Wednesday, February 13, 2013

कुम्भ में यह क्या हुआ,आखिर इसका जिम्मेदार कौन ?

        विश्व के सबसे बड़े मेले का यह हाल !

     विश्व के सबसे बड़े मेले को सकुशल संपन्न करके अपनी प्रशासनिक क्षमता प्रदर्शित करने  का एक और बहुमूल्य अवसर देश ने खो दिया।सारे विश्व की निगाहें जिस मेला प्रबंधन की कुशलता पर लगी थीं विदेशी लोग यहाँ मेले पर शोध करने को पधारे हैं।इतने बड़े मेले में कोई दुर्घटना मानवीय भूल या सामाजिक असावधानी के कारण हो सकती है ऐसा संभव है।

       वर्षों से गाँव गाँव शहर शहर घूम घूम कर धार्मिक लोग कुंभ में पधारने का समाज को आमंत्रण दिया करते हैं क्या संतों का दायित्व केवल इतना ही है कि सारे देश की भीड़ इकट्ठी कर लें जिसमें उन्हें तो महीने दो महीने तक कुम्भ परिषर में व्यवस्थित रूप से रहना होता है उन्हें मेले के विषय में एवं सरकारी व्यवस्थाओं की सम्यक जानकारी होती है किन्तु आम आदमी इन सारी बातों से अपरिचित होता है आखिर उसे सकुशल वापस घर भेजने की जिम्मेदारी भी तो इसी संत समाज और सरकार दोनों की ही है। चूँकि श्रृद्धालुओं की आपसी असावधानी से यह घटना घटी है इसलिए सरकार भी दोषी है किन्तु केवल सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता है इसमें समाज एवं संतों का भी कुछ दायित्व था जिसका सम्यक ढंग से निर्वाह नहीं हो सका।क्या समाज एवं संतों ने कभी सोचा है कि आमतौर पर इलाहाबाद जैसे छोटे शहर के बश की बात नहीं है इतनी बड़ी भीड़ सम्हालना फिर भी धार्मिक महत्त्व की बात है बड़े भाग्य और पुण्यों से ऐसे सुअवसर जीवन में किसी किसी को कभी कभी मिलते हैं यह स्वीकारते हुए किसी को यहाँ आने से रोकना न उचित है और न शास्त्रीय है न संवैधानिक  है और न  संभव ही है।अब दूसरी बात व्यवस्था की है जिसमें साधू संतों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए था।मेला में अक्सर आने वाले  लोग किसी न किसी धर्मस्थल से जुड़े होते हैं उन महात्माओं के द्वारा  श्रृद्धालुओं को आने जाने ठहरने नहाने धोने में सावधानी रखने के लिए प्रेरित किया या करवाया जा सकता था आगंतुकों को सही जानकारी मिलनी चाहिए थी।जिसकी कहीं न कहीं कमी दिखी अन्यथा  इसप्रकार से सरकार और संत मिलजुल कर इस महान मेले को सफल बनाकर देश और धर्म का सम्मान बचा  सकते थे ।

       जहाँ सरकार की बात है उसके विषय में कहा जा सकता है कि अमावश्या में तीन करोड़ की संभावित भीड़ की व्यवस्था के विषय में  जितनी गंभीरता बरती जानी चाहिए थी उसमें कमी रही।इलाहाबाद स्टेशन पर भगदड़ मचने के काफी देर बाद तक अफरा तफरी रही।आकस्मिक उचित  व्यवस्थाओं  की कमी रही किसी जिम्मेदार मंत्री का उस समय तत्काल वहाँ न पहुँच पाना चिंता का विषय है अमावश्या की भीड़ को ध्यान में रखते हुए जिन सतर्क सुव्यवस्थाओं का होना आवश्यक उनका अभाव रहा ।राष्ट्रीय महत्त्व के इस मेले को सफल बनाने का दायित्व केंद्र सरकार का भी था उसे भी इससे पल्ला झाड़ लेना शोभा नहीं देता है आखिर सुव्यवस्था के अभाव में पैंतीस छत्तीस श्रृद्धालुओं की मौत हुई है।ये आपसी आरोप प्रत्यारोप का राजनैतिक विषय नहीं है जो चोंच लड़ाने से बात बन जाए  यह पीड़ित श्रृद्धालुओं की मृत्यु का मामला है उनके परिवारों की पीड़ा का मामला है इस मेला के महत्त्व का मामला सरकार की गंभीरता एवं विश्वसनीयता  मामला है देश की साख एवं सुप्रबन्धन पर प्रश्न है अभी भी भूल सुधार का प्रयास हो तो अच्छा होगा।केवल मुवाबजा  किसी की स्वजन वियोगिनी  पीड़ा को शांत करने  के लिए पर्याप्त नहीं है।समय के साथ साथ धीरे धीरे सहन करने की क्षमता बनेगी।हमारी ओर से भी ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी श्रृद्धालुओं पर भगवान कृपा करें।      

     राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ 


यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।

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