिए !  

      ये कोई बाप दादा की जमीन का हिस्सा नहीं है जो बाँट कर अपना अपना हिस्सा ले लिया जाएगा ! ये तो धर्म है बंधुओं ! ये अपने पूर्वजों ने हम सबको साथ साथ मिलकर मानने और मनाने के लिए बनाया है इसमें तो उसी तरह से चलना पड़ेगा जैसी परम्पराएँ पहले से प्रचलित हैं और यदि कुछ नया करना होगा तो शास्त्रीय मर्यादाओं में रहकर ही आपसी सहमति से करना पड़ेगा धर्म में मनमानी नहीं चल सकती ,अपनी सुविधानुशार चलने की छूट किसी भी धर्म में नहीं है फिर सनातन धर्म से ही ऐसी अपेक्षा क्यों ? यदि कर्तव्य पालन में छूट की बात स्वीकार की गई तो सारे अपराधी उन्मत्त हो जाएँगे वो भी कहेंगे कि तुझे चोरी,बलात्कार हत्या आदि नहीं करनी है मत कर मुझे तो करने दे ! ऐसे न तो धर्म चल पाएगा न समाज और न ही देश । हर किसी जगह नियम कुछ तो बनाने और मानने ही पड़ते हैं अन्यथा संविधान बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती ? तन पर शासन सरकार का होता है मन पर शासन धर्म का होता है यदि तन के संविधान की आवश्यकता है तो मन के संविधान की क्यों नहीं ! अपराध करने वाले को संविधान सजा देता है वहीँ धर्म अपराधी को अपराध से मुक्ति हेतु प्रेरित करता है वैसे भी एकांत के अपराधों में धर्म सबसे अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है इसलिए धर्म में मन मानी क्यों कि ' तू मत कर मुझे तो करने दे' इस मुझे के चक्कर में ही तो देश और समाज की दुर्दशा हो रही है परिवार टूट रहे हैं समाज विखर रहा है इसलिए मुझे क्यों हमें क्यों नहीं ?


astro

     
    बंधुवर !
      एक निवेदन मेरा है कि जो लोग धर्म शास्त्रों  को मजाक समझते हैं इसलिए उस विषय में साईं या अन्य विषयों में मन माने तर्क गढ़ लिया करते हैं और शास्त्रार्थ के नाम पर चोंच लड़ाना शुरू कर देते हैं हैं ये अच्छी परंपरा नहीं है आखिर सरकार ने संस्कृत विश्वद्यालय बनाए किस लिए हैं वहाँ पुराणों से लेकर हर सब्जेक्ट का डिपार्टमेंट है जिसमें कई कई शिक्षक होते हैं जिनकी लगभग एक लाख रूपए सैलरी होती है आखिर सरकार कुछ सोच कर ही दे रही होगी और वहाँ कुछ पढ़ाया भी जाता होगा जब सामान्य विश्व विश्वद्यालयों की तरह ही उसमें भी एम. ए.पी.एच.डी.आदि होती है तो आखिर कुछ तो सरकार को आवश्यक लगा ही होगा तब वो ऐसा कर रही है!ऐसी परिस्थिति में जो लोग ऐसे किसी शिक्षण संस्थान या मजबूत गुरुपरम्परा का आश्रय लिए बिना कुछ धार्मिक पुस्तकों के हिंदी टीका पढ़कर बहस के नाम पर केवल चोंच लड़ाते हैं मैं उनसे अपने को अलग रखना चाहता हूँ आखिर बीस वर्ष तक संस्कृत विश्वद्यालयों की परंपरा में रहकर जिन आकर ग्रंथों का अध्ययन किया गया है उसकी गरिमा से समझौता करने की मेरी मजबूरी क्या है !
       हमने ज्योतिष विषय से एम. ए.पी.एच.डी.किया है हमारे संस्थान में बिलकुल ज्योतिष वैज्ञानिक की तरह लोगों को ज्योतिष की सेवाएँ लिखित एवं प्रमाणित रूप से दी जाती हैं !उसमें कई बार ऐसे लोग चोंच लड़ाने चले आते हैं जिनका ज्योतिष का स्वयं कोई ज्ञान नहीं होता है और किसी पढ़े लिखे ज्योतिषी से उनका कभी कोई संपर्क भी नहीं रहा होता है ,बहुत तंग करते हैं ऐसे लोग !
      बंधुओं ! ऐसे लोगों ने उन लोगों को विद्वान मान लिया है जिनका ज्योतिष से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं होता है समाज को आज कुछ ऐसा भ्रम सा हो गया कि अच्छे महात्मा और पढ़े लिखे विद्वान  की पहचान  उसके पास बहुत पैसे का होना, बड़े बड़े नेताओं का आना जाना लगा रहना या उसका विदेश में भी अपने काम के प्रचार प्रसार के लिए जाना आना आदि,अधिक से अधिक टी.वी.पर दिखाई पड़ना,या ज्योतिष आदि विषयों के विषय में टी. वी. चैनलों पर बैठ कर बड़ी बड़ी बातें करे,या कुछ पढ़ावे,या कुंडली देखना सिखावे या भविष्य बदलने की बात करने लगे लोग ऐसे लोगों को विद्वान समझते हैं आज कल और जिसके पास ये कुछ नहीं वो पढ़ा लिखा मूर्ख माना जाता है । यही वर्तमान समय में यही ज्योतिष आदि शास्त्रों के उपहास का प्रमुख कारण है और शास्त्रीय  विषयों का सम्मान एवं क्वालिटी भी इसी लिए घटी है !
        वस्तुतः इसप्रकार के प्रचार प्रसार से सम्बंधित सभी कार्य करने के लिए धन की अधिक आवश्यकता होती है और धन  दो प्रकार से मिलता है एक तो आता है और एक लाया जाता है बिलकुल किसी गाय के दूध की तरह वो जो स्वाभाविक दूध देती है वो तो सर्व गुण संपन्न होता है किंन्तु इंजेक्सन लगा कर जबरदस्ती निकला जाता है उसमें उतने गन नहीं होते ठीक इसी प्रक़र से ज्योतिष आदि विषयों में भी जब तक सच बोल कर जो पैसे समाज से मिलते हैं वो परिश्रम की कमाई कोई बर्बाद नहीं करेगा किन्तु कालसर्पदोष बताकर नग नगीनों का कमीशन लेकर,वास्तु दोष का बहम डालकर ,यदि ऐसा नहीं करोगे तो वैसा हो जाएगा आदि आदि  भय भावना भरके जो थोड़े प्रयास में अधिक पैसा कलेक्ट किया जाता है उसे प्रचार प्रसार में खर्च करने में अधिक कठिनाई नहीं होती है क्योंकि वो इंजेक्सन लगाकर निकाला गया दूध होता है! पुराने लोग पहले भी कहा करते थे कि बिना पाप के बहुत काम समय में अधिक धन नहीं कमाया जा सकता है। बिना धन के प्रचार प्रसार कैसे किया जा सकता है ! और यदि आप प्रचार प्रसार नहीं कर पाए तो आपके पास भीड़ नहीं होगी और यदि आपके पास भीड़ नहीं होगी तो आप विद्वान नहीं हैं यदि आप कुछ मंत्री मंत्रियों के साथ लिपट चिपट कर फोटो खिंचवा पाए तो और बड़े विद्वान ,और यदि आप टी.वी.चैनलों का मोटा मोटा पेमेंट करके वहाँ जाकर कुंडली कुंडली कहकर कुछ कुछ बोलने लगे तो आप और बड़े विद्वान  बन गए ,और यदि आप ज्योतिष पढ़ाने लगे तो आपके विषय में समाज जरूर समझ जाता है कि इन बेचारों ने यदि ज्योतिष पढ़ी न होती तो पढ़ा कैसे पाते पढ़ा रहे हैं इसका मतलब जरूर पढ़ी होगी !


में कमीशन के लिए ये सब कुछ है आदि है के पास पैसा
गलती से वो लोग कुछ ऐसे लोगों को ज्योतिषी मान बैठे हैं जिन लोगों का ज्योतिष शास्त्र से कोई संबंध ही नहीं होता है न किसी संस्कृत विश्व विद्यालय के ज्योतिष पाठ्यक्रम से ही उनका कोई सम्बन्ध रहा होता है फिर भी वो पैसे खर्च करके अपने को ज्योतिषी सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं!कुछ लोग टी.वी.पर पढ़ाने लगते हैं कुछ कुंडली समझने लगते हैं कुछ नेताओं मंत्रियों के साथ अपनी फोटो लेकर टी.वी.पर ज्योतिष की कुछ बातें बोल बताकर या इधर उधर लाप्प झप्प करके किसी प्राइवेट संस्था से अपने ज्योतिषी होने के विषय में कुछ लिखवा कर कुछ लोग अपने ज्योतिषी होने का पैसे के बल पर प्रचार प्रसार कर लेते हैं ऐसे लोगों के अनुयायी कई बार बहुत तंग करते थे वो ये मानने को ही तैयार नहीं होते हैं कि उनके ज्योतिषी कम पढ़े लिखे हुए हैं   हो जाएँ कि उनके ज्योतिषी जी के यहाँ मंत्रियों का आना जाना रहता है बहुत बन फटो खिंचवाकर खूँटों के साथ   से ही उनका 
    ये जितने प्रश्न आपने किए हैं यदि  इस परंपरा से कोई धर्म शास्त्र शिक्षित व्यक्ति होता  तो उसे इनके विषय में न केवल शास्त्रीय अपितु वैज्ञानिक उत्तर स्वयं ही पता होते दो चार न भी पता होते तो बताए जा सकते थे किन्तु बिलकुल नए व्यक्ति को सारी जानकारी बिना पढ़े  ही कैसे दी जा सकती है वैसे भी मैंने यहाँ कोई स्कूल तो खोल नहीं रखा है किसी ने कुछ पढ़ा हो तो कुछ समझाना आसान हो जाता है !अब आपसे ये जानना चाहता हूँ कि प्राचीन विद्याओं के विषय में किसी संस्कृत विश्वद्यालय से कुछ पढ़ा है और यदि पढ़ा है तो किस विषय में किस क्लास तक आप बता दें तो उससे मुझे अपनी बात आप तक पहुँचाने में आसानी हो जाएगी कुछ  मैं बताऊँगा कुछ आपसे पूछूंगा आपको समझ भी आ जाएगा और बात भी साफ हो जाएगी अन्यथा बेकार में चोच लड़ाने का कोई फायदा ही नहीं समाज में बहुत लोग बहुत कुछ नहीं मानते हैं तो वो उनका विषय है हमारा काम लिखना है जिन्होंने कुछ पढ़ा होगा वो समझेंगे । 
         आपने कहा भगवान श्री राम थे मैं नहीं मानता साबित करिए मैं कैसे साबित कर दूँ  ये शास्त्रीय स्वाध्याय एवं चिंतन करने से आपको स्वयं इसका ज्ञान होगा कोई और कैसे साबित करेगा ये आपके अंतस का विषय है अब कोई आम आदमी जिसे चिकित्सा के विषय में कुछ भी न पता हो वो कहे कि हार्ट सर्जरी मैं तो नहीं मानता तो डाक्टर को क्या करना चाहिए उसके सामने किसी व्यक्ति को लिटाकर उसकी सर्जरी करने लगना चाहिए खैर ,वो आपका विषय है
    

Friday, July 11, 2014

लोक सभा की नींद का आनंद ही कुछ और है !

खबरदार कोई डिस्टर्ब न करे इस समय बड़े लोग शयन कर रहे हैं !सुना जाता है कि मोदी जी दिन रात काम ले रहे हैं किन्तु ये तो यहीं पोल खोल रहे हैं बाकी का भगवान मालिक !

रात रात  भर जगते रहते इतनी मेहनत इतना काम।
कहाँ भाग्य में बदी सभी के यह संसद सदनी आराम ॥   
मोदी जी का राज सुखद है बहुमत भी है अपने पास। 
शीतल मंद सुगंध पवन है अच्छे अवसर का एहसास ॥
मंत्री पद पर हुई प्रतिष्ठा और न है कोई अभिलाष ।
इतने में संतोष हमें है होगा अपने आप विकास ॥ 
संसद शयन सुरक्षित सुन्दर सुखद स्वप्न के सारे रंग । 
चिंता रहित मस्त यह जीवन संसद में अतुलित आनंद ॥ 
                                                                                                  -डॉ.एस.एन.वाजपेयी 
 


   

     

 

 

 

 

 

 

 

 

आखिर क्यों ? बहस समझ में नहीं आ रही थी या बहस सुनना जरूरी नहीं समझ रहे थे,या सत्ता से हटने के बाद जिम्मेदारियाँ घटने से मन हल्का हुआ और नींद आ गई ,या कोई तनाव है जो घर में सोने नहीं देता संसदीय चर्चा में मन भटक गया और नींद आ गई,या अगले पाँच वर्ष तक खालीपन की निश्चिंतता का एहसास है कि कौन क्या कह रहा है कहने दो अभी से क्या चिंता जब चुनाव आएँगें तब फिर सुन लेंगे दो चार भाषण अभी से कौन मत्था मारने जाए ,या जो मैंने दस वर्ष किया है और हम लोगों ने बोला है मिलाजुला कर कर वही करना और वही बोलना मोदी जी को भी है इसलिए नया क्या होगा जो सुनें इसलिए नींद आ गई !                  

      बलात्कार तब हो रहे थे वो अभी भी हो रहे हैं महँगाई तब थी महँगाई अब है डीजल पेट्रोल के दाम तब बढ़ रहे थे वो अभी भी बढ़ रहे हैं चुनावों में जीतकर जो पार्टी सरकार में आती है उसे सपने बड़े बड़े जनता को दिखाने ही पड़ते हैं और जब सरकार में आती है तो धन के अभाव में उन्हें पूरा करना कठिन हो ही जाता है तब बताना ही पड़ता है कि पिछली सरकार खजाना खाली करके गई है इसमें कोई नै बात नहीं है क्या सुनें ऐसा हर कोई कहता और करता है वो तो कहना ही पड़ेगा आखिर जनता को कुछ जवाब तो देना ही है देने दो क्या करना है ये सब बातें सुन के ,कुछ दिनों में धीरे धीरे जनता को सच्चाई समझ में आ जाएगी कि खजाना ही होता तो काम पिछली सरकार भी कर सकती थी वो कब हारना चाहती थी चुनाव !

     खजाना खाली खजाना खाली ऐसा कहते कहते धीरे धीरे बाकी सरकारों की तरह ही नई  सरकार भी महँगाई की कड़ुई दवा पिलाने लगती है और धीरे धीरे जनता को भी सहने का अभ्यास होने लगता है ! 

      चुनावों के समय खजाना खाली करने के लिए  लाखों करोड़ के घोटालों का तत्कालीन सरकार पर आरोप लगाया जाता है किन्तु ये आरोप यदि सच होते हों तो दाम बढ़ाने की जरूरत क्या है वही घोटालों और भ्रष्टाचार वाला पैसा निकलवाना चाहिए और लेना चाहिए काम में किन्तु सत्ता में आने के बाद कौन कराता है किसकी जाँच !और कोई थोड़ा बहुत हाथ पैर मारे भी तो बदले की कार्यवाही कह कर बंद करा दी जाएगी जाँच आखिर किसे नहीं पता होता है कि कल जब ये सत्ता में आएँगे और हम विपक्ष में होंगे तो वही होगा हमारे साथ जो हम आज इनके साथ करेंगे इसलिए अपना बुरा कोई नहीं चाहता है वैसे भी कोई केवट किसी और केवट से कहाँ लेता है उतराई ! देखिए यू. पी. में सपा बसपा जैसे परस्पर विरोधी दल दोनों चुनावों के समय एक दूसरे पर बड़े बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किन्तु जब सत्ता में आ जाते हैं तो बड़े  प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं दोनों अपनी अपनी बारी की प्रतीक्षा में काट लेते हैं दिन !वो बात और है जब विपक्षी पार्टी के नेताओं को मीडिया वाले पिन मार देते हैं तो कह देते हैं कि सरकार चोर है खूब घोटाला हो रहे हैं कानून व्यवस्था चरमरा गई है बाकी ऐसी गर्मी में कौन जाता है घर से निकल कर जनता को देखने हाँ चुनावों के समय तो मजबूरी हो जाती है जाना ही पड़ता है पांच वर्ष के रोजी रोजगार की बात होती है !

   इसलिए ऐसे लोकतंत्र में किसी के भाषणों का क्या महत्त्व जहाँ अपनी कही हुई बातों पर अमल करने के लिए कोई बचन बद्ध नहीं होता है फिर क्यों अपना समय ऐसे वैसे बिताना बल्कि इससे तो अच्छा ये है कि समय का सदुपयोग करो और सो जाओ वैसे भी जो जाग रहे थे वही कौन सुन रहे थे वहाँ होने वाले भाषण !हाँ कुछ हंगामा वंगामा होता तो बात और ही थी कोई किसी को गाली दे देता तो सब ने सुनी होती और सबको याद होती किसी से पूछ लिया जाता एक भी मात्र पाई छूूटती नहीं सब पूरी पूरी बात बताते कि कैसे किसने कौन सी गाली  दी थी किन्तु ऐसे सामान्य नीरस भाषणों में किसने क्या कहा किसको याद रहता है और सुनता ही कौन है मीडिया वाले सुन लेते हैं उतना बहुत है चबा चबा कर मीडिया वाले खुद बताएँगे दिन बताएँगे रात बताएँगे समझा समझाकर बताएँगे फिर क्यों नींद ख़राब करना ! ऐसे अपनी सुविधानुशार जब चाहेंगे तब टी वी पर या नेट में देख सुन लेंगे कुछ जरूरी होगा तो !

     रही बात भाषण की किसी से पूछ लो जो जग रहे थे वही कहाँ सुन रहे थे हाँ कुछ प्रतिशत लोग ही बता पाएँगे कि आज संसद में क्या क्या बोला गया था बाकी तो जागते हुए भी सो रहे होंगे राहुल जी तो सोते हुए सो रहे थे कोई बात नहीं थकावट तो उतारनी ही चाहिए !

Wednesday, July 9, 2014

बधाई श्री अमितशाह जी को !

 भाजपा के अभिनव अध्यक्ष जी को  बहुत बहुत बधाई !

     किसको किसकी बधाई दी जाए मैंने सुना है कि उत्तर प्रदेश में अमित शाह जी ने भयंकर  परिश्रम किया है उस कारण से मोदी जी प्रधान मंत्री बन पाए इस नाते बधाई अमित शाह जी के लिए बनती है फिर एक बात आई कि आजकल पार्टी में मोदी जी की  ही चलती है और उन्होंने ही अमित शाह जी को पार्टी का अध्यक्ष बनवाया है तो मैंने सोचा कि ऐसे तो बधाई मोदी जी की बनती है तो मैंने सोचा मोदी जी को बधाई दे देते हैं तब तक विचार आया कि उस समय अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी थे उनकी कार्यकुशलता और सुन्दर प्रबंधन को इस जीत का श्रेय जाता है यदि ऐसा न हुआ होता तो शायद ऐसे सुखद अवसर नहीं मिल पाते तो बधाई तो राजनाथ सिंह जी की बनती है तब तक जोशी जी आडवाणी जी अटल जी जैसे सभी महान नेताओं के वट वृक्षीय विराट व्यक्तित्व की साधना की ओर दृष्टि गई तो चिंतन करते ही आँखें भर आईं और अधीर हो उठा मन पहले उन्हें नमन करने के लिए !

     हे अभिनव अध्यक्ष जी ! मुझे यह संवाद अत्यंत सुखद लगा और एक क्षण के लिए कौंध गया भाजपा की संघर्ष यात्रा का विराट परिदृश्य और अपने बयोवृद्ध नेतृत्व का  त्याग तपस्या और बलिदान का जीवन ! सबसे बड़ी पार्टी होकर उभरने के बाद भी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सत्ता से खदेड़े जाते हुए देखा गया है -कैसे भूल जाया जाए वह दिन जब -

 "रो चला था देश देख उनकी विनम्रता को

                       तेरह दिनों का ताज हँसके उतारा था "

    श्री अटल जी आडवाणी जी जैसे धवल चरित्र लोगों का उपहास आज भी वो लोग उड़ाते हैं जिनका चरित्र से कोई सम्बन्ध ही नहीं है फिर भी उन्होंने रथयात्रा का रथ तो रोक ही लिया था इसलिए वो कह भी सकते हैं इसीलिए वो लोगों के सामने खिल्ली उड़ाने के लिए कहते भी हैं किन्तु उन बेचारों को यह नहीं पता है कि आप आडवाणी जी की रथयात्रा रोकने में भले ही सफल हो गए हों किन्तु उन्हीं आडवाणी जी की मनोरथ यात्रा रोक नहीं पाए थे और उसी का परिणाम है कि आज उन्हीं अटल आडवाणी जी की अँगुली पकड़ कर राजनीति में चलाए गए भाजपा के राष्ट्र साधक लालकिले पर झंडा फहराने को तैयार हैं जिस भगवा ध्वज से भगवा विरोधियों को चिढ़ थी आज उसी भगवा की छाँव में पले बढ़े लोग संसद को प्रणाम करके संसद का गौरव बढ़ा रहे हैं जिन्हें भगवा से चिढ़ थी उनका कहीं अता  पता नहीं है अजीब सा सूखा  पड़ा है वहाँ !अजीब सा सन्नाटा है! बिलकुल महाभारत समाप्त होने के बाद जैसा !ऐसा सूखा पड़ा है जिसमें कहीं कहीं कोई बबूल वृक्ष विवश है अपना आस्तित्व बनाए रहने के लिए बाक़ी भगवा ही भगवा है अब 'जय श्री राम' के अमर उद्घोष को सांप्रदायिक कहकर कैसे दबाया जा सकेगा !

       इस प्रकार का सौभाग्य छोटे बड़े समस्त भाजपा साधकों  की जिस कठिन साधना से संभव हो सका है उन समस्त साधकों को नमन करते हुए बहुत बहुत बधाई भाजपा के अभिनव अध्यक्ष जी को !