Thursday, December 7, 2017

आरक्षण लोभियों और नेताओं ने जातियाँ जिंदा कर रखी हैं दोष ब्राह्मणों को देते हैं !

जातियों का तड़का लगाए बिना भारत के चुनावों में स्वाद ही नहीं आता !चुनाव जीतने के लिए कसाई मंडियों के पशुओं की तरह हर चुनाव में दलितों अल्पसंख्यकों को पकड़कर खड़ा कर लेते हैं भ्रष्ट कामचोर नेतालोग चुनाव हो जाने के बाद फिर उन्हें चरने खाने के लिए छोड़ देते हैं इनका बंधुआ मजदूरों की तरह उपयोग करते चले आ रहे हैं नेता लोग !
उनकी गलत सिख मानकर आरक्षणभिक्षुकों ने भी अपनी गरीबत का ठीकरा ब्राह्मण आदि सवर्णों पर फोड़ रखा है वो ये नहीं देखते हैं कि सवर्ण उनका शोषण आखिर कर कैसे लेंगे !आजादी के बाद नेताओं ने उन्हें आजतक दिया क्या ?
राजनैतिक भिखारियों ने दलितों को किसी लायक नहीं छोड़ा उन्हें कभी कुछ दिया भी नहीं ऊपर से कामचोर अपाहिज गुण विहीन परिश्रम करके अपना विकास करने में अक्षम वर्ग सिद्ध कर दिया कि ये अपने बलपर अपनी तरक्की नहीं कर सकते !ऐसे बीमार लोग यदि विश्व के किसी अन्य देश में बसना चाहें तो वहाँ की सरकार ऐसे लोगों का बोझ क्यों ढोएगी वो तो जाते ही लट्ठ उठाएगी और पूँछेगी कि तुम्हारा शोषण जब सवर्ण करते रहे तब तुम्हारे पूर्वज सहते क्यों रहे वो तो सवर्णों की अपेक्षा संख्या में भी अधिक थे अपनी अकर्मण्यता का दोष सवर्णों पर मढ़ते लज्जा क्यों नहीं लगती है !
ऐसे कामचोर लोग अपने को इतना दबा कुचला सिद्ध करने पर आमादा हैं कि यदि उनके यहाँ बच्चा न हो तो उसके लिए भी वो सवर्णों को ही दोषी ठहरा देगें हालात इतने ज्यादा बिगड़ चुके हैं ! ऊपर से आग में घी डालने का काम कर रहे हैं कामचोर बदमाश भ्रष्ट नेता लोग !जो दलितों के हिस्से का हक़ खुद खा जाते हैं और उनके आक्रोश की बंदूक सवर्णों की ओर तान देते हैं !आजादी के बाद आज तक ऐसी ही कल्पित किस्से कहानियाँ गढ़ गढ़ कर दो दो कौड़ी के नेता अरबों खरबों की संपत्ति बना बैठे !किंतु दोषी सवर्णो को ही बताया करते हैं !इन बेईमानों को ये समझ में नहीं आता कि गरीब से गरीब ब्राह्मण भी तो बिना आरक्षण के परिश्रम पूर्वक संघर्ष पूर्वक अपना पेट पालन करते हैं वो तो किसी सरकार के सामने आता दाल चावल के लिए कटोरा लेकर भीख नहीं माँगते हैं !वो भूखे रह लेते हैं परेशान हो लेते हैं किंतु स्वाभिमान पूर्वक जीते हैं आरक्षण भिखारी कहलाना पसंद नहीं करते !सवर्णों का मानना है कि रईसत गरीबत तो भाग्य और कर्म का खेल है हर किसी को अच्छे बुरे दोनों प्रकार के दिन देखने पड़ते हैं किंतु उसके लिए आरक्षण भिखारियों की श्रेणी में खड़े होकर वे अपनी भावी पीढ़ियों का मनोबल नहीं गिराना चाहते जिससे उनका सम्मान बना और बचा रहता है !दलित भी उनसे कुछ सीखें और आरक्षण का बहिष्कार करें कर्म और संघर्ष का पथ चुनें ईश्वर स्वयं कृपा करेगा !ईश्वर किसी को जाति देखकर संपत्तियाँ नहीं देता है दलित भी चाहें तो जातीय जुमलों से बाहर निकलकर ईश्वरीय सिद्धांतों पर भरोसा करें अन्यथा नेताओं के द्वारा परोसी गई दुर्दशा भोगते रहें जिसके लिए सवर्णों को दोषी कभी नहीं ठहराया जा सकता !
वैसे भी जातियाँ ब्राह्मणों के कारण नहीं हैं जातियाँ तो आरक्षण भिखारियों ने जिन्दा कर रखी हैं जिन्हें कुछ करना धरना है नहीं अपनी असफलता का दोष दूसरों है दूसरे नेता लोग हैं जिन्होंने पिछले साठ थ से देश को केवल लूटा है उन्होंने देश और समाज के लिए कुछ भी नहीं किया है इसलिए चुनावों के समय उन्हें जातियों की जरूरत पड़ती है !जैसे भैंस का दूध निकालने के लिए लोग इंजेक्सन लगाते और दूध दुह लेते हैं उसी प्रकार से चुनाव जिताने के लिए नेता जातिवाद का इंजेक्सन लगाते और चुनाव जीत लेते हैं !इसमें ब्राह्मणों का दोष कहाँ हैं ये तो नेताओं और दलितों की आपसी साँठ गाँठ का नतीजा है !
ब्राह्मणों को गालियाँ दे देकर लोग कितने बड़े बड़े पदों पर पहुँच गए किंतु ब्राह्मणों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया !
विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए ब्राह्मणों को गालियाँ देकर लोग !ब्राह्मण गलत कभी नहीं रहे यही कारण है कि अंबेडकर साहब ने भी दूसरी शादी ब्राह्मण के यहाँ ही की थी और उनके शिक्षक तो ब्राह्मण थे ही !
अंबेडकर साहब ने जिनके कहने पर अपने नाम से 'सकपाल' टाइटिल हटाकर 'अंबेडकर' जोड़ा था वो उनके आत्मीय शिक्षक ब्राह्मण थे उनका नाम था महादेव अंबेडकर !इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर भी जन्म से ब्राह्मण थीं !
अम्बेडकर साहब से उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर जी न केवल बहुत अधिक स्नेह करते थे अपितु वैसे भी वे अंबेडकर साहब की मदद किया करते थे उनके आपसी संबंध अत्यंत मधुर थे यदि ऐसा न होता तो उन्होंने उनके कहने पर अपने नाम की टाइटिल क्यों बदल ली थी और यदि बदल भी ली थी तो बाद में फिर से सकपाल बन सकते थे किन्तु ये उनका आपसी स्नेह एवं उन ब्राह्मण शिक्षक महोदय के प्रति सम्मान ही था जो उन्होंने आजीवन निभाया !
इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी जन्म से ब्राह्मण थीं विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। बाद में सविता अम्बेडकर रूप में जानी गईं !वे सन 2002 तक जीवित रही वे अंतिम साँस तक बाबा साहब के आदर्शो के प्रति समर्पित रहीं !
ब्राह्मण विरोधी नेताओं ने उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझा !जबकि रमादेवी अम्बेडकर से जुड़े न जाने कितने स्मारक, पार्क इत्यादि हैं वो बाबा साहेब की पहली पत्नी थीं !
दलितों का शोषण सवर्णों ने बिलकुल नहीं किया किन्तु दलितों के बिछुड़ने के कारण कुछ और ही थे !
दलित लोग यदि वास्तव में अपनी उन्नति चाहते हैं तो ऐसे नेताओं को अपने दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो उन्हें खुश करने के लिए सवर्णों की निंदा करते हैं !दलित लोग भी अब अपना लालच छोड़कर नेताओं से देश एवं समाज के विकास का हिसाब माँगें !सीधे कह दें कि आप मेरी हमदर्दी मत कीजिए आपके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई आपका धंधा व्यापार क्या है और आप करते कब हैं !और यदि न बतावें तो सीधे पूछिए हमारा हक़ क्यों हड़पा है आपने !भले वो दलित नेता ही क्यों न हों !अपराध अपराध है उसमें जातिवाद नहीं चलता !
ब्राह्मणों ने सबके साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु जो सफल हुए उन्होंने सफलता का श्रेय अपनी योग्यता को दिया किंतु जो असफल हुए उन्होंने अपने अपमान भय से दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया !वैसे भी हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता की जिम्मेदारी हमेंशा दूसरों पर डालता है । नक़ल करते पकड़ा गया विद्यार्थी हमेंशा अपने बगल में बैठे विद्यार्थी पर ही दोष मढ़ता है बड़े बड़े अपराधों में पड़े गए लोगों को कहते सुना जाता है कि हमें गलत फँसाया गया है किंतु यदि इनकी बात सही मान ली जाए तो क्यों कोई दोषी माना जाएगा !
बंधुओ !ब्राह्मण यदि किसी की तरक्की में कभी बाधक बने होते तो आजादी के बाद आज तक इतना लंबा समय मिला जिसमें कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी तरक्की अपने परिश्रम से कर सकता था उसे आरक्षण की भी जरूरत नहीं पड़ती !आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी तरक्की बिना आरक्षण के अपने बल पर ही करते हैं वो अपने स्वाभिमान को गिरवी नहीं होने देते हैं|अपनेस्वाभिमान को सुरक्षित रखने वाले किसी भी जाति के व्यक्ति का अपमान करने का साहस करने में हर कोई डरता है कि ये अपने स्वाभिमान के लिए मर मिटेगा इसलिए इससे भिड़ना ठीक नहीं है । ऐसे लोगों की इज्जत भी होती है और माँ बहन बेटियाँ भी सुरक्षित बनी रहती हैं ।
जो लोग कहते हैं कि हम बिना आरक्षण के तरक्की ही नहीं कर सकते इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपने मुख से अपने को कमजोर मान लिया है और कमजोर लोगों का अपमान तो होता ही है इसमें जातियाँ कहाँ से आ गईं !कमजोर जाति की बात छोड़िये कमजोर भाई का अपमान उसका सगा भाई करने लगता है !कमजोर बेटे का पक्ष अधिकाँश माता नहीं लेते !कमजोर पति को पत्नी सम्मान नहीं देती है कमजोर पिता का सम्मान उसकी संतानें नहीं करती हैं ऐसे में स्वयं अपने ऊख से अपने को कमजोर कहने वाले लोग सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं बड़े बड़े पदों पर पहुँच कर भी लोग या तो अपने को कमजोर ही मन करते हैं या फिर सवर्णों को शत्रु मानने लगते हैं !
इसलिए सभी आरक्षण भोगियों को आपस में बैठकर चिंतन करना चाहिए तब उन्हें पता लगेगा कि उन्होंने आरक्षण से पाया कुछ ख़ास नहीं है किंतु भिखारी होने का ठप्पा जरूर लगवा लिया !साथ ही इससे देश का बहुत बड़ा नुक्सान ये हुआ है कि एक से एक नकारा कामचोर मक्कार नेता लोग आरक्षण भोगी जातियों का वोट लेने के लिए चुनावों के समय सवर्णों को दस पाँच दिन गालियाँ देते हैं और जीत लेते हैं चुनाव किंतु घर तो अपना ही भरते हैं दलितों के उत्थान करने वाले भी नेता ही क्यों न हों आज वो करोड़ों अरबों में खेल रहे हैं जबकि राजनीति में आते समय किराया भी जेब में नहीं था यही हाल हर जाति के नेता का है वो फुल टाइम राजनीति करते रहे कभी कोई धंधा व्यापार नहीं किया फिर भी करोड़ों अरबों पति हो गए ये धन दलितों के ही हिस्से का है ये धन गरीबों किसानों मजदूरों के हिस्से का है जो नताओं के घरों में जमा है ये लोग दसकों से यही खेल खेलते चले आ रहे हैं किंतु आरक्षण भोगियों की संख्या अधिक है उन्हें खुश करने के लिए ये पापी सवर्णों की निंदा किया करते हैं और संपत्ति का अम्बार लगाए हुए हैं ! अब जरूरत है कि दलित लोग ऐसे नेताओं को दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो सवर्णों की निंदा करके उन्हें खुश करने का प्रयास करें !















Sunday, November 5, 2017

प्रधानमंत्री जी !सरकार बदलने पर नेता बदल जाते हैं किंतु नियत नहीं बदलती है ! पार्टियाँ बदल जाती हैं पाप वही होता रहता है !

सरकार बदलने से नेताओं को सत्ता मिली जनता को क्या मिला  ?प्रधानमंत्री जी !

  •  आज भी 'घूस दो काम लो' के सिद्धांत पर चल रहे हैं सरकारी विभाग और व्यवस्था !जनता को हजार बार गर्ज हो तो उनसे काम लेने के लिए उन्हें घूस दे !अन्यथा घर बैठे !!
  •  सरकार कहती है टैक्स दो अन्यथा भुगतोगे !जनता डरेगी तो टैक्स देगी ही !
  •  डाकू कहते हैं जो कुछ है सो सब रख दो अन्यथा गोली मार देंगे !जनता डरेगी तो देगी ही !
  •   बलात्कारी कहते हैं कि बलात्कार तो हम करेंगे ही अन्यथा जान से मार देंगे तेज़ाब फ़ेंक देंगे !
  •  जनप्रतिनिधि कहते हैं ये साले सब बड़े बदमाश हैं घूस लिए बिना करेंगे नहीं तुम भले आदमी हो ले दे कर अपना काम निकाल लो !मेरे यहाँ से चिट्ठी लेते जाना मानेगा तो ठीक अन्यथा ... !
  • सरकार उनके सैलरी तो बढ़ाए जा रही है आत्म हत्या करते किसानों के लिए दस दस रूपए के चेक !  
    प्रधानमंत्री जी !यदि जनता के प्रति थोड़ी भी हमदर्दी आपके मन में है तो राजनीति में सुशिक्षित योग्य अनुभवी चरित्रवान और ईमानदार लोगों को घुसने भर दीजिए वे जीवित लोग ऐसे बेईमानों से स्वयं निपट लेंगे और बदल देंगे देश की दशा दिशा !अन्यथा राजनैतिक दलों के गंदे मालिक लोग देश की राजनीति  को स्वच्छ होने ही नहीं देते हैं क्योंकि इससे उनकी अपनी भी कमाई बंद होती है उनके अपने काळा कारनामे खुलने का भय रहता है !

   नेता लोग केवल उनकी सुनते हैं जो उन्हें चुनावी टिकट दिलवा सकते हों  या कटवा सकते हों अथवा जो उन्हें चुनाव जितवा सकते हों या हरवा सकते हों!इसके अलावा जनता को तो जानवर पहले वाले भी समझते थे  और अभी वाले भी !2014 के चुनावों में मैंने भी जिनके लिए प्रतिदिन चौदह चौदह घंटे काम किया आज मुझे भी ठेस लगी है !
     जो नेता लोग जनता से फोन पर बात नहीं करते मिलने का समय नहीं देते पत्रों का उत्तर नहीं देते उनसे काम करने की उम्मींद जनता कैसे करे ?कार्यकर्ताओं से मिलने में मुख चुराने वाले नेता जनता से क्यों मिलेंगे ?
    काम न वो करते थे न ये करते हैं अधिकारी कर्मचारी न उनकी सिफारिशें मानते थे न इनकी मानते हैं !घूस देकर काम तब भी करवाया जाता था और अब भी घूस देकर ही काम हो पाता है !
     घूस नहीं तो काम नहीं !घूस दो तो सरकारी जमीनों पर भी कोठी बना लो और घूस न दो तो नाली छज्जे चबूतरे भी तोड़ जाते हैं सरकारी घूसखोर लोग !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है !
    रेड़ी पटरी वाले घूस न दें तो सब्जी भी नहीं बेच सकते और घूस देकर तो बम भी बना लेते हैं आतंकवादी लोग !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
   घूस के बलपर होते हैं अवैध निर्माण घूस देकर ही उन्हें बचाया जाता है यदि भ्रष्टाचार नहीं है तो क्यों नहीं हटाए जाते हैं अवैध निर्माण !
    अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा घूस लेकर करवाए गए अवैध निर्माण या अवैध कब्जे खोजेगा कौन!अवैध निर्माण के नाम पर ये घूस खोर लोग उन्हीं के घर तोड़ते हैं  जिन्होंने इन्हें घूस नहीं दी होती है !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    नेतालोग अवैध कालोनियों में पहले मद्दे सस्ते मकान लेते हैं जमीनें खरीदते हैं या अवैध निर्माण करवाते हैं अवैध निर्माण वाले लोगों से घूस लेते हैं फिर अवैध जमीनों और निर्माणों को नियमित करने के लिए शोर मचाते हैं !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    15 मीटर तक ऊँची बिल्डिंगें बनने की अनुमति थी तो उससे ऊँची बिल्डिंगें बनने  क्यों दी गईं उन्हें रोकने के लिए जिम्मेदार लोग उनसे घूस लेते रहे और सरकार से सैलरी किस बात की !ये ऊंचाई निश्चित क्यों की गई और की गई तो  इससे बढ़ने क्यों दी गई !ऐसे अधिकारी कर्मचारी रखे क्यों गए और रखे गए तो लापरवाही और घूस खोरी के लिए उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    कुल मिलाकर जैसा पहली सरकारों में था वही अभी भी होता चला आ रहा है ईमानदारी की केवल बातें बातें हैं बस काम की शैली वही है पहले वाली !
    नेता ईमानदार और कर्मठ नहीं होंगे तो यही होगा !चुनावी टिकट देते समय शैक्षणिक योग्यता अनुभव चरित्र ईमानदारी आदि को न वो महत्त्व देते थे न अब दिया जाता है!चुनाव जीतने के लिए झूठे वायदे वे भी करते थे अब भी किए जाते हैं !चुनावी टिकटें अपनों को या पैसे वालों को वो भी देते थे ये भी देते हैं !जनता की बात वो भी नहीं सुनते थे अब भी नहीं सुनी जाती हैं परिचित नेता भी फोन पर न बात करने के लिए झूठ बोलवा देते हैं घर जाने पर पता लगता फोन करके आओ या सुबह 9- 10 आओ !उस समय वो काम कम अपनी व्यस्तता बताने एवं अपने ओहदे को समझाने  में अधिक लगाते हैं !

   चुनाव जीतने या कोई बड़ा पद पाने के बाद नेता इतने अधिक जहरीले हो जाते हैं कि इनके उठने  बैठने  बोलने चालने आदि के ढंगसे तमीज गायब हो चुकी होती है सत्ता में रह चुके नेताओं की नकल करते करते ये वैसे ही हो जाते हैं जिनके जिन आचरणों की निंदा करते करते ये सत्ता में आए थे अब जनता ने जैसे उन्हें धक्का दिया था यदि ये न सुधरे तो अब इन्हें देगी !    मंत्री हो और घमंडी न हो, नेता हो और काम करे ऐसा कभी हो सकता है क्या ?मंत्री बदलते रहने से ये बात ढकी रहती है बहाना बनाने का मौका मिलता रहता है !
    मंत्री सांसद विधायक आदि बनने के बाद घमंडी सभी हो जाते हैं ! काम करना न आता है और न ही करना चाहते हैं संवेदनाएँ मर सी जाती हैं !मंत्री बदल बदल कर सरकार अपना मुख साफ दिखाने की कोशिश किया करती है किंतु जनप्रतिनिधियों के आचरणों के दाग धब्बे तो आ ही जाते हैं |काश !संयमशील होते अपने भी देशभक्त नेता लोग !!!
  विधायकों सांसदों मंत्रियों आदि को जब होने लगता है सत्ता का नशा !तब ऐसे स्वयंभू भगवानों को इंसान बना देती है जनता !इसलिए सत्ता की ऐसी नशाखोरी से बचने में ही हर किसी की भलाई है !
    राजनेता हों या राजनैतिक दल ये स्वयं में न अच्छे होते हैं न बुरे !सत्ता पाते ही पागल हो जाते हैं बस !इनकी सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि जिसे सत्ता मिलती है वो घमंडी हो जाता है बिना सत्ता के सब सुंदर शालीन मनुष्यता पसंद गाँवों गरीबों किसानों मजदूरों के हमदर्द दिखते हैं !
     नेता जब सरकार में रहते हैं वो स्वार्थी घमंडी आदि दुर्गुणों से भरपूर हो जाते हैं और सत्ता जाते ही फिर इंसान के इंसान ! भूल जाता है देवता बनना !तब याद आने लगते हैं जनता कार्यकर्ता गाँव गरीब किसान आदि सब !इसलिए दोष राजनेताओं का नहीं अपितु दोष तो सत्ता का होता है इसीलिए सत्ता छीनकर अपने को भगवान् समझने वाले नेताओं को इंसान बना देना जानती है जनता !
         विरोधी पार्टियां जब सरकार  थीं तब उनसे बड़ी शिकायत थी उनके नेताओं की मैं निंदा किया करता था किंतु जब अपनी पार्टी सत्ता में आ गई तो समझ में आ गया कि वो नेता सही और मैं ही गलत था !मैं उन बेचारों को समझ नहीं पाया कि इतने मासूम होते हैं वे बेचारे !सत्ता का नशा होता ही ऐसा है कि बड़े बड़े ज्ञानियों गुणियों को भी अंधा बना देता है | सच्चाई यही है कि सत्ता में पहुँचने के बाद प्रायः नेता लोग होश में नहीं रह जाते !जो नेता पहले कभी आपके साथ  बात बिना बात हँसते हाथ मिलाते गले मिलते रहे थे वे सत्ता में आने के बाद उनसे वैसी उम्मींद नहीं की जानी चाहिए ! 
      सत्ता में सम्मिलित नेता कब किसका किस बात पर कितना अपमान कर दें पता ही नहीं चलता !सत्ता में रहकर  उठने बैठने बोलने मिलने जुलने का शिष्टाचार तो बिल्कुल समाप्त हो ही जाता है! अपने दरवाजे मिलने आए हर व्यक्ति को बिना कुछ दिए भी भिखारी समझने लगते हैं सत्ता में आ जाने वाले  सत्तामूर्च्छित नेतालोग ! 
    मेरा निजी अनुभव है कि कोमल भावनाओं वाले अधिक संवेदन शील भावुक लोगों को अपने पूर्व परिचित नेताओं के पास मिलने कभी नहीं जाना चाहिए !जरूरी जाना पड़े भी तो अपमान,अप्रिय व्यवहार उपेक्षा आदि सहने के लिए तैयार होकर जाना चाहिए अन्यथा ये 'नमस्ते'चोर लोग बेइज्जती करते समय इस बात की परवाह नहीं करते कि आपसे मेरा पुराना  सम्बन्ध कैसा था उसे वे चतुर लोग भूलने में ही भलाई समझते हैं !
     सत्तापक्ष के सरकारों में सम्मिलित नेताओं के अप्रिय एवं उपेक्षा पूर्ण व्यवहारों से आहत कार्यकर्ता लोगों की समस्याओं के समाधानों एवं उनकी शिकायतों के निवारण के लिए अक्सर सत्तासीन नेताओं की कुंडी खटखटाना मैं अपना कर्तव्य समझता रहा हूँ अभी भी कुछ ऐसा ही करना पड़ा !कुछ कार्यकर्ताओं की आलोचना से आहत होकर उनकी बात ठीक जगह पहुँचाने के उद्देश्य से मैंने सरकार से संबंधित कुछ जगहों पर और कुछ नेताओं से संपर्क करने के प्रयास किए किंतु परिणाम वास्तव में दुखद थे !सरकारें लोकतान्त्रिक पद्धति से काम पैतृक व्यवसाय की तरह अधिक संचालित की जा रही हैं सेवा भाव तो खोजने पर भी नहीं मिलता शक और शंका की दृष्टि से हर किसी को देखा जा रहा है न जाने क्यों ?ऐसी स्थिति से मैं स्वयं आहत हुआ कि कार्यकर्ता को जो संगठन अपना नहीं समझते कार्यकर्ता ही उन्हें अपना क्यों समझे और कहाँ तक अपनी सेवा भावना की परीक्षा देता रहे !कैसी दुविधा है सच्चे कार्यकर्त्ता के सामने !आलोचना की नहीं जाती उपेक्षा सही नहीं जाती !ऐसा असमंजस !!
    मैं अपनी सनातन हिंदू विचार धारा के समर्थक संगठन के विविध आयामों से सन  1986 से जुड़ा चला आ रहा हूँ !कभी किसी दायित्व की परवाह नहीं की सेवाकार्य समझ कर करते चले गए विचार धारा कभी नहीं बदली !धार्मिक संगठनों के सभी सामाजिक कार्यकर्ता लोग धार्मिक नैतिक आदि मधुर बात व्यवहार करने के लिए जाने जाते रहे हैं एक परिवार की तरह सबका सबसे कितना अपनापन हुआ करता था एक दूसरे के सुख दुःख में लोग बड़े छोटे का भाव भूलकर खड़े हो जाया करते थे कितना उत्साह बर्द्धन किया करते थे वे ! ऐसे श्रेष्ठ संगठन के लिए अपनी क्षमता के अनुशार कोई दायित्व लिए बिना समर्पित रहा हूँ अयोध्या बनारस कानपुर से लेकर दिल्ली तक के जितने भी लोग मुझे जानते हैं वो इसी रूप में जानते हैं ! किसी को संगठन परिवार के प्रति मेरे समर्पण पर संशय नहीं है यहाँ तक कि सोशल साइटों पर मेरे साथ जुड़े हजारों लोग भी मुझे इसी रूप में मानते हैं !
     मेरी तीन फेस बुक और 9 ब्लॉगों पर कुछ हजार आर्टिकल विभिन्न विचारों पर प्रकाशित हैं जो  संगठनात्मक विचारधारा एवं समाज और संगठन की भलाई के लिए सामाजिक सुधार एवं भ्रष्टाचार समाप्ति के लिए विपक्षियों को तर्कयुक्त जवाब आदि से संबंधित हैं | इस प्रकार से संगठन और पार्टी के लिए जो कुछ अच्छा से अच्छा कर सकते थे वो करने का प्रयास मैंने भी प्रभावी रूप से किया है | संगठन के कार्यों में भी सहभागी रहता रहा हूँ | यहाँ तक कि 2013 से चुनावों के लिए एक एक दिन में 14 -14 घंटे लगातार सोशल साइटों पर समर्पित भावना से संगठन और पार्टी के लिए काम किया है |ये क्रम 2 वर्ष लगतार चलता रहा जो अभी कुछ महीने पहले तक चला अब भी जारी है किन्तु निराशा होने के कारण अब  उतना उत्साह नहीं रहा यद्यपि निष्ठा वही है !
      सरकार बने पिछले तीन वर्ष हो गए सरकार के अनेकों मंत्रालयों सांसदों एवं पार्टी पदाधिकारियों के पास मिलने का समय स्वयं मैं माँग चुका हूँ सैकड़ों पत्र डाल चुका हूँ न समय मिला न पत्रों का उत्तर !यहाँ तक कि निजी तौर पर PM साहब और उनके PA श्री ओम प्रकाश जी के भी संपर्क में भी कभी मैं रह चुका हूँ तब माननीय मोदी जी ने मेरी मदद करने के लिए किसी को कभी फोन भी कर दिया करते थे किंतु जब से सरकार बनी तब से तो वे भी अतिव्यस्त हैं ईश्वर करे उनकी भी व्यस्तता बरकरार रहे ... !
       सरकार बनने के बाद ऊपर से नीचे तक सबको न जाने क्या हुआ जा रहा है कि वो विचारधारा वो सहजता वो सत्यवादिता वो सेवाभावना वो जिम्मेदारी के भाव न जाने क्यों छूटते जा रहे हैं |उन्हें  लगता है जैसे केवल उनके अपने और अपनों  के लिए सरकार बनवाई गई थी बाकी सबको आश्वासन लेटर आदि देकर पीछा छुड़ाने में ही लगे हैं विधायक संसद मंत्री आदि लोग | 
     पार्टी परिवार में अपनों के साथ इतना उदासीन वर्ताव किया जा रहा है ऊपर से नीचे तक ! पार्टी पदाधिकारी हों या सरकार में सम्मिलित लोग !इनके स्वभाव पहले तो ऐसे तो नहीं थे !माना कि व्यस्तता बढ़ी है किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि सेवा भावना से जुड़े पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं की बात सुनने के लिए किसी की कोई जिम्मेदारी और  जवाबदेही  ही न समझी जाए ! समाज के जो लोग हमारे संपर्क में रहे हैं आज वो हमारे पास काम के लिए संपर्क करते हैं मैं उनके नैतिक काम भी करवा पाने की स्थिति में नहीं हूँ | 
     पार्टी की उदासीनता के शिकार ऐसे बहुत लोग होंगे !स्वयं मुझे अपने जरूरी कामों के लिए कई बार घूस माँगने वाले अफसरों का सामना पड़ता  है वो साफ कहते हैं कि ये पैसा ऊपर तक जाता है ! ऐसी परिस्थिति में मैं अपनी पार्टी और सरकार के अच्छे कामों का प्रचार प्रसार कैसे करूँ और सरकार के किन गुणों की प्रशंसा करूँ ?कहाँ तक सूखा सूखा फीलगुड करूँ !
     इतना ही नहीं वैदिकविज्ञान के द्वारा मनोरोग चिकित्सा मौसम और भूकंप जैसे रहस्यमय विषयों पर मैंने सार्थक शोधकार्य किया है उससे इन विषयों में चल रहे शोध कार्यों को बड़ी मदद मिल सकती है किंतु इन विभागों से जुड़े लोग मेरी बात इसलिए सुनने के लिए तैयार इसलिए नहीं हैं क्योंकि वो वैदिक विज्ञान को विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं हैं जबकि सरकार वैदिक विज्ञान एवं भारत की प्राचीन संस्कृति का प्रचार प्रसार करने के लिए पूँछ उठाए घूम रही है बड़े बड़े दावे ठोंक रही है किंतु वे वैदिकशोध को शोध लायक विषय ही नहीं मानते और उनकी शिकायत की किससे  जाए और अपना विषय रखा किसके सामने जाए !|मुझे अपने जरूरी शोधकार्य  को और आगे बढ़ाने के लिए सरकार से मदद चाहिए किंतु मदद तो दूर सरकार या पार्टी में कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं तीन वर्ष हो गए भटकते भटकते !वैदिक विषयों पर पूर्ववर्ती सरकार की उदासीनता तो समझ में आती थी किंतु वर्तमान अपनी सरकार तो संस्कृति के लिए समर्पित है उसमें भी उपेक्षा !आश्चर्य !!सत्ता का सुख जो न करा दे सो थोड़ा !!
पहले हमारी विचारधारा से संबंधित सभी लोग जिन बातों विचारों व्यवहारों के लिए सत्तारूढ़ अन्य दलों और उनके नेताओं की आलोचना किया करते थे उन्हें कहा करते थे कि वे सत्ता मूर्छित लोग हैं !किंतुआज... !
     कई बार ऐसा लगता है कि क्या ये दोष उस समय उन पार्टियों और नेताओं का नहीं था जिन्हें हम सभी लोग गलत समझकर जिनकी निंदा करते करते जिन्हें सत्ता से बाहर धकेला गया !वस्तुतः ये दोष सत्ता देवी का ही है जो भी सत्ता में आएगा वो ऐसा हो ही जाता है !किंतु अटल जी की सरकार में विभन्न मंत्रियों और सांसदों के यहाँ मैं भी मिलने गया सबके यहाँ न केवल सहजता दिखती थी अपितु होती भी थी बातें सुनी भी जाती थीं और मानी भी जाती थीं जवाब भी दिए जाते थे !ये राजनीति है इसमें अपने मन की बात सुनाने से अधिक जनता के मन की बात पता लगानी होती है !क्योंकि अपने मन की बात तो प्रायोजित हो सकती है जबकि जनता के मन की बात तो वास्तविकता है जिसे वो जी रही है !जो अपने भोजनालय के लिए अन्न नहीं जुटा पाते वे शौचालय बनाने की व्यवस्था कैसे कर लें और कर भी लें तो क्या भोजनालय से अधिक आवश्यक  है शौचालय !स्वच्छता अभियान केवल झाड़ू बुहारू कर लेने से सफल हो जाएगा क्या ?महोदय जनता की भी तो  सुनो !साफ सफाई से रहना जनता को भी आता है गंदगी में कोई नहीं रहना चाहता किंतु आर्थिक अभाव के कारण जिनके जीवन में सब कुछ अव्यस्थित हो वो केवल झाड़ू लगाकर कैसे स्वच्छ भारत का निर्माण करलें !घर भर के कपड़ों से बदबू आती हो विस्तर गंध दे रहे हों छतों से पानी टपक रहा हो !दरवाजे पर जानवरों की खूंदन हो ऐसे में कैसे हो स्वच्छ भारत का निर्माण !झाड़ू तो केवल नेता लगा सकते हैं क्योंकि उन्हें लगानी नहीं अपितु झाड़ू पकड़कर दिखानी होती है किंतु जिन्हें वास्तव में लगानी होती है वो दिखाना नहीं चाहते वैसे भी दिखावें किसको और देखेगा कौन !वैसे भी उनका तो प्रतिदिन का काम ही है झाड़ू लगाना !ऋषियों का भारत केवल स्वच्छ ही नहीं अपितु पवित्र भी था वो पवित्रता आज न जाने क्यों घटी है जिसे वापस  लाने की आवश्यकता है !
       यही PMO था !अटल जी से मिलने के लिए मैंने समय माँगा था तो बाकायदा हमारे नाम पत्र भेजकर  हमें यह  कहकर मना कर दिया था कि अभी वे व्यस्त हैं किंतु  उसी दिन शाम 8 बजे मैंने पुनः फ़ोन किया और कल का ही  समय लेने  की जिद कर दी ये  उनके लिए कितना कठिन रहा होगा कि रात 12 बजे PMO से फोन आया कि आप कल 13. 40 पर पहुँच जाओ !मैं गया और वे मिले ! 
      तब तो माननीय जोशी जी ,श्री अडवाणी जी , श्रद्धेय रज्जू भैया जी ,माननीय अशोक सिंघल जी के पास भी पहुँच कर अपनी बात आसानी से कही जा सकती थी अब तो पूरी सरकार और संगठन बिल्कुल पैक है आखिर क्यों ? सामान्य कार्यकर्ता को भी समझाइए सबसे अधिक उसी को जूझना पड़ता है जनता से !
     अब तो न किसी की कोई सुनेगा न उनके समाधान के विषय में कुछ बोलेगा और न कुछ देखेगा !केवल सरकार दौड़े जा रही है क्यों ?आखिर क्या किया जाए ऐसी मैराथनों  का !सरकार है तब उसकी उपेक्षा सरकार न हो तब तो उपेक्षा होती ही है ! 
     सरकार बनाने के लिए पार्टी के द्वारा चलाए जा रहे प्रयासों में एक एक कार्यकर्ता अपनी संपूर्ण सामर्थ्य से समर्पित रहा है फिर भी यदि सरकार उसके लिए नहीं है तो वो सरकार के लिए क्यों होगा !ऐसे भोजन बैठक और विश्राम के नाम पर बहुमूल्य स्वाँसें ब्यर्थ में क्यों नष्ट करेगा !
   इसलिए पार्टी और सरकार के जिम्मेदार शीर्ष लोगों से निवेदन है कि यदि संभव हो तो कार्यकर्ता की ओर भी देंखें उसे भी  समय दें कुछ उसके भी काम करें क्योंकि कार्यकर्ता उचित अनुचित बिचार किए बिना पार्टी और सरकार के साथ खड़ा होता है | फिर भी आप कार्यकर्ता का अनुचित काम मत कीजिए उचित तो कीजिए अन्यथा जिम्मेदारी से उत्तर तो दीजिए कारण और निवारण के उपाय तो बताइए !कोई  बताइए जहाँ कार्यकर्त्ता भी पहुँच कर अपनी बात रख सके और उसे आम जनता से कुछ तो अधिक अपनापन मिले !
    विशेष -मेरा उद्देश्य सरकार की आलोचना करना कतई नहीं हैं किंतु आम आदमी हो या कार्यकर्ता उसकी बात उठाना भी अपना धर्म है !सैद्धांतिक रूप से इसी विचार धारा से जुड़े होने के कारण जो बात मुझे निजी तौर पर रखनी चाहिए थी वो सार्वजनिक तौर पर यहाँ रखनी पड़ी क्योंकि वो लोग हमें विचार भी देने लायक नहीं समझते ऐसी जगह जुड़ना या न जुड़ना बराबर सा लगता था इसीलिए तटस्थ भूमिका मजबूरी में अपनानी पड़ी अन्यथा मेरे जैसे लोग भी पार्टी संगठन आदि में कहीं कुछ अपना योगदान दे सकते थे लेकिन मालिक लोग ऐसा करना उचित नहीं समझ रहे होंगे होगा कोई कारण !वो लोग हमारे जैसे लोगों को किसी लायक नहीं समझते इसलिए अपने विचार रखने के लिए कोई न कोई मंच तलाशना पड़ा !आज भी सरकार में वा संगठन में बैठे बड़े लोगों से निवेदन है कि यदि सरकार कोई समाधान निकालकर कोई ऐसा मंच संस्था या फोन नंबर उपलब्ध कराती है जो जिम्मेदारी पूर्वक आम कार्यकर्ता के साथ वर्ताव कर सके या आम समाज से प्रतिभाओं को प्रेरित करके राजनैतिक क्षेत्र की ओर रुझान पैदा कर सके !ये देश और समाज के हित में होगा !जिससे संपूर्ण रूप से नैतिक कार्यों में कार्यकर्ता और आम जनता की मदद की जा सके और अनैतिक कार्यों के लिए साफ साफ मना किया जा सके तो मुझे ख़ुशी होगी और मैं सम्पूर्ण निष्ठा के साथ उस संपर्क सूत्र का प्रचार प्रसार करके सरकार की छवि को अधिक से अधिक स्वच्छ और बेदाग़ बनाने के लिए प्रचार प्रसार करने की अपनी प्रतिज्ञा से संकल्पबद्ध हूँ वो करता रहूँगा !
     

संस्थापकः-  राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान seemore....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2014/06/blog-post_3979.html
हमारी शिक्षा -
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता ,उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी(काशी हिंदू विश्वविद्यालय) 
विशेष योग्यताः- वेदपुराणज्योतिषरामायणों तथा समस्त प्राचीन वाङ्मय एवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
हमारेलिखी हुई पुस्तकें-
प्रकाशितः- पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
   कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम (एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादनसह-संपादनस्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशित साहित्यः- श्री शिव सुंदरकांडश्री हनुमत सुंदरकांड,
संक्षिप्त निर्णय सिंधुज्योतिषायुर्वेदश्री रुद्राष्टाध्यायीवीरांगना द्रोपदीदुलारी राधिकाऊधौ-गोपी संवादश्रीमद्भगवद् गीता‘ काव्यानुवाद
रुचिकर विषयः- प्रवचनभाषणमंचसंचालनकाव्य लेखनकाव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्मतिथिः 9.10.1965
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव - इंदलपुरपो.- संभलपुरजि.- कानपुर,उत्तर प्रदेश
तत्कालीन पता :
के -71, छाछी बिल्डिंग चौक,
कृष्णा नगरदिल्ली-110051
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आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं श्री श्याम बिहारी मिश्र जी के साथ 
आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी                श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
श्रीमती सुषमा स्वराज जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
        श्री मदनलाल खुराना जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी




                                          



                            
                                                                                                                                                                                                                                                     

    

Tuesday, October 31, 2017

दलितों का शोषण कब किसने कहाँ कैसे किया और दलितों ने सहा क्यों होगा उनकी तो संख्या भी अधिक थी !

   दलित शब्द का अर्थ क्या होता है मनुष्यों के किसी भी वर्ग को दलित कहने का अभिप्राय क्या है ?गरीब होना अलग बात है और दलित होना अलग !आरक्षण गरीबों को मदद पहुँचाने का प्रयास हो भी सकता है किंतु इससे दलितों की मदद कैसे की जा सकती है इस परिश्रमी वर्ग को दलित क्यों कहा जाए ? 
   इतने वर्षों के आरक्षण से विकास हुआ क्यों नहीं ?चूँकि आरक्षण किसी समस्या का समाधान है ही नहीं !बोतल से दूध पिलाकर किसी को जीवित भले ही रख लिया जाए किंतु पहलवान नहीं बनाया जा सकता !जातिगत आरक्षण वस्तुतः अकर्मण्य सत्ता लोभी नेताओं की भारतवर्ष को प्रतिभाविहीन बनाने की साजिश है जिससे वे चुनाव जीतते रहें ! 
किसी के घर में बच्चा न हो रहा हो तो उसके लिए पड़ोसी को दोषी ठहरा दिया जाएगा क्या ?और पड़ोसी का इलाज करा देने से उसके यहाँ बच्चा कैसे हो जाएगा ! इसी प्रकार दलितों का विकास न होने के लिए सवर्ण दोषी क्यों ?इतने वर्षों से आरक्षण मिलने पर भी दलितों का विकास नहीं हुआये इस बात का प्रमाण है कि आरक्षण किसी समस्या का समाधान नहीं है ! सवर्णों की लड़कियों को कोई कैसे बाध्य कर सकता है कि वे दलितों के साथ विवाह करें वो बकड़ियाँ तो नहीं हैं जो किसी के गले से बाँध दी जाएँ !सवर्ण लड़कियों को भी अपना भविष्य चुनने का अधिकार है वे आरक्षण माँगने वालों  से विवाह करना ही नहीं चाहतीं !माँगने मूँगने वाला ब्राह्मण ही क्यों न हो उससे भी लड़कियाँ विवाह नहीं करना चाहती हैं अविकसित ब्राह्मणों के लड़के भी कुँआरे बैठे रहते हैं !ऐसी परिस्थिति में कोई लड़की किसी ऐसे कायर व्यक्ति से विवाह क्यों कर ले जिसे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा ही न हो अपने विकास के लिए स्वयं क्यों न प्रयास किया जाए !सवर्ण लोग भी गरीब होते हैं बिना किसी आरक्षण के अपना विकास करके दिखा देते हैं इसी लिए उनका सम्मान बढ़ता है !स्वाभिमानी दलित वर्ग के लोगों में भी बहुत ऐसे कर्मठ परिश्रमी स्वाभिमानी चरित्रवान ईमानदार लोग हैं जिन्होंने अपने परिश्रम के बल पर अपना उच्चतम विकास किया है ऐसे कई लोग ऊँचे ऊँचे पदों तक भी पहुँचे हैं उन्हें तो कोई सवर्ण रोकने नहीं आया !बाकी लोग क्यों सवर्णों को बदनाम करते घूमते हैं ! 

 दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के  किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल  बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता हैइस प्रकार दलित शब्द के टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ  किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है।  

     राजनैतिक साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि  करके ही कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन जिन प्रकारों का वर्णन है वो सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का दोष  कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ  तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेव कहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि  में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।हमारा तो भाव है कि

          सीय राम मय सब जग जानी । 

          करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।

     मैं तो ईश्वर का स्वरूप समझकर सबको प्रणाम करता हूँ  और अपने हिस्से का प्रायश्चित्त भी करने को न केवल तैयार हूँ बल्कि दोष का पता लगे बिना ही मैंने इस जीवन को धार पर लगाकर प्रायश्चित्त किया भी है।यदि हमारे पूर्वजों के कारण समाज का कोई वर्ग अपने को बेरोजगार,गरीब या धनहीन समझता है तो मैं अपने हिस्से का जो भी मुनासिब प्रायश्चित्त हो आगे भी करना चाहता हूँ ।मेरी सविनय यह ईच्छा भी है कि मुझे इस आरोप के लिए जो भी उचित दंड हो मिलना चाहिए इसके बाद हम अपने परिजनों को इस आरोप से अलग करना चाहते हैं ।साथ ही हमारा यह भी निवेदन है कि हम अपने विषय में जो जानकारियाँ  दे रहे हैं उनकी सच्चाई के लिए किसी भी एजेंसी से जाँच कराने को तैयार हैं । 

  मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी शोषण क्यों किया?

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी भी  सरकारी सेवा के लिए कभी कोई आवेदन नहीं करूँगा।मुझे गर्व है कि ईश्वर कृपा से मैं आज तक व्रती हूँ । न ही मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी मॉगी।न केवल सरकारी प्राइवेट किसी कंपनी आदि में भी कभी कोई नौकरी के लिए साइन नहीं किए ।संघर्ष बहुत हैं बहुतों ने  शिक्षा सहित मुझे अक्सर अपमानित किया है ।फिरभी सहनशीलता सबसे बड़ी मित्र है।जो  देवताओं की कृपा एवं पूर्वजों के पुण्यों का प्रसाद है ।

     ये  बातें  मैं बड़ी जिम्मेदारी से कह रहा हूँ , आखिर सवर्ण कही जाने वाली जातियों में ही मेरा भी जन्म हुआ है, जिसमें मेरा कोई वश नहीं था।जन्म मृत्यु तो ईश्वर के आधीन हैं।इसमें कोई क्या कर सकता है?अपने जन्म,जीवन,जन्मभूमि पर हर किसी को गर्व करना ही चाहिए मैं करता भी हूँ ।

     ईश्वर ने जो कुछ भी किया है।उसे ईश्वर का उपहार समझकर स्वीकार किया है और उपहार में शिकायत कैसी ?मैं इतने जीवन में जगह जगह धक्के खाकर सारी दुर्दशाएँ  भोगकर यह बात विश्वास से कह सकता हूँ कि जाति का इस जीवन में आर्थिक और व्यवसायिक आदि किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं होता।जो कमाता है उसके पेट में जाता है उसकी जाति वालों को अकारण क्यों परेशान करना? जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय की बातें तो कमजोर लोगों में ही कहते सुनते देखी जाती हैं ।बड़े आदमियों की जाति तो उनका अपना आर्थिक बड़ापन होता है, जिसके आगे वे अपने धनहीन घर खानदान के लोगों को पहचानने से मना कर देते हैं। ऐसे में जाति की चर्चा तो मूर्खता ही कही जाएगी जिसका कोई मतलब ही नहीं बचा है।

  जहाँ तक जातिगत आरक्षण की बात है यह भी भारतवर्ष को प्रतिभाविहीन बनाने का प्रयास है।सवर्णवर्ग के लोग यह सोच लेंगे कि क्यों पढ़ना आरक्षण के कारण नौकरी तो मिलनी नहीं है इसी प्रकार असवर्ण लोग भी सोच सकते हैं कि क्यों पढ़ना नौकरी तो मिलनी ही है।अंततः नुकसान तो देश का ही हो रहा है। वैसे भी समृद्ध देश की संकल्पना में सभी भेद भावों से ऊपर उठकर गरीब और पठनशील लोगों को स्वतंत्र शैक्षणिक सहयोग मिलना चाहिए।इससे हर वर्ग के विद्यार्थी अपना जीवन सुधारने का प्रयास तो कम से कम कर ही सकते हैं परिणाम तो ईश्वर के ही हाथ है।समान व्यवस्था प्राप्त करके भी दुर्भाग्य से यदि कोई असफल हुआ ही तो वह इसके लिए किसी और को नहीं कोसेगा।यह उसकी अपनी लापरवाही मानी जाएगी।

      अन्यथा आज असवर्ण कहे जाने वाले लोग सवर्णों को कोस रहे हैं कल सवर्ण कहे जाने वाले लोग अपनी दुर्दशा  के लिए असवर्णों को कोसेंगे।जहॉं तक राजनेताओं की बात है ये कल को सवर्णों को आरक्षण का एलान कर देंगे। इस प्रकार सवर्णों के मसीहा बनकर असवर्णों को गालियॉं देंगे।अपने को गरीबों का बेटा बेटी कह कर तीन तीन करोड़ का घाँघरा पहनकर घूँमेंगे।कितने शर्म की बात है?आज अरबों पति लोग अपने को दलित कहते हैं!क्या उनसे पूछा जा सकता है कि वे आखिर गरीबों का मजाक क्यों उड़ा रहे हैं?कौन सी ऐसी अदालत है जो इस प्रकार से अपमानित लोगों की दशा  पर भी दया पूर्वक बिचार करेगी?

      मैं पॉंच वर्ष का था जब मेरे पिता जी का देहांत हो गया था । मेरे भाई साहब सात वर्ष के थे मेरी माता जी घरेलू परिश्रमशील स्वाभिमानी महिला थीं।किसी संबंधी का कोई सहारा नहीं मिला उस अत्यंत संघर्ष पूर्ण समय में भी माँ के पवित्र आँचल में लिपट कर आनंद पूर्ण बचपन बिताया हम दोनों भाइयों ने।धन के अत्यंत अभाव में जो दुर्दशा होनी थी वह तो सहनशीलता से ही सहना संभव था न किसी से कोई शिकायत न शिकवा हर परिस्थिति में मैं अपने कर्मों और अपने भाग्य का ही दोष  देता हूँ  और किसी पर क्या बश ?कोई चाहे तो दो कदम साथ चल ले न चाहे तो अकेले का अकेला किसी से क्या आशा ?

      हमारे उस छोटे से परिवार ने भयंकर मुशीबत उठा कर मुझे पढ़ने बनारस भेजा।इसमें हमारे लिए अत्यंत आवश्यक संसाधन जुटाने में भाई जी की भी शिक्षा रुक गई थी माता जी के लिए भी बहुत  संघर्ष तो था  ही। 

     भूख पर लगाम लगाकर मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी हमारे बहुत हमसे छोटे छात्र मित्र सरकारी नौकरियों में अच्छे अच्छे पदों पर हैं जो अक्सर हमारी परिश्रमशीलता एवं वैदुष्य की प्रशंसा करके हमें सुख पहुँचाते हैं जिनके लिए मैं हमेशा उनका आभारी हूँ ।कई बार अमीरों से अपमानित और आहत होने पर ऐसी प्रशंसाएँ बड़ा संबल बनती हैं बड़ा सहारा देती हैं।लगता है चलो किसी को पता तो है कि मैं भी सम्मान एवं आर्थिक विकास का अधिकारी  था ।

    किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी का शोषण क्यों किया? पचासों विद्वानों शिक्षाविदों से मिला उनसे हमारे बस इतने ही प्रश्न  होते थे।

1.  हमारे पूर्वजों ने किसी का शोषण  क्यों किया?

2.वह शोषण का धन गया कहॉं आखिर हमें इतनासंघर्ष  क्यों करना पड़ा? 

3. संख्या बल में सवर्णों से अधिक होने पर भी असवर्णों  के पूर्वजों ने शोषण सहा क्यों?

4.  सजा अपराधी को दी जाती है उसके परिजनों को नहीं पूर्वजों का यदि कोई अपराध हो ही तो उसका दंड हमें  क्यों?

5. यदि अपराध की आशंका है ही तो अपराध के प्रकार की जॉंच होनी चाहिए और हम लोगों की तलाशी  की जानी चाहिए और जातीय ज्यादती के द्वारा प्राप्त ऐसा कोई धन यदि प्रमाणित हो जाए तो जब्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार से सवर्ण वर्ग का  शुद्धिकरण करके ये फाँस हमेंशा के लिए समाप्त कर देनी चाहिए।आखिर कितनी पीढ़ियॉं और शहीद की जाएँगी इस तथाकथित शोषण पर?कब तक ढोया जाएगा इस शोषण कथा को?आखिर शोषण का आरोप सहते सहते और कितने लोगों की बलि ली जाएगी ?  

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी सरकारी सेवा के लिए कोई आवेदन नहीं करूँगा मैं आज तक व्रती हूँ।न मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी माँगी।

     स्वजनों अर्थात तथा कथित सवर्णों ने हमारा और हमारी शिक्षा का शोषण करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।किसी को किताबें लिखानी थीं किसी को मैग्जीन,किसी ने देश सेवा की दुहाई दी किसी ने हमारे और हमारे परिवार के भविष्य सुधारने का लालच दिया।कुछ लोगों ने बड़े लालच देकर बड़े बड़े काम लिए दस बारह घंटे दैनिक परिश्रम के बाद वर्षोँ तक सौ दो सौ रुपए मजदूरों की भाँति देते रहे एक आध ने तो यह लालच देकर काम लिया कि हम तुम्हें एक स्कूल खोल कर दे देंगे उसको परिश्रम पूर्वक चला लेना जिससे तुम्हारा जीवन यापन हो जाएगा किंतु काम निकलने के बाद में उन्होंने भी मुख फेर लिया यह कैसे और किसको किसको कहें कि वे बेईमान हो गए आखिर शिक्षा से जुड़ा हूँ , मर्यादा तो ढोनी ही है।पेट और परिवार का पालन करना है

      आज क्या मुझे मान लेना चाहिए कि ब्राहमण या सवर्ण था इसलिए ऐसे लोग  हम पर इस प्रकार की कृपा करते रहे।सरकारी नौकरी न माँगने का व्रत है तो जीवन ढोने के लिए किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ेगा।अनुभव लेते लेते जीवन गुजरा जा रहा है। 

     किसी और की अपेक्षा अपने जीवन को मैंने इसलिए उद्धृत किया है कि गरीब सवर्णों को भी अमीरों के शोषण का उतना ही शिकार होना पड़ता है जितना किसी और को वह अमीर किसी भी जाति,समुदाय, संप्रदाय आदि का क्यों न हो।अमीर केवल अमीर होता है इसके अलावा कुछ नहीं ।यह हमारे अपने अनुभव का सच है मेरा किसी से ऐसा आग्रह भी नहीं है कि वो मुझसे या मेरी बातों से सहमत ही हो। 

 

Friday, October 20, 2017

Shodh


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
       भूकंप जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों में विश्व वैज्ञानिक समुदाय निरंतर प्रयासरत है इसके लिए और इससे जुड़े विज्ञानविद लोगों के लिए एवं आधुनिकविज्ञान से संबंधित रिसर्च के लिए सरकार भारी धनराशि खर्च करती है फिर भी सफलता की  शून्यता से देश का चिंतित होना स्वाभाविक है !वहीँ दूसरी ओर भारत के प्राचीन वैदिकविज्ञान के अनुसंधान से यदि कोई वैदिकविद्वान् सरकार से बिना कोई आर्थिक सहयोग लिए भी  कुछ ऐसा खोज लेने की बात कहता है जिससे भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों को कुछ ऐसी ऊर्जा मिल सकती है जो  भूकम्पीयअनुसंधानों को गति प्रदान करने में समर्थ हो सहायक हो!तो सरकार उसकी बात माने न माने किंतु उसकी बात सुनने से भी परहेज क्यों ?प्राचीन वैदिक विद्वानों को ऐसे विषयों से यह कहकर दूर क्यों रखा जाता है कि उन्होंने आधुनिक विज्ञान नहीं पढ़ी है इसलिए वे ऐसे विषयों पर विचार नहीं कर सकते !और उनकी सम्मति विश्वसनीय नहीं मानी जाएगी !
मान्यवर !
  •  भूकंप आने के तीन कारण अभी तक वैज्ञानिकों के द्वारा बताए जाते रहे हैं वो हैं ज्वालामुखी , कृत्रिमजलाशय और  धरती के अंदर भरी गैसों के भंडार !ये तीनों हैं या इन तीन में से कोई एक अथवा दो हैं और ऐसा मानने के समर्थन में आधारभूत उनके पास विश्वसनीय परीक्षित प्रमाण क्या क्या हैं ?
  • प्रकृतिविज्ञान, आयुर्वेदविज्ञान , ज्योतिषविज्ञान, खगोलविज्ञान आदि का संयुक्त अनुसंधानपूर्वक अध्ययन से  भूकंपों की प्रवृत्ति को समझने में सहायक तथ्यों को आपके सामने प्रस्तुत करने की  विधि क्या है ?
  • भूकंपों से संबंधित ऐसे तथ्य जो वैश्विक दृष्टि से भूकंप संबंधी अध्ययनों को गति प्रदान कर पाने में समर्थ हो सकते हैं उनकी विश्वसनीय एवं उचित प्रस्तुति के लिए सरकार के किस विभाग में किससे संपर्क करना चाहिए जो इन विषयों पर भी आत्मीयता पूर्वक विचार कर सके ?
  • प्राचीन विज्ञानवेत्ताओं के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए भी सरकार का कोई विश्वसनीय विभाग है क्या ?जहाँ वो अपनी बात भी साधिकार रूप से रख सकें ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय , 
        
       समय विज्ञान के आधार पर भूकंपों के विषय में लगातार अनुसंधान करने के बाद प्राप्त अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रत्येक भूकंप उस क्षेत्र के लोगों को कोई न कोई महत्वपूर्ण सन्देश देने के लिए आया होता  है ऐसे भूकंपीय संदेशों  को यदि समय रहने समझने और पालन करने का प्रयास किया जाए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ सतर्कता पूर्वक टाली जा सकती हैं कुछ के द्वारा संभावित हानियों को प्रयास पूर्वक घटाया जा सकता है कई प्राकृतिक आपदाओं की धार कुंद करके उनके द्वारा होने वाले नुक्सान को घटाकर प्रभावित क्षेत्र के लोगों के जानमाल की रक्षा की जा सकती है !
      ऐसे भूकंप कई बार किसी क्षेत्र में गुप्त रूप से पनप रहे किसी साजिश की सूचना दे रहे होते हैं कई बार संभावित आतंकवाद जैसी किसी घटना की सूचना दे रहे होते हैं कई बार निकट भविष्य में होने वाली अति वृष्टि या सूखा जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं !किसी क्षेत्र विशेष में होने वाली सामूहिक उन्मादी दुर्घटनाएँ सूचित की जा रही होती हैं !
       मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण लोगों की किसी जन सभा के कुछ दिन पहले उसी क्षेत्र में यदि कोई भूकंप आ जाता है तो ऐसे महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा में हो रही चूक या उनके विरुद्ध रची जा रही किसी बड़ी साजिश की सूचना दे रहा होता है वो भूकंप !कई बार किसी क्षेत्र में कोई बीमारी या महामारी  फैलने जा रही होती है उसकी सूचना उपलब्ध करवा रहे होते हैं भूकंप ! कभी कभी दो पड़ोसी देशों के बीच आपसी बैर विरोध समाप्त करने या शुरू होने के संकेत  देने के लिए भी आते हैं भूकंप !
      विशेष बात ये ही कि कई बार तो इतनी छोटी छोटी घटनाओं की सूचना देने के लिए भूकंप आ जाते हैं जिनके विषय में सोचकर भरोसा ही नहीं होता है किंतु ऐसी घटनाएँ भूकंप आते ही उसके आधार पर हम तुरंत लिखकर रख लेते हैं बाद में वे वैसी ही घटित होती हैं तो विश्वास होने लगता है !जिसे सामाजिक रूप से प्रमाणित करने के लिए भी मैंने कुछ साक्ष्य सँजो रखे हैं जिन्हें उचित और विश्वसनीय मंच मिलने पर प्रस्तुत किया जा सकता है जो इस विषय में विश्व के लिए बिलकुल नया शोध होगा !
      इसके अलावा किसी प्रमुखभूकंप के आ जाने के बाद वाले झटके किस भूकंप में आएँगे किसमें नहीं आएँगे किसमें कितने  दिनों या महीनों तक आएँगे आदि भूकंप से संबंधित सभी जानकारियाँ  भूकंप के आने के 30 मिनट के अंदर दी जा सकती हैं !
     भूकंप से संबंधित ऐसी समस्त सूचनाओं का पूर्वानुमान भूकंप आने के तीस मिनट के अंदर  प्राप्त  किया जा सकता है इसके लिए भूकंप आने का समय एवं उस स्थान को देखना होता है या उससे संबंधित कुछ जानकारियाँ प्राप्त करनी होती हैं !
    भूकंप से संबंधित ऐसे अनुसंधान मेरे द्वारा लगभग दो दशकों से चलाए जा रहे हैं जिसके आधार पर सफलता की कुछ किरणें दिखाई देने लगी हैं !संसाधनों के अभाव में इन्हें गति दे पाना हमारे लिए संभव नहीं हो पा रहा है ऐसे विषयों में सरकार क्या मुझे कोई सहयोग प्रदान करेगी यदि हाँ तो कैसे और किससे संपर्क करना होगा हमें ?



माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,   

     समयशास्त्र' के अनुशार वर्षाऋतु में प्रकृति रजस्वला होती है इसलिए इस समय प्राकृतिक वातावरण ही प्रदूषित अर्थात बिषैला हो जाता है यह विषैला प्राकृतिक वातावरण समय जनित होता है !इससे जल और वायु दोनों बिषैले हो जाते हैं परंतु जल और वायु शुद्ध हो या अशुद्ध किंतु इनका उपयोग किए बिना तो रहा नहीं जा सकता है यही अशुद्ध जलवायु  ही शरीरों में प्रवेश करके डेंगू जैसे अनेक प्रकार के रोग पैदा करता है ! ड़ेंगूग्रस्त स्त्री पुरुषों को काटने से यह विषाणु मच्छरों में पहुँचता है इसके बाद डेंगू ग्रस्त मच्छर जिस जिसको काटते  हैं उन्हें उन्हें डेंगू होता चला जाता है !वस्तुतः डेंगू मनुष्यों से मच्छरों को होने वाला रोग है मच्छर इस रोग के जन्मदाता नहीं अपितु वितरक  माने  जा सकते हैं !किंतु इस रोग का मुख्य कारण तो समय ही है !
      यह समयजनित विषैला वातावरण लगभग 60 दिनों तक रहता है इसके बाद तीस दिनों का शुद्धिकाल होता है जिसमें क्रमशः विषैलापन धीरे धीरे समाप्त होता चला जाता है !प्रत्येक वर्ष में इसके दिन निश्चित होते हैं इसकी शुरुआत और समाप्ति के दिन भी निश्चित होते हैं !इन 60 दिनों के प्रारंभ होने से पूर्व यदि आयुर्वेदोक्त प्रिवेंटिव प्रयास किए जाएँ एवं संतुलित और हितकर आहार विहार अपनाया जाए तो ऐसे रोगों के होने से  बचा भी जा सकता है !
     डेंगू समय जनित रोग होने के कारण ही यह गरीबों अमीरों सबको सामान रूप से पीड़ित करता  है नेता अभिनेता जैसे सभी सुविधाओं से संपन्न बड़े लोग जिनके यहाँ मच्छरों का पहुँचना बहुत कम संभव हो पाता है उन्हें भी डेंगू होते देखा जाता है ! ग्रामीणों गरीबों मजदूरों को दिन रात मच्छरों के बीच ही रहना होता है और वो दिन रात काटते भी हैं किंतु उन्हें भी डेंगू के प्रभाव से अपेक्षाकृत कम जूझना पड़ता है !
     ऐसे समय जनित रोगों से सम्बंधित हमारे अनुसंधान कार्य को सरकार क्या कोई मदद प्रदान कर सकती है यदि हाँ तो किस प्रकार से और हमें सरकार के किस विभाग के किस व्यक्ति से संपर्क करना चाहिए ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,       
      आयुर्वेद की चिकित्सापद्धति के अनुशार चिकित्सा पद्धति भी समय के आधीन होकर ही फल देती है !प्राकृतिक दृष्टि से जिस क्षेत्र में जब सामूहिक समय ख़राब चल रहा होता है  तब सामूहिक महामारी या बीमारी फैलने लगती है और जब किसी स्त्री पुरुष का अपना समय ख़राब होता है तब व्यक्तिगत रोग फैलने लगते हैं !ऐसे समयपीड़ित लोगों को जब रोग प्रारंभ होते हैं तो बहुत जल्दी बड़ा विकराल रूप धारण कर  लेते हैं ! छोटी सी खरोंच या छोटी सी फुंसी भी जान लेवा सिद्ध हो जाती है अक्सर ऐसी परिस्थितियों को नियंत्रित कर पाना चिकित्सा शास्त्र के बश की बात ही नहीं रह जाती है !ऐसी परिस्थितियों एवं समयविज्ञान के विषय का आयुर्वेद के शीर्ष ग्रन्थ चरकसंहिता में वर्णन मिलता है !वहाँ यह भी बताया गया है कि कुशल समयवैज्ञानिक समय का शोध करके  ऐसी परिस्थितियों के पैदा होने से पहले ही उनका पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं और उनकी चिकित्सा प्रिवेंटिव रूप में प्रारंभ करके इन्हें पैदा होने से ही रोक लेते हैं किन्तु यदि समय का वेग अधिक हुआ तो इन्हें अधिक बढ़ने से पहले ही नियंत्रित कर लेते हैं !
   समयजनित रोग इसलिए अधिक भयावह होते हैं क्योंकि एक बार पैदा होने के बाद इन पर नियंत्रण कर पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है !ऐसा समय प्रारंभ हो जाने के बाद समय जनित रोगों में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ बुरे समय के प्रभाव से गुणहीन हो जाती हैं !जिससे संबंधित रोगों में उनकी भूमिका शून्य के बराबर रह जाती है !
      समयपीड़ित लोगों को यदि रस्सी में सर्प का भ्रम हो जाए तो उस भ्रम मात्र से ही ऐसे लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं !शंका विष नाम से इसकी चर्चा आयुर्वेद में मिलती है !
       समय वेदना से व्यथित लोग सभी प्रकार से प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहे होते हैं इन्हें शुभ चिंतक लोग क्या सुखद सन्देश मिलने तक दुर्लभ हो जाते हैं !इसलिए ऐसे लोग उतने समय के लिए गंभीर अवसाद में चले जाते हैं !
    प्रकृति से संबंधित एवं शरीर और मन की समय संबंधी समस्याओं पूर्वानुमान लगा लेने वाले कुशल समय वैज्ञानिक ऐसी समस्याओं के समाधान खोजने में सक्षम होते हैं किंतु आधुनिक चिकित्सापद्धति समय के इस पक्ष से अपरिचित होने के कारण इसकी उपेक्षा करती चली जा रही है !जबकि आयुर्वेद के चरकसंहिता सुश्रुतसंहिता आदि सभी ग्रंथों में समय विज्ञान के आधार पर रोगों का पूर्वानुमान लगा कर उनकी चिकित्सा करने के लिए प्रेरित किया गया है !
      अतएव समय संबंधी चिकित्सा पद्धति पर हमारे द्वारा चालाए जा रहे शोध कार्यों को सरकार द्वारा मदद मिल सकती है क्या ? यदि हाँ तो सरकार के किस विभाग में किससे संपर्क किया जाए ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
            प्राचीन वैदिकविज्ञान की परंपरा में 'समयविज्ञान' का बहुत बड़ा महत्त्व माना जाता था !हर काम को प्रारंभ करने से पहले समय का विचार एवं पहले से प्रारंभ हो चुके कार्य के असफल होने पर समय विचार करने की परंपरा रही है !प्रत्येक कार्य के करने या होने का प्रारंभिक क्षण ही उस बीज की तरह होता है जिसे देखकर अनुभवी लोग यह अनुमान लगा लिया करते हैं कि इस बीज से होने वाले वृक्ष का विस्तार कैसा और कितना होगा !
     इसी प्रकार से समय के प्रत्येक 'क्षणबीज' का अनुसंधान करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि  उस क्षण में किया गया या अपने आपसे हुआ कोई भी कार्य अथवा घटित हुई कोई भी घटना का भविष्य में विस्तार कैसा और कितना होगा !
     इसी 'क्षणबीज' का अनुसंधान करके भूकंप आदि प्रायः अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को जाँचा परखा जा सकता है और उनके भविष्य में होने वाले पुनरावर्तन को पहले से ही जाना जा सकता है इसके साथ ही उनके कारण भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक सामाजिक शारीरिक मानसिक आदि घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     छोटी सी चोट का बहुत बड़ा स्वरूप हो जाना और बहुत बड़े रोग का सामान्य चिकित्सा से ठीक हो जाना उस रोग के प्रारंभिक क्षण के आधीन होता है !इस 'क्षणबीज' की अनुसंधान प्रक्रिया से प्रत्येक क्षण में प्रारंभ हुए रोग या लगी हुई चोट आदि की गंभीरता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
      क्या हमारे द्वारा चलाए जा रहे इस अनुसंधान कार्य में सरकार हमारी मदद करेगी यदि हाँ तो कैसे ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
      किसी बच्चे के जन्मक्षण से इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में इसका किस क्षेत्र में कितना विस्तार होगा !किस उम्र में कितने समय के लिए रोग,मानसिक तनाव या किस प्रकार का सुख दुःख होगा !
    भूकंप ट्रेन या बस आदि की दुर्घटना में बहुत लोग एक जैसे हादसे के शिकार होते हैं किंतु परिणाम अलग अलग देखे जाते हैं उनमें से कुछ मृत कुछ घायल तो कुछ को खरोंच भी नहीं लगती है !इसी तरह कोई चिकित्सक कुछ एक जैसे रोगियों की एक जैसी चिकित्सा करता है किंतु परिणाम अलग अलग होते हैं !चिकित्सा के बाद भी कुछ अस्वस्थ तो कुछ पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ मृत हो जाते हैं!समय की प्रतिकूलता का सामना कर रहे रोगी के विषय में बड़े बड़े चिकित्सक कुछ समझ नहीं पाते हैं अच्छी से अच्छी औषधियाँ उनके लिए असरहीन हो जाती हैं कई बार तो अनुकूल चिकित्सा का प्रतिकूल असर होते देखा जाता है! ऐसी सभी परिस्थितियों का कारण सबका अपना अपना जन्मक्षण होता है !
   विवाह,मित्रता या व्यापारिकसंबंधों को कब तक कैसे कैसे निभाया जा सकता है या इनसे कब किसको किस प्रकार का मानसिक तनाव मिलेगा ये उनके प्रारंभिक क्षणों का अनुसंधान करके समझा जा सकता है !
     इस 'समयविज्ञान' के द्वारा विवाहों को टूटने से बचाया जा सकता है !विवादों को आसानी से निपटाया जा सकता है !बलात्कार आदि सभी प्रकार के सामाजिक अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है !तनाव को घटाया जा सकता है सैनिकों के बहुमूल्य जीवन को अधिक से अधिक बचाया जा सकता है !
    महोदय !ऐसे बहुमूल्य 'समयविज्ञान' के विषय में और अधिक अनुसंधान एवं संगठित रूप से कार्य करने के लिए हमें भूमि ,बिल्डिंग एवं  आर्थिक मदद की आवश्यकता है जिससे समय विज्ञान की इस विधा को वृहद्रूप दिया जा सके !क्या सरकार इसमें हमारी कोई मदद कर पाएगी यदि हाँ तो किस प्रकार से और उसके लिए हमें किससे कहाँ संपर्क करना होगा ?




माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय , 
      'समयविज्ञान'भारत का अत्यंत प्राचीन विज्ञान है यह बहुत उपयोगी एवं अनेकों कार्यों का साधन करने वाला है किंतु अभी तक सरकार की उपेक्षा का शिकार है !
       किसी के जन्म क्षण का अनुसंधान करके इसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस स्त्री पुरुष को जीवन के किस वर्ष में कितने समय के लिए मानसिक तनाव होगा या किस किस वर्ष में वात पित्त या कफ संबंधी बीमारियाँ होने की सम्भावना रहेगी !
      ऐसी परिस्थिति में विपरीत समय से ग्रस्त लोगों को समय संबंधी समस्याओं से बचाया जा सकता है एवं विशेषकर देश की सेवा में लगे सैनिकों को उतने समय के लिए प्रतिकूल वातावरण में तैनात करने से बचा जा सकता है !कफ की पीड़ा प्रदान करने वाले समय में बर्फीली जगहों पर तैनाती से बचा जा सकता है !इसी प्रकार से पित्त संबंधी समय से पीड़ित सैनिकों की उतने समय के लिए रेगिस्तान या गर्म क्षेत्रों में तैनाती से बचा जा सकता है !इसी प्रकार से मानसिक तनाव की परिस्थितियों से जूझ रहे सैनिकों को उतने समय के लिए एकांत रखने से बचा जा सकता है एवं उनके साथ विशेष आत्मीय वर्ताव किया जा सकता है !
      प्रतिकूल समय से पीड़ित सैनिकों की उतने समय के लिए ऐसी जगहों पर तैनाती से बचा जाना चाहिए जो सैनिकों के अपने जीवन एवं देश के लिए विशेष संवेदन शील हों !क्योंकि ऐसे समय किसी भी व्यक्ति के लिए अनेकों प्रकार के संकट तैयार किया करते हैं ऐसी परिस्थिति में जो व्यक्ति स्वयं सुरक्षित नहीं होगा वो किसी और की सुरक्षा कैसे कर सकेगा !वैसे भी सैनिकों का जीवन बहुमूल्य होता है इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए सभी प्रकार से प्रयास किए जाते हैं !इन सबके साथ साथ यदि समय विज्ञान का भी उपयोग किया जाने लगे तो उनके जीवन एवं देश की सुरक्षा के लिए और अधिक उत्तम हो सकता है ! 
       अतएव मेरा निवेदन है कि सरकार हमारे द्वारा चलाए जा रहे ऐसे समय संबंधी अनुसंधानों के लिए  क्या हमारी मदद कर सकती है ये हाँ तो कहाँ और किससे संपर्क किया जाना चाहिए !



माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
      विकास के रथ में दो पहिए लगे होते हैं एक समय और  दूसरा साधन ! कोई किसी का सहयोग करके या सरकार किसी की मदद करने के लिए केवल साधन उपलब्ध करवा सकती है उसका समय नहीं बदल सकती है किंतु जिसका साथ समय ही नहीं देगा उसे साधन मिल भी जाएँ तो निरर्थक हैं !सफलता पाने के लिए केवल साधन ही नहीं अपितु समय भी अपने अनुकूल होना चाहिए ! 
    प्रायः व्यवहार के ऐसा देखा जाता है जो जैसे सफल हो जाता है वो अपनी सफलता का श्रेय अपनी उसी कार्यपद्धति को देने लगता है !ऐसे लोग समाज में कर्मवाद का उन्माद पैदा करने लगते हैं !ऐसे कैरियर काउंसलरों का मानना होता है कि कर्म के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है !इनसे प्रेरित होकर लोग सारी अच्छी और सुंदर चीजों का खुद को अधिकारी समझने लगते हैं और वो प्रयास करते हैं फिर भी समय अनुकूल न होने के कारण सफलता हाथ न लगने पर सब कुछ झपट लेने का प्रयास करने लगते हैं !समाज में घटित होने वाले कई प्रकार के अपराध और बलात्कार इसी अंधे कर्मवाद की देन हैं !ऐसे लोग असफल होने पर या तो अपराधों की ओर मुड़ जाते हैं या फिर घोर तनाव में डूब जाते हैं !
     मनुष्य प्रयास करता है परिणाम तो समय के अनुशार ही मिलता है किंतु इस बात को न जानने वाले लोग अपने कर्म के साथ ही परिणाम को जोड़कर चलते हैं कर्म पूरा होने पर भी जब उन्हें परिणाम प्राप्त नहीं होता है तब निराशा पागलपन आदि प्रवृत्तियाँ जन्म लेने लगती हैं !
       अच्छे समय में विकास के लिए किए गए प्रयास कई गुना अधिक सफलता प्रदान करते हैं और बुरे समय में किए गए प्रयास बहुत कम सफल होते हैं अच्छे और बुरे समय की समझ रखने वाले कुशल समयवैज्ञानिक इसी आधार पर जो काउंसलिंग करते हैं वो सजीव और प्रभावी होती है ! वो हमेंशा अच्छे समय में बड़े प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं !
       अतएव किसी व्यक्ति समाज राष्ट्र आदि के विकास के लिए समय विज्ञान का सहयोग लिया जाना बहुत आवश्यक है !इस समयविज्ञान के विषय में हमारे द्वारा चलाए जा रहे अनुसंधान को सफल बनाने के लिए क्या सरकार हमारी कोई मदद कर सकती है यदि हाँ तो सरकार के किस विभाग के किस व्यक्ति से संपर्क किया जाना चाहिए ?



माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
      समय जब अच्छा होता है तो प्रकृति भी साथ देती है सभी ऋतुएँ उचित मात्रा में सर्दी गर्मी वर्षात के द्वारा चराचर जगत का पोषण करती हैं प्रकृति अच्छी मात्रा में पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि उत्पन्न करने लगती  है आरोग्यता प्रदान करने वाली उत्तम वायु बहने लगती है सभी स्त्री पुरुष स्वाभाविक रूप से  प्रसन्न रहने लगते हैं समाज में सब कुछ अच्छा अच्छा होता चला जाता है! लोगों की सोच सात्विक अर्थात अच्छी बनने लगती है लोग पुराने मुद्दे निपटाने के प्रयास करने लगते हैं वर्षों की बुराइयाँ समाप्त होने लगती हैं टूटी हुए नाते रिस्तेदारियाँ समय के प्रभाव से जुड़ने लगती हैं विखरता समाज फिर से संगठित होने  लगता है परिवारों में समरसता बढ़ते देखी जाती है समाज से हिंसक प्रवृत्तियाँ समाप्त होने लगती हैं ! ऐसी सभी अच्छाइयाँ समाज में प्रत्येक 12 वर्षों में स्वाभाविक रूप से अपने शीर्ष स्तर पर होती हैं !ऐसी सभी खुशहाली का श्रेय लोग सरकार को समाज को अपने को देने लगते हैं ! ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं वो काम कम भी करें तो भी समाज उन पर दोषारोपण नहीं करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से संतुष्ट होता है !समय अच्छा होने के कारण अधिकाँश लोग खुशहाल संतोषी एवं अच्छा अच्छा सोच जाने वाले होते हैं !उनकी खुशहाली का श्रेय सरकार ले जाती है यदि ऐसे समय कोई चुनाव हो जाए तो उसी दल की सरकार को दुबारा आने का अवसर मिल जाता है !
      समयजन्य अच्छाइयाँ अर्थात सात्विकता क्रमशः  घटते घटते 6 वर्षों में  अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच जाती है वैसे वैसे बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं और 6 वर्षों में वे क्रमशः अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुँच चुकी होती हैं इस प्रकार से हर अच्छा और बुरा समय एक दूसरे का विरोधी होने के कारण एक दूसरे के विपरीत ही चलता रहता है !ये अच्छे और बुरे समय प्रत्येक महीने में या 12 महीनों में या 12-14 वर्षों में या 25 वर्षों दोनों प्रकार का चक्र पूरा करके अपने पुराने स्थान पर पहुँच जाते हैं !
    समय चक्रों के अनुशार जब बुराइयाँ अपने शीर्ष पर होती हैं सभी प्रकार की अच्छाइयाँ क्रमशः घटती चली जाती हैं और  बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं समय विपरीत होने पर आँधी तूफान सूखा बाढ़  और  भूकंप आदि प्राकृतिक उपद्रव अधिक होते देखे जाते हैं सामूहिक महामारी रोग आदि पैदा होने लगते हैं पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि सब कुछ नष्ट होने लगते हैं !समाज में उन्माद फैलने लगता है अपराध की मात्रा बढ़ती चली जाती है फसलें धोखा देने लगती हैं सामाजिक संघर्ष कलह आदि बढ़ते  दिखाई पड़ने लगते हैं !
     बुरे समयजन्य ऐसे सभी विकारों के लिए समाज वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा लेती है ! ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं जनता का आक्रोश उन्हीं पर निकलने लगता है उसकी अपनी व्यवस्थाएँ जो समय के कारण बिगड़ रही होती हैं उसके लिए भी वो जनता को जिम्मेदार ठहरा रहा होता है !ऐसी सरकारें काम कितना भी अच्छा और अधिक कर रही होती हैं तो भी अपनी व्यवस्थाएँ बिगड़ जाने के कारण उनके प्रति समाज के मन में आक्रोश अधिक बढ़ता चला जाता है ! समाज उन पर न केवल दोषारोपण किया करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से असंतुष्ट होने के कारण सरकार को ही कटघरे में खड़ा किया करता है !  
    समय की अच्छाई और बुराई जाँचने परखने के लिए समय विज्ञान के अलावा कोई और दूसरा विकल्प नहीं है ऐसे समय विज्ञान संबंधी हमारे शोधकार्य में सरकार हमारी मदद कर सकती है क्या और यदि हाँ तो उसके लिए हमें क्या करना होगा ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!


  महोदय ,
         
    विवाहसंबंधी विषयों के विवाद या इससे संबंधित तनाव या तलाक या प्रेम संबंध या प्रेम विवाह जैसे विषय एक दूसरे के जन्मसमय के आधीन होते हैं !उन दोनों में से कौन किसके साथ कितने दिन प्रेम पूर्वक रह पाएगा !किसे कब कितने समय के लिए एक दूसरे से तनाव होने लगेगा उसके बाद फिर ठीक हो जाएगा फिर दोनों लोग एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक निर्वाह कर सकते हैं आदि बातें दोनों के जन्म समय पर निर्भर होती हैं जिनका पूर्वानुमान विवाह निश्चित होते ही लगाया जा सकता है !उसके आधार पर यदि उतना समय सावधानी पूर्वक बिता लिया जाए तो फिर सामान्य रूप से मधुरता पूर्वक संबंध चला करते हैं !इसी बल पर पुराने समय विवाह संबंधों का निर्वाह किया जाता था !तलाक की न तो परंपरा थी और न ही हिंदी या संस्कृत वांग्मय में तलाक का कोई पर्यायवाची शब्द ही है क्योंकि यहाँ पर जब तक समय विज्ञान का उपयोग किया जाता रहा तब तक तलाक की कभी जरूरत ही नहीं पड़ती रही किंतु समयविज्ञान की उपेक्षा होते ही तलाक दिखाई सुनाई पड़ने लगे ! कई बार तो इनके छोटे छोटे बच्चे भी होते हैं जिनसे माता या पिता छूट जाया करते हैं ! इसी प्रकार से विवाह संबंधी विवादों में कई बार हत्या आत्महत्या या दोनों की सहमति से बच्चों समेत आत्महत्या जैसी दुर्घटनाएँ देखने को मिलती हैं !ऐसे सभी विवादों को टालने या इन्हें सामान्य बनाने में समयविज्ञान बड़ी भूमिका निभा सकता है !
    इतना ही नहीं अपितु समयविज्ञान  के द्वारा परिवारों राजनैतिक पार्टियों संगठनों आदि के बिखराव को रोका जा सकता है !इसकी उपयोगिता समझते हुए ही हमारे द्वारा इस संबंध में अनुसन्धान प्रारंभ किए गए जिसके अत्युत्तम परिणाम सामने आए हैं !संसाधनों के अभाव में इसे वहाँ तक पहुँचा पाना हमारे लिए कठिन होता जा रहा  है इसलिए मैं सरकार से अपेक्षा करता हूँ कि वो हमारी इस विषय को आगे बढ़ने में मदद करे !
     सरकार इस विषय में हमारी क्या कोई ऐसी मदद कर सकती है यदि हाँ तो मुझे कैसे और किससे संपर्क करना चाहिये ?




माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!




  महोदय ,
       मनुष्य का स्वभाव है कि वो सफलता का प्रत्येक श्रेय स्वयं ले लेता है और अपनी असफलता के लिए हमेंशा दूसरों को जिम्मेदार ठहरा देता है !वस्तुतः किसी कार्य में सफलता और असफलता दोनों ही प्रयास करने वाले उस व्यक्ति के जन्म समय की देन  होती हैं ! उसके आधार पर जीवन में जिसका जब जैसा समय आता जाता है उसे तब तैसी सफलता  या असफता मिलती चली जाती है!समय के रहस्य को न समझ पाने के कारण कोई भी व्यक्ति  अपनी सफलता या असफलता प्रदान करने वाला किसी अपने को या किसी अन्य व्यक्ति को मानने लगता है क्योंकि उसके लिए वह प्रयास करता दिख रहा होता है समय सभी कुछ करते हुए भी दिखता नहीं है इसलिए लोग समय की महिमा भूलकर प्रयास करने वाले को ही श्रेय दे डालते हैं !या समझना भूल जाते हैं कि किसी के द्वारा किए गए प्रयास असफल भी तो हो सकते थे यदि ऐसा हो जाता है तब प्रयास करने वाला क्या कर सकता है !ऐसी परिस्थिति में ही तो किसी चिकित्सक की दवा एक को लाभ करती है तो दूसरे को नहीं !जिसका जैसा समय उसको वैसा लाभ!ऐसा ही सभी प्रकरणों  में समझा जा सकता है किंतु समय की समझ न रखने वाले लोगों का कोई काम जब बिगड़ जाता है तब वे उसका किसी को कारण मानकर उसे दुश्मन मानने लगते हैं और उसका उनसे बदला लेने के लिए कई बड़े अपराध कर बैठते हैं !
     कुछ लोग जिस लड़की से प्रेम या विवाह करना चाहते हैं उसके लिए तमाम प्रयास करते हैं किंतु असफल होते चले जाते हैं समय की महत्ता न समझने के कारण  वे ऐसे प्रकरणों में लड़की को दोषी मानने लगते हैं किंतु  लड़की का उस समय प्रेम या विवाह लायक समय ही नहीं चल रहा होता है इसलिए उसका उन विषयों की ओर झुकाव ही नहीं होता है !कई बार ऐसी लड़की का झुकाव किसी और की ओर होता है क्योंकि उसका समय उसके साथ अधिक अनुकूल बैठ रहा होता है इसलिए वो उसकी ओर आकृष्ट हो रही होती है !
       ऐसी परिस्थिति में समय की समझ न रखने वाले लोग लड़की को ही दोषी मानकर उसी पर हमले करने लगते हैं जो गलत है किंतु उन्हें कर्मवादियों ने समझा रखा होता है कि प्रयत्न और परिश्रम से सब कुछ हासिल किया जा सकता है इसलिए वे अपहरण करते हैं बलात्कार करते हैं फिर भी असफल रहने पर उस पर एसिड अटैक या अन्य प्रकार से जान घातक हमले करते देखे जाते हैं !
      ऐसी परिस्थिति में समय को समझने समझाने संबंधी अनुसन्धान काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं जो हमारे द्वारा काफी समय से संचालित किए जा रहे हैं जिन्हें और अधिक विस्तार देने के लिए क्या सरकार हमारी कोई मदद कर सकती हैं यदि हाँ तो उसके लिए हमें क्या प्रयास करना होगा और किससे संपर्क करने होंगे ? 
        
       
    


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
     'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
      इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
     इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
      कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
        प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
      जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
       ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकार इससे संबंधित हमारे अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए क्या कोई सहयोग प्रदान कर सकती है ?इसके लिए मुझे किस सरकार के किस विभाग में किससे मिलना होगा ?


माननीय प्रधानमंत्री जी !
                         सादर नमस्कार !!
  महोदय ,
      'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं वैसे उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
       आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !
     इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !
   अस्तु महोदय आपसे निवेदन है कि आकृति और स्वभावों से संबंधित अध्ययनों के लिए संचालित हमारे शोधकार्य में सरकार हमारी क्या कुछ मदद कर सकती है और उसके लिए हमें सरकार के किस विभाग में जाकर किस व्यक्ति से कब मिल लें ?