Sunday, November 5, 2017

प्रधानमंत्री जी !सरकार बदलने पर नेता बदल जाते हैं किंतु नियत नहीं बदलती है ! पार्टियाँ बदल जाती हैं पाप वही होता रहता है !

सरकार बदलने से नेताओं को सत्ता मिली जनता को क्या मिला  ?प्रधानमंत्री जी !

  •  आज भी 'घूस दो काम लो' के सिद्धांत पर चल रहे हैं सरकारी विभाग और व्यवस्था !जनता को हजार बार गर्ज हो तो उनसे काम लेने के लिए उन्हें घूस दे !अन्यथा घर बैठे !!
  •  सरकार कहती है टैक्स दो अन्यथा भुगतोगे !जनता डरेगी तो टैक्स देगी ही !
  •  डाकू कहते हैं जो कुछ है सो सब रख दो अन्यथा गोली मार देंगे !जनता डरेगी तो देगी ही !
  •   बलात्कारी कहते हैं कि बलात्कार तो हम करेंगे ही अन्यथा जान से मार देंगे तेज़ाब फ़ेंक देंगे !
  •  जनप्रतिनिधि कहते हैं ये साले सब बड़े बदमाश हैं घूस लिए बिना करेंगे नहीं तुम भले आदमी हो ले दे कर अपना काम निकाल लो !मेरे यहाँ से चिट्ठी लेते जाना मानेगा तो ठीक अन्यथा ... !
  • सरकार उनके सैलरी तो बढ़ाए जा रही है आत्म हत्या करते किसानों के लिए दस दस रूपए के चेक !  
    प्रधानमंत्री जी !यदि जनता के प्रति थोड़ी भी हमदर्दी आपके मन में है तो राजनीति में सुशिक्षित योग्य अनुभवी चरित्रवान और ईमानदार लोगों को घुसने भर दीजिए वे जीवित लोग ऐसे बेईमानों से स्वयं निपट लेंगे और बदल देंगे देश की दशा दिशा !अन्यथा राजनैतिक दलों के गंदे मालिक लोग देश की राजनीति  को स्वच्छ होने ही नहीं देते हैं क्योंकि इससे उनकी अपनी भी कमाई बंद होती है उनके अपने काळा कारनामे खुलने का भय रहता है !

   नेता लोग केवल उनकी सुनते हैं जो उन्हें चुनावी टिकट दिलवा सकते हों  या कटवा सकते हों अथवा जो उन्हें चुनाव जितवा सकते हों या हरवा सकते हों!इसके अलावा जनता को तो जानवर पहले वाले भी समझते थे  और अभी वाले भी !2014 के चुनावों में मैंने भी जिनके लिए प्रतिदिन चौदह चौदह घंटे काम किया आज मुझे भी ठेस लगी है !
     जो नेता लोग जनता से फोन पर बात नहीं करते मिलने का समय नहीं देते पत्रों का उत्तर नहीं देते उनसे काम करने की उम्मींद जनता कैसे करे ?कार्यकर्ताओं से मिलने में मुख चुराने वाले नेता जनता से क्यों मिलेंगे ?
    काम न वो करते थे न ये करते हैं अधिकारी कर्मचारी न उनकी सिफारिशें मानते थे न इनकी मानते हैं !घूस देकर काम तब भी करवाया जाता था और अब भी घूस देकर ही काम हो पाता है !
     घूस नहीं तो काम नहीं !घूस दो तो सरकारी जमीनों पर भी कोठी बना लो और घूस न दो तो नाली छज्जे चबूतरे भी तोड़ जाते हैं सरकारी घूसखोर लोग !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है !
    रेड़ी पटरी वाले घूस न दें तो सब्जी भी नहीं बेच सकते और घूस देकर तो बम भी बना लेते हैं आतंकवादी लोग !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
   घूस के बलपर होते हैं अवैध निर्माण घूस देकर ही उन्हें बचाया जाता है यदि भ्रष्टाचार नहीं है तो क्यों नहीं हटाए जाते हैं अवैध निर्माण !
    अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा घूस लेकर करवाए गए अवैध निर्माण या अवैध कब्जे खोजेगा कौन!अवैध निर्माण के नाम पर ये घूस खोर लोग उन्हीं के घर तोड़ते हैं  जिन्होंने इन्हें घूस नहीं दी होती है !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    नेतालोग अवैध कालोनियों में पहले मद्दे सस्ते मकान लेते हैं जमीनें खरीदते हैं या अवैध निर्माण करवाते हैं अवैध निर्माण वाले लोगों से घूस लेते हैं फिर अवैध जमीनों और निर्माणों को नियमित करने के लिए शोर मचाते हैं !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    15 मीटर तक ऊँची बिल्डिंगें बनने की अनुमति थी तो उससे ऊँची बिल्डिंगें बनने  क्यों दी गईं उन्हें रोकने के लिए जिम्मेदार लोग उनसे घूस लेते रहे और सरकार से सैलरी किस बात की !ये ऊंचाई निश्चित क्यों की गई और की गई तो  इससे बढ़ने क्यों दी गई !ऐसे अधिकारी कर्मचारी रखे क्यों गए और रखे गए तो लापरवाही और घूस खोरी के लिए उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की जाती है !सरकार पूछती है भ्रष्टाचार कहाँ है!
    कुल मिलाकर जैसा पहली सरकारों में था वही अभी भी होता चला आ रहा है ईमानदारी की केवल बातें बातें हैं बस काम की शैली वही है पहले वाली !
    नेता ईमानदार और कर्मठ नहीं होंगे तो यही होगा !चुनावी टिकट देते समय शैक्षणिक योग्यता अनुभव चरित्र ईमानदारी आदि को न वो महत्त्व देते थे न अब दिया जाता है!चुनाव जीतने के लिए झूठे वायदे वे भी करते थे अब भी किए जाते हैं !चुनावी टिकटें अपनों को या पैसे वालों को वो भी देते थे ये भी देते हैं !जनता की बात वो भी नहीं सुनते थे अब भी नहीं सुनी जाती हैं परिचित नेता भी फोन पर न बात करने के लिए झूठ बोलवा देते हैं घर जाने पर पता लगता फोन करके आओ या सुबह 9- 10 आओ !उस समय वो काम कम अपनी व्यस्तता बताने एवं अपने ओहदे को समझाने  में अधिक लगाते हैं !

   चुनाव जीतने या कोई बड़ा पद पाने के बाद नेता इतने अधिक जहरीले हो जाते हैं कि इनके उठने  बैठने  बोलने चालने आदि के ढंगसे तमीज गायब हो चुकी होती है सत्ता में रह चुके नेताओं की नकल करते करते ये वैसे ही हो जाते हैं जिनके जिन आचरणों की निंदा करते करते ये सत्ता में आए थे अब जनता ने जैसे उन्हें धक्का दिया था यदि ये न सुधरे तो अब इन्हें देगी !    मंत्री हो और घमंडी न हो, नेता हो और काम करे ऐसा कभी हो सकता है क्या ?मंत्री बदलते रहने से ये बात ढकी रहती है बहाना बनाने का मौका मिलता रहता है !
    मंत्री सांसद विधायक आदि बनने के बाद घमंडी सभी हो जाते हैं ! काम करना न आता है और न ही करना चाहते हैं संवेदनाएँ मर सी जाती हैं !मंत्री बदल बदल कर सरकार अपना मुख साफ दिखाने की कोशिश किया करती है किंतु जनप्रतिनिधियों के आचरणों के दाग धब्बे तो आ ही जाते हैं |काश !संयमशील होते अपने भी देशभक्त नेता लोग !!!
  विधायकों सांसदों मंत्रियों आदि को जब होने लगता है सत्ता का नशा !तब ऐसे स्वयंभू भगवानों को इंसान बना देती है जनता !इसलिए सत्ता की ऐसी नशाखोरी से बचने में ही हर किसी की भलाई है !
    राजनेता हों या राजनैतिक दल ये स्वयं में न अच्छे होते हैं न बुरे !सत्ता पाते ही पागल हो जाते हैं बस !इनकी सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि जिसे सत्ता मिलती है वो घमंडी हो जाता है बिना सत्ता के सब सुंदर शालीन मनुष्यता पसंद गाँवों गरीबों किसानों मजदूरों के हमदर्द दिखते हैं !
     नेता जब सरकार में रहते हैं वो स्वार्थी घमंडी आदि दुर्गुणों से भरपूर हो जाते हैं और सत्ता जाते ही फिर इंसान के इंसान ! भूल जाता है देवता बनना !तब याद आने लगते हैं जनता कार्यकर्ता गाँव गरीब किसान आदि सब !इसलिए दोष राजनेताओं का नहीं अपितु दोष तो सत्ता का होता है इसीलिए सत्ता छीनकर अपने को भगवान् समझने वाले नेताओं को इंसान बना देना जानती है जनता !
         विरोधी पार्टियां जब सरकार  थीं तब उनसे बड़ी शिकायत थी उनके नेताओं की मैं निंदा किया करता था किंतु जब अपनी पार्टी सत्ता में आ गई तो समझ में आ गया कि वो नेता सही और मैं ही गलत था !मैं उन बेचारों को समझ नहीं पाया कि इतने मासूम होते हैं वे बेचारे !सत्ता का नशा होता ही ऐसा है कि बड़े बड़े ज्ञानियों गुणियों को भी अंधा बना देता है | सच्चाई यही है कि सत्ता में पहुँचने के बाद प्रायः नेता लोग होश में नहीं रह जाते !जो नेता पहले कभी आपके साथ  बात बिना बात हँसते हाथ मिलाते गले मिलते रहे थे वे सत्ता में आने के बाद उनसे वैसी उम्मींद नहीं की जानी चाहिए ! 
      सत्ता में सम्मिलित नेता कब किसका किस बात पर कितना अपमान कर दें पता ही नहीं चलता !सत्ता में रहकर  उठने बैठने बोलने मिलने जुलने का शिष्टाचार तो बिल्कुल समाप्त हो ही जाता है! अपने दरवाजे मिलने आए हर व्यक्ति को बिना कुछ दिए भी भिखारी समझने लगते हैं सत्ता में आ जाने वाले  सत्तामूर्च्छित नेतालोग ! 
    मेरा निजी अनुभव है कि कोमल भावनाओं वाले अधिक संवेदन शील भावुक लोगों को अपने पूर्व परिचित नेताओं के पास मिलने कभी नहीं जाना चाहिए !जरूरी जाना पड़े भी तो अपमान,अप्रिय व्यवहार उपेक्षा आदि सहने के लिए तैयार होकर जाना चाहिए अन्यथा ये 'नमस्ते'चोर लोग बेइज्जती करते समय इस बात की परवाह नहीं करते कि आपसे मेरा पुराना  सम्बन्ध कैसा था उसे वे चतुर लोग भूलने में ही भलाई समझते हैं !
     सत्तापक्ष के सरकारों में सम्मिलित नेताओं के अप्रिय एवं उपेक्षा पूर्ण व्यवहारों से आहत कार्यकर्ता लोगों की समस्याओं के समाधानों एवं उनकी शिकायतों के निवारण के लिए अक्सर सत्तासीन नेताओं की कुंडी खटखटाना मैं अपना कर्तव्य समझता रहा हूँ अभी भी कुछ ऐसा ही करना पड़ा !कुछ कार्यकर्ताओं की आलोचना से आहत होकर उनकी बात ठीक जगह पहुँचाने के उद्देश्य से मैंने सरकार से संबंधित कुछ जगहों पर और कुछ नेताओं से संपर्क करने के प्रयास किए किंतु परिणाम वास्तव में दुखद थे !सरकारें लोकतान्त्रिक पद्धति से काम पैतृक व्यवसाय की तरह अधिक संचालित की जा रही हैं सेवा भाव तो खोजने पर भी नहीं मिलता शक और शंका की दृष्टि से हर किसी को देखा जा रहा है न जाने क्यों ?ऐसी स्थिति से मैं स्वयं आहत हुआ कि कार्यकर्ता को जो संगठन अपना नहीं समझते कार्यकर्ता ही उन्हें अपना क्यों समझे और कहाँ तक अपनी सेवा भावना की परीक्षा देता रहे !कैसी दुविधा है सच्चे कार्यकर्त्ता के सामने !आलोचना की नहीं जाती उपेक्षा सही नहीं जाती !ऐसा असमंजस !!
    मैं अपनी सनातन हिंदू विचार धारा के समर्थक संगठन के विविध आयामों से सन  1986 से जुड़ा चला आ रहा हूँ !कभी किसी दायित्व की परवाह नहीं की सेवाकार्य समझ कर करते चले गए विचार धारा कभी नहीं बदली !धार्मिक संगठनों के सभी सामाजिक कार्यकर्ता लोग धार्मिक नैतिक आदि मधुर बात व्यवहार करने के लिए जाने जाते रहे हैं एक परिवार की तरह सबका सबसे कितना अपनापन हुआ करता था एक दूसरे के सुख दुःख में लोग बड़े छोटे का भाव भूलकर खड़े हो जाया करते थे कितना उत्साह बर्द्धन किया करते थे वे ! ऐसे श्रेष्ठ संगठन के लिए अपनी क्षमता के अनुशार कोई दायित्व लिए बिना समर्पित रहा हूँ अयोध्या बनारस कानपुर से लेकर दिल्ली तक के जितने भी लोग मुझे जानते हैं वो इसी रूप में जानते हैं ! किसी को संगठन परिवार के प्रति मेरे समर्पण पर संशय नहीं है यहाँ तक कि सोशल साइटों पर मेरे साथ जुड़े हजारों लोग भी मुझे इसी रूप में मानते हैं !
     मेरी तीन फेस बुक और 9 ब्लॉगों पर कुछ हजार आर्टिकल विभिन्न विचारों पर प्रकाशित हैं जो  संगठनात्मक विचारधारा एवं समाज और संगठन की भलाई के लिए सामाजिक सुधार एवं भ्रष्टाचार समाप्ति के लिए विपक्षियों को तर्कयुक्त जवाब आदि से संबंधित हैं | इस प्रकार से संगठन और पार्टी के लिए जो कुछ अच्छा से अच्छा कर सकते थे वो करने का प्रयास मैंने भी प्रभावी रूप से किया है | संगठन के कार्यों में भी सहभागी रहता रहा हूँ | यहाँ तक कि 2013 से चुनावों के लिए एक एक दिन में 14 -14 घंटे लगातार सोशल साइटों पर समर्पित भावना से संगठन और पार्टी के लिए काम किया है |ये क्रम 2 वर्ष लगतार चलता रहा जो अभी कुछ महीने पहले तक चला अब भी जारी है किन्तु निराशा होने के कारण अब  उतना उत्साह नहीं रहा यद्यपि निष्ठा वही है !
      सरकार बने पिछले तीन वर्ष हो गए सरकार के अनेकों मंत्रालयों सांसदों एवं पार्टी पदाधिकारियों के पास मिलने का समय स्वयं मैं माँग चुका हूँ सैकड़ों पत्र डाल चुका हूँ न समय मिला न पत्रों का उत्तर !यहाँ तक कि निजी तौर पर PM साहब और उनके PA श्री ओम प्रकाश जी के भी संपर्क में भी कभी मैं रह चुका हूँ तब माननीय मोदी जी ने मेरी मदद करने के लिए किसी को कभी फोन भी कर दिया करते थे किंतु जब से सरकार बनी तब से तो वे भी अतिव्यस्त हैं ईश्वर करे उनकी भी व्यस्तता बरकरार रहे ... !
       सरकार बनने के बाद ऊपर से नीचे तक सबको न जाने क्या हुआ जा रहा है कि वो विचारधारा वो सहजता वो सत्यवादिता वो सेवाभावना वो जिम्मेदारी के भाव न जाने क्यों छूटते जा रहे हैं |उन्हें  लगता है जैसे केवल उनके अपने और अपनों  के लिए सरकार बनवाई गई थी बाकी सबको आश्वासन लेटर आदि देकर पीछा छुड़ाने में ही लगे हैं विधायक संसद मंत्री आदि लोग | 
     पार्टी परिवार में अपनों के साथ इतना उदासीन वर्ताव किया जा रहा है ऊपर से नीचे तक ! पार्टी पदाधिकारी हों या सरकार में सम्मिलित लोग !इनके स्वभाव पहले तो ऐसे तो नहीं थे !माना कि व्यस्तता बढ़ी है किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि सेवा भावना से जुड़े पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं की बात सुनने के लिए किसी की कोई जिम्मेदारी और  जवाबदेही  ही न समझी जाए ! समाज के जो लोग हमारे संपर्क में रहे हैं आज वो हमारे पास काम के लिए संपर्क करते हैं मैं उनके नैतिक काम भी करवा पाने की स्थिति में नहीं हूँ | 
     पार्टी की उदासीनता के शिकार ऐसे बहुत लोग होंगे !स्वयं मुझे अपने जरूरी कामों के लिए कई बार घूस माँगने वाले अफसरों का सामना पड़ता  है वो साफ कहते हैं कि ये पैसा ऊपर तक जाता है ! ऐसी परिस्थिति में मैं अपनी पार्टी और सरकार के अच्छे कामों का प्रचार प्रसार कैसे करूँ और सरकार के किन गुणों की प्रशंसा करूँ ?कहाँ तक सूखा सूखा फीलगुड करूँ !
     इतना ही नहीं वैदिकविज्ञान के द्वारा मनोरोग चिकित्सा मौसम और भूकंप जैसे रहस्यमय विषयों पर मैंने सार्थक शोधकार्य किया है उससे इन विषयों में चल रहे शोध कार्यों को बड़ी मदद मिल सकती है किंतु इन विभागों से जुड़े लोग मेरी बात इसलिए सुनने के लिए तैयार इसलिए नहीं हैं क्योंकि वो वैदिक विज्ञान को विज्ञान मानने को तैयार ही नहीं हैं जबकि सरकार वैदिक विज्ञान एवं भारत की प्राचीन संस्कृति का प्रचार प्रसार करने के लिए पूँछ उठाए घूम रही है बड़े बड़े दावे ठोंक रही है किंतु वे वैदिकशोध को शोध लायक विषय ही नहीं मानते और उनकी शिकायत की किससे  जाए और अपना विषय रखा किसके सामने जाए !|मुझे अपने जरूरी शोधकार्य  को और आगे बढ़ाने के लिए सरकार से मदद चाहिए किंतु मदद तो दूर सरकार या पार्टी में कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं तीन वर्ष हो गए भटकते भटकते !वैदिक विषयों पर पूर्ववर्ती सरकार की उदासीनता तो समझ में आती थी किंतु वर्तमान अपनी सरकार तो संस्कृति के लिए समर्पित है उसमें भी उपेक्षा !आश्चर्य !!सत्ता का सुख जो न करा दे सो थोड़ा !!
पहले हमारी विचारधारा से संबंधित सभी लोग जिन बातों विचारों व्यवहारों के लिए सत्तारूढ़ अन्य दलों और उनके नेताओं की आलोचना किया करते थे उन्हें कहा करते थे कि वे सत्ता मूर्छित लोग हैं !किंतुआज... !
     कई बार ऐसा लगता है कि क्या ये दोष उस समय उन पार्टियों और नेताओं का नहीं था जिन्हें हम सभी लोग गलत समझकर जिनकी निंदा करते करते जिन्हें सत्ता से बाहर धकेला गया !वस्तुतः ये दोष सत्ता देवी का ही है जो भी सत्ता में आएगा वो ऐसा हो ही जाता है !किंतु अटल जी की सरकार में विभन्न मंत्रियों और सांसदों के यहाँ मैं भी मिलने गया सबके यहाँ न केवल सहजता दिखती थी अपितु होती भी थी बातें सुनी भी जाती थीं और मानी भी जाती थीं जवाब भी दिए जाते थे !ये राजनीति है इसमें अपने मन की बात सुनाने से अधिक जनता के मन की बात पता लगानी होती है !क्योंकि अपने मन की बात तो प्रायोजित हो सकती है जबकि जनता के मन की बात तो वास्तविकता है जिसे वो जी रही है !जो अपने भोजनालय के लिए अन्न नहीं जुटा पाते वे शौचालय बनाने की व्यवस्था कैसे कर लें और कर भी लें तो क्या भोजनालय से अधिक आवश्यक  है शौचालय !स्वच्छता अभियान केवल झाड़ू बुहारू कर लेने से सफल हो जाएगा क्या ?महोदय जनता की भी तो  सुनो !साफ सफाई से रहना जनता को भी आता है गंदगी में कोई नहीं रहना चाहता किंतु आर्थिक अभाव के कारण जिनके जीवन में सब कुछ अव्यस्थित हो वो केवल झाड़ू लगाकर कैसे स्वच्छ भारत का निर्माण करलें !घर भर के कपड़ों से बदबू आती हो विस्तर गंध दे रहे हों छतों से पानी टपक रहा हो !दरवाजे पर जानवरों की खूंदन हो ऐसे में कैसे हो स्वच्छ भारत का निर्माण !झाड़ू तो केवल नेता लगा सकते हैं क्योंकि उन्हें लगानी नहीं अपितु झाड़ू पकड़कर दिखानी होती है किंतु जिन्हें वास्तव में लगानी होती है वो दिखाना नहीं चाहते वैसे भी दिखावें किसको और देखेगा कौन !वैसे भी उनका तो प्रतिदिन का काम ही है झाड़ू लगाना !ऋषियों का भारत केवल स्वच्छ ही नहीं अपितु पवित्र भी था वो पवित्रता आज न जाने क्यों घटी है जिसे वापस  लाने की आवश्यकता है !
       यही PMO था !अटल जी से मिलने के लिए मैंने समय माँगा था तो बाकायदा हमारे नाम पत्र भेजकर  हमें यह  कहकर मना कर दिया था कि अभी वे व्यस्त हैं किंतु  उसी दिन शाम 8 बजे मैंने पुनः फ़ोन किया और कल का ही  समय लेने  की जिद कर दी ये  उनके लिए कितना कठिन रहा होगा कि रात 12 बजे PMO से फोन आया कि आप कल 13. 40 पर पहुँच जाओ !मैं गया और वे मिले ! 
      तब तो माननीय जोशी जी ,श्री अडवाणी जी , श्रद्धेय रज्जू भैया जी ,माननीय अशोक सिंघल जी के पास भी पहुँच कर अपनी बात आसानी से कही जा सकती थी अब तो पूरी सरकार और संगठन बिल्कुल पैक है आखिर क्यों ? सामान्य कार्यकर्ता को भी समझाइए सबसे अधिक उसी को जूझना पड़ता है जनता से !
     अब तो न किसी की कोई सुनेगा न उनके समाधान के विषय में कुछ बोलेगा और न कुछ देखेगा !केवल सरकार दौड़े जा रही है क्यों ?आखिर क्या किया जाए ऐसी मैराथनों  का !सरकार है तब उसकी उपेक्षा सरकार न हो तब तो उपेक्षा होती ही है ! 
     सरकार बनाने के लिए पार्टी के द्वारा चलाए जा रहे प्रयासों में एक एक कार्यकर्ता अपनी संपूर्ण सामर्थ्य से समर्पित रहा है फिर भी यदि सरकार उसके लिए नहीं है तो वो सरकार के लिए क्यों होगा !ऐसे भोजन बैठक और विश्राम के नाम पर बहुमूल्य स्वाँसें ब्यर्थ में क्यों नष्ट करेगा !
   इसलिए पार्टी और सरकार के जिम्मेदार शीर्ष लोगों से निवेदन है कि यदि संभव हो तो कार्यकर्ता की ओर भी देंखें उसे भी  समय दें कुछ उसके भी काम करें क्योंकि कार्यकर्ता उचित अनुचित बिचार किए बिना पार्टी और सरकार के साथ खड़ा होता है | फिर भी आप कार्यकर्ता का अनुचित काम मत कीजिए उचित तो कीजिए अन्यथा जिम्मेदारी से उत्तर तो दीजिए कारण और निवारण के उपाय तो बताइए !कोई  बताइए जहाँ कार्यकर्त्ता भी पहुँच कर अपनी बात रख सके और उसे आम जनता से कुछ तो अधिक अपनापन मिले !
    विशेष -मेरा उद्देश्य सरकार की आलोचना करना कतई नहीं हैं किंतु आम आदमी हो या कार्यकर्ता उसकी बात उठाना भी अपना धर्म है !सैद्धांतिक रूप से इसी विचार धारा से जुड़े होने के कारण जो बात मुझे निजी तौर पर रखनी चाहिए थी वो सार्वजनिक तौर पर यहाँ रखनी पड़ी क्योंकि वो लोग हमें विचार भी देने लायक नहीं समझते ऐसी जगह जुड़ना या न जुड़ना बराबर सा लगता था इसीलिए तटस्थ भूमिका मजबूरी में अपनानी पड़ी अन्यथा मेरे जैसे लोग भी पार्टी संगठन आदि में कहीं कुछ अपना योगदान दे सकते थे लेकिन मालिक लोग ऐसा करना उचित नहीं समझ रहे होंगे होगा कोई कारण !वो लोग हमारे जैसे लोगों को किसी लायक नहीं समझते इसलिए अपने विचार रखने के लिए कोई न कोई मंच तलाशना पड़ा !आज भी सरकार में वा संगठन में बैठे बड़े लोगों से निवेदन है कि यदि सरकार कोई समाधान निकालकर कोई ऐसा मंच संस्था या फोन नंबर उपलब्ध कराती है जो जिम्मेदारी पूर्वक आम कार्यकर्ता के साथ वर्ताव कर सके या आम समाज से प्रतिभाओं को प्रेरित करके राजनैतिक क्षेत्र की ओर रुझान पैदा कर सके !ये देश और समाज के हित में होगा !जिससे संपूर्ण रूप से नैतिक कार्यों में कार्यकर्ता और आम जनता की मदद की जा सके और अनैतिक कार्यों के लिए साफ साफ मना किया जा सके तो मुझे ख़ुशी होगी और मैं सम्पूर्ण निष्ठा के साथ उस संपर्क सूत्र का प्रचार प्रसार करके सरकार की छवि को अधिक से अधिक स्वच्छ और बेदाग़ बनाने के लिए प्रचार प्रसार करने की अपनी प्रतिज्ञा से संकल्पबद्ध हूँ वो करता रहूँगा !
     

संस्थापकः-  राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान seemore....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2014/06/blog-post_3979.html
हमारी शिक्षा -
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता ,उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी(काशी हिंदू विश्वविद्यालय) 
विशेष योग्यताः- वेदपुराणज्योतिषरामायणों तथा समस्त प्राचीन वाङ्मय एवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
हमारेलिखी हुई पुस्तकें-
प्रकाशितः- पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
   कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम (एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादनसह-संपादनस्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशित साहित्यः- श्री शिव सुंदरकांडश्री हनुमत सुंदरकांड,
संक्षिप्त निर्णय सिंधुज्योतिषायुर्वेदश्री रुद्राष्टाध्यायीवीरांगना द्रोपदीदुलारी राधिकाऊधौ-गोपी संवादश्रीमद्भगवद् गीता‘ काव्यानुवाद
रुचिकर विषयः- प्रवचनभाषणमंचसंचालनकाव्य लेखनकाव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्मतिथिः 9.10.1965
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव - इंदलपुरपो.- संभलपुरजि.- कानपुर,उत्तर प्रदेश
तत्कालीन पता :
के -71, छाछी बिल्डिंग चौक,
कृष्णा नगरदिल्ली-110051
दूरभाष : 01122002689, 01122096548,
मो9811226973, 9968657732
ई - मेल : vajpayeesn @gmail.com 
आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं श्री श्याम बिहारी मिश्र जी के साथ 
आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी                श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
श्रीमती सुषमा स्वराज जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
        श्री मदनलाल खुराना जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी