Sunday, August 17, 2014

आखिर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर विवाद क्यों और क्यों मनाया जाए दो दिन यह व्रत !

    जन्माष्टमी व्रत पर आचार्यों की लापरवाही से सनातन धर्मी समाज बहुत भ्रमित है आखिर वो क्या करे इसमें उसका तो कोई वश भी नहीं है निर्णय तो आचार्यों को ही करना है !

    अनेकों मत मतान्तरों को समाहित करते हुए  निर्णय सिंधु, धर्मसिन्धु, व्रतराज एवं षोडश संस्कार विधौ आदि संग्रह ग्रंथों के आधार किसी भी ऐसे प्रश्न का निर्णय निकाल पाना काफी कठिन होता है क्योंकि उनमें प्रायः पारस्परिक अंतर तो होता ही है कई बार एक दूसरे के विरोधी वाक्य भी सामने आते हैं ऐसी स्थिति में अपने देश काल परिस्थिति के अनुशार उनका सार स्वरूप अपनी विद्या बुद्धि  एवं विचारों के आधार पर मैं लिख रहा हूँ ये हमारा हमारे अनुशार निश्चय किया गया शास्त्रीय सच है यदि किसी को हमारे किसी भी बचन पर आशंका हो तो वो निश्चिन्त होकर शंका समाधान कर सकता है और यदि किसी का कोई सुझाव हो तो उस पर भी विचार किया जा सकता है किन्तु इस सच को अब संदिग्ध नहीं रहने देना चाहिए क्योंकि अब तो समाज में भी इस बात के लिए प्रश्न उठने लगे हैं कि आखिर हमारे त्यौहार दो दो दिन क्यों होने लगे हैं ?इसलिए उन्हें उत्तर तो मिलना चाहिए !

     बंधुओ!हमारे यहाँ बहुत पहले से मान्यता है कि किसी का भी जन्म दिन तिथियों के आधार पर ही मनाया जाता है न कि नक्षत्रों और दिनों के आधार पर !तो फिर श्री कृष्ण जी के जन्म दिन में नक्षत्र और दिन को डालकर इसे विवादित क्यों बनाया जा रहा है !

     व्रतराज में स्पष्ट किया गया है कि जो लोग अष्टमी रोहिणी युक्त खोजते हैं उन्हें यह समझना होगा कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी तो अष्टमी तिथि में  ही होगी उसे कोई नवमी में कैसे कर देगा ! हाँ यदि उसमें रोहिणी नक्षत्र भी आ जाए तो उसका फल बढ़ जाएगा इसी प्रकार उसी दिन बुधवार भी आ जाए तो उसका फल तीन गुणा हो जाएगा किन्तु यह याद रहना चाहिए कि तीन गुणा फल के चक्कर में त्यौहार का मूल स्वरूप कहीं बिगड़ तो नहीं रहा है ! इसलिए यह सारा संयोग बनना अष्टमी को ही चाहिए क्योंकि अष्टमी तिथि मुख्य है बाक़ी अष्टमी के साथ जो मिल जाए सो ठीक है किन्तु फल के लिए त्यौहार के मूल स्वरूप को नहीं बिगड़ने देना चाहिए अर्थात अष्टमी का त्यौहार नवमी दशमी में नहीं मनाने लगना चाहिए !यदि नवमी को बुधवार हो और दशमी को रोहिणी नक्षत्र हो तब दिन को महत्त्व देने वाले नवमी को मनाएँगे और नक्षत्र निष्ठा वाले लोग दशमी को मनाएँगे जन्माष्टमी किन्तु उसे बोलेंगे जन्माष्टमी ही अरे !ऐसी क्या मजबूरी है उनकी वो सीधे क्यों नहीं रोहिणी को ही मान लेते हैं और जिस दिन रोहिणी नक्षत्र हो उसी दिन मनावें और वही बतावें ताकि ये अष्टमी भ्रम समाप्त हो अन्यथा बोलेंगे जन्माष्टमी और मनाएंगे दशमी को तो इससे संशय  तैयार होगा ही हर कोई सोचता है कि दशमी या नवमी  तिथि में जन्माष्टमी कैसी !  जैसे अबकी बार हो रहा है काशी के एक प्रमाणित पंचांग में रविवार को दिन में 10.41बजे तक सप्तमी तिथि है जबकि समाज में प्रचलित अन्य कई पंचांगों में सिद्धांत भेद से यह समय और कम अर्थात सूर्योदय के आस पास तक ही सप्तमी तिथि है स्वाभाविक है कि रविवार को यहीं से अष्टमी लगेगी और अगले दिन अर्थात सोमवार को सूर्योदय के आस पास ही अष्टमी तिथि समाप्त भी हो जाएगी !फिर सोमवार की जन्माष्टमी औचित्य आखिर रह क्या जाएगा ?जिस दिन अष्टमी ही नहीं होगी उस दिन जनमाष्टमी कैसी !

     काशी के पंचांग के अनुशार अष्टमी रविवार प्रातः 10.41बजे से सोमवार को प्रातः 10.08 बजे तक अष्टमी तिथि है अब ध्यान इस बात का देना है कि रविवार को प्रातः 10.41बजे से श्री कृष्ण जन्माष्टमी तो लग गई किन्तु आप अज्ञान वश आम दिनों की तरह ही सब कुछ खाते पीते और सारे आचार व्यवहार भी आम दिनों की तरह ही बनाए रहे, रविवार के दिन की सारी अष्टमी तथा रविवार की रात की सारी अष्टमी तो आपने व्रत विहीन होकर सब कुछ खाते पीते बिता दी और सोमवार  को प्रातः 10.08  जब नवमी लग गई तब आप व्रत करने बैठें केवल किसलिए रोहिणीयुक्ता अष्टमी होगी तो फल अधिक मिलेगा इसीलिए न किन्तु जब अष्टमी बीत ही गई तो फिर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रती होने का फल किस बात का ?अब तो आपने रोहिणी नक्षत्र का व्रत किया है वही आपको सोमवार की अर्द्ध रात्रि में मिलेगा अष्टमी तो न दिन में है न रात्रि में अब तो रोहिणी युक्त नवमी का व्रत होगा यही न !केवल फल अधिक मिलने के चक्कर में !

     दूसरी बात किसी के भी जन्म और मृत्यु के प्रकरण में तात्कालिक तिथि ही ग्रहण की जाती है क्योंकि जन्म दिन मनाते समय तिथि के अधिष्ठाता देवता की पूजा करने का विधान है इसी प्रकार से मृत्यु प्रकरण में `उसी तिथीश के आधार पर श्राद्ध और पिंड दान आदि किया जाता है अतएव जन्म और मृत्यु प्रकरण में तिथि टाली नहीं जा सकती !

       यही कारण है कि हमारे सम्पूर्ण त्यौहार तिथियों से बँधे हैं न कि नक्षत्रों और दिनों से जन्मदिन भी तिथियों  से ही जुड़े हैं श्री राम का प्राकट्य नवमी तिथि को हुआ था तो उसे आज भी श्री राम नवमी के रूप में ही मनाया जाता है जिस दिन दोपहर को नवमी होती है उसी दिन श्री राम नवमीमना  लेते हैं इसी प्रकार से श्री परशुराम जी का वैशाख शुक्ल तृतीया को मना लेते हैं होली रक्षाबंधन पूर्णिमा को और दीपावली अमावस्या  को मना लेते हैं हर श्राद्ध तिथियों के हिसाब से मनाते हैं दक्षिण भारत में श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि के आस पास श्रवण नक्षत्र आता है उसी दिन वो लोग ओणम मनाते हैं क्योंकि उन्होंने तिथि को नहीं अपितु नक्षत्र को पकड़ रखा है इसलिए वो नक्षत्र को ही मानते हैं । 

      बंधुओ ! जब  तिथि  नक्षत्र और वार  अर्थात  दिनों का आपसी ताल मेल निश्चित नहीं होता है तो कब कौन नक्षत्र पड़ेगा और कब कौन दिन होगा इसे प्रमुखता न देते हुए श्री कृष्ण जन्माष्टमी में भी अष्टमी को ही प्रमुखता  दी गई है 

      इसलिए अष्टमी को पकड़कर  चलना ही हमारे लिए उचित होगा अर्थात जब अर्द्धरात्रि में अष्टमी होगी तभी श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी हाँ ,यह सुखद संयोग होगा कि यदि उस अर्द्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र भी हो और उसी दिन बुधवार भी पड़ जाए यह अत्यंत सौभाग्य का विषय होगा किन्तु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि बुधवार और रोहिणी नक्षत्र को पकड़ने के लिए हम अष्टमी के आस्तित्व को ही भुला दें अन्यथा यदि हम इतना ही रोहिणी नक्षत्र को महत्व देते हैं तो जब अष्टमी के दो तीन दिन बाद भी रोहिणी नक्षत्र आता है तभी हमें मनानी चाहिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी आखिर एक तो पकड़ कर हमें चलना ही होगा और एक को ही पकड़ कर हम चल भी सकते हैं  सबको पकड़ कर चलने में समाज हमेंशा दिग्भ्रमित ही होता रहेगा |और अन्य धर्मों के लोगों को उपहास का अवसर मिलता रहेगा ।

         जो लोग ऐसा मानते हैं कि उदया तिथि में होगी तो वही सारे दिन और रात्रि में मानी जाएगी किन्तु यह विधा सही नहीं है इसका पहला कारण तो यह है कि जन्म दिन में उदया तिथि न चलकर अपितु तात्कालिकी तिथि मानी जाती है । दूसरी बात ज्योतिष और धर्म शास्त्र के सैद्धांतिक पक्ष से जुडी हुई है इसमें जो व्रत और त्यौहार दिन में मनाए जाते हैं उनमें सूर्योदय कालीन तिथि ग्रहण की जाती है किन्तु जो व्रत और  त्यौहार रात्रि  में मनाए जाते हैं उनमें चंद्रोदय कालीन तिथि ही उदय कालीन होगी इसलिए यही ग्रहण की जानी चाहिए । 

       विशेष परिस्थितियों में जैसे सूर्यास्त तक अष्टमी हो और उसी दिन बुधवार भी पड़ रहा हो और रोहिणी भी हो ऐसी परिस्थिति में तो तीन योग मिल जाने के कारण इस दिन का महत्त्व बन जाएगा क्योंकि रात्रि के प्रारंभिक काल अर्थात सूर्यास्त काल में तो अष्टमी रह ही चुकी होगी शेष दो योग रात्रि में भी होंगें इसलिए इस दिन किया जा सकता है श्री कृष्ण जन्माष्टमीव्रत । 

      इसमें एक और बात है कि अष्टमी में पारण नहीं किया जाना चाहिए तो इसे अपनी अपनी सुविधानुशार बचा जाना चाहिए जैसे अबकी बार तो सोमवार  को प्रातः 10.08  जब नवमी लग रही है तो नवमी में पारण आसानी से किया जा सकता है किन्तु जब ऐसा नहीं होता है तब भी पारण नवमीं में ही करना चाहिए क्योंकि अष्टमी व्रत का अर्थ ही है जन्म तिथि का व्रत फिर उसमें भोजन कैसा ?

         यहाँ एक बात और ध्यान रखी जानी चाहिए कि रात्रि बारह बजे ही कृष्ण जन्म का कोई विधान नहीं है क्योंकि घड़ियों में बजने वाला समय सरकारों के द्वारा स्वीकार किया गया एक मानक समय होता है इसलिए सरकारें चाहें तो इस समय को अपनी सुविधानुशार घटा बढ़ा भी सकती हैं किन्तु श्री कृष्ण का जन्म समय ऐसे किसी मानक समय के आधीन नहीं हो सकता !इसलिए इसकी दो विधाएँ स्वीकार की जा सकती हैं पहली तो रात्रिमान का आधा करके सूर्यास्त में जोड़कर अर्धरात्रि का समय निकाले दूसरा चंद्रोदय के समय को प्रमाण मान लें जो प्रायः पंचांगों में लिखा रहता है । आदि आदि ॥



   



  



Monday, August 4, 2014

जनसंसद से केजरीवाल की ललकार, हिम्मत है तो चुनाव कराए भाजपा-dainik jagaran

  किन्तु केजरीवाल जी चुनाव होना तो रूटीन प्रोसेस है इसमें हिम्मत की क्या बात है और रूटीन प्रोसेस के लिए आप ललकार क्यों रहे हैं ?आप ने दिल्ली के चुनावों ललकारा फिर बहुमत नहीं मिला फिर वाराणसी में मोदी जी को ललकारा किन्तु वहाँ से पराजित होकर  भाग आए अब दिल्ली में चुनाव कराने के लिए ललकार रहे हैं आखिर चुनाव जीतने के लिए क्या तैयारी है आपकी !इतने दिनों में क्या कोई सेवाकार्य किए हैं आपने या केवल कुछ झूठ साँच आरोप लगाए हैं उनका जनता पर असर क्या हुआ ये परखने के लिए चुनाव कराना चाहते हैं आप !अरे !केजरीवाल जी हो सके तो जनता की सेवा कीजिए भावनाओं से खेलना बंद कीजिए !