Friday, November 27, 2015

मैंने अपने जीवन पथ पर कुछ पौध लगाए थे।

मैंने अपने जीवन पथ पर कुछ  पौध लगाए थे।
   खून पसीने से सींचा था तब हरियाये  थे ॥
 आशाएँ थीं बहुत हृदय में बड़े बड़े होंगे प्यारे ।
फूल लगेंगे फल भी होंगे सुन्दर सी छाया वारे॥
 करीं कल्पनाएँ थीं कितने स्वप्न सजाए थे ।मैंने अपने ....!
 हरी भरी हुई डगर हमारी कितनी अच्छी हरियाली ।
सोचा मैं भी चलूँ एक दिन गिरी मेरे ऊपर डाली ॥
अपनी पीर पी गए तरु की चोट नहीं सह पाए थे ।मैंने अपने ....!
 गया एक दिन उपवन अपने फूल खिले सुन्दर सारे ।
रंग विरंगे तरह तरह के मन मोहक खुशबू वारे ॥ 
 झूम उठा मन पैर चुभे कंटक खुब रक्त बहाए थे ।मैंने अपने ....!
एक दिवस मैंने अपने उन प्रिय पौधों का फल पाया ।
 अति सुन्दर अपनापन पाकर मैंने उसको दुलराया ॥




पे चोट सही  छिपा ली मैंने तरु लख आँसू आथे