Thursday, December 7, 2017

आरक्षण लोभियों और नेताओं ने जातियाँ जिंदा कर रखी हैं दोष ब्राह्मणों को देते हैं !

जातियों का तड़का लगाए बिना भारत के चुनावों में स्वाद ही नहीं आता !चुनाव जीतने के लिए कसाई मंडियों के पशुओं की तरह हर चुनाव में दलितों अल्पसंख्यकों को पकड़कर खड़ा कर लेते हैं भ्रष्ट कामचोर नेतालोग चुनाव हो जाने के बाद फिर उन्हें चरने खाने के लिए छोड़ देते हैं इनका बंधुआ मजदूरों की तरह उपयोग करते चले आ रहे हैं नेता लोग !
उनकी गलत सिख मानकर आरक्षणभिक्षुकों ने भी अपनी गरीबत का ठीकरा ब्राह्मण आदि सवर्णों पर फोड़ रखा है वो ये नहीं देखते हैं कि सवर्ण उनका शोषण आखिर कर कैसे लेंगे !आजादी के बाद नेताओं ने उन्हें आजतक दिया क्या ?
राजनैतिक भिखारियों ने दलितों को किसी लायक नहीं छोड़ा उन्हें कभी कुछ दिया भी नहीं ऊपर से कामचोर अपाहिज गुण विहीन परिश्रम करके अपना विकास करने में अक्षम वर्ग सिद्ध कर दिया कि ये अपने बलपर अपनी तरक्की नहीं कर सकते !ऐसे बीमार लोग यदि विश्व के किसी अन्य देश में बसना चाहें तो वहाँ की सरकार ऐसे लोगों का बोझ क्यों ढोएगी वो तो जाते ही लट्ठ उठाएगी और पूँछेगी कि तुम्हारा शोषण जब सवर्ण करते रहे तब तुम्हारे पूर्वज सहते क्यों रहे वो तो सवर्णों की अपेक्षा संख्या में भी अधिक थे अपनी अकर्मण्यता का दोष सवर्णों पर मढ़ते लज्जा क्यों नहीं लगती है !
ऐसे कामचोर लोग अपने को इतना दबा कुचला सिद्ध करने पर आमादा हैं कि यदि उनके यहाँ बच्चा न हो तो उसके लिए भी वो सवर्णों को ही दोषी ठहरा देगें हालात इतने ज्यादा बिगड़ चुके हैं ! ऊपर से आग में घी डालने का काम कर रहे हैं कामचोर बदमाश भ्रष्ट नेता लोग !जो दलितों के हिस्से का हक़ खुद खा जाते हैं और उनके आक्रोश की बंदूक सवर्णों की ओर तान देते हैं !आजादी के बाद आज तक ऐसी ही कल्पित किस्से कहानियाँ गढ़ गढ़ कर दो दो कौड़ी के नेता अरबों खरबों की संपत्ति बना बैठे !किंतु दोषी सवर्णो को ही बताया करते हैं !इन बेईमानों को ये समझ में नहीं आता कि गरीब से गरीब ब्राह्मण भी तो बिना आरक्षण के परिश्रम पूर्वक संघर्ष पूर्वक अपना पेट पालन करते हैं वो तो किसी सरकार के सामने आता दाल चावल के लिए कटोरा लेकर भीख नहीं माँगते हैं !वो भूखे रह लेते हैं परेशान हो लेते हैं किंतु स्वाभिमान पूर्वक जीते हैं आरक्षण भिखारी कहलाना पसंद नहीं करते !सवर्णों का मानना है कि रईसत गरीबत तो भाग्य और कर्म का खेल है हर किसी को अच्छे बुरे दोनों प्रकार के दिन देखने पड़ते हैं किंतु उसके लिए आरक्षण भिखारियों की श्रेणी में खड़े होकर वे अपनी भावी पीढ़ियों का मनोबल नहीं गिराना चाहते जिससे उनका सम्मान बना और बचा रहता है !दलित भी उनसे कुछ सीखें और आरक्षण का बहिष्कार करें कर्म और संघर्ष का पथ चुनें ईश्वर स्वयं कृपा करेगा !ईश्वर किसी को जाति देखकर संपत्तियाँ नहीं देता है दलित भी चाहें तो जातीय जुमलों से बाहर निकलकर ईश्वरीय सिद्धांतों पर भरोसा करें अन्यथा नेताओं के द्वारा परोसी गई दुर्दशा भोगते रहें जिसके लिए सवर्णों को दोषी कभी नहीं ठहराया जा सकता !
वैसे भी जातियाँ ब्राह्मणों के कारण नहीं हैं जातियाँ तो आरक्षण भिखारियों ने जिन्दा कर रखी हैं जिन्हें कुछ करना धरना है नहीं अपनी असफलता का दोष दूसरों है दूसरे नेता लोग हैं जिन्होंने पिछले साठ थ से देश को केवल लूटा है उन्होंने देश और समाज के लिए कुछ भी नहीं किया है इसलिए चुनावों के समय उन्हें जातियों की जरूरत पड़ती है !जैसे भैंस का दूध निकालने के लिए लोग इंजेक्सन लगाते और दूध दुह लेते हैं उसी प्रकार से चुनाव जिताने के लिए नेता जातिवाद का इंजेक्सन लगाते और चुनाव जीत लेते हैं !इसमें ब्राह्मणों का दोष कहाँ हैं ये तो नेताओं और दलितों की आपसी साँठ गाँठ का नतीजा है !
ब्राह्मणों को गालियाँ दे देकर लोग कितने बड़े बड़े पदों पर पहुँच गए किंतु ब्राह्मणों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया !
विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए ब्राह्मणों को गालियाँ देकर लोग !ब्राह्मण गलत कभी नहीं रहे यही कारण है कि अंबेडकर साहब ने भी दूसरी शादी ब्राह्मण के यहाँ ही की थी और उनके शिक्षक तो ब्राह्मण थे ही !
अंबेडकर साहब ने जिनके कहने पर अपने नाम से 'सकपाल' टाइटिल हटाकर 'अंबेडकर' जोड़ा था वो उनके आत्मीय शिक्षक ब्राह्मण थे उनका नाम था महादेव अंबेडकर !इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर भी जन्म से ब्राह्मण थीं !
अम्बेडकर साहब से उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर जी न केवल बहुत अधिक स्नेह करते थे अपितु वैसे भी वे अंबेडकर साहब की मदद किया करते थे उनके आपसी संबंध अत्यंत मधुर थे यदि ऐसा न होता तो उन्होंने उनके कहने पर अपने नाम की टाइटिल क्यों बदल ली थी और यदि बदल भी ली थी तो बाद में फिर से सकपाल बन सकते थे किन्तु ये उनका आपसी स्नेह एवं उन ब्राह्मण शिक्षक महोदय के प्रति सम्मान ही था जो उन्होंने आजीवन निभाया !
इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी जन्म से ब्राह्मण थीं विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। बाद में सविता अम्बेडकर रूप में जानी गईं !वे सन 2002 तक जीवित रही वे अंतिम साँस तक बाबा साहब के आदर्शो के प्रति समर्पित रहीं !
ब्राह्मण विरोधी नेताओं ने उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझा !जबकि रमादेवी अम्बेडकर से जुड़े न जाने कितने स्मारक, पार्क इत्यादि हैं वो बाबा साहेब की पहली पत्नी थीं !
दलितों का शोषण सवर्णों ने बिलकुल नहीं किया किन्तु दलितों के बिछुड़ने के कारण कुछ और ही थे !
दलित लोग यदि वास्तव में अपनी उन्नति चाहते हैं तो ऐसे नेताओं को अपने दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो उन्हें खुश करने के लिए सवर्णों की निंदा करते हैं !दलित लोग भी अब अपना लालच छोड़कर नेताओं से देश एवं समाज के विकास का हिसाब माँगें !सीधे कह दें कि आप मेरी हमदर्दी मत कीजिए आपके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई आपका धंधा व्यापार क्या है और आप करते कब हैं !और यदि न बतावें तो सीधे पूछिए हमारा हक़ क्यों हड़पा है आपने !भले वो दलित नेता ही क्यों न हों !अपराध अपराध है उसमें जातिवाद नहीं चलता !
ब्राह्मणों ने सबके साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु जो सफल हुए उन्होंने सफलता का श्रेय अपनी योग्यता को दिया किंतु जो असफल हुए उन्होंने अपने अपमान भय से दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया !वैसे भी हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता की जिम्मेदारी हमेंशा दूसरों पर डालता है । नक़ल करते पकड़ा गया विद्यार्थी हमेंशा अपने बगल में बैठे विद्यार्थी पर ही दोष मढ़ता है बड़े बड़े अपराधों में पड़े गए लोगों को कहते सुना जाता है कि हमें गलत फँसाया गया है किंतु यदि इनकी बात सही मान ली जाए तो क्यों कोई दोषी माना जाएगा !
बंधुओ !ब्राह्मण यदि किसी की तरक्की में कभी बाधक बने होते तो आजादी के बाद आज तक इतना लंबा समय मिला जिसमें कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी तरक्की अपने परिश्रम से कर सकता था उसे आरक्षण की भी जरूरत नहीं पड़ती !आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी तरक्की बिना आरक्षण के अपने बल पर ही करते हैं वो अपने स्वाभिमान को गिरवी नहीं होने देते हैं|अपनेस्वाभिमान को सुरक्षित रखने वाले किसी भी जाति के व्यक्ति का अपमान करने का साहस करने में हर कोई डरता है कि ये अपने स्वाभिमान के लिए मर मिटेगा इसलिए इससे भिड़ना ठीक नहीं है । ऐसे लोगों की इज्जत भी होती है और माँ बहन बेटियाँ भी सुरक्षित बनी रहती हैं ।
जो लोग कहते हैं कि हम बिना आरक्षण के तरक्की ही नहीं कर सकते इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपने मुख से अपने को कमजोर मान लिया है और कमजोर लोगों का अपमान तो होता ही है इसमें जातियाँ कहाँ से आ गईं !कमजोर जाति की बात छोड़िये कमजोर भाई का अपमान उसका सगा भाई करने लगता है !कमजोर बेटे का पक्ष अधिकाँश माता नहीं लेते !कमजोर पति को पत्नी सम्मान नहीं देती है कमजोर पिता का सम्मान उसकी संतानें नहीं करती हैं ऐसे में स्वयं अपने ऊख से अपने को कमजोर कहने वाले लोग सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं बड़े बड़े पदों पर पहुँच कर भी लोग या तो अपने को कमजोर ही मन करते हैं या फिर सवर्णों को शत्रु मानने लगते हैं !
इसलिए सभी आरक्षण भोगियों को आपस में बैठकर चिंतन करना चाहिए तब उन्हें पता लगेगा कि उन्होंने आरक्षण से पाया कुछ ख़ास नहीं है किंतु भिखारी होने का ठप्पा जरूर लगवा लिया !साथ ही इससे देश का बहुत बड़ा नुक्सान ये हुआ है कि एक से एक नकारा कामचोर मक्कार नेता लोग आरक्षण भोगी जातियों का वोट लेने के लिए चुनावों के समय सवर्णों को दस पाँच दिन गालियाँ देते हैं और जीत लेते हैं चुनाव किंतु घर तो अपना ही भरते हैं दलितों के उत्थान करने वाले भी नेता ही क्यों न हों आज वो करोड़ों अरबों में खेल रहे हैं जबकि राजनीति में आते समय किराया भी जेब में नहीं था यही हाल हर जाति के नेता का है वो फुल टाइम राजनीति करते रहे कभी कोई धंधा व्यापार नहीं किया फिर भी करोड़ों अरबों पति हो गए ये धन दलितों के ही हिस्से का है ये धन गरीबों किसानों मजदूरों के हिस्से का है जो नताओं के घरों में जमा है ये लोग दसकों से यही खेल खेलते चले आ रहे हैं किंतु आरक्षण भोगियों की संख्या अधिक है उन्हें खुश करने के लिए ये पापी सवर्णों की निंदा किया करते हैं और संपत्ति का अम्बार लगाए हुए हैं ! अब जरूरत है कि दलित लोग ऐसे नेताओं को दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो सवर्णों की निंदा करके उन्हें खुश करने का प्रयास करें !